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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

2011 कुछ नई चुनौतियां और आंकलन

जीएसएलवी की असफल लांचिंग ने इसरो की उस शानदार कामयाबी को फीका कर दिया जो यूरोपियन स्पेस एजेंसी के लिए मिशन हायलास-1 से जुड़ी थी। मिशन हायलास-1 यूरोपियन स्पेस एजेंसी का ऐसा पहला सेटेलाइट था जिसे इसरो के वैज्ञानिको ने पूरी तरह बैंगलोर में बनाया था। इससे पहले हम नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी को उपकरणों और सॉफ्टवेयर्स की आपूर्ति करते रहे हैं, लेकिन हायलास-1 ऐसा पहला यूरोपियन सेटेलाइट था जिसे भारत में बनाकर यूरोप भेजा गया। देश की टेक्नोलॉजी आगे बढ़ रही है और दुनिया का भरोसा भी जीत रही है, मैं इसे साल 2010 की बड़ी उपलब्धि मानता हूं। 2010 को पीछे छोड़कर हम अब 2011 में प्रवेश कर चुके हैं और कई नई चुनौतियां सामने हैं। बीती बातों का जिक्र कर वाहवाही करने के बजाय सामने खड़ी चुनौतियों को समझना और 2011 में कौन सी महत्वपूर्ण उपलब्धियां मिलने वाली हैं इन्हें समझना ज्यादा जरूरी है।
2011 की दहलीज से हमें एक ब्रेकिंग न्यूज नजर आ रही है कि पृथ्वी से मिलता-जुलता एक ऐसा ग्रह ढूंढ़ लिया गया है जहां हम रह सकते हैं, इस बात की संभावना भी बहुत ज्यादा है कि 2011 का जिक्र इतिहास में एसे साल के तौर पर किया जाए...जब हमने धरती से दूर किसी ग्रह या चंद्रमा पर जीवन का एक अनजाना स्वरूप खोज निकाला। अपनी धरती और मानव सभ्यता की बात करें तो 2010 पर्सनल रोबोट, वर्चुअल वर्ल्ड, वर्चुअल सोसाइटी और वर्चुअल रिलेशन का हो सकता है। पैसा दो और अंतरिक्ष की सैर पर जाओ एक आम बात हो जाएगी और इस बात की भी पूरी उम्मीद है कि हम पेट्रोल और दूसरे जैविक ईंधनों पर अपनी निर्भरता नियंत्रित करने में कामयाब रहेंगे। प्रयोगशाला में हम जीवन का निर्माण कर चुके हैं और इस साल हम लैब में जीवन के कुछ बहुकोशकीय जटिल स्वरूप बनाने की कोशिश कर सकते हैं। मुझे लगता है कि दूसरी धरती की खोज, किसी और ग्रह पर जीवन की तलाश और प्रयोगशाला में बनाए जा रहे जीव, ये तीन घटनाएं आने वाले साल या इसके बाद मानव समाज और इसके विश्वास को झकझोरकर रख देने वाली साबित होंगी। मुमकिन है कि हमें युगों पुराने विश्वासों के टूटने से पैदा होने वाले सामाजिक नतीजों का सामना भी करना पड़े। 2011 स्पेस शटल उड़ानो का अंतिम साल होगा, अंतरिक्ष अभियानों, अंतरिक्षयात्रियों, हम भारतीयों और खुद नासा के लिए शटल रिटायरमेंट का पल काफी भावुक होगा।

साइंटोमेट्रिक्स की गणनाएं

बोस्टन के हावर्ड मेडिकल स्कूल के वैज्ञानिक डॉ. सैमुअल आर्बेसमैन सामाजिक वैज्ञानिक विकास के अध्ययन और इसके अगले कदम के आंकलन के लिए गणित और कंप्यूटर की मदद से खास रिसर्च कर रहे हैं। उन्होंने वैज्ञानिक विकास के अगले कदम के आंकलन के लिए गणना का अनोखा तरीका खोजा है और वो इसे ‘साइंटोमेट्रिक्स’ के नाम से पुकारते हैं। ‘साइंटोमेट्रिक्स’ की गणनाओं से डॉ. आर्बेसमैन ये बता सकते हैं कि कौन सी वैज्ञानिक खोज कब होने वाली है। पिछले साल सितंबर खोजे जा चुके नए ग्रहों की प्रकृति के डेटा की मदद से उन्होंने बताया था कि इस बात की 50 फीसदी संभावना है कि जीवन को सहारा देने वाला धरती से मिलता-जुलता पहला ग्रह मई 2011 तक खोज लिया जाए। जबकि ऐसे ग्रह की खोज वक्त से पहले यानि अक्टूबर के अंतिम हफ्ते तक ही कर ली गई। डॉ. आर्बेसमैन ने अपने इसी तरीके का इस्तेमाल कर 2011 के लिए ये वैज्ञानिक आंकलन किए हैं।

जुड़वां धरती की खोज संभव

डॉ. आर्बेसमैन की ‘साइंटोमेट्रिक्स’ बताती है कि हमारी धरती के जुड़वां की तलाश मई 2011 तक वो ब्रेकिंग न्यूज दे सकती है, जिसकी सभी इंतजार कर रहे हैं। अक्टूबर 2010 में ही ‘ग्लीसे-581 जी’ की खोज होने की खबर आ गई। हमसे 20.5 प्रकाश वर्ष दूर मौजूद एक रेड ड्वार्फ सितारे ग्लीसे-581 के सौरपरिवार में बी, सी, डी और ई नाम के ग्रह पहले ही खोजे जा चुके थे। लेकिन अक्टूबर में वैज्ञानिकों ने इस सौरपरिवार में मौजूद एक और ग्रह ‘जी’ की खोज कर ली। ‘जी’ यानि ‘ग्लीसे-581 जी’ अपने सितारे के हैबिटेट जोन में उसी तरह मौजूद है जैसे कि हमारे सौरमंडल में अपने सूरज से दूर हमारी पृथ्वी। लेकिन इस खोज की पुष्टि अभी दुनिया के दूसरे वैज्ञानिक केंद्रों और ऑब्जरवेटरीज से होनी बाकी है।
फरवरी 2011 इस सिलसिले में काफी अहम साबित होगा। इस महीने अंतरिक्ष में पृथ्वी की जुड़वां की तलाश में जुटे नासा की स्पेस ऑब्जरवेटरी केप्लर के डेटा रिलीज किए जाएंगे। सारी दुनिया के वैज्ञानिक और एस्ट्रोनॉमर्स फरवरी 2011 का इंतजार कर रहे हैं, जब एक नई दुनिया की खोज का ऐलान किया जा सकता है और अगर ये खोज न भी हो, तो भी उम्मीद है कि नए ग्रहों की संख्या कई गुना तक बढ़ सकती है।

इंटरनेट हंगामे का साल

2011 इंटरनेट हंगामे का साल होगा। फिनलैंड, स्पेन और एस्टोनिया में इंटरनेट को इतना महत्वपूर्ण समझा जाता है कि यहां इसके एक्सेस को कानूनी अधिकार में शामिल कर लिया गया है। यानि इन देशों में इंटरनेट का इस्तेमाल हर नागरिक का कानूनी अधिकार है। एप्पल आईपैड और टचस्क्रीन कंप्यूटर्स के आगमन ने वेब सर्फिंग को और भी मजेदार और इंटरैक्टिव बना डाला है, जबकि बाजार में मौजूद स्मार्टफोन्स, खासतौर पर एन्ड्रॉएड्स ने मोबाइल पर इंटरनेट को बेहद आसान कर दिया है। लेकिन इन सब के बावजूद विकासशील देशों में केवल 20 फीसदी जनसंख्या ही इंटरनेट का इस्तेमाल कर रही है। मोबाइल पर इंटरनेट का प्रयोग करने वालों की तादाद तो और भी कम है। 2011 में हम सभी एक इंटरनेट क्रांति देखेंगे। जिससे वर्चुअल सोसाइटी और वर्चुअल रिश्तों की शुरुआत होगी।

सड़कों पर दौड़ेंगी इलेक्ट्रिक कारें

लंबा इंतजार अब खत्म होगा और 2011 में हम सड़कों पर दौड़ती इलेक्ट्रिक कारें देख सकेंगे। लंबे टेस्ट का बाद अब मोबाइल की तरह चार्ज की जा सकने वाली कारें वाकई लांच के लिए तैयार हैं।
 ऐसी इलेक्ट्रिक कारें कई कंपनियां बना रही हैं, लेकिन इस सेगमेंट की लीडर कंपनी है शेवी वोल्ट... 16 किलोवॉट-घंटे की बैटरी और 149 हॉर्स पावर वाली इलेक्ट्रिक मोटर के साथ जिसकी कारें अब सड़कों पर दौड़ने के लिए तैयार हैं।
शेवी की कार एक बार चार्ज हो जाने के बाद 60 किलोमीटर तक दौड़ सकती है। आपात स्थिति का सामना करने के लिए इसमें पेट्रोल इंजन भी लगा हुआ है।

मानवता की उम्मीद- स्टेम सेल

अविकसित मानव भ्रूण से निकाले गए स्टेम सेल्स ने चिकित्साजगत में नई आशाएं जगाई हैं। 2010 में स्टेम सेल के दो अहम प्रयोगों की शुरुआत हुई, उम्मीद है जिनके सुखद नतीजे हमें 2011 में प्राप्त होंगे। अविकसित मानव भ्रूण से निकाले गए स्टेम सेल्स में एक खास गुण होता है कि वो हमारे शरीर में मौजूद 200 तरह के सभी ऊतकों को फिरसे उत्पन्न कर सकते हैं। यानि आम भाषा में कहें तो स्टेम सेल हमारे शरीर के किसी भी अंग को फिर से पैदा कर सकते हैं। लेकिन क्योंकि ये स्टेम सेल एक अविकसित भ्रूण से निकाला जाता है, जो इस प्रक्रिया में नष्ट हो जाता है, इसलिए इस तकनीक के इस्तेमाल पर नैतिक विवाद है। अगर 2010 में शुरू किए गए स्टेम सेल के ये दोनों अहम प्रयोग अपनी उम्मीदों पर खरे उतरते हैं, तो इस तकनीक के इस्तेमाल को लेकर विवाद खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगा।
मैसाचुसेट्स के वॉरसेस्टर में मौजूद एडवांस्ड सेल टेक्नोलॉजी के डॉ. रॉबर्ट लांजा बताते हैं कि स्टेम सेल के पहले प्रयोग के तौर पर हमने एक नेत्रहीन व्यक्ति की आंख में ‘रेटिनल सेल्स’ इंजेक्ट कर दिए हैं। आंख की रोशनी खो चुके कई रोगियों पर 2011 में ये प्रयोग दोहराया जाएगा, उम्मीद है कि कुछ ही हफ्तों बाद इसके नतीजे सामने आ जाएंगे। इस तकनीक से रोगियों को फिर से आंख मिलने में कम से कम छह हफ्तों का वक्त लगेगा।
अक्टूबर 2010 में स्टेम सेल का एक और अहम प्रयोग किया गया, एक ऐसे रोगी की रीढ़ की हड्डी में स्टेम सेल्स प्रत्यारोपित किए गए जो एक दुर्घटना में स्पाइनल इंजरी का शिकार हो कर पैरालाइज हो गया था। उम्मीद है कि उसकी रीढ़ में प्रत्यारोपित किए गए स्टेम सेल्स क्षतिग्रस्त नर्व की जगह नई नर्व्स उत्पन्न कर देंगे, जिससे वो रोगी फिरसे चलने-फिरने लगेगा।

निजी स्पेस टैक्सी

स्पेस टूरिज्म का दौर इधर कुछ थमा सा नजर आ रहा है। निजी कंपनियां कई साल से वादा कर रही हैं कि वो अंतरिक्ष के सफर को सरकारी नियंत्रण से आजाद करके इतना सस्ता कर देंगी कि आम लोग भी अंतरिक्षयात्रा पर जा सकेंगे। 2011 में हम इस सपने को सच होता देखेंगे। 8 दिसंबर को इसका पहला प्रयोग कामयाब रहा, कैलीफोर्निया की कंपनी स्पेस-एक्स ने अपना ड्रैगन कैप्सूल सफलता के साथ धरती की कक्षा तक भेजा और उतनी ही कुशलता से उसे धरती पर वापस ले आया गया। पहली बार एक निजी कंपनी ये करने में कामयाब रही। 2008 में नासा के साथ किए गए एक अनुबंध के तहत स्पेस-एक्स की उड़ान इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के लिए माल ढोने का काम करेगी, लेकिन उड़ान में इस स्पेसक्राफ्ट के भीतर कंपनी के भेजे अंतरिक्षयात्री भी मौजूद रहेंगे।
नासा के ऐतिहासिक स्पेस शटल का बेड़ा 2011 में रिटायर हो रहा है। हकीकत में स्पेस शटल के इस घोषित रिटायरमेंट से ही स्पेस टैक्सीज को विकसित करने के लिए निजी कंपनियों का रास्ता साफ हुआ है। खास बात ये कि स्पेस टैक्सी को विकसित करने के लिए नासा और अमेरिकी कांग्रेस निजी कंपनियों को वित्तीय मदद भी दे रहे हैं। 2011 में स्पेस-एक्स की दो परीक्षण उड़ानें और होनी हैं और 2011 में ही स्पेस-एक्स पहली बार स्पेस स्टेशन से डॉक भी करेगा। स्पेस टूरिज्म कंपनी वर्जिन गैलेक्टिक भी 2011 में एक जाइंट लीप भरने के लिए तैयार है।

2011 की मुख्य खगोलीय घटनाएं और स्पेस मिशन लांच


2 जनवरी - बृहस्पति और यूरेनस का उत्तर दिशा में 13:41 UTC बजे कंजक्शन, आमतौर पर 13 साल में एक बार होने वाली ये खगोलीय घटना बीते 10 महीने के दौरान तीसरी बार घट रही है
4 जनवरी - आंशिक सूर्य ग्रहण, यूरोप, अरब देशों, उत्तरी अफ्रीका और पश्चिमी एशिया में दिखेगा



3 फरवरी - स्पेस शटल डिस्कवरी मिशन एसटीएस-133 लांच, Lunch Time-1:37 am EDT


18 मार्च - नासा का मैसेंजर स्पेसक्राफ्ट पहली बार बुध की कक्षा में प्रवेश करेगा


18 मार्च - पांच साल पहले प्लूटो के सफर पर निकला नासा का मिशन न्यू होराइजन यूरेनस के परिक्रमा-पथ से होकर गुजरेगा। मिशन न्यू होराइजन की रफ्तार वॉयेजर-2 से कहीं ज्यादा तेज है। वॉयेजर-2 ने यहां तक पहुंचने में 8 साल का वक्त लिया था।

01 अप्रैल – नासा के ऐतिहासिक स्पेस शटल की अंतिम उड़ान। शटल एंडेवियर मिशन एसटीएस-134 अंतिम उड़ान भरेगा Launch Time 3:15 am EDT
मई - बृहस्पति, शुक्र, बुध और मंगल आसमान में एक छोटे से दायरे में एकसाथ नजर आएंगे। बेहद दुर्लभ खगोलीय घटना
01 जून – आंशिक सूर्य ग्रहण, आर्कटिक यानि उत्तरी ध्रुवीय इलाकों से दिखेगा
15 जून – पूर्ण चंद्र ग्रहण, मुख्य तौर पर अफ्रीका, भारत और मध्य-पूर्वी देशों से नजर आएगा
01 जुलाई – आंशिक सूर्य ग्रहण अंटार्कटिक यानि दक्षिणी ध्रुव के तटीय इलाकों से नजर आएगा
10 जुलाई – 1846 में खोजे जाने के बाद नेप्च्यून सूरज की पहली परिक्रमा पूरी करेगा
जुलाई - स्पेसक्राफ्ट डॉन छुद्र ग्रह वेस्टा जा पहुंचेगा
15 जुलाई - निजी स्पेस टैक्सी स्पेस-एक्स के ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट की दूसरी परीक्षण उड़ान। इस उड़ान में ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के 6 मील दूर तक जाएगा

05 अगस्त – सौरमंडल के सबसे विशाल ग्रह बृहस्पति के लिए पहला साइंस मिशन रवाना होगा। नासा का जूनो स्पेसक्राफ्ट बृहस्पति के सफर पर रवाना होगा, launch at 12:10 pm to 1:40 pm EDT. मिशन जूनो बृहस्पति तक 2016 में पहुंचेगा।
15 अगस्त – धूमकेतु 45P/Honda-Mrkos-Pajdusakova धरती के बेहद करीब यानि करीब 8,995,100 किलोमीटर की दूरी से गुजरेगा
08 सितंबर – नासा का Gravity Recovery and Interior Laboratory (GRAIL) मिशन लांच at 8:35 am - 9:14 am EDT. मिशन ग्रेल में दो स्पेसक्राफ्ट होंगे जो चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करके चंद्रमा की आंतरिक बनावट का अध्ययन करेंगे
08 अक्टूबर – निजी स्पेस टैक्सी स्पेस-एक्स के ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट की तीसरी और अंतिम परीक्षण उड़ान। इस उड़ान में ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के करीब जाकर उससे डॉक करेगा
25 नवंबर – आंशिक सूर्य ग्रहण अंटार्कटिक के इलाकों से नजर आएगा
25 नवंबर – मंगल पर जीवन की खोज के लिए नासा का महत्वपूर्ण रोवर मिशन मार्स साइंस लैबोरेटरी मंगल के सफर पर निकलेगा। फ्लोरिडा के केप कैनेवेरल से मिशन लांच 10:21 am
07 दिसंबर – निजी स्पेस टैक्सी स्पेस-एक्स के ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट की चौथी उड़ान। इस उड़ान में ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के लिए सप्लाई ले जाएगा
10 दिसंबर – साल का दूसरा पूर्ण चंद्र ग्रहण, एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अलास्का से नजर आएगा
25 दिसंबर – मंगल के चंद्रमा फोबे के लिए रूस का महत्वपूर्ण मिशन फोबे-ग्रुंट लांच होगा। इस मिशन में चीन भी सहयोग कर रहा है। मिशन फोबे-ग्रुंट 2012 में मंगल के चंद्रमा फोबे पर उतरकर वहां से मिट्टी के सैंपल लेकर धरती पर वापस भेजेगा।

- सूरज से सौर विकिरण का एक बड़ा तूफान उठने का आशंका है
- पाकिस्तान अपना पहला स्पेस सेटेलाइट लांच करेगा
- चीन अपने स्पेस स्टेशन पर काम शुरू करेगा। शुरुआत अंतरिक्ष में एक प्रयोगशाला भेजने से

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

भारत से आन सान सू की का गहरा रिश्ता

भारत हमें बात कहने के मौके दे - सू की


साइंस की बुनियाद आजादी और लोकतांत्रिक अधिकारों में है। इसलिए हम 'वॉयेजर' पर प्रस्तुत कर रहे हैं म्यांमार में नागरिकों की आजादी और लोकतंत्र के लिए संघर्ष कर रही हमारे वक्त की महान नेता आन सान सू की पर विशेष सामग्री।
कम ही लोग जानते होंगे कि दिल्ली स्थित कांग्रेस हेडक्वॉर्टर से म्यांमार की लोकतांत्रिक नेता आन सान सू की का गहरा रिश्ता रहा है। दिल्ली के जिस बंगले में वो रहा करती थीं, आज वहां कांग्रेस का मुख्यालय है। यही नहीं जो कमरा आज राहुल गांधी का है, वही कमरा कभी म्यांमार की महान नेता आन सान सू की का हुआ करता था। सू की जब 15 साल की थीं, तब वो राजधानी दिल्ली के 24 अकबर रोड में रहती थीं जो कि उनकी मां दाव किन की को अलॉट किया गया था। उनकी मां भारत में म्यांमार की राजदूत थीं। लेखक-पत्रकार रशीद किदवई ने अपनी नई किताब '24 अकबर रोड' में इसका जिक्र है। 1911 से 1925 के बीच बने इस बंगले का नाम तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दाव किन की के सम्मान में 'बर्मा हाउस' रखा था। सू की ने अपने बचपन में खुद के लिए जिस कमरे को चुना था, वो अब कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी का कमरा है। सू ने इस कमरे को इसलिए चुना था क्योंकि इसमें एक बड़ा पियानो रखा था और हर शाम को पियानो टीचर उन्हें इसे बजाना सिखाता था। दिल्ली के इस बंगले में सीखा पियानो बाद में अपने देश में लोकतंत्र के संघर्ष के दौरान उनके बड़े काम आया।
कई साल बाद, रंगून में एक झील के किनारे मौजूद एक खस्ताहाल घर से पियानों की धुनें वहां से गुजरने वालों का ध्यान खींचने लगीं...इन धुनों को सुनकर लोगों को पता चला कि बर्मा की फौजी हुकूमत ने उनकी नेता आन सान सू की को इस जगह नजरबंद किया है...निराशा और अकेलेपन के उस दौर में सू के लिए एकमात्र राहत पियानो ही था...और नजरबंदी में डिप्रेशन से बचने के लिए वो कई-कई घंटों तक पियानो बजाती रहती थीं।
दिल्ली के 24 अकबर रोड में ही सू की ने जापानी तरीके से फूलों को सजाना भी सीखा। यहां के बगीचे में वो संजय गांधी और राजीव गांधी के साथ खेलती थीं। संजय और राजीव उनके अच्छे दोस्त थे...जिनमें से एक का जन्म सू की से एक साल पहले और दूसरे का उनसे एक साल बाद हुआ था। वो अक्सर दोनों के साथ राष्ट्रपति भवन में देखी जातीं थीं, जहां राष्ट्रपति के अंगरक्षकों से वो घोड़े की सवारी करना सीखती थीं। सू की ने अपनी स्कूल की पढ़ाई दिल्ली के सेंट जोसफ गिरजाघर के पास मौजूद जीसस एंड मैरी कॉन्वेंट स्कूल से की थी। सू ने इसके बाद लेडी श्रीराम कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएशन की। ऑक्सफोर्ड शिक्षित सू की राजनीति में बहुत बाद में आईं। उनका ज्यादातर वक्त भारत और ब्रिटेन में बीता। म्यांमार के मुक्ति नेता जनरल आंग सान जिनकी हत्या 1947 में ही कर दी गई थी, की बेटी 1988 में अपनी मां की देखभाल के लिए यांगून लौटीं और फिर अपने देश की मिट्टी की होकर रह गईं।
म्यांमार में लोकतंत्र के लिए संघर्ष कर रहीं आंग सान सू की को इस साल 13 नवंबर को नजरबंदी से रिहा कर दिया गया। परंपरागत जैकेट पहने सू जब अपने मकान के गेट पर आईं तो उनके चेहरे पर मुस्कान थी। उन्होंने अपने बालों में फूल लगा रखा था। उन्होंने अपनी बर्मी भाषा में घर के बाहर मौजूद अपने समर्थकों का धन्यवाद किया जिनकी संख्या धीरे-धीरे 5000 तक पहुंच गई थी। नोबल शांति पुरस्कार विजेता 65 वर्षीय सू ने इस बार करीब साढ़े सात साल की नजरबंदी काटी है। पहले भी कई बार उन्हें नजरबंद किया जा चुका है। उनकी रिहाई के वक्त वहां मौजूद उनकी एक प्रबल समर्थक नैंग विन ने कहा, 'मैं उन्हें अपनी मां मानती हूं, बहन मानती हूं, दादी मानती हूं क्योंकि वह हमारी आजादी के नायक जनरल आन सान की बेटी हैं। उनमें भी तो उन्हीं का खून है।' सैन्य शासन के विरोध का जोखिम उठाते हुए उनके समर्थकों ने उनकी तस्वीर वाली टी-शर्ट पहन रखी थी जिस पर लिखा था-'आंग सान सू की, हम तुम्हारे साथ हैं'। इस समय म्यांमार में करीब 2200 राजनीतिक कैदी हैं।
अपने देश म्यांमार में लोकतंत्र के लिए संघर्ष के दौरान उन्हें बहुत बड़ी व्यक्तिगत क्षति भी हुई। उनके ब्रिटिश विद्वान पति माइकल एरिस की 1999 में मौत हो गई। कैंसर से जुझ रहे एरिस को बर्मा की फौजी हुकूमत ने अपनी पत्नी से मिलने आने देने के लिए वीजा नहीं दिया। सू की ने पति से मिलने के लिए देश से बाहर जाने से इनकार कर दिया क्योंकि यह तय था कि यदि वह जाती हैं तो उन्हें वापस नहीं लौटने दिया जाता।
नजरबंदी से रिहाई के बाद आन सान सूकी अपनी मुहिम को मजबूत करने में जुटी हैं...और बर्मा में लोकतंत्र की स्थापना में वो भारत और चीन से खास मदद चाहती हैं...'वॉयजर' पेश करता है, सू ची का खास इंटरव्यू जिसे लिया है डॉयचे वेले ने

आजकल आपकी दिनचर्या क्या रहती है?

मेरा दिन तो बहुत-बहुत व्यस्त रहता है। आज ही की बात करें तो सुबह मेरी दो तीन अपॉइंटमेंट्स थीं, फिर दोपहर में भी दो जगह जाना था और देखिए रात हो गई है लेकिन अब भी मेरा काम खत्म नहीं हुआ है।

कैसी अपॉइंटमेंट्स होती हैं?

मैं राजनयिकों से मिल रही हूं। राजनीतिक दलों से और बाकी लोगों से मिल रही हूं, फिर हमारी पार्टी नेशनल लीग ऑफ डेमोक्रैसी की बैठकें भी होती हैं। फोन पर भी लोगों से बात होती है, उन पत्रकारों से भी मिलना होता है जो बर्मा आने में कामयाब हो गए हैं।

नजरबंदी से रिहा होने के बाद आपने शहर में सबसे बड़ा बदलाव क्या पाया?

मुझे लगता है कि मोबाइल फोन की तादाद। जैसे ही मैं बाहर निकली मैंने देखा कि लोग मोबाइल फोन से तस्वीरें ले रहे थे। इसका मतलब है कम्यूनिकेशन में सुधार हुआ है।

और बर्मा का समाज? उसमें आपने कुछ बदलाव पाए?

महंगाई बहुत बढ़ गई है और लोग इस बात को लेकर बहुत परेशान हैं। हर आदमी बढ़ती कीमतों की बात करता है। नौजवानों के नजरिए में भी काफी सुधार हुआ है। वे राजनीति प्रक्रिया का हिस्सा बनना चाहते हैं और वे पहले से बहुत ज्यादा तेज और सक्रिय हैं।

जब आप रिहा हुईं तो बहुत सारे नौजवान आपसे मिलने आए। बर्मा के नौजवानों से आपकी क्या उम्मीदें हैं?

उन्हें समझना होगा कि देश में बदलाव उन्हीं को लाना है और उन्हें मुझ पर या एनएलडी पर निर्भर नहीं रहना है। हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे, लेकिन मैं चाहती हूं कि उनके अंदर इतना आत्मविश्वास पैदा हो कि वे खुद यह सब कर सकें।

आप अपनी पार्टी एनएलडी का क्या भविष्य देखती हैं?

हमारे साथ लोगों का पूरा समर्थन है इसलिए हम राजनीतिक ताकत के रूप में खड़े रहेंगे। अधिकारी हमारी पार्टी का रजिस्ट्रेशन रद्द करने की कोशिश कर रहे हैं और इसके खिलाफ मैं अदालत में भी लड़ रही हूं। लेकिन वह कानूनी मसला है। राजनीतिक सच्चाई यही है कि हमें खुद पर भरोसा है, लोग हमारे साथ हैं और यही हमें बर्मा की सबसे बड़ी विपक्षी ताकत बनाता है।

क्या आपने रिहा होने के बाद सरकार से संपर्क किया है?

नहीं, अभी तो नहीं, हालांकि अपने हर भाषण में मैं उन्हें संदेश तो दे ही रही हूं। हर इंटरव्यू में मैंने यह बात कही है कि मैं बातचीत चाहती हूं। मुझे लगता है कि हमें मतभेदों पर बात करनी चाहिए और एक समझौते पर पहुंचना चाहिए।

लेकिन आपने बातचीत को शुरू करने के लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया?

हम सही वक्त का इंतजार कर रहे हैं जो ज्यादा दूर नहीं है।

बर्मा में कई नस्ली अल्पसंख्यक समुदाय हैं जिनके बहुसंख्यकों से संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। आप उन समुदायों तक कैसे पहुंचना चाहती हैं?

उनसे संपर्क की हमारी कोशिश सालों से चल रही है और मैं दावा कर सकती हूं कि हमें कामयाबी मिली है। 1990 में चुनाव लड़ने वाली पार्टियों से हमारे मजबूत संबंध हैं।

चीन के लिऊ शियाओबो को मिला शांति का नोबेल एक बड़ा विवाद बन गया है। आप खुद नोबेल जीत चुकी हैं. आप इस बारे में क्या कहेंगी?

नॉर्वे की नोबेल कमेटी की मैं इज्जत करती हूं और मुझे यकीन है कि लिऊ को पुरस्कार के लिए चुनने के पीछे अहम वजह रही होंगी। मैं तो लिऊ के बारे में ज्यादा नहीं जानती क्योंकि पिछले सात साल से मैं नजरबंद थी। जितना भी मैं जानती हूं बस रेडियो पर ही सुना है, लेकिन नोबेल कमेटी ने उन्हें चुना है तो उसके कारण होंगे।

यूरोप में लोग सोच रहे हैं कि बर्मा की मदद के लिए क्या करें। उन्हें क्या सलाह है?

पहले तो बड़ी मदद यही होगी कि सारे यूरोपीय देश एक सुर में बात करें। यूरोपीय संघ में ही अलग अलग आवाजें सुनाई देती हैं और मुझे लगता है कि इससे बर्मा का विपक्ष कमजोर होता है। अगर यूरोपीय देश मिलकर कुछ कदम उठाने के लिए मांग करें, मसलन राजनीतिक कैदियों की रिहाई, राजनीतिक प्रक्रिया में दूसरों को शामिल किया जाना और बातचीत वगैरह, तो बड़ी मदद होगी।

क्या किसी खास देश को आप ज्यादा सक्रिय देखना चाहेंगी?

आप जर्मनी से मुझसे बात कर रहे हैं तो मैं चाहूंगी कि जर्मनी ही ज्यादा सक्रिय हो।

बर्मा पर लगे प्रतिबंधों की बात करें, तो आपने कहा है कि इनके बारे में राय बनाने के लिए आपको वक्त चाहिए. आप क्या सोच रही हैं?

अब तक मुझे नहीं पता है कि अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबंधों ने लोगों की जिंदगी पर कितना असर डाला है। लेकिन आवाजें उठ रही हैं जिन्हें सुना जाना चाहिए। इसलिए अभी हमें सच का पता लगाना है। अभी मुझे रिहा हुए एक महीना ही हुआ है और इस मुद्दे पर मैं ज्यादा नहीं जान पाई हूं। मैं आईएमएफ और एडीबी की ताजा रिपोर्ट पढ़ने का इंतजार कर रही हूं।

बर्मा में पश्चिम का कितना असर है? और इससे तुलना करें तो आप भारत और चीन की भूमिका को कैसे देखती हैं?

मुझे लगता है कि चीन और भारत और पश्चिम की भूमिकाएं अलग अलग हैं। मैं नहीं चाहती कि इनमें प्रभाव डालने के लिए किसी तरह का मुकाबला हो। ऐसा नहीं है कि अपना भाग्य हम खुद नहीं बना सकते। लेकिन भारत और चीन हमारे नजदीकी पड़ोसी हैं, तो उन्हें बाकी देशों के मुकाबले कुछ फायदे तो हैं।

यानी पश्चिम की तरफ से बर्मा के लिए जो किया जाता है वो ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है?

नहीं, बिल्कुल महत्वपूर्ण है। लेकिन यह निर्भर करता है कि पश्चिम की तरफ से क्या कदम उठाए जा रहे हैं। इसीलिए मैंने पहले कहा कि पश्चिमी देश अपनी कोशिशों में समन्वय लाएं, उससे हमें ज्यादा मदद मिलेगी।

भारत और चीन से आपकी क्या उम्मीदें हैं?

हम चाहेंगे कि वे हमें प्रक्रिया का हिस्सा बनाएं। मसलन हम चाहेंगे कि भारत और चीन सबसे पहले तो हमें अपनी बात कहने का मौका दें। दोनों के साथ हमारा संपर्क बहुत सीमित है। चीन के मुकाबले भारत सरकार से हमारा संपर्क ज्यादा है। असल में चीन की सरकार से तो कोई संपर्क है ही नहीं। हम चाहते हैं कि उनसे संपर्क हो और वे हमारी बात सुनें कि हम उन्हें पड़ोसी के तौर पर कैसे देखते हैं और उनसे दोस्ती करना चाहते हैं।

आने वाले हफ्ते में आपकी क्या योजनाएं हैं?

एक इंसान है जिससे दुनिया में मुझे सबसे ज्यादा डर लगता है। वो है मेरी अपॉइंटमेंट बुक रखने वाला। बस वही बताएगा कि क्या करना है।

इंटरव्यू: थॉमस बैर्थलाइन
साभार - http://www.dw-world.de/dw/article/0,,6345469,00.html

गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

जूलियन असांज : सारे रहस्यों का अंत

'फिजिक्स पर कोई भी अपना रिसर्च पेपर 'फुल एक्सपेरिमेंटल डेटा' और प्रायोगिक नतीजों के बगैर किसी जर्नल में प्रकाशित नहीं करवा सकता', ये कहना है विकीलीक्स के एडीटर-इन-चीफ जूलियन असांज का। साइंस और गणित के छात्र रहे जूलियन पत्रकारिता में पारदर्शिता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की वकालत करते हैं। ब्रिटिश मैगजीन 'न्यू स्टेट्समैन' ने अपने सितंबर के अंक में असांज को दुनिया की 50 सबसे प्रभावशाली हस्तियों में 23 वें स्थान पर रखा था। वहीं यूटने रीडर मैगजीन ने नवंबर-दिसंबर के अंक में जूलियन असांज को दुनिया के 25 ऐसे विजनरीज में से एक बताया था, जो हमारी दुनिया को बदलने में अपना योगदान दे रहे हैं। 29 नवंबर तक असांज मशहूर टाइम के 'पर्सन आफ द इयर-2010' के रीडर्स पोल में लीड कर रहे थे। 20 नवंबर को इंटरपोल ने स्वीडिश नागरिकता प्राप्त जूलियन असांज के खिलाफ इंटरनेशनल अरेस्ट वॉरंट जारी कर दिया। इसके अलावा असांज के खिलाफ यूरोपियन यूनियन का एक अरेस्ट वॉरंट पहले से ही जारी है। सरकारों में उनके प्रति गुस्से की झलक नेशनल क्रिमिनल पुलिस प्रवक्ता के इस बयान से मिल जाती है कि - हम ये सुनिश्चित करेंगे कि दुनियाभर की पुलिस जूलियन असांज के खिलाफ अरेस्ट वॉरंट को गौर से देखें और उसे अमल में लाएं। कनाडा प्रधानमंत्री के सलाहकार कहते हैं कि असांज को मौत के घाट उतार देना चाहिए। अमेरिका उन्हें देशद्रोही, ब्लैकमेलर और सबसे खतरनाक अपराधी बता रहा है। कुछ अमेरिकी सरकारी अधिकारियों का मानना है कि जूलियन असांज जहां भी हैं, उन्हें मानवरहित विमान ड्रोन के जरिए मार डालना चाहिए। अपना असली चेहरा दुनिया के सामने आ जाने से बौखलाई अमेरिकी सरकार ने उनके खिलाफ वारंट जारी किया है, लेकिन हंसी की बात ये कि इस वारंट में असांज को यौन अपराधी बताया गया है।
दुनियाभर में लोकतंत्र और आजादी पसंद करने वालों के हीरो बन चुके जूलियन असांज आज बेखौफ पत्रकारिता की एक मिसाल बन चुके हैं। केन्या में हुई एक एक्स्ट्राज्यूडीशियल राजनीतिक हत्या में लिप्त हत्यारों का खुलासा करने पर 2009 में असांज को पत्रकारिता का पहला अवार्ड एमनेस्टी इंटरनेशनल मीडिया अवार्ड मिला था। असांज अब उस पड़ाव से काफी आगे निकल आए हैं। ज्यादातर वक्त भूमिगत रहने वाले विकीलीक्स के एडीटर-इन-चीफ जूलियन असांज के इन खुलासों ने 1970 के दशक में राष्ट्रपति निक्सन की नींव हिला देने वाले वॉटरगेट स्कैंडल की यादें ताजा कर दी हैं। उस वक्त वॉशिंगटन पोस्ट के रिपोर्ट्स कार्ल बर्नस्टाइन और बॉब वुडवर्ड ने इस केस की छानबीन में उसी निर्भीकता का परिचय दिया था, जैसा कि असांज आज कर रहे हैं। इंटरनेशनल मीडिया विकीलीक्स खुलासों का अंजाम वॉटरगेट स्कैंडल के नतीजों में तलाश रही है। हाल के खुलासे जो लगातार जारी हैं, इतने गंभीर हैं कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की कुर्सी जाने के कयास लगा रही है। पेश है जूलियन असांज के जीवन और भंडाफोड़ करने वाली उनकी वेबसाइट के काम करने के तौर-तरीकों और तकनीक पर ‘वॉयेजर’ की ये खास रिपोर्ट। इस रिपोर्ट की शुरुआत, न्यू साइंटिस्ट के रिपोर्टर डेवि़ड कॉन के अनुभवों से कर रहे हैं, जो उन्हें स्वीडन में जूलियन असांज से मुलाकात के वक्त हुए थे।

जूलियन असांज से पहली मुलाकात

'जल्दी करें, वर्ना आप उन्हें मिस कर देंगे', प्रेस ऑफीसर की इस तेज आवाज के साथ ही हमारे कदमों की रफ्तार तेज हो गई। मैं और मेरे साथ कुछ चुनिंदा रिपोर्टर यूनाईटेड किंगडम के होटल ऑक्सफोर्ड के एक गलियारे से गुजर रहे थे। हम सबकी निगाहें ऑस्ट्रेलियाई हैकर और भांडाफोड़ करने वाली वेब साइट विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज को तलाश कर रहीं थीं। यहां हम उनके ही बुलावे पर एक छोटी अनौपचारिक सी प्रेस कांफ्रेंस में उनसे सवाल-जवाब करने आए थे। जल्दी ही हम एक खुले अहाते में पहुंचे जहां लाल चमड़े की आर्मचेयर पर बैठे असांज नजर आ गए, आगे बैठने की होड़स में कुछ स्थानीय पत्रकार उन्हें घेरे हुए थे। असांज काफी परेशान से नजर आ रहे थे, उनके हाव-भाव किसी भगोड़े के जैसे लग रहे थे, उन्होंने बोलना शुरु किया लेकिन कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, क्योंकि उनका उच्चारण साफ नहीं था। असांज रुक-रुक कर बोल रहे थे, मानो बोलने से पहले हर शब्द को तौल रहे हों।
असांज इस साल अप्रैल से लाइमलाइट में आए, जब उनकी साइट विकीलीक्स ने 2007 में अमेरिकी सेना के हाथों इराकी नागरिकों के नरसंहार की वीडियो क्लिप जारी की थी। हैरानी की बात थी, कि न्यूज एजेंसी रायटर्स सूचना की स्वतंत्रता वाले अमेरिकी कानून के जरिए इन घटनाओं के क्लासीफाइड ऑफीशियल डॉक्यूमेंट्स और वीडियो हासिल करने की कोशिश में लगातार तीन साल से जुटी थी। लेकिन असांज के नेतृत्व में कुछ अज्ञात से कार्यकर्ताओं के जरिए चलाए जा रहे विकीलीक्स नाम के एक छोटे से गुमनाम संगठन ने ये सब हासिल करके मानो क्रांति ही कर दी, सिटीजन जर्नलिस्ट की परिकल्पना सही मायनों में साकार हो उठी, हां ये बात अलग है कि इस दुस्साहसी गुट की जुर्रत ने अमेरिकी सरकार को दांत पीसने पर मजबूर कर दिया
“क्या आपको अमेरिका से किसी किस्म का खतरा महसूस होता है,” एक पत्रकार ने सवाल किया।
“अमेरिकी सरकार के कुछ अधिकारियों ने निजी तौर पर कुछ गैरजिम्मेदाराना बयान दिए हैं,” असांज ने जवाब दिया।
“गैरजिम्मेदाराना बयानों से आपका क्या मतलब है ?”
“ऐसे बयान जिनसे जाहिर होता है कि वो कानून की कद्र नहीं करते।”
असांज ने बताया कि उनकी जिंदगी को अमेरिका से कोई सीधा खतरा तो नहीं है, लेकिन वहां के एक खोजी रिपोर्टर दोस्त की सलाह पर उन्होंने कुछ दिन बाद होने वाला अपना अमेरिका दौरा स्थगित कर दिया है।

अफगान वॉर डायरी लीक

असांज से मेरी इस छोटी सी मुलाकात का ये वाक्या जुलाई का है और इस मुलाकात के दस दिन बाद ही विकीलीक्स पर ‘अफगान वॉर डायरी’ लीक हुई और जूलियन असांज की शोहरत रातों-रात आसमान चूमने लगी। अफगान वॉर डायरी यानि 91,000 दस्तावेजों में दर्ज अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी जंग की हर स्याह-सफेद सच्चाई जैसे के तैसे दुनिया के सामने थी। इनमें अफगानिस्तान में अमेरिका के हर जंग और हर दांव-पेंच का गहराई से जिक्र था। विकीलीक्स ने अफगान वॉर डायरी के केवल 75,000 के करीब दस्तावेज ही प्रकाशित किए, बाकी के दस्तावेज सुरक्षा कारणों से रोक लिए गए। विकीलीक्स के साथ अफगान वॉर डायरी के पन्ने द गार्जियन, डेर स्पीगेल और न्यूयार्क टाइम्स में एकसाथ प्रकाशित हुए थे। एक खास रणनीति के तौर पर असांज, अपनी वेबसाइट पर अफगान वॉर डायरी लीक करने से करीब छह हफ्ते पहले ही इन अखबारों को ये दस्तावेज उपलब्ध करा चुके थे। ये रणनीति बड़ी कारगर साबित हुई और असांज और उनकी वेबसाइट विकीलीक्स देखते ही देखते अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छा गए। अफगान वॉर डायरी लीक होने के बाद तमाम प्रमुख अखबारों के पहले पन्ने अमेरिकी प्रतिक्रिया से रंग उठे, जिनमें नाटो सेना के साथ सहयोग कर रहे अफगानों की जान खतरे में आ जाने की बात कही गई थी।
हालांकि अफगान वॉर डायरी में अफगानिस्तान में जारी आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी जंग के तमाम संवेदनशील ब्योरे तफसील से दर्ज थे। लेकिन इनसे इस जंग के बारे में लोगों की सोंच में बदलाव नहीं आया, बल्कि सबका ध्यान इन गोपनीय दस्तावेजों को लीक करने के तरीके पर ही केंद्रित होकर रह गया। यूनिवर्सिटी आफ कैंब्रिज के कंप्यूटर सेक्योरिटी रिसर्चर रॉस एंडरसन कहते हैं, “विकीलीक्स ने सरकार को ये बात अच्छी तरह से समझा दी है कि किसी चीज पर गोपनीयता की मुहर लगाकर उसे लोगों की नजरों से दूर कर देना कोई समाधान नहीं है।”

तकनीक का असली बदलाव

असली बदलाव क्या आया है? विकीलाक्स और भांडाफोड़ करने वाली ऐसी दूसरी एजेंसियां हमेशा ये तय कर सकती हैं कि उन्हें क्या चीज लीक करनी है और सबसे बड़ा बदलाव ये है कि विकीलीक्स दुनियाभर के सामने अपनी सूचनाओं को एक ऐसे सिस्टम पर प्रकाशित और प्रोत्साहित कर सकती है जिसपर एकबार प्रकाशन के बाद जिसमें बदलाव करना, उसे हटाना लगभग असंभव है। आखिर ऐसा सिस्टम आया कहां से?
असांज ने विकीलीक्स की स्थापना 2006 में की थी। इससे दुनियाभर के सिटीजन जर्नलिस्टों और भांडाफोड़ करने वाले कार्यकर्ताओं को अपनी सूचनाएं लोगों तक पहुंचाने का जरिया मिल गया। असांज कहते हैं, “विकीलीक्स एक तकनीकी, कानूनी और राजनीतिक औजार का एक मिला-जुला रूप है। ” अपनी स्थापना के बाद से विकीलीक्स बहुत से हाई-प्रोफाइल लीक्स को अंजाम दे चुका है, इनमें केन्या की सरकार में भ्रष्टाचार को उजागर करने से लेकर ब्रिटिश नेशनल पार्टी के सदस्यों की लिस्ट और बदनाम ग्वांटानामो-बे जेल का ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स मैनुअल तक शामिल हैं। लेकिन इस साल हुए विकीलीक्स के लीक्स वाकई बेमिसाल रहे हैं।

जूलियन असांज का जीवन

जूलियन असांज का जन्म ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड के टाउन्सविले में 39 साल पहले हुआ था। असांज के माता-पिता एक थियेटर ग्रुप में काम करते थे, लेकिन असांज के जन्म के कुछ दिन बाद ही मां-बाप में अलगाव हो गया। असांज ने जब होश संभाला तो उन्होंने अपने मां-बाप को अदालत में उनकी कस्टडी लेने के लिए झगड़ते हुए देखा। इसके बाद मां ने दूसरी शादी कर ली और घर में असांज का एक सौतेला भाई भी आ गया। लेकिन दूसरे पिता का साया भी जल्दी ही सर से उठ गया। इसके बाद मां दोनों बेटों को सीने से लगाए यहां-वहां इस डर से छिपती फिरती रही कि असांज के पहले पिता कहीं उसे छीनकर न ले जाएं। असांज को बचपन का एक हिस्सा गुमनामी में लगभग भूमिगत रहकर गुजारना पड़ा। हालात इतने बदतर थे कि 14 साल के होते-होते असांज अपनी मां के साथ 37 बार शहर और घर बदल चुके थे। इन हालातों में असांज की ज्यादातर शिक्षा घर में ही हुई, जिसमें असांज की दिलचस्पी साइंस और गणित में ज्यादा थी। टीन एज में असांज की दिलचस्पी कंप्यूटर्स में हुई और जल्दी ही वो मशहूर हैकर बन गया। 1980 में असांज इंटरनेशनल सबवर्सिव्स नाम के एक हैकर ग्रुप के सबसे कम उम्र के सदस्य बन चुके थे। कम उम्र का ये हैकर तमाम सरकारी और कारोबारी सर्वर्स में आराम से घुसपैठ कर लेता था। जल्दी ही ऑस्ट्रेलियाई पुलिस ने असांज को गिरफ्तार कर लिया और 20 साल से कम उम्र में ही असांज अदालत में हैकिंग के जुर्म में मुकदमे का सामना कर रहे थे।

जिंदगी के दोराहे पर असांज

अदालत ने उन्हें सजा दी, लेकिन अच्छे बर्ताव की वजह से वो जल्दी ही जेल से रिहा हो गए। असांज अब ऐसे दोराहे पर थे जब एक रास्ता अपराध की ओर जा रहा था और दूसरा सामान्य जिंदगी की ओर। उन्होंने इन दोनों रास्तों को छोड़कर अपने लिए एक तीसरा रास्ता तैयार किया, जिसमें अपराधी दिमाग की खुराफात तो थी लेकिन उसका इस्तेमाल आम लोगों के नुकसान के लिए नहीं था।
1989 में असांज अपनी गर्लफ्रैंड के साथ पति-पत्नी की तरह रहने लगे। उनके एक बेटा भी हुआ, लेकिन 1991 में हैकिंग के एक मामले में पुलिस ने जब उनपर छापा मारा तो उनकी गर्लफ्रैंड बेटे को लेकर उनसे अलग हो गई। असांज की जिंदगी जहां से शुरू हुई थी वहीं वापस आकर ठहर गई। असांज जब छोटे थे तब उन्होंने अपने लिए अपने मां-बाप को अदालत में झगड़ते देखा था, अब वो खुद अपने बेटे की कस्टडी पाने के लिए अदालत में अपनी गर्लफ्रेंड से झगड़ रहे थे।
असांज केस हार गए, लेकिन इस हार से उनकी दिलचस्पी सामान्य जिंदगी में बढ़ गई। असांज एक बदलाव के लिए वियतनाम के दौरे पर निकल गए, वहां उन्होंने अमेरिकी हमले और फौजी ज्यादतियों के निशान भी देखे। यहां से असांज के भीतर एक स्वयंसेवक का जज्बा पैदा हुआ। वियतनाम से लौटकर एक नई शुरुआत करने के लिए असांज ने मेलबर्न यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और 2003 से 2006 तक उन्होंने फिजिक्स और मैथमैटिक्स की ग्रैजुएशन पढ़ाई भी की लेकिन वो अपनी डिग्री पूरी नहीं कर सके। लेकिन यूनिवर्सिटी के माहौल ने उनके विचारों को राजनीति और कुछ कर गुजरने के लिए संस्कारित किया और उनके भीतर दबा हुआ क्रांतिकारी का जज्बा आकार लेने लगा। 2006 वो वक्त था जब अपने जैसे समान विचारों वाले कुछ युवाओं के साथ मिलकर उन्होंने विकीलीक्स की स्थापना की। इस साइट की होस्ट एक स्वीडिश इंटरनेट प्रोवाइडर कंपनी थी। स्वीडन का चुनाव इसलिए किया गया, क्योंकि इस देश के कानून पोल खोलने वाले स्वयंसेवकों को एक तरह की सुरक्षा प्रदान करते हैं।

विकीलीक्स की तकनीक

शुरुआत में विकीलीक्स की टीम ने दुनियाभर की वेबसाइट्स खंगालकर उनके डेटा को अपनी साइट में डालना शुरू किया। इसके बार मदद ली गई पियर-टू-पियर नेटवर्क की, जिसपर सेंसरशिप लगाना वर्चुअली असंभव है। पियर-टू-पियर यानि पी-टू-पी वही वर्चुअल नेटवर्क है जिससे दुनियाभर में इंटरनेट से फिल्में मुफ्त में डाउनलोड की जाती हैं। लेकिन ये सब करते हुए असांज की टीम ने अपनी पहचान छिपाए रखने पर भी पूरा ध्यान दिया। विकीलीक्स ने अपने सोर्सेज की पहचान छिपाने के लिए एक ऐसे सिस्टम पर आधारित नेटवर्क का सहारा लिया जिसे ‘टोर’ कहा जाता है। ‘टोर’ ओनियन राउटिंग के ही आगे का संस्करण है जिसे अमेरिकी नौसेना के खुफिया विभाग ने दुनियाभर में काम कर रहे अपने एजेंटों से इंटरनेट पर गोपनीय बातचीत करने के लिए विकसित किया था। इस नेटवर्क के सभी संदेश खुफिया कोड में होते हैं, जिन्हें आम संदेशों की तरह पढ़ा नहीं जा सकता।
यूनिवर्सिटी आफ कैंब्रिज के कंप्यूटर सेक्योरिटी रिसर्चर रॉस एंडरसन बताते हैं, “ मजे की बात ये है कि अमेरिकी सरकार ने जिस सिस्टम को अपनी खुफियागिरी के लिए विकसित किया था, आज वही उसका शिकार बनकर रह गया है।”
सवाल ये कि जूलियन असांज और मुट्ठीभर हैकर्स की उनकी गुमनाम टीम किसी सूचना की पड़ताल कैसे करती है? असांज इसका जवाब देते हैं, “ विकीलीक्स पर कोई सूचना डालने से पहले उसकी गहराई से पड़ताल की जाती है और हर तरह से तसल्ली कर ली जाती है कि जो सूचना दी जा रही है वो असली है या नहीं। हम अपने सोर्स से संपर्क करते हैं और जैसा कि इराक नरसंहार वीडियो के मामले में हमने किया, हमने वीडियो और दस्तावेज देने वाले सोर्स से उस वक्त के जमीनी हालात की छोटी से छोटी तमाम जानकारियां लीं और उन्हें दूसरे सोर्स के जरिए से कन्फर्म किया। अब तक की अपनी जानकारी के हिसाब से हम पूरे विश्वास से कह सकते हैं कि हमने कोई भी जाली सूचना विकीलीक्स पर प्रकाशित नहीं की है।”
जो चीज स्पष्ट नहीं है, वो ये कि आखिर ये कौन तय करता है कि कौन सी सूचना विकीलीक्स पर प्रकाशित करनी है और कब ? असांज इस सवाल का कोई जवाब नहीं देते कि उनका संगठन काम कैसे करता है। ये भी हैरानी की बात है, कि लोकतंत्र और पारदर्शिता की मशाल उठाने वाले संगठन के कामकाज के तौर-तरीकों पर इतनी गोपनीयता क्यों बरती जा रही है ? और इसका मकसद क्या है ? विकीलीक्स वेबसर्वर के जरिए मैंने अपने स्तर पर ये पड़ताल करने की कोशिश की और विकीलीक्स के एक स्वयंसेवक से संपर्क किया, उसने मुझे बताया कि पांच स्वयंसेवकों की एक कोर कमेटी विकीलीक्स का कंटेंट तय करती है और साइट पर क्या प्रकाशित होगा और क्या नहीं ये तय करने का अधिकार काफी हद तक असांज के पास ही है।