

अब हमारी धरती के दो उत्तरी ध्रुव !
पशु-पक्षियों की इस सामूहिक मौत को एक वैज्ञानिक नाम दिया गया है- एफ्लोकालिप्स और गूगल मैप पर इसी नाम से किसी ने एक पूरा मैप पोस्ट किया है जिसमें 2011 की शुरुआत से अबतक हुई पशु-पक्षियों की सामूहिक मौत और उस जगह को दर्शाया गया है।अब सबसे बड़ा सवाल, आखिर इसकी वजह क्या है? जमीन-हवा और पानी में रहने वाले जीव आखिर सामूहिक रूप से क्यों मर रहे हैं? पशु-पक्षियों की सामूहिक मौत की ये कोई पहली घटना नहीं है, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि ये घटना दुनियाभर में करीब-करीब एकसाथ घट रही है। कुछ लोग इसे बर्ड फ्लू जैसी किसी नई महामारी से जोड़कर देख रहे हैं, तो कुछ लोग इसे धरती-हवा और पानी में बढ़ते रासायनिक जहर का नतीजा बता रहे हैं। ऐसे लोग भी कम नहीं जो इसे ग्लोबल वॉर्मिंग का नतीजा बता रहे हैं। दुनिया के खत्म होता देखने को बेचैन हुए जा रहे लोग इसे माया सभ्यता की भविष्यवाणी और 2012 के विनाश की शुरुआत भी बता रहे हैं।
इन सबके बीच एक खबर और आई, अमेरिका के फ्लोरिडा में मौजूद टाम्पा इंटरनेशनल एयरपोर्ट को 13 जनवरी तक के लिए बंद कर दिया गया। वजह ये कि धरती का चुंबकीय उत्तरी ध्रुव इतना ज्यादा खिसक चुका है कि इसके मुताबिक एयरपोर्ट के रनवे को फिर से री-लोकेट करना बेहद जरूरी हो गया था। यहां एयर ट्रैफिर कंट्रोलर्स के लिए काम करना दिन-पर-दिन मुश्किल होता जा रहा था, क्योंकि विमान की कुतुबनुमा जो उत्तर दिशा बता रहा था और एटीसी जिस उत्तर दिशा में जाने का कमांड दे रहा था, उसमें भारी अंतर आ गया था।
अब असली खबर, हमारी धरती के उत्तरी ध्रुव अब दो हो गए हैं। पहला भौगोलिक उत्तरी ध्रुव और दूसरा चुंबकीय उत्तरी ध्रुव। भौगोलिक उत्तरी ध्रुव पृथ्वी की उत्तरी अक्ष यानि आर्कटिक में है, जबकि चुंबकीय उत्तरी ध्रुव, जो धरती, पानी और हवा में चलने वाली हर चीज पर असर डालता है वो इस वक्त उत्तरी कनाडा के द्वीप स्वरड्रुप के करीब मौजूद है और हर साल करीब 64 किलोमीटर की रफ्तार से रूस के साइबेरिया की ओर खिसकता जा रहा है।
चुंबकीय उत्तरी ध्रुव का खिसकना कोई नई बात नहीं, लेकिन नई बात ये है कि अब इसकी रफ्तार काफी बढ़ गई है। धरती के चुंबकीय उत्तरी ध्रुव की खोज सबसे पहले जेम्स रॉस ने 1831 में आर्कटिक अभियान के दौरान की थी, जिसमें उनका जहाज बर्फ में फंस गया था और चार साल तक वहीं फंसा रहा। रॉस के अभियान का कोई सदस्य जीवित नहीं बचा था। अगली सदी के साल 1904 में रॉल्ड एमंडसन ने चुंबकीय उत्तरी ध्रुव को फिर से खोजास लेकिन तब तक वो जेम्स रॉस की बताई जगह से कम से कम 50 किलोमीटर तक खिसक चुका था। उत्तरी ध्रुव के खिसकने पर निगरानी का काम 20 वीं सदी में भी जारी रहा। 20 वीं सदी की शुरुआत में उत्तरी ध्रुव के खिसकने की रफ्तार एक साल में 10 किलोमीटर थी जो सदी के खत्म होते-होते बढ़कर एक साल में 40 किलोमीटर तक हो गई। जियोलॉटिकल सर्वे ऑफ कनाडा हर साल इसकी खास जांच करता है। इसके मुताबिक 2001 में चुंबकीय उत्तरी ध्रुव उत्तरी कनाडा में एलेसमेयर द्वीप के करीब था जबकि 2009 में ये एक साल में 64 किलोमीटर की रफ्तार से रूस की ओर बढ़ता जा रहा है। भौगोलिक उत्तरी ध्रुव और चुंबकीय उत्तरी ध्रुव के बीच अब सैकड़ों किलोमीटर का अंतर आ चुका है और चुंबकीय उत्तरी ध्रुव की जगह अब भी स्थिर नहीं है और अब तो इसमें हर दिन के हिसाब से बदलाव आ रहा है।
क्या दुनियाभर में पशु-पक्षियों की सामूहिक मौत और धरती के चुंबकीय उत्तरी ध्रुव के खिसकते जाने के बीच कोई संबंध है? टाम्पा इंटरनेशनल एयरपोर्ट को बंद करने से दुनियाभर में पशु-पक्षियों की सामूहिक मौतों को चुंबकीय उत्तरी ध्रुव के लगातार खिसकते जाने से जोड़कर देखा जा रहा है। इससे एक नया विवाद शुरू हो गया है। क्या वाकई चुंबकीय ध्रुव के खिसकने से पशु-पक्षियों की सामूहिक मौत हो सकती है? दुनियाभर के वैज्ञानिक और पत्रकार इस गुत्थी को सुलझाने में जुटे हैं। ये मौते आखिर इतनी बड़ी तादाद में क्यों हुईं?
इटली की सड़कों पर मरे पाए गए कबूतरों का जब पोस्टमार्टम किया गया तो उनकी मौत की वजह ऑक्सीजन में कमी निकली। इससे वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि ये पक्षी शायद हवा के किसी तेज तूफान में फंसकर काफी ऊंचाई पर पहुंच गए होंगे, जहां ऑक्सीजन में कमी की वजह से उनकी मौत हो गई। अमेरिका के असकांसास और लुसियाना के साथ स्वीडन के जैकड्रास में आसमान से हुई मृत पक्षियों की बारिश की वजह नए साल के जश्न में छोड़े गए पटाखों और आतिशबाजी बताई गई है। मैरीलैंड के चेसापीके की खाड़ी पर मिली लाखों मछलियों की लाशों के बारे में अमेरिकी पर्यावरण विभाग ने सफाई दी है कि ये हादसा समुद्र के पानी का तापमान अचानक गिर जाने की वजह से हुआ है। यही वजह ब्रिटेन के सागर किनारे मरे पड़े मिले हजारों केकड़ों और दूसरे समुद्री जानवरों के लिए भी बताई गई। ब्राजील में हुई समुद्री जीवों की मौत के बारे में अधिकारियों ने कहा है कि ऐसा पानी के तापमान में गिरावट या फिर किसी किस्म के रासायनिक प्रदूषण की वजह से हुआ है।
कुछ वैज्ञानिकों को शक है कि दुनियाभर में हुई पशु-पक्षियों की सामूहिक मौत और धरती के खिसकते जा रहे चुंबकीय उत्तरी ध्रुव के बीच शायद कोई संबंध है। कुछ इसे पृथ्वी के ध्रुवों के उलटने की घटना से भी जोड़कर देख रहे हैं और अनुमान लगा रहे हैं कि भारी तादाद में पशु-पक्षियों की मौत और तेजी से लगातार खिसकता चुंबकीय उत्तरी ध्रुव दरअसल कुदरत का इस बात की ओर इशारा है कि हमारी पृथ्वी के ध्रुवों के पलटने की घटना अब शायद घटने वाली है। ये घटना अगर वाकई घटने भी वाली है तो जीवों पर इसके असर का अंदाजा लगाना मुश्किल है, क्योंकि धरती के चुंबकीय ध्रुवों के पलटने की घटना करीब 700000 साल पहले हुई थी और उस वक्त इस घटना का जीवों पर क्या असर हुआ था, इस संबंध में कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। बहरहाल पृथ्वी के ध्रुवों के पलटने की घटना क्या है? ऐसा क्यों होता है? धरती का चुंबकीय उत्तरी ध्रुव खिसकता क्यों जा रहा है? और इसकी रफ्तार बढ़ती क्यों जा रही है? इन सारे सवालों का जवाब छिपा है हमारी धरती के केंद्र में, जहां हमारी धरती का रक्षा कवच चुंबकीय क्षेत्र पैदा किया जाता है।
हमारी धरती के केंद्र में एक अनोखी दुनिया है। हमारे ग्रह का दिल एक ठोस लोहे की गेंद का है, केद्र यानि कोर में मौजूद लोहे की इस गेंद का आकार चंद्रमा जितना है और इसका तापमान सूरज के सतह के बराबर। लोहे की इस गेंद को चारों ओर से पिघले लोहे के गाढ़े मैग्मा का महासागर घेरे हुए है, जो लगातार घूमता और उमड़ता-घुमड़ता रहता है। दहकते लावे जैसे इस महासागर को आउटर कोर कहते हैं। धरती की कोर में मौजूद लोहे का ये ठोस गोला भी घूमता है, कभी घड़ी की सूइयों की दिशा में और कभी विपरीत।
पृथ्वी का आउटर कोर यानि पिघले लोहे का ये महासागर लगातार घूमता रहता है, अपने अक्ष पर पृथ्वी के घूमने के साथ ही इसमें एक अजीब सा खिंचाव पैदा होता है जिसकी वजह से आउटर कोर के इस विद्युतीय चालक बेहद गर्म लावे के महासागर में तूफान भी उठते हैं और भंवर भी। लोहे के ठोस इनर कोर के चारों ओर उमड़ते-घुमड़ते पिघले लोहे के लावे के इस महासागर की ये गति डायनामो इफेक्ट को जन्म देती है और एक मजबूत चुंबकीय क्षेत्र पैदा हो जाता है।
यूनिवर्सिटी आप कैलीफर्निया के प्रोफेसर आफ अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंसेस प्रो. गैरी ए.ग्लैट्जमीर और उनके सहयोगी पॉल रॉबर्ट्स ने ये जानने के लिए कि धरती के गर्भ में क्या चल रहा है,
सुपरकंप्यूटर्स की मदद से एक कंप्यूटर सिमुलेशन तैयार किया। उनके सॉफ्वेयर ने इनर कोर को गर्म किया और उसे चारों ओर से घेरे पिघले लोहे के महासागर को गति प्रदान की, और देखते ही देखते एक मजबूत चुंबकीय क्षेत्र तैयार हो गया। प्रो. ग्लैट्जमीर और रॉबर्ट्स ने अब सुपरकंप्यूटर से लाखों साल बाद का सिमुलेशन दिखाने को कहा। वैज्ञानिकों की निगाहें स्क्रीन पर जम गईं कि देखें सुपरकंप्यूटर क्या दिखाता है। अब सुपरकंप्यूटर उन्हें धरती के गर्भ की असली झलक दिखा रहा था। चुंबकीय क्षेत्र कमजोर पड़ रहा था, चुंबकीय ध्रुव खिसक रहे थे और कभी-कभी आपस में बदल भी रहे थे।
इस सिमुलेशन से वैज्ञानिकों को पता चला कि धरती के चुंबकीय क्षेत्र का अस्थिर होना, खिसकना और यहां तक कि पलट जाना भी एक सामान्य घटना है। सिमुलेशन ने ये भी दिखाया कि चुंबकीय क्षेत्र को पैदा करने वाले आउटर कोर में भी भारी हलचल जारी है। इस सिमुलेशन ने ये भी बताया कि जब चुंबकीय क्षेत्र के ध्रुव पलटते हैं तो उस दौरान क्या होता है। ध्रुवों के पलटने की प्रक्रिया पूरी होने में कई हजार साल का समय लगता है। और सबसे बड़ी बात ये कि ध्रुव पलटने इस पूरी प्रक्रिया के दौरान ऐसा कभी नहीं होता कि चुंबकीय क्षेत्र पूरी तरह से खत्म हो जाए। बल्कि इस प्रक्रिया से चुंबकीय क्षेत्र का व्यवहार कहीं ज्यादा जटिल हो उठता है।
पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में जबरदस्त हलचल औप चुंबकीय ध्रुवों का पलटना एक सामान्य घटना है जो धरती के इतिहास में आम तौर पर हर 250000 साल बाद घटती है। लेकिन पिछले 700000 साल में ये घटना नहीं हुई है। मुमकिन है कि धरती के चुंबकीय क्षेत्र में आ रही हलचल ध्रुवों के पलटने की ओर इशारा कर रही हो, लेकिन यकीन मानिए इससे हमें-आपको और धरती के सुंदर जीवन को कोई बड़ा नुकसान नहीं होने वाला।