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रविवार, 3 अक्तूबर 2010

न्यूटन की ‘वैज्ञानिक’ मान्यताएं

प्रो. स्टीफन हॉकिंग ने अपनी नई किताब में ये लिखकर कि इस ब्रह्मांड का रचनाकार ईश्वर नहीं है, दुनिया में एक हलचल सी पैदा कर दी। जिसकी प्रतिध्वनि भारत में भी महसूस की गई। हालांकि प्रो. हाकिंग ऐसा कहकर सीधे-सीधे ईसाई और यहूदी धार्मिक विश्वास पर प्रहार कर रहे थे, लेकिन उनकी इस बात थे हमारे यहां के बहुप्रचारित लेकिन छुद्रज्ञानी पंडित और ज्योतिष की दुकान चलाने वाले तमाम ठग भी मुट्ठियां तान कर विरोध में सामने आ गए। मैंने कहीं पढ़ा कि शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने भी प्रो. हॉकिंग का विरोध किया है, अगर ये सत्य है तो मुझे शंकराचार्यजी के वैदिक ज्ञान पर ही शक है। भविष्य में मौका मिलने पर मैं खुद स्वरूपानंद जी से मिलकर अपना ये शक दूर करना चाहूंगा।
 प्रो. हॉकिंग की खुलकर चौतरफा आलोचना की गई और इस आलोचना ने मुझे प्रेरित किया कि मैं ये जानूं कि ब्रह्मांड और ईश्वर के मुद्दे पर आइंस्टीन और न्यूटन जैसे महान वैज्ञानिकों का नजरिया क्या था? इस तरह से वॉयेजर पर इस रोचक श्रृंखला की शुरुआत हुई, जिसे आप लोगों ने अपना समर्थन देकर मेरा उत्साह बढ़ाया है।
प्रो. हॉकिंग के आलोचकों, खासतौर पर भारतीय आलोचकों का एक बड़ा तर्क ये है कि न्यूटन भी तो ईश्वर को मानते थे और यकीन करते थे कि ब्रह्मांड की रचना सर्वशक्तिमान ईश्वर ने की है, तो फिर ये प्रो. हॉकिंग किस खेत की मूली हैं?  एक कुर्सी पर लाचार सा धंसा रहने वाला और नोबेल प्राइज हथियाने को उतावला हुआ जा रहा ये बददिमाग वैज्ञानिक क्या न्यूटन से भी बड़ा है? क्या प्रो. हॉकिंग न्यूटन से भी बड़े हैं, ये विशुद्ध भारतीय तर्क है, जिसे बहस जीतने के लिए हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। यहां मै इतना ही कहूंगा कि इस तर्क का इस्तेमाल करने वाले अगर मानव जाति को दोनों के योगदान को गहराई से पढ़ना शुरू करें तो और कुछ नहीं तो विज्ञान का बहुत भला होगा और शायद वो खुद एक नए वैज्ञानिक में तब्दील हो जाएं। बहरहाल मैंने ये जानने की एक छोटी सी कोशिश की है कि ईश्वर को लेकर सर इसाक न्यूटन, जो निसंदेह अब तक के सबसे महान वैज्ञानिक थे, उनके विचार क्या थे और ब्रह्मांड की उतपत्ति की गुत्थी को वो किस नजरिए से देखते थे। प्रस्तुत है वॉयेजर की ये छोटी सी कोशिश -  

Nature and Nature's laws lay hid in night:
God said, Let
Newton be! and all was light.
प्रकृति और प्रकृति के नियम रात्रि के अंधकार में छिपे रहते हैं।         
ईश्वर ने कहा, न्यूटन को आने दो और चारों तरफ प्रकाश खिल उठा।।
इसाक न्यूटन के धार्मिक विचार जिंदगी भर उनके कामों को प्रभावित करते रहे। सर इसाक न्यूटन एक इंग्लिश फिजिसिस्ट, गणितज्ञ, एस्ट्रोनॉमर, प्राकृतिक दार्शनिक, अध्यात्मवादी और अलकेमिस्ट यानि रसायनशास्त्री थे। न्यूटन की जीवनी लिखने वाले रिचर्ड वेस्टफॉल कहते हैं, “1675 से पहले न्यूटन सही मायनों में एक एरियन थे, यानि वो इस बात पर विश्वास नहीं करते थे कि जीसस ईश्वर थे। उनका ये यकीन मृत्युपर्यंत कायम रहा।(1)
एरियनवाद, एरियस नाम के एक ईसाई पुजारी ( जैसे बिशप) की धार्मिक शिक्षाओं पर आधारित है। इसके प्रणेता एरियस (AD 250–336) एलेक्जेंड्रिया, मिस्र के रहने वाले थे और वो ट्रिनिटी यानि गॉड द फादर, गॉड द सन एंड गॉड द होली सन ( पिता ईश्वर, पुत्र ईश्वर और पवित्रात्मा ईश्वर) के अस्तित्व पर यकीन करते थे और इसका प्रचार भी करते थे। न्यूटन एरियनवादी थे, लेकिन ये रहस्य उन्होंने कभी किसी पर जाहिर नहीं किया, क्योंकि ये राज खुलने पर उन्हें कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और सिक्कों की राजकीय टकसाल में अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ जाता।
वेस्टफॉल कहते हैं कि न्यूटन बौद्धिक और भावनात्मक दोनों ही तरह से एरियस के पक्के समर्थक थे। (2) न्यूटन ने बाइबिल की विशुद्ध शिक्षाओं पर आधारित कई धार्मिक पुस्तकें लिखीं। वो खुद को उन चुनिंदा लोगों में से एक मानते थे, जिन्हें बाइबिल की शिक्षाओं को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए ईश्वर ने खुद चुना था।(3)
1690 के दशक में न्यूटन ने कई धार्मिक शोध लिखे जो बाइबिल की साहित्यिक व्याख्या से संबंधित थे। उन्होंने एक पांडुलिपि जॉन लोके को भेजी , जिसमें उन्होंने ट्रिनिटी यानि पवित्र पिता, पवित्र पुत्र और महान आत्मा के अस्तित्व को विवादित माना था, लेकिन इसे कभी प्रकाशित नहीं किया। बाद में एक पांडुलिपि में, न्यूटन ने लिखा
 मैं नहीं जानता कि में दुनिया को किस रूप में दिखाई दूंगा, लेकिन मैं खुद को समंदर के किनारे खेल रहे एक ऐसे बच्चे के तौर पर देखता हूं, जिसका ध्यान वहां रेत पर बिखरी हर सीपी-हर शंख पर जा टिकता है...और जो अपने लिए एक खूब चिकना पत्थर या कोई सुंदर चमकदार खोल ढूंढने की कोशिश कर रहा है, सच्चाई का ये इतना बड़ा समुद्र मेरे सामने अब तक खोजा नहीं गया है
न्यूटन एकेश्वरवादी थे, वो मानते थे कि ब्रह्मांड की रचना ईश्वर ने की है, जो अकेला है, सर्वव्यापी है और सर्वशक्तिमान है। जो संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्तियों में विद्यमान है और जिसके प्रभुत्व और अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता। (3)(4)
हालांकि न्यूटन को उनक वैज्ञानिक शोधों के लिए जाना जाता है, लेकिन न्यूटन बाइबिल के गंभीर छात्र भी थे और उन्होंने बाइबिल पर कई धार्मिक पुस्तकें भी प्रकाशित कराईं। यहां तक कि अपनी मशहूर किताब प्रिंसिपिया में न्यूटन ईश्वर के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त करते हुए लिखते हैं –
सूरज, ग्रहों और धूमकेतुओं से बनी ये सबसे खूबसूरत कायनात केवल एक प्रबुद्ध और सर्वशक्तिमान की दैवी इच्छा से ही संचालित हो सकती है। वो न केवल विश्वात्मा के तौर पर, बल्कि सर्वव्यापी सत्ता के रूप में सारी चीजों को संचालित करता है और अपने प्रभुत्व की सत्ता के तौर पर वो चाहता है कि उसे सर्वशक्तिमान ईश्वर कहकर पुकारा जाए।(2)
न्यूटन के वक्त में वैज्ञानिक अनुसंधान प्राकृतिक दर्शन के तौर पर प्रचलित था और सृष्टिकर्ता की धार्मिक अवधारणा से अलग उसका कोई अस्तित्व नहीं था। बल्कि न्यूटन के मुताबिक तो ईश्वर को जानने के लिए विज्ञान ही बिल्कुल सही क्षेत्र था। न्यूटन लिखते हैं –
 क्योंकि अंतरिक्ष का प्रत्येक कण हमेशा से था, और समय का हरेक पल हर कहीं समान गति से चलायमान है, इसलिए निश्चित तौर पर सृष्टि निर्माता उस महान ईश्वर के बारे में ये नहीं कहा जा सकता कि वो कभी नहीं था और कहीं नहीं है। ईश्वर, वो महान दैवी सत्ता है जो हमेशा से थी और हर कहीं मौजूद है। वो सर्वव्यापी है, न केवल आभासी रूप से बल्कि प्रकट रूप में भी। पदार्थ के बगैर ईश्वरत्व का अस्तित्व नहीं। सबको ये उदघोषित किया जाता है कि वो सर्वोच्च शक्तिमान ईश्वर हर कहीं आवश्यक रूप से मौजूद है और उसी आवश्यक रूप से वो हमेशा और हर कहीं विद्यमान रहेगा। इसीलिए उस ईश्वर के उपदेश निश्चित तौर पर प्राकृतिक दर्शन में भी मौजूद हैं। (3)
न्यूटन डार्विन से पहले हुए थे, लेकिन फिरभी वो सृष्टि के संबंध में नास्तिकों के विकासवाद के सिद्धांत से अनभिज्ञ नहीं थे। न्यूटन इस सिद्धांत के खिलाफ थे और अपने इस दृष्टिकोण को लेकर पूरी तरह संतुष्ट भी थे, वो लिखते हैं –  अंधी सैद्धांतिक जरूरतें, जो हमेशा और हर कहीं एक जैसी ही हैं, इतनी अलग-अलग चीजों की उत्पत्ति नहीं कर सकती थी। हम जिन प्राकृतिक विविधताओं को महसूस करते हैं, वो अलग-अलग काल और स्थानों पर भी बिल्कुल सटीक नजर आती हैं, ये सारी चीजें कुछ और नहीं बल्कि उसी सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी ईश्वर के विचारों और इच्छाशक्ति का ही चमत्कार है।(3)
सृष्टि का महान निर्माता ईश्वर
न्यूटन ईश्वर को इस ब्रह्मांड के महान रचनाकार के तौर पर देखते थे, आश्चर्यजनक विविधताओं से भरी सृष्टि और जीवन के लाखों स्वरूपों को देखते हुए जिसके अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता। (7) फिर भी उन्होंने जर्मनी के गणितज्ञ और दार्शनिक गॉटफ्राइड लीबनिज के इस विचार को दरकिनार कर दिया था कि ईश्वर ने ये दुनिया एक जरूरत के तहत बिल्कुल ठीक-ठाक बनाई है, ताकि इसे रचनाकार के हस्तक्षेप की जरूरत न पड़े। अपनी किताब ऑप्टिक्स के 31 वें सवाल (Query 31) में न्यूटन इसके साथ ही सृष्टि के प्रारूप की चर्चा करते हुए तर्क देते हैं कि ईश्वरीय हस्तक्षेप की जरूरत कितनी स्वाभाविक है।
अंतरिक्ष में धूमकेतु सभी दिशाओं में इधर-उधर चक्कर लगाते रहते हैं, अनिश्चितता कभी भी सभी ग्रहों को एक ही दिशा में और एक ही तरह से एक ही परिक्रमा पथ पर गतिमान नहीं रख सकती, ग्रहों और धूमकेतुओं की इस आपसी क्रिया से ग्रहीय परिक्रमा में कुछ ऐसे व्यवधान भी आ सकते हैं जिनका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। वक्त रहते ईश्वरीय हस्तक्षेप इनमें सुधार कर इन आकाशीय गड़बड़ियों को अनियंत्रित होने से रोकता है।(8)
 न्यूटन के इस पैराग्राफ ने उस वक्त काफी हलचल पैदा की थी और जर्मन दार्शनिक लीबनिज ने अपनी मित्र कैरोलाइन आफ अंसबाख को लिखे एक पत्र में न्यूटन के इस विश्वास की बखिया उधेड़ डाली थी। अपने पत्र में लीबनिज लिखते हैं
ईश्वर के काम को लेकर सर इसाक न्यूटन और उनके अनुयायियों की राय बिल्कुल बचकानी है। न्यूटन की मान्यताओं के मुताबिक, उस महान ईश्वर को वक्त-बेवक्त अपनी घड़ी में चाभी भरनी पड़ती है, ताकि उसकी घड़ी कहीं बंद ही न हो जाए। लगता है, वो महान सर्वशक्तिमान इतना दूरंदेश भी नहीं है कि वो अपनी घड़ी यानि इस सृष्टि के लिए एक स्वचालित व्यवस्था कर सके।(9)
लीबनिज के इस पत्र से एक नई बहस की शुरुआत हुई जो इतिहास में लीबनिज-क्लार्क करेस्पांडेंस के नाम से मशहूर है। लीबनिज के इस उपहास पर न्यूटन ने अपने दोस्त और शिष्य सैमुअल क्लार्क को जवाब देने के लिए आगे कर दिया। न्यूटन क्लार्क को बताते थे कि लीबनिज को क्या जवाब देना है और क्लार्क उसे अपने नाम से लिखकर लीबनिज को भेज देते थे।(10) लीबनिज-क्लार्क करेस्पांडेंस के ऐसे ही एक खत में क्लार्क शिकायत भरे लहजे में लिखते हैं
ईश्वर के बारे में लीबनिज की अवधारणा एक साधारण-दुनियावी समझ से ज्यादा कुछ नहीं और ये नास्तिकता से बस एक कदम के फासले पर है। जो लोग ये समझते हैं कि ये सारा दुनियावी कारोबार बगैर उस महान राजा की इच्छा और आदेश के चलता है, तो मुझे शक है कि वो लोग राजा को ही दरकिनार करने की कोशिश में जुटे हैं। जो भी ये समझता है कि दुनियाभर के लोग उस ईश्वर के लगातार आदेश और मर्जी के बिना अपने मनमुताबिक कुछ भी कर सकते हैं...मुझे डर है कि उनकी ये मान्यताएं इस दुनिया से ईश्वर का वजूद खत्म करने की घृणास्पद साजिश है।(11)
इस विवाद के बीच न्यूटन अपने धार्मिक विश्वास के अनुसार सौरमंडल की व्याख्या करने में जुटे रहे। ईश्वर का आह्वान करते हुए न्यूटन लिखते हैं
हे परमपिता, ब्रह्मांड की साज-संभाल करने में आप अपना सक्रिय हस्तक्षेप जारी रखें, ताकि ये सितारे एक-दूसरे पर गिर न पड़ें। हे सर्वव्यापी ईश्वर तुम्हारा हस्तक्षेप इसलिए भी जरूरी है, ताकि श्यानता और घर्षण (viscosity and friction) के असर से इस गतिमान ब्रह्मांड का कहीं क्षरण ही न होने लगे।(12)
अपने शिष्यों के बीच निजी पत्र व्यवहार में न्यूटन के कई बार इशारा किया है कि गुरुत्वाकर्षण बल की वजह किसी अभौतिक दैवी प्रभाव की मौजूदगी है
ये बात विचारयोग्य भी नहीं है कि किसी निर्जीव तुच्छ पदार्थ में, किसी अभौतिक दैवी मध्यस्थता के बिना कोई आकर्षण बल काम कर सकता है और वो बिना आपसी संपर्क के किसी दूसरे पदार्थ को प्रभावित कर सकता है।(13)
लीबनिज ने इस बात पर भी न्यूटन की हंसी उड़ाई और ऐसी दैवी मध्यस्थता के असर को मानने से इनकार कर दिया। इस बात से न्यूटन के शिष्य क्लार्क के साथ उनकी बहस का एक नया दौर शुरू हो गया। न्यूटन की मान्यताओं को डेईज्म (Deism) के करीब माना जाता है। पश्चिमी धार्मिक दर्शन में डेईस्म (Deism) एक ऐसा अकेला विचार है जहां आस्था या संगठित धर्म की जरूरत के बिना, प्राकृतिक विश्व के निरीक्षण और तर्क के आधार पर ये तय किया जा सकता है कि इस ब्रह्मांड की रचना किसी सर्वशक्तिमान दैवी शक्ति ने की है। लेकिन न्यूटन की मान्यताएं इस मायने में डेईज्म से अलग भी है कि उन्होंने लिखा है कि ईश्वरीय शक्ति ही ग्रहों को उनके परिक्रमा पथों पर स्थिर रखती है। (14) न्यूटन चेतावनी देते हैं कि गुरुत्वाकर्षण के नियमों का इस्तेमाल इस नजरिए के लिए न किया जाए कि ब्रह्मांड किसी महान घड़ी की तरह महज एक मशीन है। न्यूटन लिखते हैं
गुरुत्वाकर्षण ग्रहों की गति की व्याख्या करता है, लेकिन ये नियम ये नहीं बता सकता कि इन ग्रहों को उनकी गति किसने प्रदान की। ईश्वर सर्वव्यापी है, उसी की शक्ति सबको संचालित करती है और वही सर्वशक्तिमान ये सब जानता है कि और भी क्या हो सकता है। (5) सूरज, ग्रहों और धूमकेतुओं से बना ये सबसे खूबसूरत सिस्टम केवल उस सर्वशक्तिमान की इच्छा और आदेश से ही गतिमान रह सकता है। वो न केवल विश्वात्मा के रूप में बल्कि सर्वशक्तिमान स्वरूप में भी संपूर्ण सृष्टि में विद्यमान है। उसकी महिमा को देखते हुए, उसे महान ईश्वर या अखिल ब्रह्मांड का शासक कहना ही पर्याप्त नहीं, वो महानतम ईश्वर तो अमर, अनंत और पूर्णतदोषरहित (absolutely perfect) है।(3)
ईश्वर की महिमा को नकारना ही नास्तिकता है। नास्तिकता मानवजाति के लिए इतनी मूर्खतापूर्ण और घृणित चीज है कि इसके पैरोकारों की तादाद बहुत ज्यादा कभी नहीं रही।(15)
 17 वीं सदी में अंग्रेज नास्तिकों को दी जाने वाली एक गाली- लैटिट्युडिनैरी (Latitudinary)  काफी चलन में थी। बाद में ये गाली ईश्वर के अस्तित्व को चुनौती देने वाले एक दर्शन लैटिट्युडिनैरियनिज्म (Latitudinarianism) के नाम से मशहूर हो गया और इसे मानने वालों को लैटिट्युडिनैरियन (Latitudinarian) कहा गया।
लैटिट्युडिनैरियन (Latitudinarian) और न्यूटन की मान्यताओं का वैचारिक द्वंद लंबे वक्त तक जारी रहा, जिससे मिलेनैरियंस (Millenarians) यानि एक ऐसा धार्मिक गुट वजूद में आया जो मशीनी या यांत्रिक ब्रह्मांड की अवधारणा को मानता था, लेकिन इसमें भी उत्साह से भरे धार्मिक रहस्यों की भरमार थी, क्योंकि उस वक्त प्रचलित धार्मिक मान्यताओं को नकारना इतना आसान नहीं था। (16) खुद न्यूटन की भी कुछ दिलचस्पी मिलेनैरियंस (Millenarians) में थी और इसका जिक्र उन्होंने अपनी बुक आफ डैनियल और बुक आफ रेवेलेशन दोनों में किया है।
 दुनिया के अंत को लेकर न्यूटन की भविष्यवाणी
अपनी किताब ऑब्जरवेशंस अपॉन द प्रोफेसीज आफ डिनायल, एंड द अपोकेलिप्स आफ सेंट जॉन में न्यूटन ने बाइबिल के प्रति अपने विश्वास को खुलकर अभिव्यक्त किया है। वो लिखते हैं कि बाइबिल की भविष्यवाणियों को समझना हमारे बस के बाहर है। इन्हें तब तक नहीं समझा जा सकता, जब तक कि अंत का समय न आ जाए। दुष्ट और घृणित लोग तब भी इन्हें नहीं समझ पाएंगे। अगर कभी ऐसा हुआ कि दुनिया का अस्तित्व ही खतरे में आ जाए, ऐसे में प्रलय और दुनिया के विनाश से पहले सभी देशों में बाइबिल के उपदेशों का पाठ सार्वजनिक तौर पर किया जाना चाहिए। ( 11)
1704 में लिखी एक पांडुलिपि में न्यूटन ने बाइबिल से वैज्ञानिक जानकारियों को हासिल करने की अपनी कोशिशों के बारे में लिखा है। न्यूटन का आंकलन था कि 2060 में दुनिया का अंत आ सकता है। ये भविष्यवाणी करते हुए वो लिखते हैं
मैं इसका जिक्र दृढ़तापूर्वक ये बताने के लिए नहीं कर रहा हूं कि दुनिया का अंत कब आएगा, बल्कि मैं उन दंभियों के उतावलेपन से भरी अटकलबाजियों को खत्म करने के लिए ऐसा कर रहा हूं, जो लगातार अंतिम समय की भविष्यवाणियां करने में जुटे हैं। ऐसा करते हुए वो पवित्र दैवी गणनाओं को बदाम कर रहे हैं, क्योंकि इन ढोंगियों की भविष्यवाणियां अकसर गलत साबित होती हैं।(9)
न्यूटन का स्मारक (1731) वेस्टमिंस्टर एब्बे में मौजूदहै, इस स्मारक के पर  लैटिन में एक शिलालेख लगा है। इस शिलालेख में लिखा है
यहाँ नाइट, आइजैक न्यूटन, को दफनाया गया, जो दिमागी ताकत से लगभग दिव्य थे, उनके अपने विचित्र गणितीय सिद्धांत हैं, उन्होंने ग्रहों की आकृतियों और पथ का वर्णन किया, धूमकेतु के मार्ग बता, समुद्र में आने वाले ज्वार का वर्णन किया, प्रकाश की किरणों में असमानताओं को बताया, और वो सब कुछ बताया जो किसी अन्य विद्वान ने पहले कल्पना भी नहीं की थी,रंगों के गुणों का वर्णन किया. वे मेहनती, मेधावी और विश्वासयोग्य थे, पुरातनता, पवित्र ग्रंथों और प्रकृति में विश्वास रखते थे, वे अपने दर्शन में अच्छाई और भगवान के पराक्रम की पुष्टि करते हैं, और अपने व्यवहार में सुसमाचार की सादगी व्यक्त करते हैं। वो ऐसी विलक्षण और महान विभूति थे जिन्होंने मानव जाति को गौरवान्वित किया। (1)

References
Epitaph for Newton's grave, composed by English poet Alexander Pope.
Newton, I. General Scholium. Translated by Motte, A. 1825. Newton's Principia: The Mathematical Principles of Natural Philosophy. New York: Daniel Adee, 501. The Greek word pantokrator is most often translated as "Almighty" in the King James Version.
Ibid, 505-506.
Ibid, 506.               
Tiner, J. H. 1975. Isaac Newton: Inventor, Scientist and Teacher. Milford, MI: Mott Media.
* Ms. Dao is Assistant Editor.
Cite this article: Dao, C. 2008. Man of Science, Man of God: Isaac Newton. Acts & Facts. 37 (5): 8.
2- Westfall, Never at Rest p. 351, 105, 195-6.
3- Principia, Book III; cited in; Newton’s Philosophy of Nature: Selections from his writings, p. 42, ed. H.S. Thayer, Hafner Library of Classics, NY, 1953.
4- A Short Scheme of the True Religion, manuscript quoted in Memoirs of the Life, Writings and Discoveries of Sir Isaac Newton by Sir David Brewster, Edinburgh, 1850; cited in; ibid, p. 65.
5- John H. Tiner. Isaac Newton: Inventor, Scientist and Teacher, Mott Media, ISBN 0-91513406-3.

6- Observations upon the Prophecies of Daniel, and the Apocalypse of St. John by Sir Isaac Newton, 1733, J. DARBY and T. BROWNE,
7 - Webb, R.K. ed. Knud Haakonssen. “The emergence of Rational Dissent.” Enlightenment and Religion: Rational Dissent in eighteenth-century Britain. Cambridge University Press, Cambridge: 1996. p19.
8-  Newton, 1706 Opticks (2nd Edition), quoted in H. G. Alexander 1956 (ed): The Leibniz-Clarke correspondence, University of Manchester Press.
9- Leibniz, first letter, in Alexander 1956, p. 11
10- Caroline to Leibniz, 10th Jan 1716, quoted in Alexander 1956, p. 193. (Chev. = Chevalier i.e. Knight.)
11- Clarke, first reply, in Alexander 1956 p. 14.
12- H.W. Alexander 1956, p. xvii
13- Newton to Bentley, 25 Feb 1693
14- Avery Cardinal Dulles. The Deist Minimum. 2005.
15-  Brewster, Sir David. A Short Scheme of the True Religion, manuscript quoted in Memoirs of the Life, Writings and Discoveries of Sir Isaac Newton Edinburgh, 1850.
16 - Jacob, Margaret C. The Newtonians and the English Revolution: 1689-1720.