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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

2011 कुछ नई चुनौतियां और आंकलन

जीएसएलवी की असफल लांचिंग ने इसरो की उस शानदार कामयाबी को फीका कर दिया जो यूरोपियन स्पेस एजेंसी के लिए मिशन हायलास-1 से जुड़ी थी। मिशन हायलास-1 यूरोपियन स्पेस एजेंसी का ऐसा पहला सेटेलाइट था जिसे इसरो के वैज्ञानिको ने पूरी तरह बैंगलोर में बनाया था। इससे पहले हम नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी को उपकरणों और सॉफ्टवेयर्स की आपूर्ति करते रहे हैं, लेकिन हायलास-1 ऐसा पहला यूरोपियन सेटेलाइट था जिसे भारत में बनाकर यूरोप भेजा गया। देश की टेक्नोलॉजी आगे बढ़ रही है और दुनिया का भरोसा भी जीत रही है, मैं इसे साल 2010 की बड़ी उपलब्धि मानता हूं। 2010 को पीछे छोड़कर हम अब 2011 में प्रवेश कर चुके हैं और कई नई चुनौतियां सामने हैं। बीती बातों का जिक्र कर वाहवाही करने के बजाय सामने खड़ी चुनौतियों को समझना और 2011 में कौन सी महत्वपूर्ण उपलब्धियां मिलने वाली हैं इन्हें समझना ज्यादा जरूरी है।
2011 की दहलीज से हमें एक ब्रेकिंग न्यूज नजर आ रही है कि पृथ्वी से मिलता-जुलता एक ऐसा ग्रह ढूंढ़ लिया गया है जहां हम रह सकते हैं, इस बात की संभावना भी बहुत ज्यादा है कि 2011 का जिक्र इतिहास में एसे साल के तौर पर किया जाए...जब हमने धरती से दूर किसी ग्रह या चंद्रमा पर जीवन का एक अनजाना स्वरूप खोज निकाला। अपनी धरती और मानव सभ्यता की बात करें तो 2010 पर्सनल रोबोट, वर्चुअल वर्ल्ड, वर्चुअल सोसाइटी और वर्चुअल रिलेशन का हो सकता है। पैसा दो और अंतरिक्ष की सैर पर जाओ एक आम बात हो जाएगी और इस बात की भी पूरी उम्मीद है कि हम पेट्रोल और दूसरे जैविक ईंधनों पर अपनी निर्भरता नियंत्रित करने में कामयाब रहेंगे। प्रयोगशाला में हम जीवन का निर्माण कर चुके हैं और इस साल हम लैब में जीवन के कुछ बहुकोशकीय जटिल स्वरूप बनाने की कोशिश कर सकते हैं। मुझे लगता है कि दूसरी धरती की खोज, किसी और ग्रह पर जीवन की तलाश और प्रयोगशाला में बनाए जा रहे जीव, ये तीन घटनाएं आने वाले साल या इसके बाद मानव समाज और इसके विश्वास को झकझोरकर रख देने वाली साबित होंगी। मुमकिन है कि हमें युगों पुराने विश्वासों के टूटने से पैदा होने वाले सामाजिक नतीजों का सामना भी करना पड़े। 2011 स्पेस शटल उड़ानो का अंतिम साल होगा, अंतरिक्ष अभियानों, अंतरिक्षयात्रियों, हम भारतीयों और खुद नासा के लिए शटल रिटायरमेंट का पल काफी भावुक होगा।

साइंटोमेट्रिक्स की गणनाएं

बोस्टन के हावर्ड मेडिकल स्कूल के वैज्ञानिक डॉ. सैमुअल आर्बेसमैन सामाजिक वैज्ञानिक विकास के अध्ययन और इसके अगले कदम के आंकलन के लिए गणित और कंप्यूटर की मदद से खास रिसर्च कर रहे हैं। उन्होंने वैज्ञानिक विकास के अगले कदम के आंकलन के लिए गणना का अनोखा तरीका खोजा है और वो इसे ‘साइंटोमेट्रिक्स’ के नाम से पुकारते हैं। ‘साइंटोमेट्रिक्स’ की गणनाओं से डॉ. आर्बेसमैन ये बता सकते हैं कि कौन सी वैज्ञानिक खोज कब होने वाली है। पिछले साल सितंबर खोजे जा चुके नए ग्रहों की प्रकृति के डेटा की मदद से उन्होंने बताया था कि इस बात की 50 फीसदी संभावना है कि जीवन को सहारा देने वाला धरती से मिलता-जुलता पहला ग्रह मई 2011 तक खोज लिया जाए। जबकि ऐसे ग्रह की खोज वक्त से पहले यानि अक्टूबर के अंतिम हफ्ते तक ही कर ली गई। डॉ. आर्बेसमैन ने अपने इसी तरीके का इस्तेमाल कर 2011 के लिए ये वैज्ञानिक आंकलन किए हैं।

जुड़वां धरती की खोज संभव

डॉ. आर्बेसमैन की ‘साइंटोमेट्रिक्स’ बताती है कि हमारी धरती के जुड़वां की तलाश मई 2011 तक वो ब्रेकिंग न्यूज दे सकती है, जिसकी सभी इंतजार कर रहे हैं। अक्टूबर 2010 में ही ‘ग्लीसे-581 जी’ की खोज होने की खबर आ गई। हमसे 20.5 प्रकाश वर्ष दूर मौजूद एक रेड ड्वार्फ सितारे ग्लीसे-581 के सौरपरिवार में बी, सी, डी और ई नाम के ग्रह पहले ही खोजे जा चुके थे। लेकिन अक्टूबर में वैज्ञानिकों ने इस सौरपरिवार में मौजूद एक और ग्रह ‘जी’ की खोज कर ली। ‘जी’ यानि ‘ग्लीसे-581 जी’ अपने सितारे के हैबिटेट जोन में उसी तरह मौजूद है जैसे कि हमारे सौरमंडल में अपने सूरज से दूर हमारी पृथ्वी। लेकिन इस खोज की पुष्टि अभी दुनिया के दूसरे वैज्ञानिक केंद्रों और ऑब्जरवेटरीज से होनी बाकी है।
फरवरी 2011 इस सिलसिले में काफी अहम साबित होगा। इस महीने अंतरिक्ष में पृथ्वी की जुड़वां की तलाश में जुटे नासा की स्पेस ऑब्जरवेटरी केप्लर के डेटा रिलीज किए जाएंगे। सारी दुनिया के वैज्ञानिक और एस्ट्रोनॉमर्स फरवरी 2011 का इंतजार कर रहे हैं, जब एक नई दुनिया की खोज का ऐलान किया जा सकता है और अगर ये खोज न भी हो, तो भी उम्मीद है कि नए ग्रहों की संख्या कई गुना तक बढ़ सकती है।

इंटरनेट हंगामे का साल

2011 इंटरनेट हंगामे का साल होगा। फिनलैंड, स्पेन और एस्टोनिया में इंटरनेट को इतना महत्वपूर्ण समझा जाता है कि यहां इसके एक्सेस को कानूनी अधिकार में शामिल कर लिया गया है। यानि इन देशों में इंटरनेट का इस्तेमाल हर नागरिक का कानूनी अधिकार है। एप्पल आईपैड और टचस्क्रीन कंप्यूटर्स के आगमन ने वेब सर्फिंग को और भी मजेदार और इंटरैक्टिव बना डाला है, जबकि बाजार में मौजूद स्मार्टफोन्स, खासतौर पर एन्ड्रॉएड्स ने मोबाइल पर इंटरनेट को बेहद आसान कर दिया है। लेकिन इन सब के बावजूद विकासशील देशों में केवल 20 फीसदी जनसंख्या ही इंटरनेट का इस्तेमाल कर रही है। मोबाइल पर इंटरनेट का प्रयोग करने वालों की तादाद तो और भी कम है। 2011 में हम सभी एक इंटरनेट क्रांति देखेंगे। जिससे वर्चुअल सोसाइटी और वर्चुअल रिश्तों की शुरुआत होगी।

सड़कों पर दौड़ेंगी इलेक्ट्रिक कारें

लंबा इंतजार अब खत्म होगा और 2011 में हम सड़कों पर दौड़ती इलेक्ट्रिक कारें देख सकेंगे। लंबे टेस्ट का बाद अब मोबाइल की तरह चार्ज की जा सकने वाली कारें वाकई लांच के लिए तैयार हैं।
 ऐसी इलेक्ट्रिक कारें कई कंपनियां बना रही हैं, लेकिन इस सेगमेंट की लीडर कंपनी है शेवी वोल्ट... 16 किलोवॉट-घंटे की बैटरी और 149 हॉर्स पावर वाली इलेक्ट्रिक मोटर के साथ जिसकी कारें अब सड़कों पर दौड़ने के लिए तैयार हैं।
शेवी की कार एक बार चार्ज हो जाने के बाद 60 किलोमीटर तक दौड़ सकती है। आपात स्थिति का सामना करने के लिए इसमें पेट्रोल इंजन भी लगा हुआ है।

मानवता की उम्मीद- स्टेम सेल

अविकसित मानव भ्रूण से निकाले गए स्टेम सेल्स ने चिकित्साजगत में नई आशाएं जगाई हैं। 2010 में स्टेम सेल के दो अहम प्रयोगों की शुरुआत हुई, उम्मीद है जिनके सुखद नतीजे हमें 2011 में प्राप्त होंगे। अविकसित मानव भ्रूण से निकाले गए स्टेम सेल्स में एक खास गुण होता है कि वो हमारे शरीर में मौजूद 200 तरह के सभी ऊतकों को फिरसे उत्पन्न कर सकते हैं। यानि आम भाषा में कहें तो स्टेम सेल हमारे शरीर के किसी भी अंग को फिर से पैदा कर सकते हैं। लेकिन क्योंकि ये स्टेम सेल एक अविकसित भ्रूण से निकाला जाता है, जो इस प्रक्रिया में नष्ट हो जाता है, इसलिए इस तकनीक के इस्तेमाल पर नैतिक विवाद है। अगर 2010 में शुरू किए गए स्टेम सेल के ये दोनों अहम प्रयोग अपनी उम्मीदों पर खरे उतरते हैं, तो इस तकनीक के इस्तेमाल को लेकर विवाद खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगा।
मैसाचुसेट्स के वॉरसेस्टर में मौजूद एडवांस्ड सेल टेक्नोलॉजी के डॉ. रॉबर्ट लांजा बताते हैं कि स्टेम सेल के पहले प्रयोग के तौर पर हमने एक नेत्रहीन व्यक्ति की आंख में ‘रेटिनल सेल्स’ इंजेक्ट कर दिए हैं। आंख की रोशनी खो चुके कई रोगियों पर 2011 में ये प्रयोग दोहराया जाएगा, उम्मीद है कि कुछ ही हफ्तों बाद इसके नतीजे सामने आ जाएंगे। इस तकनीक से रोगियों को फिर से आंख मिलने में कम से कम छह हफ्तों का वक्त लगेगा।
अक्टूबर 2010 में स्टेम सेल का एक और अहम प्रयोग किया गया, एक ऐसे रोगी की रीढ़ की हड्डी में स्टेम सेल्स प्रत्यारोपित किए गए जो एक दुर्घटना में स्पाइनल इंजरी का शिकार हो कर पैरालाइज हो गया था। उम्मीद है कि उसकी रीढ़ में प्रत्यारोपित किए गए स्टेम सेल्स क्षतिग्रस्त नर्व की जगह नई नर्व्स उत्पन्न कर देंगे, जिससे वो रोगी फिरसे चलने-फिरने लगेगा।

निजी स्पेस टैक्सी

स्पेस टूरिज्म का दौर इधर कुछ थमा सा नजर आ रहा है। निजी कंपनियां कई साल से वादा कर रही हैं कि वो अंतरिक्ष के सफर को सरकारी नियंत्रण से आजाद करके इतना सस्ता कर देंगी कि आम लोग भी अंतरिक्षयात्रा पर जा सकेंगे। 2011 में हम इस सपने को सच होता देखेंगे। 8 दिसंबर को इसका पहला प्रयोग कामयाब रहा, कैलीफोर्निया की कंपनी स्पेस-एक्स ने अपना ड्रैगन कैप्सूल सफलता के साथ धरती की कक्षा तक भेजा और उतनी ही कुशलता से उसे धरती पर वापस ले आया गया। पहली बार एक निजी कंपनी ये करने में कामयाब रही। 2008 में नासा के साथ किए गए एक अनुबंध के तहत स्पेस-एक्स की उड़ान इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के लिए माल ढोने का काम करेगी, लेकिन उड़ान में इस स्पेसक्राफ्ट के भीतर कंपनी के भेजे अंतरिक्षयात्री भी मौजूद रहेंगे।
नासा के ऐतिहासिक स्पेस शटल का बेड़ा 2011 में रिटायर हो रहा है। हकीकत में स्पेस शटल के इस घोषित रिटायरमेंट से ही स्पेस टैक्सीज को विकसित करने के लिए निजी कंपनियों का रास्ता साफ हुआ है। खास बात ये कि स्पेस टैक्सी को विकसित करने के लिए नासा और अमेरिकी कांग्रेस निजी कंपनियों को वित्तीय मदद भी दे रहे हैं। 2011 में स्पेस-एक्स की दो परीक्षण उड़ानें और होनी हैं और 2011 में ही स्पेस-एक्स पहली बार स्पेस स्टेशन से डॉक भी करेगा। स्पेस टूरिज्म कंपनी वर्जिन गैलेक्टिक भी 2011 में एक जाइंट लीप भरने के लिए तैयार है।

2011 की मुख्य खगोलीय घटनाएं और स्पेस मिशन लांच


2 जनवरी - बृहस्पति और यूरेनस का उत्तर दिशा में 13:41 UTC बजे कंजक्शन, आमतौर पर 13 साल में एक बार होने वाली ये खगोलीय घटना बीते 10 महीने के दौरान तीसरी बार घट रही है
4 जनवरी - आंशिक सूर्य ग्रहण, यूरोप, अरब देशों, उत्तरी अफ्रीका और पश्चिमी एशिया में दिखेगा



3 फरवरी - स्पेस शटल डिस्कवरी मिशन एसटीएस-133 लांच, Lunch Time-1:37 am EDT


18 मार्च - नासा का मैसेंजर स्पेसक्राफ्ट पहली बार बुध की कक्षा में प्रवेश करेगा


18 मार्च - पांच साल पहले प्लूटो के सफर पर निकला नासा का मिशन न्यू होराइजन यूरेनस के परिक्रमा-पथ से होकर गुजरेगा। मिशन न्यू होराइजन की रफ्तार वॉयेजर-2 से कहीं ज्यादा तेज है। वॉयेजर-2 ने यहां तक पहुंचने में 8 साल का वक्त लिया था।

01 अप्रैल – नासा के ऐतिहासिक स्पेस शटल की अंतिम उड़ान। शटल एंडेवियर मिशन एसटीएस-134 अंतिम उड़ान भरेगा Launch Time 3:15 am EDT
मई - बृहस्पति, शुक्र, बुध और मंगल आसमान में एक छोटे से दायरे में एकसाथ नजर आएंगे। बेहद दुर्लभ खगोलीय घटना
01 जून – आंशिक सूर्य ग्रहण, आर्कटिक यानि उत्तरी ध्रुवीय इलाकों से दिखेगा
15 जून – पूर्ण चंद्र ग्रहण, मुख्य तौर पर अफ्रीका, भारत और मध्य-पूर्वी देशों से नजर आएगा
01 जुलाई – आंशिक सूर्य ग्रहण अंटार्कटिक यानि दक्षिणी ध्रुव के तटीय इलाकों से नजर आएगा
10 जुलाई – 1846 में खोजे जाने के बाद नेप्च्यून सूरज की पहली परिक्रमा पूरी करेगा
जुलाई - स्पेसक्राफ्ट डॉन छुद्र ग्रह वेस्टा जा पहुंचेगा
15 जुलाई - निजी स्पेस टैक्सी स्पेस-एक्स के ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट की दूसरी परीक्षण उड़ान। इस उड़ान में ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के 6 मील दूर तक जाएगा

05 अगस्त – सौरमंडल के सबसे विशाल ग्रह बृहस्पति के लिए पहला साइंस मिशन रवाना होगा। नासा का जूनो स्पेसक्राफ्ट बृहस्पति के सफर पर रवाना होगा, launch at 12:10 pm to 1:40 pm EDT. मिशन जूनो बृहस्पति तक 2016 में पहुंचेगा।
15 अगस्त – धूमकेतु 45P/Honda-Mrkos-Pajdusakova धरती के बेहद करीब यानि करीब 8,995,100 किलोमीटर की दूरी से गुजरेगा
08 सितंबर – नासा का Gravity Recovery and Interior Laboratory (GRAIL) मिशन लांच at 8:35 am - 9:14 am EDT. मिशन ग्रेल में दो स्पेसक्राफ्ट होंगे जो चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करके चंद्रमा की आंतरिक बनावट का अध्ययन करेंगे
08 अक्टूबर – निजी स्पेस टैक्सी स्पेस-एक्स के ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट की तीसरी और अंतिम परीक्षण उड़ान। इस उड़ान में ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के करीब जाकर उससे डॉक करेगा
25 नवंबर – आंशिक सूर्य ग्रहण अंटार्कटिक के इलाकों से नजर आएगा
25 नवंबर – मंगल पर जीवन की खोज के लिए नासा का महत्वपूर्ण रोवर मिशन मार्स साइंस लैबोरेटरी मंगल के सफर पर निकलेगा। फ्लोरिडा के केप कैनेवेरल से मिशन लांच 10:21 am
07 दिसंबर – निजी स्पेस टैक्सी स्पेस-एक्स के ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट की चौथी उड़ान। इस उड़ान में ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के लिए सप्लाई ले जाएगा
10 दिसंबर – साल का दूसरा पूर्ण चंद्र ग्रहण, एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अलास्का से नजर आएगा
25 दिसंबर – मंगल के चंद्रमा फोबे के लिए रूस का महत्वपूर्ण मिशन फोबे-ग्रुंट लांच होगा। इस मिशन में चीन भी सहयोग कर रहा है। मिशन फोबे-ग्रुंट 2012 में मंगल के चंद्रमा फोबे पर उतरकर वहां से मिट्टी के सैंपल लेकर धरती पर वापस भेजेगा।

- सूरज से सौर विकिरण का एक बड़ा तूफान उठने का आशंका है
- पाकिस्तान अपना पहला स्पेस सेटेलाइट लांच करेगा
- चीन अपने स्पेस स्टेशन पर काम शुरू करेगा। शुरुआत अंतरिक्ष में एक प्रयोगशाला भेजने से

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

भारत से आन सान सू की का गहरा रिश्ता

भारत हमें बात कहने के मौके दे - सू की


साइंस की बुनियाद आजादी और लोकतांत्रिक अधिकारों में है। इसलिए हम 'वॉयेजर' पर प्रस्तुत कर रहे हैं म्यांमार में नागरिकों की आजादी और लोकतंत्र के लिए संघर्ष कर रही हमारे वक्त की महान नेता आन सान सू की पर विशेष सामग्री।
कम ही लोग जानते होंगे कि दिल्ली स्थित कांग्रेस हेडक्वॉर्टर से म्यांमार की लोकतांत्रिक नेता आन सान सू की का गहरा रिश्ता रहा है। दिल्ली के जिस बंगले में वो रहा करती थीं, आज वहां कांग्रेस का मुख्यालय है। यही नहीं जो कमरा आज राहुल गांधी का है, वही कमरा कभी म्यांमार की महान नेता आन सान सू की का हुआ करता था। सू की जब 15 साल की थीं, तब वो राजधानी दिल्ली के 24 अकबर रोड में रहती थीं जो कि उनकी मां दाव किन की को अलॉट किया गया था। उनकी मां भारत में म्यांमार की राजदूत थीं। लेखक-पत्रकार रशीद किदवई ने अपनी नई किताब '24 अकबर रोड' में इसका जिक्र है। 1911 से 1925 के बीच बने इस बंगले का नाम तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दाव किन की के सम्मान में 'बर्मा हाउस' रखा था। सू की ने अपने बचपन में खुद के लिए जिस कमरे को चुना था, वो अब कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी का कमरा है। सू ने इस कमरे को इसलिए चुना था क्योंकि इसमें एक बड़ा पियानो रखा था और हर शाम को पियानो टीचर उन्हें इसे बजाना सिखाता था। दिल्ली के इस बंगले में सीखा पियानो बाद में अपने देश में लोकतंत्र के संघर्ष के दौरान उनके बड़े काम आया।
कई साल बाद, रंगून में एक झील के किनारे मौजूद एक खस्ताहाल घर से पियानों की धुनें वहां से गुजरने वालों का ध्यान खींचने लगीं...इन धुनों को सुनकर लोगों को पता चला कि बर्मा की फौजी हुकूमत ने उनकी नेता आन सान सू की को इस जगह नजरबंद किया है...निराशा और अकेलेपन के उस दौर में सू के लिए एकमात्र राहत पियानो ही था...और नजरबंदी में डिप्रेशन से बचने के लिए वो कई-कई घंटों तक पियानो बजाती रहती थीं।
दिल्ली के 24 अकबर रोड में ही सू की ने जापानी तरीके से फूलों को सजाना भी सीखा। यहां के बगीचे में वो संजय गांधी और राजीव गांधी के साथ खेलती थीं। संजय और राजीव उनके अच्छे दोस्त थे...जिनमें से एक का जन्म सू की से एक साल पहले और दूसरे का उनसे एक साल बाद हुआ था। वो अक्सर दोनों के साथ राष्ट्रपति भवन में देखी जातीं थीं, जहां राष्ट्रपति के अंगरक्षकों से वो घोड़े की सवारी करना सीखती थीं। सू की ने अपनी स्कूल की पढ़ाई दिल्ली के सेंट जोसफ गिरजाघर के पास मौजूद जीसस एंड मैरी कॉन्वेंट स्कूल से की थी। सू ने इसके बाद लेडी श्रीराम कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएशन की। ऑक्सफोर्ड शिक्षित सू की राजनीति में बहुत बाद में आईं। उनका ज्यादातर वक्त भारत और ब्रिटेन में बीता। म्यांमार के मुक्ति नेता जनरल आंग सान जिनकी हत्या 1947 में ही कर दी गई थी, की बेटी 1988 में अपनी मां की देखभाल के लिए यांगून लौटीं और फिर अपने देश की मिट्टी की होकर रह गईं।
म्यांमार में लोकतंत्र के लिए संघर्ष कर रहीं आंग सान सू की को इस साल 13 नवंबर को नजरबंदी से रिहा कर दिया गया। परंपरागत जैकेट पहने सू जब अपने मकान के गेट पर आईं तो उनके चेहरे पर मुस्कान थी। उन्होंने अपने बालों में फूल लगा रखा था। उन्होंने अपनी बर्मी भाषा में घर के बाहर मौजूद अपने समर्थकों का धन्यवाद किया जिनकी संख्या धीरे-धीरे 5000 तक पहुंच गई थी। नोबल शांति पुरस्कार विजेता 65 वर्षीय सू ने इस बार करीब साढ़े सात साल की नजरबंदी काटी है। पहले भी कई बार उन्हें नजरबंद किया जा चुका है। उनकी रिहाई के वक्त वहां मौजूद उनकी एक प्रबल समर्थक नैंग विन ने कहा, 'मैं उन्हें अपनी मां मानती हूं, बहन मानती हूं, दादी मानती हूं क्योंकि वह हमारी आजादी के नायक जनरल आन सान की बेटी हैं। उनमें भी तो उन्हीं का खून है।' सैन्य शासन के विरोध का जोखिम उठाते हुए उनके समर्थकों ने उनकी तस्वीर वाली टी-शर्ट पहन रखी थी जिस पर लिखा था-'आंग सान सू की, हम तुम्हारे साथ हैं'। इस समय म्यांमार में करीब 2200 राजनीतिक कैदी हैं।
अपने देश म्यांमार में लोकतंत्र के लिए संघर्ष के दौरान उन्हें बहुत बड़ी व्यक्तिगत क्षति भी हुई। उनके ब्रिटिश विद्वान पति माइकल एरिस की 1999 में मौत हो गई। कैंसर से जुझ रहे एरिस को बर्मा की फौजी हुकूमत ने अपनी पत्नी से मिलने आने देने के लिए वीजा नहीं दिया। सू की ने पति से मिलने के लिए देश से बाहर जाने से इनकार कर दिया क्योंकि यह तय था कि यदि वह जाती हैं तो उन्हें वापस नहीं लौटने दिया जाता।
नजरबंदी से रिहाई के बाद आन सान सूकी अपनी मुहिम को मजबूत करने में जुटी हैं...और बर्मा में लोकतंत्र की स्थापना में वो भारत और चीन से खास मदद चाहती हैं...'वॉयजर' पेश करता है, सू ची का खास इंटरव्यू जिसे लिया है डॉयचे वेले ने

आजकल आपकी दिनचर्या क्या रहती है?

मेरा दिन तो बहुत-बहुत व्यस्त रहता है। आज ही की बात करें तो सुबह मेरी दो तीन अपॉइंटमेंट्स थीं, फिर दोपहर में भी दो जगह जाना था और देखिए रात हो गई है लेकिन अब भी मेरा काम खत्म नहीं हुआ है।

कैसी अपॉइंटमेंट्स होती हैं?

मैं राजनयिकों से मिल रही हूं। राजनीतिक दलों से और बाकी लोगों से मिल रही हूं, फिर हमारी पार्टी नेशनल लीग ऑफ डेमोक्रैसी की बैठकें भी होती हैं। फोन पर भी लोगों से बात होती है, उन पत्रकारों से भी मिलना होता है जो बर्मा आने में कामयाब हो गए हैं।

नजरबंदी से रिहा होने के बाद आपने शहर में सबसे बड़ा बदलाव क्या पाया?

मुझे लगता है कि मोबाइल फोन की तादाद। जैसे ही मैं बाहर निकली मैंने देखा कि लोग मोबाइल फोन से तस्वीरें ले रहे थे। इसका मतलब है कम्यूनिकेशन में सुधार हुआ है।

और बर्मा का समाज? उसमें आपने कुछ बदलाव पाए?

महंगाई बहुत बढ़ गई है और लोग इस बात को लेकर बहुत परेशान हैं। हर आदमी बढ़ती कीमतों की बात करता है। नौजवानों के नजरिए में भी काफी सुधार हुआ है। वे राजनीति प्रक्रिया का हिस्सा बनना चाहते हैं और वे पहले से बहुत ज्यादा तेज और सक्रिय हैं।

जब आप रिहा हुईं तो बहुत सारे नौजवान आपसे मिलने आए। बर्मा के नौजवानों से आपकी क्या उम्मीदें हैं?

उन्हें समझना होगा कि देश में बदलाव उन्हीं को लाना है और उन्हें मुझ पर या एनएलडी पर निर्भर नहीं रहना है। हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे, लेकिन मैं चाहती हूं कि उनके अंदर इतना आत्मविश्वास पैदा हो कि वे खुद यह सब कर सकें।

आप अपनी पार्टी एनएलडी का क्या भविष्य देखती हैं?

हमारे साथ लोगों का पूरा समर्थन है इसलिए हम राजनीतिक ताकत के रूप में खड़े रहेंगे। अधिकारी हमारी पार्टी का रजिस्ट्रेशन रद्द करने की कोशिश कर रहे हैं और इसके खिलाफ मैं अदालत में भी लड़ रही हूं। लेकिन वह कानूनी मसला है। राजनीतिक सच्चाई यही है कि हमें खुद पर भरोसा है, लोग हमारे साथ हैं और यही हमें बर्मा की सबसे बड़ी विपक्षी ताकत बनाता है।

क्या आपने रिहा होने के बाद सरकार से संपर्क किया है?

नहीं, अभी तो नहीं, हालांकि अपने हर भाषण में मैं उन्हें संदेश तो दे ही रही हूं। हर इंटरव्यू में मैंने यह बात कही है कि मैं बातचीत चाहती हूं। मुझे लगता है कि हमें मतभेदों पर बात करनी चाहिए और एक समझौते पर पहुंचना चाहिए।

लेकिन आपने बातचीत को शुरू करने के लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया?

हम सही वक्त का इंतजार कर रहे हैं जो ज्यादा दूर नहीं है।

बर्मा में कई नस्ली अल्पसंख्यक समुदाय हैं जिनके बहुसंख्यकों से संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। आप उन समुदायों तक कैसे पहुंचना चाहती हैं?

उनसे संपर्क की हमारी कोशिश सालों से चल रही है और मैं दावा कर सकती हूं कि हमें कामयाबी मिली है। 1990 में चुनाव लड़ने वाली पार्टियों से हमारे मजबूत संबंध हैं।

चीन के लिऊ शियाओबो को मिला शांति का नोबेल एक बड़ा विवाद बन गया है। आप खुद नोबेल जीत चुकी हैं. आप इस बारे में क्या कहेंगी?

नॉर्वे की नोबेल कमेटी की मैं इज्जत करती हूं और मुझे यकीन है कि लिऊ को पुरस्कार के लिए चुनने के पीछे अहम वजह रही होंगी। मैं तो लिऊ के बारे में ज्यादा नहीं जानती क्योंकि पिछले सात साल से मैं नजरबंद थी। जितना भी मैं जानती हूं बस रेडियो पर ही सुना है, लेकिन नोबेल कमेटी ने उन्हें चुना है तो उसके कारण होंगे।

यूरोप में लोग सोच रहे हैं कि बर्मा की मदद के लिए क्या करें। उन्हें क्या सलाह है?

पहले तो बड़ी मदद यही होगी कि सारे यूरोपीय देश एक सुर में बात करें। यूरोपीय संघ में ही अलग अलग आवाजें सुनाई देती हैं और मुझे लगता है कि इससे बर्मा का विपक्ष कमजोर होता है। अगर यूरोपीय देश मिलकर कुछ कदम उठाने के लिए मांग करें, मसलन राजनीतिक कैदियों की रिहाई, राजनीतिक प्रक्रिया में दूसरों को शामिल किया जाना और बातचीत वगैरह, तो बड़ी मदद होगी।

क्या किसी खास देश को आप ज्यादा सक्रिय देखना चाहेंगी?

आप जर्मनी से मुझसे बात कर रहे हैं तो मैं चाहूंगी कि जर्मनी ही ज्यादा सक्रिय हो।

बर्मा पर लगे प्रतिबंधों की बात करें, तो आपने कहा है कि इनके बारे में राय बनाने के लिए आपको वक्त चाहिए. आप क्या सोच रही हैं?

अब तक मुझे नहीं पता है कि अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबंधों ने लोगों की जिंदगी पर कितना असर डाला है। लेकिन आवाजें उठ रही हैं जिन्हें सुना जाना चाहिए। इसलिए अभी हमें सच का पता लगाना है। अभी मुझे रिहा हुए एक महीना ही हुआ है और इस मुद्दे पर मैं ज्यादा नहीं जान पाई हूं। मैं आईएमएफ और एडीबी की ताजा रिपोर्ट पढ़ने का इंतजार कर रही हूं।

बर्मा में पश्चिम का कितना असर है? और इससे तुलना करें तो आप भारत और चीन की भूमिका को कैसे देखती हैं?

मुझे लगता है कि चीन और भारत और पश्चिम की भूमिकाएं अलग अलग हैं। मैं नहीं चाहती कि इनमें प्रभाव डालने के लिए किसी तरह का मुकाबला हो। ऐसा नहीं है कि अपना भाग्य हम खुद नहीं बना सकते। लेकिन भारत और चीन हमारे नजदीकी पड़ोसी हैं, तो उन्हें बाकी देशों के मुकाबले कुछ फायदे तो हैं।

यानी पश्चिम की तरफ से बर्मा के लिए जो किया जाता है वो ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है?

नहीं, बिल्कुल महत्वपूर्ण है। लेकिन यह निर्भर करता है कि पश्चिम की तरफ से क्या कदम उठाए जा रहे हैं। इसीलिए मैंने पहले कहा कि पश्चिमी देश अपनी कोशिशों में समन्वय लाएं, उससे हमें ज्यादा मदद मिलेगी।

भारत और चीन से आपकी क्या उम्मीदें हैं?

हम चाहेंगे कि वे हमें प्रक्रिया का हिस्सा बनाएं। मसलन हम चाहेंगे कि भारत और चीन सबसे पहले तो हमें अपनी बात कहने का मौका दें। दोनों के साथ हमारा संपर्क बहुत सीमित है। चीन के मुकाबले भारत सरकार से हमारा संपर्क ज्यादा है। असल में चीन की सरकार से तो कोई संपर्क है ही नहीं। हम चाहते हैं कि उनसे संपर्क हो और वे हमारी बात सुनें कि हम उन्हें पड़ोसी के तौर पर कैसे देखते हैं और उनसे दोस्ती करना चाहते हैं।

आने वाले हफ्ते में आपकी क्या योजनाएं हैं?

एक इंसान है जिससे दुनिया में मुझे सबसे ज्यादा डर लगता है। वो है मेरी अपॉइंटमेंट बुक रखने वाला। बस वही बताएगा कि क्या करना है।

इंटरव्यू: थॉमस बैर्थलाइन
साभार - http://www.dw-world.de/dw/article/0,,6345469,00.html

गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

जूलियन असांज : सारे रहस्यों का अंत

'फिजिक्स पर कोई भी अपना रिसर्च पेपर 'फुल एक्सपेरिमेंटल डेटा' और प्रायोगिक नतीजों के बगैर किसी जर्नल में प्रकाशित नहीं करवा सकता', ये कहना है विकीलीक्स के एडीटर-इन-चीफ जूलियन असांज का। साइंस और गणित के छात्र रहे जूलियन पत्रकारिता में पारदर्शिता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की वकालत करते हैं। ब्रिटिश मैगजीन 'न्यू स्टेट्समैन' ने अपने सितंबर के अंक में असांज को दुनिया की 50 सबसे प्रभावशाली हस्तियों में 23 वें स्थान पर रखा था। वहीं यूटने रीडर मैगजीन ने नवंबर-दिसंबर के अंक में जूलियन असांज को दुनिया के 25 ऐसे विजनरीज में से एक बताया था, जो हमारी दुनिया को बदलने में अपना योगदान दे रहे हैं। 29 नवंबर तक असांज मशहूर टाइम के 'पर्सन आफ द इयर-2010' के रीडर्स पोल में लीड कर रहे थे। 20 नवंबर को इंटरपोल ने स्वीडिश नागरिकता प्राप्त जूलियन असांज के खिलाफ इंटरनेशनल अरेस्ट वॉरंट जारी कर दिया। इसके अलावा असांज के खिलाफ यूरोपियन यूनियन का एक अरेस्ट वॉरंट पहले से ही जारी है। सरकारों में उनके प्रति गुस्से की झलक नेशनल क्रिमिनल पुलिस प्रवक्ता के इस बयान से मिल जाती है कि - हम ये सुनिश्चित करेंगे कि दुनियाभर की पुलिस जूलियन असांज के खिलाफ अरेस्ट वॉरंट को गौर से देखें और उसे अमल में लाएं। कनाडा प्रधानमंत्री के सलाहकार कहते हैं कि असांज को मौत के घाट उतार देना चाहिए। अमेरिका उन्हें देशद्रोही, ब्लैकमेलर और सबसे खतरनाक अपराधी बता रहा है। कुछ अमेरिकी सरकारी अधिकारियों का मानना है कि जूलियन असांज जहां भी हैं, उन्हें मानवरहित विमान ड्रोन के जरिए मार डालना चाहिए। अपना असली चेहरा दुनिया के सामने आ जाने से बौखलाई अमेरिकी सरकार ने उनके खिलाफ वारंट जारी किया है, लेकिन हंसी की बात ये कि इस वारंट में असांज को यौन अपराधी बताया गया है।
दुनियाभर में लोकतंत्र और आजादी पसंद करने वालों के हीरो बन चुके जूलियन असांज आज बेखौफ पत्रकारिता की एक मिसाल बन चुके हैं। केन्या में हुई एक एक्स्ट्राज्यूडीशियल राजनीतिक हत्या में लिप्त हत्यारों का खुलासा करने पर 2009 में असांज को पत्रकारिता का पहला अवार्ड एमनेस्टी इंटरनेशनल मीडिया अवार्ड मिला था। असांज अब उस पड़ाव से काफी आगे निकल आए हैं। ज्यादातर वक्त भूमिगत रहने वाले विकीलीक्स के एडीटर-इन-चीफ जूलियन असांज के इन खुलासों ने 1970 के दशक में राष्ट्रपति निक्सन की नींव हिला देने वाले वॉटरगेट स्कैंडल की यादें ताजा कर दी हैं। उस वक्त वॉशिंगटन पोस्ट के रिपोर्ट्स कार्ल बर्नस्टाइन और बॉब वुडवर्ड ने इस केस की छानबीन में उसी निर्भीकता का परिचय दिया था, जैसा कि असांज आज कर रहे हैं। इंटरनेशनल मीडिया विकीलीक्स खुलासों का अंजाम वॉटरगेट स्कैंडल के नतीजों में तलाश रही है। हाल के खुलासे जो लगातार जारी हैं, इतने गंभीर हैं कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की कुर्सी जाने के कयास लगा रही है। पेश है जूलियन असांज के जीवन और भंडाफोड़ करने वाली उनकी वेबसाइट के काम करने के तौर-तरीकों और तकनीक पर ‘वॉयेजर’ की ये खास रिपोर्ट। इस रिपोर्ट की शुरुआत, न्यू साइंटिस्ट के रिपोर्टर डेवि़ड कॉन के अनुभवों से कर रहे हैं, जो उन्हें स्वीडन में जूलियन असांज से मुलाकात के वक्त हुए थे।

जूलियन असांज से पहली मुलाकात

'जल्दी करें, वर्ना आप उन्हें मिस कर देंगे', प्रेस ऑफीसर की इस तेज आवाज के साथ ही हमारे कदमों की रफ्तार तेज हो गई। मैं और मेरे साथ कुछ चुनिंदा रिपोर्टर यूनाईटेड किंगडम के होटल ऑक्सफोर्ड के एक गलियारे से गुजर रहे थे। हम सबकी निगाहें ऑस्ट्रेलियाई हैकर और भांडाफोड़ करने वाली वेब साइट विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज को तलाश कर रहीं थीं। यहां हम उनके ही बुलावे पर एक छोटी अनौपचारिक सी प्रेस कांफ्रेंस में उनसे सवाल-जवाब करने आए थे। जल्दी ही हम एक खुले अहाते में पहुंचे जहां लाल चमड़े की आर्मचेयर पर बैठे असांज नजर आ गए, आगे बैठने की होड़स में कुछ स्थानीय पत्रकार उन्हें घेरे हुए थे। असांज काफी परेशान से नजर आ रहे थे, उनके हाव-भाव किसी भगोड़े के जैसे लग रहे थे, उन्होंने बोलना शुरु किया लेकिन कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, क्योंकि उनका उच्चारण साफ नहीं था। असांज रुक-रुक कर बोल रहे थे, मानो बोलने से पहले हर शब्द को तौल रहे हों।
असांज इस साल अप्रैल से लाइमलाइट में आए, जब उनकी साइट विकीलीक्स ने 2007 में अमेरिकी सेना के हाथों इराकी नागरिकों के नरसंहार की वीडियो क्लिप जारी की थी। हैरानी की बात थी, कि न्यूज एजेंसी रायटर्स सूचना की स्वतंत्रता वाले अमेरिकी कानून के जरिए इन घटनाओं के क्लासीफाइड ऑफीशियल डॉक्यूमेंट्स और वीडियो हासिल करने की कोशिश में लगातार तीन साल से जुटी थी। लेकिन असांज के नेतृत्व में कुछ अज्ञात से कार्यकर्ताओं के जरिए चलाए जा रहे विकीलीक्स नाम के एक छोटे से गुमनाम संगठन ने ये सब हासिल करके मानो क्रांति ही कर दी, सिटीजन जर्नलिस्ट की परिकल्पना सही मायनों में साकार हो उठी, हां ये बात अलग है कि इस दुस्साहसी गुट की जुर्रत ने अमेरिकी सरकार को दांत पीसने पर मजबूर कर दिया
“क्या आपको अमेरिका से किसी किस्म का खतरा महसूस होता है,” एक पत्रकार ने सवाल किया।
“अमेरिकी सरकार के कुछ अधिकारियों ने निजी तौर पर कुछ गैरजिम्मेदाराना बयान दिए हैं,” असांज ने जवाब दिया।
“गैरजिम्मेदाराना बयानों से आपका क्या मतलब है ?”
“ऐसे बयान जिनसे जाहिर होता है कि वो कानून की कद्र नहीं करते।”
असांज ने बताया कि उनकी जिंदगी को अमेरिका से कोई सीधा खतरा तो नहीं है, लेकिन वहां के एक खोजी रिपोर्टर दोस्त की सलाह पर उन्होंने कुछ दिन बाद होने वाला अपना अमेरिका दौरा स्थगित कर दिया है।

अफगान वॉर डायरी लीक

असांज से मेरी इस छोटी सी मुलाकात का ये वाक्या जुलाई का है और इस मुलाकात के दस दिन बाद ही विकीलीक्स पर ‘अफगान वॉर डायरी’ लीक हुई और जूलियन असांज की शोहरत रातों-रात आसमान चूमने लगी। अफगान वॉर डायरी यानि 91,000 दस्तावेजों में दर्ज अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी जंग की हर स्याह-सफेद सच्चाई जैसे के तैसे दुनिया के सामने थी। इनमें अफगानिस्तान में अमेरिका के हर जंग और हर दांव-पेंच का गहराई से जिक्र था। विकीलीक्स ने अफगान वॉर डायरी के केवल 75,000 के करीब दस्तावेज ही प्रकाशित किए, बाकी के दस्तावेज सुरक्षा कारणों से रोक लिए गए। विकीलीक्स के साथ अफगान वॉर डायरी के पन्ने द गार्जियन, डेर स्पीगेल और न्यूयार्क टाइम्स में एकसाथ प्रकाशित हुए थे। एक खास रणनीति के तौर पर असांज, अपनी वेबसाइट पर अफगान वॉर डायरी लीक करने से करीब छह हफ्ते पहले ही इन अखबारों को ये दस्तावेज उपलब्ध करा चुके थे। ये रणनीति बड़ी कारगर साबित हुई और असांज और उनकी वेबसाइट विकीलीक्स देखते ही देखते अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छा गए। अफगान वॉर डायरी लीक होने के बाद तमाम प्रमुख अखबारों के पहले पन्ने अमेरिकी प्रतिक्रिया से रंग उठे, जिनमें नाटो सेना के साथ सहयोग कर रहे अफगानों की जान खतरे में आ जाने की बात कही गई थी।
हालांकि अफगान वॉर डायरी में अफगानिस्तान में जारी आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी जंग के तमाम संवेदनशील ब्योरे तफसील से दर्ज थे। लेकिन इनसे इस जंग के बारे में लोगों की सोंच में बदलाव नहीं आया, बल्कि सबका ध्यान इन गोपनीय दस्तावेजों को लीक करने के तरीके पर ही केंद्रित होकर रह गया। यूनिवर्सिटी आफ कैंब्रिज के कंप्यूटर सेक्योरिटी रिसर्चर रॉस एंडरसन कहते हैं, “विकीलीक्स ने सरकार को ये बात अच्छी तरह से समझा दी है कि किसी चीज पर गोपनीयता की मुहर लगाकर उसे लोगों की नजरों से दूर कर देना कोई समाधान नहीं है।”

तकनीक का असली बदलाव

असली बदलाव क्या आया है? विकीलाक्स और भांडाफोड़ करने वाली ऐसी दूसरी एजेंसियां हमेशा ये तय कर सकती हैं कि उन्हें क्या चीज लीक करनी है और सबसे बड़ा बदलाव ये है कि विकीलीक्स दुनियाभर के सामने अपनी सूचनाओं को एक ऐसे सिस्टम पर प्रकाशित और प्रोत्साहित कर सकती है जिसपर एकबार प्रकाशन के बाद जिसमें बदलाव करना, उसे हटाना लगभग असंभव है। आखिर ऐसा सिस्टम आया कहां से?
असांज ने विकीलीक्स की स्थापना 2006 में की थी। इससे दुनियाभर के सिटीजन जर्नलिस्टों और भांडाफोड़ करने वाले कार्यकर्ताओं को अपनी सूचनाएं लोगों तक पहुंचाने का जरिया मिल गया। असांज कहते हैं, “विकीलीक्स एक तकनीकी, कानूनी और राजनीतिक औजार का एक मिला-जुला रूप है। ” अपनी स्थापना के बाद से विकीलीक्स बहुत से हाई-प्रोफाइल लीक्स को अंजाम दे चुका है, इनमें केन्या की सरकार में भ्रष्टाचार को उजागर करने से लेकर ब्रिटिश नेशनल पार्टी के सदस्यों की लिस्ट और बदनाम ग्वांटानामो-बे जेल का ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स मैनुअल तक शामिल हैं। लेकिन इस साल हुए विकीलीक्स के लीक्स वाकई बेमिसाल रहे हैं।

जूलियन असांज का जीवन

जूलियन असांज का जन्म ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड के टाउन्सविले में 39 साल पहले हुआ था। असांज के माता-पिता एक थियेटर ग्रुप में काम करते थे, लेकिन असांज के जन्म के कुछ दिन बाद ही मां-बाप में अलगाव हो गया। असांज ने जब होश संभाला तो उन्होंने अपने मां-बाप को अदालत में उनकी कस्टडी लेने के लिए झगड़ते हुए देखा। इसके बाद मां ने दूसरी शादी कर ली और घर में असांज का एक सौतेला भाई भी आ गया। लेकिन दूसरे पिता का साया भी जल्दी ही सर से उठ गया। इसके बाद मां दोनों बेटों को सीने से लगाए यहां-वहां इस डर से छिपती फिरती रही कि असांज के पहले पिता कहीं उसे छीनकर न ले जाएं। असांज को बचपन का एक हिस्सा गुमनामी में लगभग भूमिगत रहकर गुजारना पड़ा। हालात इतने बदतर थे कि 14 साल के होते-होते असांज अपनी मां के साथ 37 बार शहर और घर बदल चुके थे। इन हालातों में असांज की ज्यादातर शिक्षा घर में ही हुई, जिसमें असांज की दिलचस्पी साइंस और गणित में ज्यादा थी। टीन एज में असांज की दिलचस्पी कंप्यूटर्स में हुई और जल्दी ही वो मशहूर हैकर बन गया। 1980 में असांज इंटरनेशनल सबवर्सिव्स नाम के एक हैकर ग्रुप के सबसे कम उम्र के सदस्य बन चुके थे। कम उम्र का ये हैकर तमाम सरकारी और कारोबारी सर्वर्स में आराम से घुसपैठ कर लेता था। जल्दी ही ऑस्ट्रेलियाई पुलिस ने असांज को गिरफ्तार कर लिया और 20 साल से कम उम्र में ही असांज अदालत में हैकिंग के जुर्म में मुकदमे का सामना कर रहे थे।

जिंदगी के दोराहे पर असांज

अदालत ने उन्हें सजा दी, लेकिन अच्छे बर्ताव की वजह से वो जल्दी ही जेल से रिहा हो गए। असांज अब ऐसे दोराहे पर थे जब एक रास्ता अपराध की ओर जा रहा था और दूसरा सामान्य जिंदगी की ओर। उन्होंने इन दोनों रास्तों को छोड़कर अपने लिए एक तीसरा रास्ता तैयार किया, जिसमें अपराधी दिमाग की खुराफात तो थी लेकिन उसका इस्तेमाल आम लोगों के नुकसान के लिए नहीं था।
1989 में असांज अपनी गर्लफ्रैंड के साथ पति-पत्नी की तरह रहने लगे। उनके एक बेटा भी हुआ, लेकिन 1991 में हैकिंग के एक मामले में पुलिस ने जब उनपर छापा मारा तो उनकी गर्लफ्रैंड बेटे को लेकर उनसे अलग हो गई। असांज की जिंदगी जहां से शुरू हुई थी वहीं वापस आकर ठहर गई। असांज जब छोटे थे तब उन्होंने अपने लिए अपने मां-बाप को अदालत में झगड़ते देखा था, अब वो खुद अपने बेटे की कस्टडी पाने के लिए अदालत में अपनी गर्लफ्रेंड से झगड़ रहे थे।
असांज केस हार गए, लेकिन इस हार से उनकी दिलचस्पी सामान्य जिंदगी में बढ़ गई। असांज एक बदलाव के लिए वियतनाम के दौरे पर निकल गए, वहां उन्होंने अमेरिकी हमले और फौजी ज्यादतियों के निशान भी देखे। यहां से असांज के भीतर एक स्वयंसेवक का जज्बा पैदा हुआ। वियतनाम से लौटकर एक नई शुरुआत करने के लिए असांज ने मेलबर्न यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और 2003 से 2006 तक उन्होंने फिजिक्स और मैथमैटिक्स की ग्रैजुएशन पढ़ाई भी की लेकिन वो अपनी डिग्री पूरी नहीं कर सके। लेकिन यूनिवर्सिटी के माहौल ने उनके विचारों को राजनीति और कुछ कर गुजरने के लिए संस्कारित किया और उनके भीतर दबा हुआ क्रांतिकारी का जज्बा आकार लेने लगा। 2006 वो वक्त था जब अपने जैसे समान विचारों वाले कुछ युवाओं के साथ मिलकर उन्होंने विकीलीक्स की स्थापना की। इस साइट की होस्ट एक स्वीडिश इंटरनेट प्रोवाइडर कंपनी थी। स्वीडन का चुनाव इसलिए किया गया, क्योंकि इस देश के कानून पोल खोलने वाले स्वयंसेवकों को एक तरह की सुरक्षा प्रदान करते हैं।

विकीलीक्स की तकनीक

शुरुआत में विकीलीक्स की टीम ने दुनियाभर की वेबसाइट्स खंगालकर उनके डेटा को अपनी साइट में डालना शुरू किया। इसके बार मदद ली गई पियर-टू-पियर नेटवर्क की, जिसपर सेंसरशिप लगाना वर्चुअली असंभव है। पियर-टू-पियर यानि पी-टू-पी वही वर्चुअल नेटवर्क है जिससे दुनियाभर में इंटरनेट से फिल्में मुफ्त में डाउनलोड की जाती हैं। लेकिन ये सब करते हुए असांज की टीम ने अपनी पहचान छिपाए रखने पर भी पूरा ध्यान दिया। विकीलीक्स ने अपने सोर्सेज की पहचान छिपाने के लिए एक ऐसे सिस्टम पर आधारित नेटवर्क का सहारा लिया जिसे ‘टोर’ कहा जाता है। ‘टोर’ ओनियन राउटिंग के ही आगे का संस्करण है जिसे अमेरिकी नौसेना के खुफिया विभाग ने दुनियाभर में काम कर रहे अपने एजेंटों से इंटरनेट पर गोपनीय बातचीत करने के लिए विकसित किया था। इस नेटवर्क के सभी संदेश खुफिया कोड में होते हैं, जिन्हें आम संदेशों की तरह पढ़ा नहीं जा सकता।
यूनिवर्सिटी आफ कैंब्रिज के कंप्यूटर सेक्योरिटी रिसर्चर रॉस एंडरसन बताते हैं, “ मजे की बात ये है कि अमेरिकी सरकार ने जिस सिस्टम को अपनी खुफियागिरी के लिए विकसित किया था, आज वही उसका शिकार बनकर रह गया है।”
सवाल ये कि जूलियन असांज और मुट्ठीभर हैकर्स की उनकी गुमनाम टीम किसी सूचना की पड़ताल कैसे करती है? असांज इसका जवाब देते हैं, “ विकीलीक्स पर कोई सूचना डालने से पहले उसकी गहराई से पड़ताल की जाती है और हर तरह से तसल्ली कर ली जाती है कि जो सूचना दी जा रही है वो असली है या नहीं। हम अपने सोर्स से संपर्क करते हैं और जैसा कि इराक नरसंहार वीडियो के मामले में हमने किया, हमने वीडियो और दस्तावेज देने वाले सोर्स से उस वक्त के जमीनी हालात की छोटी से छोटी तमाम जानकारियां लीं और उन्हें दूसरे सोर्स के जरिए से कन्फर्म किया। अब तक की अपनी जानकारी के हिसाब से हम पूरे विश्वास से कह सकते हैं कि हमने कोई भी जाली सूचना विकीलीक्स पर प्रकाशित नहीं की है।”
जो चीज स्पष्ट नहीं है, वो ये कि आखिर ये कौन तय करता है कि कौन सी सूचना विकीलीक्स पर प्रकाशित करनी है और कब ? असांज इस सवाल का कोई जवाब नहीं देते कि उनका संगठन काम कैसे करता है। ये भी हैरानी की बात है, कि लोकतंत्र और पारदर्शिता की मशाल उठाने वाले संगठन के कामकाज के तौर-तरीकों पर इतनी गोपनीयता क्यों बरती जा रही है ? और इसका मकसद क्या है ? विकीलीक्स वेबसर्वर के जरिए मैंने अपने स्तर पर ये पड़ताल करने की कोशिश की और विकीलीक्स के एक स्वयंसेवक से संपर्क किया, उसने मुझे बताया कि पांच स्वयंसेवकों की एक कोर कमेटी विकीलीक्स का कंटेंट तय करती है और साइट पर क्या प्रकाशित होगा और क्या नहीं ये तय करने का अधिकार काफी हद तक असांज के पास ही है।

सोमवार, 29 नवंबर 2010

‘स्पेक्ट्रम’ आखिर है क्या ?

17 वीं सदी में महान वैज्ञानिक इसाक न्यूटन ने एक ऐसा प्रयोग किया जिसने साइंस की धारा ही बदल दी। उन्होंने अपनी प्रयोगशाला के सभी खिड़की दरवाजे बंद कर दिए। फिरभी प्रयोगशाला में पूरा अंधेरा नहीं हो सका, क्योंकि खिड़की की एक दरार से सूरज की किरण भीतर आ रही थी। न्यूटन ने मुस्कराते हुए शीशे का एक छोटा प्रिज्म उठाया और उसे सूरज की उस किरण के सामने ले गए। एक जादू सा हो गया और सूरज की रोशनी का रहस्य सामने आ गया। सामने रखे एक सफेद बोर्ड पर इंद्रधनुष खिल उठा, दरअसल शीशे के प्रिज्म ने सूरज की रोशनी में मौजूद सात उन रंगों को अलग कर दिया था। हमारी आंख जो कुछ भी देखती है वो इन सात रंगों की सीमा में ही सिमटा रहता है। न्यूटन ने सूरज की रोशनी में छिपे इन सात रंगों को स्पेक्ट्रम कहा, और फिजिक्स में एक नई शुरुआत हो गई।
हमारा सूरज और एक साधारण अणु ये दोनों ही स्पेक्ट्रम के प्राकृतिक स्रोत हैं। आज स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल हम हर रोज जाने-अनजाने करते रहते हैं, टीवी के रिमोट से लेकर लैपटॉप पर वॉयरलेस इंटरनेट, माइक्रोवेव ओवेन, खिली-खिली धूप और मोबाइल फोन तक सब स्पेक्ट्रम का ही कमाल है। न्यूटन ने हमें स्पेक्ट्रम के गुण के बारे में बताया लेकिन स्पेक्ट्रम की वजह को गहराई से समझा महान भारतीय वैज्ञानिक सर सी.वी. रमन ने। रमन ने अगर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम का राज नहीं समझा होता तो आज न तो रिमोट होता और न मोबाइल फोन। हर अणु परमाणुओं सो बनता है और हर परमाणु के केंद्र में एक नाभिक होता है, जिसमें प्रोटान और न्यूट्रॉन होते हैं और अलग-अलग कक्षाओं में परिक्रमा करते इलेक्ट्रान चारों ओर से नाभिक को घेरे रहते हैं। अब शुरू होता है असली खेल, जब परमाणु को गर्म किया जाता है तो नाभिक की परिक्रमा करते इलेक्ट्रान अपनी कक्षा से छलांग लगाकर और ऊपर वाली कक्षा में पहुंच जाते हैं। इसी तरह जब परमाणु को ठंडा किया जाता है तो नाभिक की परिक्रमा कर रहे इलेक्ट्रान निचली कक्षाओं में गिर जाते हैं। सबसे खास बात ये कि नाभिक के चारोंओर घूमता इलेक्ट्रान जब भी अपनी कक्षा से ऊपर छलांग लगाता है या नीचे गिरता है, उस वक्त वो खास स्पेक्ट्रम छोड़ता है। इसे कहते हैं इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम। रमन ने पता लगाया कि कुदरत में मौजूद सभी धातुओं, खनिजों, गैसों और तरल का स्पेक्ट्रम बिल्कुल अलग-अलग होता है। ये स्पेक्ट्रम बिल्कुल उंगलियों के निशान जैसा होता है यानि हर तत्व का स्पेक्ट्रम बिल्कुल अलग और अनोखा। इस खोज के लिए रमन को भौतिकी के नोबेल से सम्मानित किया गया और तत्वों से निकलने वाले स्पेक्ट्रम को रमन इफेक्ट कहा गया। आज रमन इफेक्ट से ही हम चंद्रमा और मंगल ग्रह मौजूद खनिजों का पता लगा रहे हैं, और खोजे जा रहे नए ग्रहों के बारे में यहीं बैठे-बैठे बता सकते हैं कि वहां पानी है या नहीं, या उसका वातवरण कैसा है।
इलेक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन की वजह जानने के बाद अब मनचाही स्पेक्ट्रम को हासिल करना आसान हो गया, और यहीं से स्पेक्ट्रम के कारोबारी इस्तेमाल की शुरुआत हुई। फ्रीक्वेंसी और वेवलेंथ हर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन की खास पहचान होती है, और इसी के आधार पर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन को रेडियो, माइक्रोवेव, इंफ्रारेड, विजिबिल, अल्ट्रावॉयलेट, एक्स-रे और गामा-रे की पहचान की गई। ये सारी स्पेक्ट्रम, जिन्हें हम रेडिएशन भी कह सकते हैं, इनमें से कुछ हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचाती और हमारे बेहद काम की हैं, जैसे रेडियो जिससे हम टीवी के प्रोग्राम्स देखते हैं, माइक्रोवेव जिससे सेटेलाइट संचार और ओवन से लेकर मोबाइल फोन तक काम करते हैं और इंफ्रारेड जिसपर सभी रिमोट काम करते हैं। समुद्र के किनारे की धूप में 53 फीसदी इन्फ्रारेड, 44 फीसदी दिखाई देने वाली रोशनी और 3 फीसदी अल्ट्रावॉयलेट किरणें होती हैं। अल्ट्रावॉयलेट, एक्स-रे और गामा-रे स्पेक्ट्रम बेहद खतरनाक हैं और इनके संपर्क में कुछ देर रहने से ही हम बीमार पड़ सकते हैं।
मोबाइल, सेटेलाइट और टेलीविजन इन तीनों में माइक्रोवेव और रेडियो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल किया जाता है। अब सवाल ये कि आखिर इसका कारोबारी इस्तेमाल कैसे होता है? दरअसल किसी स्पेक्ट्रम का कारोबारी इस्तेमाल इन बातों से तय होता है कि उसकी तरंग की लंबाई कितनी है, उसकी फ्रिक्वेंसी (वेवलेंथ या साइकल प्रति सेकंड) क्या है और वो कितनी ऊर्जा कितनी दूर तक साथ ले जा सकती है।
रेडियो वेव स्पेक्ट्रम से लंबी दूरी तय की जा सकती हैं और वह भी बिना किसी दिक्कत के। रेडियो वेव स्पेक्ट्रम  की तरंगें काफी लंबी होती हैं। इनकी वेवलेंथ 1 किलोमीटर से लेकर 10 सेंटीमीटर तक की होती है और फ्रिक्वेंसी भी 3 किलोहट्र्ज (3,000 साइकिल प्रति सेकंड) से लेकर 3 गीगाहट्र्ज (3 अरब साइकिल प्रति सेकेंड) तक के बीच होती है। रेडियो तरंगों को सबसे ज्यादा असर भाप और आयन से होता है। साथ ही, इन पर सोलर फ्लेयर और एक्सरे किरणों के विस्फोट का भी असर होता है। साथ ही, पहाड़ों की वजह से भी रेडियो तरंगों से संचार में काफी असर पड़ सकता है। छोटी फ्रिक्वेंसी मकानों और पेड़ों को भी पार कर सकती हैं। साथ ही, ये पहाड़ों के किनारे से भी निकल सकती हैं।
माइक्रोवेव स्पेक्ट्रम का सबसे फायदेमंद इस्तेमाल दूरसंचार और इंटरनेट में होता है। दूरसंचार और ब्रॉडबैंड के लिए 700-900 मेगाहट्र्ज की छोटी फ्रिक्वेंसी काफी फायदेमंद होती हैं। सेंटीमीटर और मिलीमीटर की रेंज वाली माइक्रोवेव्स की फ्रिक्वेंसी 300 गीगाहट्र्ज तक हो सकती है। इसके अलग-अलग प्रकार के इस्तेमाल को देखते हुए इसे अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। खाना पकाने वाले माइक्रोवेव में सैकड़ों वॉट बिजली का इस्तेमाल आरएफ वेवलेंथ को पैदा करने में होता है। ये वेवलेंथ 32 सेमी (915 मेगाहट्र्ज) से लेकर 12 सेमी (2.45 मेगाहट्र्ज) तक के होते हैं। छोटी ऊर्जा स्रोतों वाले उपकरणों से पैदा होने वाले माइक्रोवेव का इस्तेमाल संचार के साधनों के रूप में होता है और ये काफी कम ऊर्जा पैदा करते हैं। इन्फ्रारेड वेव छोटी होती हैं और वे काफी गर्म होती हैं। लंबी दूरी वाले इन्फ्रारेड बैंड्स का इस्तेमाल रिमोट कंट्रोल के लिए होता है। साथ ही, इनका इस्तेमाल बहुत कम गर्मी पैदा करने वाले बल्बों में होता है।
 2जी और 3जी
किस स्पेक्ट्रम पर हम बात करेंगे और किस स्पेक्ट्रम पर सेटेलाइट डेटा भेजे जाएंगे, इस जैसे तमाम मुद्दों की बागडोर संभाल रखी है इंटरनेशनल कम्युनिकेशन यूनियन ने। संयु्क्त राष्ट्र की इस इकाई ने सभी सदस्य देशों को अलग-अलग स्पेक्ट्रम के बैंड्स आवंटित कर रखे हैं। इसमें कोई देश मनमानी या एक-दूसरे के कामकाज में बाधा नहीं पहुंचा सकता। इन नियमों के तहत 1980 में 1-जी यानि फर्स्ट जनरेशन वायरलेस टेक्नोलॉजी की शुरुआत हुई, पहले पहल जिसका इस्तेमाल कार फोन में किया गया। 2-जी यानी सेकेंड जनरेशन वायरलेस टेलीफोन टेक्नोलॉजी की शुरुआत 1990 में हुई। 1991 में पहली बार फिनलैंड में रेडियोलिंजा कंपनी की ओर से जीएसएम मोबाइल सर्विस में 2-जी टेक्नोलॉजी का कारोबारी इस्तेमाल शुरू हुआ। डाटा ट्रांसफरिंग, टेक्स विथ रेडियो सिग्नल्स आदि सुविधाओं से हुई शुरुआत में जल्दी ही सीडीएमए का प्रवेश भी हो गया। अब आ गई है बारी 3-जी यानि थर्ड जनरेशन मोबाइल टेक्नोलॉजी की। 3-जी में डाटा का हस्तांतरण तेजी से होता है और नेटवर्क भी अच्छा होता है। 2जी स्पेक्ट्रम की बात करें तो ये हमारी सरकार के पास इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशंस यूनियन से आवंटित एक खास रेडियो वेव बैंड है। सिग्नल भेजने के लिए मोबाइल कंपनियों को फ्रिक्वेंसी रेंज की जरूरत थी। सरकार ने लाइसेंस फी लेकर स्पेक्ट्रम मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर्स को जारी किए।
खास बात ये कि 2-जी और 3-जी के स्पेक्ट्रम में कोई खास अंतर नहीं है। बस सरकार के नियमन और इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशंस यूनियन ने सदस्य देशों के बीच बेहतर तारतम्यता के तहत इसके लिए अलग स्पेक्ट्रम घोषित किया गया है। दोनों नेटवर्क 800-900 और 1800-1900 मेगाहट्र्ज पर काम करते हैं और कर सकते हैं। कमाई में इजाफे को देखते हुए अनुमानों के मुताबिक 900 मेगाहट्र्ज के 3जी में 2.1 गीगाहट्र्ज से कम लागत लगती है। फिनलैंड, आइसलैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, थाईलैंड, वेनुजुएला, डेनमार्क और स्वीडन में तो 900 मेगाहट्र्ज (2जी स्पेक्ट्रम) पर ही 3जी नेटवर्क मौजूद है। फ्रांस भी अब 2जी की जगह 3जी को बढ़ावा दे रहा है। इससे पता चलता है कि भारत में सरकारी और रक्षा इस्तेमालों की वजह से स्पेक्ट्रम की कितनी ज्यादा किल्लत है। हमें अपनी जरूरतों, लैंडलाइन फोनों की कम पहुंच और लागत को देखते हुए अपनी क्षमता के विस्तार के नए तरीकों की तलाश करनी होगी। दूसरे मुल्कों में कंपनियां इस स्पेक्ट्रम का अपनी इच्छा के मुताबिक इस्तेमाल करने के लिए मुक्त हैं, जबकि अपने मुल्क में इस बारे में कोई तस्वीर ही स्पष्ट नहीं है। हमारी नीतियों कम कीमत पर ज्यादा अच्छी कवरेज या क्षमता के बारे में स्थिति को स्पष्ट कर सकती हैं। इससे लोगों को कम कीमत पर अच्छी सेवा मिलेगी। 

रविवार, 21 नवंबर 2010

प्रो. स्टीफन हॉकिंग से 10 सवाल

सवाल 01 - अगर ईश्वर का अस्तित्व नहीं है, तो फिर दुनिया की हर संस्कृति में भगवान को सर्वशक्तिमान और सर्वोच्च सत्ता क्यों माना गया है? ईश्वर की अवधारणा सार्वभौमिक यानि यूनिवर्सल क्यों है?


प्रो. हॉकिंग - मैं ये दावा नहीं करता कि ईश्वर का अस्तित्व नहीं है। ईश्वर या भगवान एक नाम है जिससे लोग अपने अस्तित्व को जोड़ते हैं और अपनी जिंदगी के लिए जिसके शुक्रगुजार होते हैं। लेकिन मेरी समझ से सौरमंडल के इस तीसरे ग्रह पर जिंदगी और अपनी मौजूदगी के लिए भौतिक विज्ञान के नियमों का आभार मानना चाहिए, न कि भगवान जैसी किसी सार्वजनिक सत्ता का जिसके साथ व्यक्तिगत रिश्ता जोड़कर हम खुद को भुलावे में रखते हैं।

सवाल 02 – क्या कभी ब्रह्मांड का भी अंत होगा? अगर हां, तो इस अंत के बाद क्या होगा?

प्रो. हॉकिंग - एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जरवेशंस बताते हैं कि हमारा ब्रह्मांड फैल रहा है और इसके फैलने की रफ्तार लगातार बढ़ती जा रही है। ब्रह्मांड हमेशा ही फैलता रहेगा और इसके साथ-साथ ये और भी ज्यादा अंधकारपूर्ण और खाली जगहों को जन्म देता रहेगा। ब्रह्मांड का जन्म बिगबैंग की घटना से हुआ था, लेकिन इसका कोई अंत नहीं है। कोई ये भी पूछ सकता है कि बिगबैंग से पहले क्या था, लेकिन इसका जवाब भी ये होगा कि जैसे दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचकर दक्षिण दिशा लुप्त हो जाती है, उसी तरह बिगबैंग से पहले कुछ भी नहीं था। क्योंकि बिगबैंग एक शुरुआत है, इस शुरुआत से पहले कैसे कुछ हो सकता है।

सवाल 03 – क्या आपको लगता है कि मानव सभ्यता का वजूद इतने लंबे समय तक बरकरार रहेगा कि वो अंतरिक्ष में गहरे और गहरे छलांग लगा सके?


प्रो. हॉकिंग - मुझे लगता है कि मानव जाति के पास अपने अस्तित्व को तबतक बचाए रखने के बेहतर मौके हैं जब तक कि हम अपने सौरमंडल को कॉलोनाइज नहीं कर लेते। हालांकि इस पूरे सौरमंडल में हमारे लिए पृथ्वी जैसी माकूल कोई दूसरी जगह नहीं है, इसलिए अभी ये स्पष्ट नहीं है कि जब ये धरती ही जीवन के किसी भी स्वरूप के रहने के लायक नहीं रहेगी, ऐसे हालात में मानव जाति बचेगी या नहीं। मानव जाति के वजूद को ज्यादा से ज्यादा लंबे वक्त तक बरकरार रखने के लिए दूसरे सितारों की दुनिया तक हमारा पहुंचना जरूरी है। अभी इसमें काफी वक्त है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि तब तक हम पृथ्वी पर खुद को बचाए रखने में कामयाब रहेंगे।

सवाल 04 – अगर आप अल्बर्ट आइंस्टीन से बात कर सकते, तो उनसे क्या कहते?


प्रो. हॉकिंग - मैं उनसे कहता कि वो आखिर ब्लैक होल्स में यकीन क्यों नहीं करते। उनके रिलेटिविटी के सिद्धांत के फील्ड समीकरण बताते हैं कि एक विशाल सितारा या गैसों का सघन बादल खुद में ही नष्ट होकर एक ब्लैक होल को जन्म दे सकता है। आइंस्टीन खुद इस तथ्य को जानते थे, लेकिन फिरभी उन्होंने किसी तरह खुद को समझा लिया था कि किसी भी धमाके की तरह हर विस्फोट द्रवमान या वजन को बाहर फेंक देने के लिए ही होता है। यानि वो मानते थे कि सितारों की मौत होते ही एक धमाके के साथ उसका सारा पदार्थ बाहर छिटक जाता है। लेकिन अगर विस्फोट हो ही नहीं और सितारे की मौत होते ही उसका सारा द्रव्यमान बस उसके एक ही बिंदु में सिमटकर रह जाए तो?

सवाल 05 – ऐसी कौन सी वैज्ञानिक खोज या विकास है जिसे आप अपने जीवनकाल में ही साकार होते हुए देखना चाहते हैं?


प्रो. हॉकिंग - मैं चाहूंगा कि मेरे जीवनकास में नाभिकीय फ्यूजन ही ऊर्जा का व्यावहारिक जरिया बन जाए। इससे हमें ऊर्जा की अक्षय आपूर्ति होती रहेगी और वो भी ग्लोबल वॉर्मिंग या प्रदूषण के खतरों के बगैर।

सवाल 06 – मृत्यु के बाद हमारी चेतना का क्या होता है? आप क्या मानते हैं?


प्रो. हॉकिंग - मैं मानता हूं कि हमारा मस्तिष्क एक कंप्यूटर और चेतना उसके एक प्रोग्राम की तरह है। ये प्रोग्राम उस वक्त काम करना बंद कर देता है, जब उसका कंप्यूटर टर्न ऑफ हो जाता है। सिद्धांतत: हमारी चेतना की रचना न्यूरल नेटवर्क पर फिर से की जा सकती है। लेकिन ऐसा करना बेहद मुश्किल है, इसके लिए मृतक की सारी स्मृतियों की आवश्यकता पड़ेगी।

सवाल 07 – आप एक ब्रिलिएंट फिजिसिस्ट के तौर पर मशहूर हैं, आपकी ऐसी कौन सी आम रुचियां हैं, जो शायद लोगों को हैरान कर सकती हैं?


प्रो. हॉकिंग - मुझे हर तरह का संगीत पसंद है, पॉप, क्लासिकल और ऑपेरा, हर तरह का। मैं अपने बेटे टिम के साथ मिलकर फॉर्मूला वन रेसिंग का भी मजा लेता हूं

सवाल 08 – क्या आपको कभी ऐसा लगा कि आपकी शारीरिक अक्षमता की वजह से अपने शोध में आपको फायदा पहुंचा, या इससे आपके अध्ययन में रुकावट आई?


प्रो. हॉकिंग - हालांकि मैं खासा दुर्भाग्यशाली रहा कि मोटर-न्यूरॉन डिसीस जैसी बीमारी की चपेट में आ गया, इसके अलावा जीवन के दूसरे सभी मामलों में मैं खासा भाग्यशाली रहा। मैं खुद को काफी खुशनसीब समझता हूं कि मुझे थ्योरेटिकल फिजिक्स में काम करने का मौका मिला, और अपनी लोकप्रिय किताबों की मदद से मैं जैकपॉट को हिट करने में कामयाब रहा। ये काम के ऐसे कुछ ऐसे गिने-चुने क्षेत्र है, जहां शारीरिक अक्षमता से कोई फर्क नहीं पड़ता।

सवाल 09 – जिंदगी के सभी रहस्यों के जवाब लोग आपसे जानने की अपेक्षा रखते हैं, क्या इससे आपको एक बड़ी जिम्मेदारी का बोध नहीं होता?


प्रो. हॉकिंग - देखिए, जिंदगी की सभी समस्याओं का हल यकीनन मेरे पास नहीं है। फिजिक्स और गणित ये तो बता सकते हैं कि ब्रह्मांड का जन्म कैसे हुआ, लेकिन इनसे मानवीय व्यवहार के रहस्यों को नहीं समझा जा सकता। क्योंकि अभी बहुत से सवालों को सुलझाना बाकी है। लोगों को समझने के मामले में मैं अनाड़ी हूं। दूसरे लोगों की तरह मैं भी अब तक ये नहीं समझ पाया हूं कि लोग किसी चीज पर विश्वास कैसे कर लेते हैं, खासतौर पर महिलाएं।

सवाल 10 – क्या आपको लगता है कि कभी ऐसा वक्त भी आएगा, जब मानव जाति फिजिक्स के बारे में सबकुछ जान-समझ जाएगी?


प्रो. हॉकिंग - मुझे लगता है, कि ऐसा कभी नहीं होगा

रविवार, 14 नवंबर 2010

क्या हम धार्मिक-ज्योतिषीय हिस्टीरिया के युग में जी रहे हैं?

हम आज ऐसे युग में हैं जब साइंस और खगोल विज्ञान के बारे में जागरूकता सबसे ज्यादा है। टेक्नोलॉजी और ज्ञान का इतना व्यापक विस्तार पहले कभी नहीं था। लेकिन फिर भी आज अंधविश्वास पहले से कहीं ज्यादा है, तरह-तरह के बाबाओं के आलीशान पंडालों से लेकर क्रूज पर विलासिता और मनोरंजन के तमाम हथकंड़ों के बीच फाइव-स्टार कथाओं का प्रचलन अपने शीर्ष पर है। मनौती-मन्नतों से लेकर करामाती बाबाओं तक की भक्ति का दौर खूब जोर-शोर से जारी है। ये अजीब विरोधाभास है कि अत्याधुनिक वैज्ञानिक युग में भी हम धार्मिक-ज्योतिषीय हिस्टीरिया में जी रहे हैं। यथार्थवादी और व्यावहारिक होने के तमाम दंभ के बीच भी हम आखिर इतने भाग्यवादी क्यों हैं? ये एक अहम सवाल है, क्योंकि ये हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक विकास के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है। अमेरिका के एक थिंक टैंक ने दुनिया के सभी प्रमुख देशों के बीच एक सर्वे कराया, इस सर्वे के नतीजे बताते हैं कि ऐसे लोगों की तादाद बहुत ज्यादा बढ़ी है जो रोज अपना राशिफल देखते हैं और उसी के मुताबिक अपना काम करते हैं। भारत में तो ज्योतिष और धार्मिक आडंबर में इतना जबरदस्त उछाल है कि ये क्षेत्र बेरोजगारों के लिए आकर्षक विकल्प बन चुका है।
मेरे वैज्ञानिक और एस्ट्रोनॉमर साथियों की तरह अकसर मुझे ऐसी स्थितियों से दो-चार होना पड़ता है, जब कोई मुस्कराते हुए मुझे अपनी राशि बताता है और मुझसे मेरी राशि पूछ बैठता है। संपूर्ण मानव इतिहास में वैज्ञानिक रूप से सबसे उन्नत दौर में भी हम बेहद अतार्किक और रूढ़िवादी हैं। सौरमंडल के ग्रह हमारे भाग्य को बना या बिगाड़ सकते हैं, इस पर यकीन करने से पहले आप खुद ये विचारकर देखिए कि हमारी चार स्पेस सोलर ऑब्जरवेटरीज हर पल सूरज की निगरानी कर रही हैं। स्पेसक्राफ्ट मैसेंजर बुध की कक्षा में प्रवेश करने वाला है और वीनस एक्सप्रेस की आंख से हम शुक्र के वातावरण और भौगोलिक संरचनाओं की अध्ययन कर रहे हैं। हमारे ही स्पेसक्राफ्ट चंद्रयान ने चंद्रमा पर पानी की खोज की है। मंगल के आकाश और धरती दोनों जगह हमारी बनाई मशीनें काम कर रही हैं। हमने मंगल का इतने विस्तार से अध्ययन किया है कि इतना तो हम अपनी पृथ्वी के बारे में भी नहीं जानते। करीब आधा दर्जन स्पेसक्राफ्ट के जरिए हम बृहस्पति की दुनिया में झांक चुके हैं और शनि की कक्षा में तो हमारा स्पेसक्राफ्ट कसीनी शानदार काम कर रहा है। इससे भी आगे की दुनिया को देखने-समझने के लिए मिशन न्यू-होराइजन बढ़ा चला जा रहा है।
मजे की बात ये कि खगोल विज्ञान और ज्योतिष दोनों की शुरुआत मानव विकास के इतिहास में एक ही बिंदु से और लगभग एकसमान घटनाओं से ही हुई है। मेरे मित्र इतिहासकार और खगोलशास्त्री बलदेवराज दावर के मुताबिक भाग्यवादिता और धार्मिकता के बीज विकासवाद की शुरुआती परिस्थितियों ने ही मानव अंतरमन में बो दिए थे। लाखों साल पहले जब आदिमानव गुफाओं और पेड़ों में रहता था, और कई मानव प्रजातियां अस्तित्व में थीं, तब कभी-कभी ऐसा भी होता था कि आदिमानवों के ये झुंड हमलावरों का निशाना बन जाते थे। ये हमलावर हिंसक पशु भी होते थे और दूसरी मानव प्रजातियां भी। झुंड पर हमला होने की सूरत में बचाव के दो ही रास्ते अमल में लाए जाते थे, या तो कुछ ताकतवर मर्द हमलावरों का बहादुरी से मुकाबला करते थे और पूरा झुंड बिखर जाता था, बूढ़े, बच्चे और महिलाऐं सब अलग-अलग दिशाओं में अंधाधुंध भाग निकलते थे। या फिर सभी एक ही जगह एक-दूसरे से ज्यादा से ज्यादा सटकर दुश्मन की ओर पीठ करके एक गोल झुंड बनाकर खड़े हो जाते थे। इस झुंड के बीचोंबीच बच्चों और महिलाओं को रखा जाता था और सभी पुरुष उन्हें चारों ओर से कई दायरों में घेरे रहते थे। ऐसे में हमलावर पशु बाहर से एक-दो पुरुषों का शिकार करके अपनी राह चला जाता था। सबसे बदतर हालात में भी महिलाएं-बच्चे और कुछ पुरुष तो बच ही जाते थे।
 ऐसे में जो लोग बच जाते थे वो इसे आसमान पर चमक रहे चंद्रमा या सूरज की कृपा मानकर उन्हें भेंट चढ़ाना और पूजा-पाठ करना शुरू कर देते थे। झुंड बनाकर एक जगह खड़े हो जाना ही हमलावरों से बचाव का सबसे कारगर तरीका था, क्योंकि मुकाबला करने वाले और बिखर जाने वाले लोग वापस नहीं आ पाते थे, जबकि सबसे खतरनाक हमले में भी एक जगह जमकर खड़े हो गए आदिमानवों के झुंड में काफी लोग बच जाते थे, जो अपने झुंड को आगे ले जाते थे।
आदिमानवों की यही प्रजाति बची रही, जबकि दूसरी सभी प्रजातियां एक के बाद एक खत्म हो गईं। हम उन लोगों की संतानें नहीं हैं जिन्होंने हमलावरों का बहादुरी से मुकाबला किया और खेत रहे, बल्कि हम उन लोगों की संतानें हैं जिन्होंने अपनी जान देकर भी झुंड के बच्चों और औरतों को जिंदा रखा, और प्राकृतिक शक्तियों का आभार मानते हुए आने वाली पीढ़ियों को जन्म दिया। आने वाले कल में भी झुंड सुरक्षित रहे इसलिए पूजा-पाठ के तमाम कर्मकांडों की शुरुआत हुई। इसीबीच सूरज-चांद-सितारों को देख लोग आने वाले भविष्य में घटने वाली घटनाओं का अनुमान लगाने लगे, ज्योतिष की शुरुआत बस यहीं से हुई।
आदिमानवों के एक से दो परिवार मिले, कबीले बसे, गांव-शहर बने और विकास की सीढ़ियां तय करते-करते हम मौजूदा अंतरिक्ष युग तक आ पहुंचे। विकास के दौरान ही कुछ लोगों को लगा कि देवताओं को खुश रखने के हमारे कर्मकांड और ज्योतिष शायद बेमानी हैं। हमारे भाग्य के मालिक आसमानों पर रहने वाले देवता नहीं बल्कि हम ही हैं। इस सोंच के साथ ही वैज्ञानिकता की शुरुआत हुई। हमने अपने कौशल और गलतियों से सीख लेते हुए अर्जित अनुभवों के बल पर परिस्थितियों को बदलना शुरू कर दिया। इस बदलाव की शुरुआत मौसम के प्रकोप से अपनी आबादी को बचाने के साथ हुई, लेकिन धरती के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को अपने फलने-फूलने लायक बना देने के बाद भी चीजों को बदलने की जिद अब भी जारी है।
इस जिद ने ही ये समझ दी कि मानव जाति के भविष्य को बनाने या बिगाड़ने के पीछे कोई अज्ञात दैवी शक्ति काम नहीं कर रही है। यहीं से ज्योतिष और खगोल विज्ञान की धाराएं अलग हो गईं। फसलों को बोने-काटने का समय जानने, आसमान में होने वाली पूर्णिमा-अमावस-ग्रहण जैसी खगोलीय घटनाओं और ग्रहों के नजर आने और छिपने के समय को जानने के लिए गणित की जरूरत हुई और इसी के साथ खगोल विज्ञान आगे बढ़ता गया। वहीं ज्योतिष शास्त्रियों ने आसमान पर हर रोज नजर आने वाले सितारों के झुरमुट में कुछ तस्वीरों का एक काल्पनिक पैटर्न खोज लिया और उन्हें राशियों का नाम दे दिया। ज्योतिष अब भी हजारों साल पुराने नियमों पर टिका है, जबकि खगोल विज्ञान लाखों साल आगे निकल चुका है। ज्योतिषी अब भी मानते हैं कि आसमान में तारामंडल 12 राशियों की शक्ल में मौजूद हैं, जबकि ये सच नहीं है। सच कहें तो राशियां 12 नहीं 13 हैं और 13 वीं राशि का नाम है ऑफिकस। लेकिन दुनिया की किसी भी ज्योतिषीय गणना में इस 13 वीं राशि के असर और इसके प्रकोप को शांत के अनुष्ठान का जिक्र नहीं है।
 मौजूदा ज्योतिषीय नियमों के मुताबिक किसी ने अगर जुलाई में जन्म लिया है, तो इसका अर्थ ये है कि जब वो पैदा हुआ उस वक्त सूरज कर्क राशि में था। ये गणना भी गलत है, दरअसल जब 2000 साल पहले ज्योतिष के नियम बनाए गए थे उस वक्त जुलाई महीने में सूरज कर्क राशि में ही होता था, लेकिन आज ये स्थिति बदल चुकी है। आमतौर पर हम अपने ग्रह पृथ्वी की दो तरह की गति के बारे में ही जानते हैं, एक तो लट्टू की तरह अपने अक्ष पर गति, जिससे दिन-रात का चक्र चलता है और दूसरी सूरज के चारों ओर परिक्रमा की गति जिससे मौसम बदलते हैं और साल बीतता है। लेकिन धरती की एक तीसरी गति भी है, और वो है लट्टू की तरह घूमती धरती के अक्ष की वृत्ताकार गति। किसी घूमते हुए लट्टू को ध्यान से देखें, लट्टू तो अपने अक्ष पर घूम की रहा होता है, लेकिन साथ ही लट्टू के अक्ष से जुड़ी आधार लकड़ी का ऊपरी सिरा भी गोल-गोल घूम रहा होता है। यही है पृथ्वी की तीसरी गति जिसे प्रिसेशन कहते हैं।
इस तीसरी गति के कारण करीब 2000 साल में पृथ्वी का ध्रुवतारा बदल जाता है, क्योंकि प्रिसेशन गति के कारण धरती का अपने अक्ष पर झुकाव भी बदलता रहता है। 2000 साल पहले हमारी धरती का ध्रुव तारा वेगा नाम का सितारा था, जो अब अक्ष के झुकाव के साथ बदलकर पोलारिस हो गया है। ज्योतिषीय गणनाओं में ध्रुवतारे का खास महत्व है, क्योंकि ध्रुव तारे को रेफरेंस मान कर ही आसमान में ग्रहों-नक्षत्रों की स्थिति की ज्योतिषीय गणना की जाती है। अब जबकि हमारा ध्रुव तारा ही बदल चुका है, ऐसे में 2000 साल पुराने ज्योतिषीय नियम और गणनाएं अपने आप ही बेमानी हो चुकी हैं, क्योंकि धरती की इस तीसरी गति के बारे में प्राचीन से लेकर आधुनिक ज्योतिषियों तक किसी को कोई जानकारी नहीं रही है, इसीलिए ज्योतिषीय नियमों को कभी बदलते आसमान के मुताबिक शुद्ध नहीं किया गया। आधुनिक विज्ञान को भी धरती की इस तीसरी गति के बारे में जानकारी भी अभी ही मिली है। पृथ्वी की इस तीसरी गति के कारण अक्ष के झुकाव में आए बदलाव के कारण 2000 साल पुराने आसमान और आज के आसमान में जमीन-आसमान का फर्क आ चुका है। आज के आसमान के इस हिसाब से जुलाई में पैदा होने वाले व्यक्तियों के लिए सूरज जैमिनी राशि में होता है, कर्क में नहीं।
ज्योतिषीय कॉलम पर यकीन रखने वाले लोगों को शायद ये जानकर धक्का लगे, लेकिन सच्चाई यही है कि अखबारों और पत्रिकाओं में छपने वाली तमाम ज्योतिषीय गणनाएं जाली और मनगढ़ंत होती हैं। इन भविष्यवाणियों का किसी गणित-किसी नियम से कोई ताल्लुक नहीं होता। ज्योतिषी अकसर ग्रहों की चाल और उनकी छाया का नाम लेकर लोगों को डराते हैं। हकीकत ये है कि 1781 तक दुनिया को पृथ्वी के अलावा केवल पांच ग्रहों के बारे में ही जानकारी थी, जिन्हें आसमान में देखा जा सकता था और ये पांच ग्रह थे- बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति और शनि। 1781 में खगोल वैज्ञानिक सर विलियम हर्शेल ने आसमान में अपनी जगह बदलने वाले एक खगोलीय पिंड की खोज की, शुरुआत में लगा कि ये कोई धूमकेतु है, लेकिन बाद में इस पिंड की ग्रहीय पृवत्ति का पता लगा। हर्शेल ने जिसकी खोज की थी, वो था सातवां ग्रह यूरेनस। 1846 में एक और ग्रह की खोज हुई, ये था हमारे सौरमंडल का आठवां ग्रह नेप्च्यून। नेप्च्यून की खोज गणित और गहन खगोलीय ऑब्जरवेशन का कमाल था।
खास बात ये इन नए ग्रहों की खोज होने तक ज्योतिष इनसे अनजान था। भारतीय ज्योतिष की बात करें तो उसमें सूरज और चंद्रमा को भी ग्रह माना गया है, जो बुनियादी तौर पर ही एक बड़ी गलती है। इसके अलावा राहु-केतु नाम के दो छाया ग्रहों और उनके असर की बात की गई है। जो खुद छाया ग्रह हैं, उनकी छाया से आपका नुकसान हो सकता है, क्या ये बात हास्यास्पद नहीं। क्या बैंगलोर के किसी घर में रखी एक बाल्टी दिल्ली में रहने वाले किसी शर्मा जी की सेहत पर असर डाल सकती है? अगर नहीं तो हमसे लाखों किलोमीटर दूर मौजूद ये ग्रह हमारी-आपकी सेहत और किस्मत पर कैसे असर डाल सकते हैं? सबसे बड़ा सवाल ये कि अब खोजे जा रहे नए ग्रहों के असर के बारे में ज्योतिषी कुछ क्यों नहीं बताते? ज्योतिषीय गणनाओं का खोखलापन बस इसी से जाहिर हो जाता है।

रविवार, 3 अक्तूबर 2010

न्यूटन की ‘वैज्ञानिक’ मान्यताएं

प्रो. स्टीफन हॉकिंग ने अपनी नई किताब में ये लिखकर कि इस ब्रह्मांड का रचनाकार ईश्वर नहीं है, दुनिया में एक हलचल सी पैदा कर दी। जिसकी प्रतिध्वनि भारत में भी महसूस की गई। हालांकि प्रो. हाकिंग ऐसा कहकर सीधे-सीधे ईसाई और यहूदी धार्मिक विश्वास पर प्रहार कर रहे थे, लेकिन उनकी इस बात थे हमारे यहां के बहुप्रचारित लेकिन छुद्रज्ञानी पंडित और ज्योतिष की दुकान चलाने वाले तमाम ठग भी मुट्ठियां तान कर विरोध में सामने आ गए। मैंने कहीं पढ़ा कि शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने भी प्रो. हॉकिंग का विरोध किया है, अगर ये सत्य है तो मुझे शंकराचार्यजी के वैदिक ज्ञान पर ही शक है। भविष्य में मौका मिलने पर मैं खुद स्वरूपानंद जी से मिलकर अपना ये शक दूर करना चाहूंगा।
 प्रो. हॉकिंग की खुलकर चौतरफा आलोचना की गई और इस आलोचना ने मुझे प्रेरित किया कि मैं ये जानूं कि ब्रह्मांड और ईश्वर के मुद्दे पर आइंस्टीन और न्यूटन जैसे महान वैज्ञानिकों का नजरिया क्या था? इस तरह से वॉयेजर पर इस रोचक श्रृंखला की शुरुआत हुई, जिसे आप लोगों ने अपना समर्थन देकर मेरा उत्साह बढ़ाया है।
प्रो. हॉकिंग के आलोचकों, खासतौर पर भारतीय आलोचकों का एक बड़ा तर्क ये है कि न्यूटन भी तो ईश्वर को मानते थे और यकीन करते थे कि ब्रह्मांड की रचना सर्वशक्तिमान ईश्वर ने की है, तो फिर ये प्रो. हॉकिंग किस खेत की मूली हैं?  एक कुर्सी पर लाचार सा धंसा रहने वाला और नोबेल प्राइज हथियाने को उतावला हुआ जा रहा ये बददिमाग वैज्ञानिक क्या न्यूटन से भी बड़ा है? क्या प्रो. हॉकिंग न्यूटन से भी बड़े हैं, ये विशुद्ध भारतीय तर्क है, जिसे बहस जीतने के लिए हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। यहां मै इतना ही कहूंगा कि इस तर्क का इस्तेमाल करने वाले अगर मानव जाति को दोनों के योगदान को गहराई से पढ़ना शुरू करें तो और कुछ नहीं तो विज्ञान का बहुत भला होगा और शायद वो खुद एक नए वैज्ञानिक में तब्दील हो जाएं। बहरहाल मैंने ये जानने की एक छोटी सी कोशिश की है कि ईश्वर को लेकर सर इसाक न्यूटन, जो निसंदेह अब तक के सबसे महान वैज्ञानिक थे, उनके विचार क्या थे और ब्रह्मांड की उतपत्ति की गुत्थी को वो किस नजरिए से देखते थे। प्रस्तुत है वॉयेजर की ये छोटी सी कोशिश -  

Nature and Nature's laws lay hid in night:
God said, Let
Newton be! and all was light.
प्रकृति और प्रकृति के नियम रात्रि के अंधकार में छिपे रहते हैं।         
ईश्वर ने कहा, न्यूटन को आने दो और चारों तरफ प्रकाश खिल उठा।।
इसाक न्यूटन के धार्मिक विचार जिंदगी भर उनके कामों को प्रभावित करते रहे। सर इसाक न्यूटन एक इंग्लिश फिजिसिस्ट, गणितज्ञ, एस्ट्रोनॉमर, प्राकृतिक दार्शनिक, अध्यात्मवादी और अलकेमिस्ट यानि रसायनशास्त्री थे। न्यूटन की जीवनी लिखने वाले रिचर्ड वेस्टफॉल कहते हैं, “1675 से पहले न्यूटन सही मायनों में एक एरियन थे, यानि वो इस बात पर विश्वास नहीं करते थे कि जीसस ईश्वर थे। उनका ये यकीन मृत्युपर्यंत कायम रहा।(1)
एरियनवाद, एरियस नाम के एक ईसाई पुजारी ( जैसे बिशप) की धार्मिक शिक्षाओं पर आधारित है। इसके प्रणेता एरियस (AD 250–336) एलेक्जेंड्रिया, मिस्र के रहने वाले थे और वो ट्रिनिटी यानि गॉड द फादर, गॉड द सन एंड गॉड द होली सन ( पिता ईश्वर, पुत्र ईश्वर और पवित्रात्मा ईश्वर) के अस्तित्व पर यकीन करते थे और इसका प्रचार भी करते थे। न्यूटन एरियनवादी थे, लेकिन ये रहस्य उन्होंने कभी किसी पर जाहिर नहीं किया, क्योंकि ये राज खुलने पर उन्हें कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और सिक्कों की राजकीय टकसाल में अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ जाता।
वेस्टफॉल कहते हैं कि न्यूटन बौद्धिक और भावनात्मक दोनों ही तरह से एरियस के पक्के समर्थक थे। (2) न्यूटन ने बाइबिल की विशुद्ध शिक्षाओं पर आधारित कई धार्मिक पुस्तकें लिखीं। वो खुद को उन चुनिंदा लोगों में से एक मानते थे, जिन्हें बाइबिल की शिक्षाओं को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए ईश्वर ने खुद चुना था।(3)
1690 के दशक में न्यूटन ने कई धार्मिक शोध लिखे जो बाइबिल की साहित्यिक व्याख्या से संबंधित थे। उन्होंने एक पांडुलिपि जॉन लोके को भेजी , जिसमें उन्होंने ट्रिनिटी यानि पवित्र पिता, पवित्र पुत्र और महान आत्मा के अस्तित्व को विवादित माना था, लेकिन इसे कभी प्रकाशित नहीं किया। बाद में एक पांडुलिपि में, न्यूटन ने लिखा
 मैं नहीं जानता कि में दुनिया को किस रूप में दिखाई दूंगा, लेकिन मैं खुद को समंदर के किनारे खेल रहे एक ऐसे बच्चे के तौर पर देखता हूं, जिसका ध्यान वहां रेत पर बिखरी हर सीपी-हर शंख पर जा टिकता है...और जो अपने लिए एक खूब चिकना पत्थर या कोई सुंदर चमकदार खोल ढूंढने की कोशिश कर रहा है, सच्चाई का ये इतना बड़ा समुद्र मेरे सामने अब तक खोजा नहीं गया है
न्यूटन एकेश्वरवादी थे, वो मानते थे कि ब्रह्मांड की रचना ईश्वर ने की है, जो अकेला है, सर्वव्यापी है और सर्वशक्तिमान है। जो संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्तियों में विद्यमान है और जिसके प्रभुत्व और अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता। (3)(4)
हालांकि न्यूटन को उनक वैज्ञानिक शोधों के लिए जाना जाता है, लेकिन न्यूटन बाइबिल के गंभीर छात्र भी थे और उन्होंने बाइबिल पर कई धार्मिक पुस्तकें भी प्रकाशित कराईं। यहां तक कि अपनी मशहूर किताब प्रिंसिपिया में न्यूटन ईश्वर के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त करते हुए लिखते हैं –
सूरज, ग्रहों और धूमकेतुओं से बनी ये सबसे खूबसूरत कायनात केवल एक प्रबुद्ध और सर्वशक्तिमान की दैवी इच्छा से ही संचालित हो सकती है। वो न केवल विश्वात्मा के तौर पर, बल्कि सर्वव्यापी सत्ता के रूप में सारी चीजों को संचालित करता है और अपने प्रभुत्व की सत्ता के तौर पर वो चाहता है कि उसे सर्वशक्तिमान ईश्वर कहकर पुकारा जाए।(2)
न्यूटन के वक्त में वैज्ञानिक अनुसंधान प्राकृतिक दर्शन के तौर पर प्रचलित था और सृष्टिकर्ता की धार्मिक अवधारणा से अलग उसका कोई अस्तित्व नहीं था। बल्कि न्यूटन के मुताबिक तो ईश्वर को जानने के लिए विज्ञान ही बिल्कुल सही क्षेत्र था। न्यूटन लिखते हैं –
 क्योंकि अंतरिक्ष का प्रत्येक कण हमेशा से था, और समय का हरेक पल हर कहीं समान गति से चलायमान है, इसलिए निश्चित तौर पर सृष्टि निर्माता उस महान ईश्वर के बारे में ये नहीं कहा जा सकता कि वो कभी नहीं था और कहीं नहीं है। ईश्वर, वो महान दैवी सत्ता है जो हमेशा से थी और हर कहीं मौजूद है। वो सर्वव्यापी है, न केवल आभासी रूप से बल्कि प्रकट रूप में भी। पदार्थ के बगैर ईश्वरत्व का अस्तित्व नहीं। सबको ये उदघोषित किया जाता है कि वो सर्वोच्च शक्तिमान ईश्वर हर कहीं आवश्यक रूप से मौजूद है और उसी आवश्यक रूप से वो हमेशा और हर कहीं विद्यमान रहेगा। इसीलिए उस ईश्वर के उपदेश निश्चित तौर पर प्राकृतिक दर्शन में भी मौजूद हैं। (3)
न्यूटन डार्विन से पहले हुए थे, लेकिन फिरभी वो सृष्टि के संबंध में नास्तिकों के विकासवाद के सिद्धांत से अनभिज्ञ नहीं थे। न्यूटन इस सिद्धांत के खिलाफ थे और अपने इस दृष्टिकोण को लेकर पूरी तरह संतुष्ट भी थे, वो लिखते हैं –  अंधी सैद्धांतिक जरूरतें, जो हमेशा और हर कहीं एक जैसी ही हैं, इतनी अलग-अलग चीजों की उत्पत्ति नहीं कर सकती थी। हम जिन प्राकृतिक विविधताओं को महसूस करते हैं, वो अलग-अलग काल और स्थानों पर भी बिल्कुल सटीक नजर आती हैं, ये सारी चीजें कुछ और नहीं बल्कि उसी सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी ईश्वर के विचारों और इच्छाशक्ति का ही चमत्कार है।(3)
सृष्टि का महान निर्माता ईश्वर
न्यूटन ईश्वर को इस ब्रह्मांड के महान रचनाकार के तौर पर देखते थे, आश्चर्यजनक विविधताओं से भरी सृष्टि और जीवन के लाखों स्वरूपों को देखते हुए जिसके अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता। (7) फिर भी उन्होंने जर्मनी के गणितज्ञ और दार्शनिक गॉटफ्राइड लीबनिज के इस विचार को दरकिनार कर दिया था कि ईश्वर ने ये दुनिया एक जरूरत के तहत बिल्कुल ठीक-ठाक बनाई है, ताकि इसे रचनाकार के हस्तक्षेप की जरूरत न पड़े। अपनी किताब ऑप्टिक्स के 31 वें सवाल (Query 31) में न्यूटन इसके साथ ही सृष्टि के प्रारूप की चर्चा करते हुए तर्क देते हैं कि ईश्वरीय हस्तक्षेप की जरूरत कितनी स्वाभाविक है।
अंतरिक्ष में धूमकेतु सभी दिशाओं में इधर-उधर चक्कर लगाते रहते हैं, अनिश्चितता कभी भी सभी ग्रहों को एक ही दिशा में और एक ही तरह से एक ही परिक्रमा पथ पर गतिमान नहीं रख सकती, ग्रहों और धूमकेतुओं की इस आपसी क्रिया से ग्रहीय परिक्रमा में कुछ ऐसे व्यवधान भी आ सकते हैं जिनका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। वक्त रहते ईश्वरीय हस्तक्षेप इनमें सुधार कर इन आकाशीय गड़बड़ियों को अनियंत्रित होने से रोकता है।(8)
 न्यूटन के इस पैराग्राफ ने उस वक्त काफी हलचल पैदा की थी और जर्मन दार्शनिक लीबनिज ने अपनी मित्र कैरोलाइन आफ अंसबाख को लिखे एक पत्र में न्यूटन के इस विश्वास की बखिया उधेड़ डाली थी। अपने पत्र में लीबनिज लिखते हैं
ईश्वर के काम को लेकर सर इसाक न्यूटन और उनके अनुयायियों की राय बिल्कुल बचकानी है। न्यूटन की मान्यताओं के मुताबिक, उस महान ईश्वर को वक्त-बेवक्त अपनी घड़ी में चाभी भरनी पड़ती है, ताकि उसकी घड़ी कहीं बंद ही न हो जाए। लगता है, वो महान सर्वशक्तिमान इतना दूरंदेश भी नहीं है कि वो अपनी घड़ी यानि इस सृष्टि के लिए एक स्वचालित व्यवस्था कर सके।(9)
लीबनिज के इस पत्र से एक नई बहस की शुरुआत हुई जो इतिहास में लीबनिज-क्लार्क करेस्पांडेंस के नाम से मशहूर है। लीबनिज के इस उपहास पर न्यूटन ने अपने दोस्त और शिष्य सैमुअल क्लार्क को जवाब देने के लिए आगे कर दिया। न्यूटन क्लार्क को बताते थे कि लीबनिज को क्या जवाब देना है और क्लार्क उसे अपने नाम से लिखकर लीबनिज को भेज देते थे।(10) लीबनिज-क्लार्क करेस्पांडेंस के ऐसे ही एक खत में क्लार्क शिकायत भरे लहजे में लिखते हैं
ईश्वर के बारे में लीबनिज की अवधारणा एक साधारण-दुनियावी समझ से ज्यादा कुछ नहीं और ये नास्तिकता से बस एक कदम के फासले पर है। जो लोग ये समझते हैं कि ये सारा दुनियावी कारोबार बगैर उस महान राजा की इच्छा और आदेश के चलता है, तो मुझे शक है कि वो लोग राजा को ही दरकिनार करने की कोशिश में जुटे हैं। जो भी ये समझता है कि दुनियाभर के लोग उस ईश्वर के लगातार आदेश और मर्जी के बिना अपने मनमुताबिक कुछ भी कर सकते हैं...मुझे डर है कि उनकी ये मान्यताएं इस दुनिया से ईश्वर का वजूद खत्म करने की घृणास्पद साजिश है।(11)
इस विवाद के बीच न्यूटन अपने धार्मिक विश्वास के अनुसार सौरमंडल की व्याख्या करने में जुटे रहे। ईश्वर का आह्वान करते हुए न्यूटन लिखते हैं
हे परमपिता, ब्रह्मांड की साज-संभाल करने में आप अपना सक्रिय हस्तक्षेप जारी रखें, ताकि ये सितारे एक-दूसरे पर गिर न पड़ें। हे सर्वव्यापी ईश्वर तुम्हारा हस्तक्षेप इसलिए भी जरूरी है, ताकि श्यानता और घर्षण (viscosity and friction) के असर से इस गतिमान ब्रह्मांड का कहीं क्षरण ही न होने लगे।(12)
अपने शिष्यों के बीच निजी पत्र व्यवहार में न्यूटन के कई बार इशारा किया है कि गुरुत्वाकर्षण बल की वजह किसी अभौतिक दैवी प्रभाव की मौजूदगी है
ये बात विचारयोग्य भी नहीं है कि किसी निर्जीव तुच्छ पदार्थ में, किसी अभौतिक दैवी मध्यस्थता के बिना कोई आकर्षण बल काम कर सकता है और वो बिना आपसी संपर्क के किसी दूसरे पदार्थ को प्रभावित कर सकता है।(13)
लीबनिज ने इस बात पर भी न्यूटन की हंसी उड़ाई और ऐसी दैवी मध्यस्थता के असर को मानने से इनकार कर दिया। इस बात से न्यूटन के शिष्य क्लार्क के साथ उनकी बहस का एक नया दौर शुरू हो गया। न्यूटन की मान्यताओं को डेईज्म (Deism) के करीब माना जाता है। पश्चिमी धार्मिक दर्शन में डेईस्म (Deism) एक ऐसा अकेला विचार है जहां आस्था या संगठित धर्म की जरूरत के बिना, प्राकृतिक विश्व के निरीक्षण और तर्क के आधार पर ये तय किया जा सकता है कि इस ब्रह्मांड की रचना किसी सर्वशक्तिमान दैवी शक्ति ने की है। लेकिन न्यूटन की मान्यताएं इस मायने में डेईज्म से अलग भी है कि उन्होंने लिखा है कि ईश्वरीय शक्ति ही ग्रहों को उनके परिक्रमा पथों पर स्थिर रखती है। (14) न्यूटन चेतावनी देते हैं कि गुरुत्वाकर्षण के नियमों का इस्तेमाल इस नजरिए के लिए न किया जाए कि ब्रह्मांड किसी महान घड़ी की तरह महज एक मशीन है। न्यूटन लिखते हैं
गुरुत्वाकर्षण ग्रहों की गति की व्याख्या करता है, लेकिन ये नियम ये नहीं बता सकता कि इन ग्रहों को उनकी गति किसने प्रदान की। ईश्वर सर्वव्यापी है, उसी की शक्ति सबको संचालित करती है और वही सर्वशक्तिमान ये सब जानता है कि और भी क्या हो सकता है। (5) सूरज, ग्रहों और धूमकेतुओं से बना ये सबसे खूबसूरत सिस्टम केवल उस सर्वशक्तिमान की इच्छा और आदेश से ही गतिमान रह सकता है। वो न केवल विश्वात्मा के रूप में बल्कि सर्वशक्तिमान स्वरूप में भी संपूर्ण सृष्टि में विद्यमान है। उसकी महिमा को देखते हुए, उसे महान ईश्वर या अखिल ब्रह्मांड का शासक कहना ही पर्याप्त नहीं, वो महानतम ईश्वर तो अमर, अनंत और पूर्णतदोषरहित (absolutely perfect) है।(3)
ईश्वर की महिमा को नकारना ही नास्तिकता है। नास्तिकता मानवजाति के लिए इतनी मूर्खतापूर्ण और घृणित चीज है कि इसके पैरोकारों की तादाद बहुत ज्यादा कभी नहीं रही।(15)
 17 वीं सदी में अंग्रेज नास्तिकों को दी जाने वाली एक गाली- लैटिट्युडिनैरी (Latitudinary)  काफी चलन में थी। बाद में ये गाली ईश्वर के अस्तित्व को चुनौती देने वाले एक दर्शन लैटिट्युडिनैरियनिज्म (Latitudinarianism) के नाम से मशहूर हो गया और इसे मानने वालों को लैटिट्युडिनैरियन (Latitudinarian) कहा गया।
लैटिट्युडिनैरियन (Latitudinarian) और न्यूटन की मान्यताओं का वैचारिक द्वंद लंबे वक्त तक जारी रहा, जिससे मिलेनैरियंस (Millenarians) यानि एक ऐसा धार्मिक गुट वजूद में आया जो मशीनी या यांत्रिक ब्रह्मांड की अवधारणा को मानता था, लेकिन इसमें भी उत्साह से भरे धार्मिक रहस्यों की भरमार थी, क्योंकि उस वक्त प्रचलित धार्मिक मान्यताओं को नकारना इतना आसान नहीं था। (16) खुद न्यूटन की भी कुछ दिलचस्पी मिलेनैरियंस (Millenarians) में थी और इसका जिक्र उन्होंने अपनी बुक आफ डैनियल और बुक आफ रेवेलेशन दोनों में किया है।
 दुनिया के अंत को लेकर न्यूटन की भविष्यवाणी
अपनी किताब ऑब्जरवेशंस अपॉन द प्रोफेसीज आफ डिनायल, एंड द अपोकेलिप्स आफ सेंट जॉन में न्यूटन ने बाइबिल के प्रति अपने विश्वास को खुलकर अभिव्यक्त किया है। वो लिखते हैं कि बाइबिल की भविष्यवाणियों को समझना हमारे बस के बाहर है। इन्हें तब तक नहीं समझा जा सकता, जब तक कि अंत का समय न आ जाए। दुष्ट और घृणित लोग तब भी इन्हें नहीं समझ पाएंगे। अगर कभी ऐसा हुआ कि दुनिया का अस्तित्व ही खतरे में आ जाए, ऐसे में प्रलय और दुनिया के विनाश से पहले सभी देशों में बाइबिल के उपदेशों का पाठ सार्वजनिक तौर पर किया जाना चाहिए। ( 11)
1704 में लिखी एक पांडुलिपि में न्यूटन ने बाइबिल से वैज्ञानिक जानकारियों को हासिल करने की अपनी कोशिशों के बारे में लिखा है। न्यूटन का आंकलन था कि 2060 में दुनिया का अंत आ सकता है। ये भविष्यवाणी करते हुए वो लिखते हैं
मैं इसका जिक्र दृढ़तापूर्वक ये बताने के लिए नहीं कर रहा हूं कि दुनिया का अंत कब आएगा, बल्कि मैं उन दंभियों के उतावलेपन से भरी अटकलबाजियों को खत्म करने के लिए ऐसा कर रहा हूं, जो लगातार अंतिम समय की भविष्यवाणियां करने में जुटे हैं। ऐसा करते हुए वो पवित्र दैवी गणनाओं को बदाम कर रहे हैं, क्योंकि इन ढोंगियों की भविष्यवाणियां अकसर गलत साबित होती हैं।(9)
न्यूटन का स्मारक (1731) वेस्टमिंस्टर एब्बे में मौजूदहै, इस स्मारक के पर  लैटिन में एक शिलालेख लगा है। इस शिलालेख में लिखा है
यहाँ नाइट, आइजैक न्यूटन, को दफनाया गया, जो दिमागी ताकत से लगभग दिव्य थे, उनके अपने विचित्र गणितीय सिद्धांत हैं, उन्होंने ग्रहों की आकृतियों और पथ का वर्णन किया, धूमकेतु के मार्ग बता, समुद्र में आने वाले ज्वार का वर्णन किया, प्रकाश की किरणों में असमानताओं को बताया, और वो सब कुछ बताया जो किसी अन्य विद्वान ने पहले कल्पना भी नहीं की थी,रंगों के गुणों का वर्णन किया. वे मेहनती, मेधावी और विश्वासयोग्य थे, पुरातनता, पवित्र ग्रंथों और प्रकृति में विश्वास रखते थे, वे अपने दर्शन में अच्छाई और भगवान के पराक्रम की पुष्टि करते हैं, और अपने व्यवहार में सुसमाचार की सादगी व्यक्त करते हैं। वो ऐसी विलक्षण और महान विभूति थे जिन्होंने मानव जाति को गौरवान्वित किया। (1)

References
Epitaph for Newton's grave, composed by English poet Alexander Pope.
Newton, I. General Scholium. Translated by Motte, A. 1825. Newton's Principia: The Mathematical Principles of Natural Philosophy. New York: Daniel Adee, 501. The Greek word pantokrator is most often translated as "Almighty" in the King James Version.
Ibid, 505-506.
Ibid, 506.               
Tiner, J. H. 1975. Isaac Newton: Inventor, Scientist and Teacher. Milford, MI: Mott Media.
* Ms. Dao is Assistant Editor.
Cite this article: Dao, C. 2008. Man of Science, Man of God: Isaac Newton. Acts & Facts. 37 (5): 8.
2- Westfall, Never at Rest p. 351, 105, 195-6.
3- Principia, Book III; cited in; Newton’s Philosophy of Nature: Selections from his writings, p. 42, ed. H.S. Thayer, Hafner Library of Classics, NY, 1953.
4- A Short Scheme of the True Religion, manuscript quoted in Memoirs of the Life, Writings and Discoveries of Sir Isaac Newton by Sir David Brewster, Edinburgh, 1850; cited in; ibid, p. 65.
5- John H. Tiner. Isaac Newton: Inventor, Scientist and Teacher, Mott Media, ISBN 0-91513406-3.

6- Observations upon the Prophecies of Daniel, and the Apocalypse of St. John by Sir Isaac Newton, 1733, J. DARBY and T. BROWNE,
7 - Webb, R.K. ed. Knud Haakonssen. “The emergence of Rational Dissent.” Enlightenment and Religion: Rational Dissent in eighteenth-century Britain. Cambridge University Press, Cambridge: 1996. p19.
8-  Newton, 1706 Opticks (2nd Edition), quoted in H. G. Alexander 1956 (ed): The Leibniz-Clarke correspondence, University of Manchester Press.
9- Leibniz, first letter, in Alexander 1956, p. 11
10- Caroline to Leibniz, 10th Jan 1716, quoted in Alexander 1956, p. 193. (Chev. = Chevalier i.e. Knight.)
11- Clarke, first reply, in Alexander 1956 p. 14.
12- H.W. Alexander 1956, p. xvii
13- Newton to Bentley, 25 Feb 1693
14- Avery Cardinal Dulles. The Deist Minimum. 2005.
15-  Brewster, Sir David. A Short Scheme of the True Religion, manuscript quoted in Memoirs of the Life, Writings and Discoveries of Sir Isaac Newton Edinburgh, 1850.
16 - Jacob, Margaret C. The Newtonians and the English Revolution: 1689-1720.