तीन साल पहले इसरो के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डी.वी.ए. राघवमूर्ति कॉलेज के कुछ स्टूडेंट्स को बता रहे थे कि अंतरिक्ष की खोज कितनी रोमांचक है और हमें साइंस क्यों पढ़नी चाहिए । स्मॉल सेटेलाइट्स प्रोजेक्ट के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. राघवमूर्ति का ये व्याख्यान छात्रों को इतना प्रेरक लगा कि सत्र खत्म होने पर छात्रों की एक टीम ने उनसे मुलाकात की और पूछा कि हम एक छोटा सेटेलाइट बनाना चाहते हैं, इस काम में हम इसरो की मदद कैसे ले सकते हैं? "स्टुडसैट" की कहानी बस यहीं से शुरू होती है। डॉ. राघवमूर्ति के निर्देशन में छात्रों के सेटेलाइट यानि "स्टुडसैट" को बनाने का प्रोजेक्ट शुरू हुआ और इसमें बैंगलुरु और हैदराबाद के इंजीनियरिंग छात्र भी शामिल होते गए। बैंगलोर इंजीनियरिंग कालेज की एक छात्रा श्वेता प्रसाद को स्टुडसैट प्रोजेक्ट से इस कदर लगाव हो गया कि इस टीम के साथ काम करने के लिए उन्होंने एक बढ़िया सैलरी वाले एक शानदार जॉब का ऑफर ही ठुकरा दिया। छात्रों का समर्पण कामयाब रहा और उन्होंने वाकई "स्टुडसैट" को साकार कर दिखाया। पिछले दिनों कार्टोसेट-2 बी के साथ "स्टुडसैट" को अंतरिक्ष भेजकर इसरो ने भारतीय अंतरिक्ष अभियान में छात्रों को शामिल करने की एक अनोखी शुरुआत कर दी।
इसरो की इस नई पहल को भारत और फ्रांस के संयुक्त सेटेलाइट मिशन मेघा-ट्रॉपिक्स ने एक नई दिशा दी है। "स्टुडसैट" प्रोजेक्ट की अगली कड़ी के तौर पर मेघा-ट्रॉपिक्स मिशन के साथ छात्रों के बनाए दो नन्हे सेटेलाइट्स भी अंतरिक्ष भेजे गए हैं। इनमें से एक है आईआईटी कानपुर के छात्रों का बनाया सेटेलाइट "जुगनू" और चैन्नई के नज़दीक एक यूनिवर्सिटी एसआरएम के छात्रों का बनाया सेटेलाइट "एसआरएमसेट । "
चेन्नई के छात्रों का "एसआरएमसेट " साढ़े 10 किलो वजनी है जबकि आईआईटी कानपुर के इस अनोखे "जुगनू" का वजन केवल 3 किलो है। इसरो ने एक बार फिर देश के युवाओं को एक नई उम्मीद से भर दिया है। आईआईटी कानपुर के छात्रों की टीम ढाई साल से अपने सेटेलाइट "जुगनू" के प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी। मेघा-ट्रॉपिक्स मिशन के साथ अंतरिक्ष भेजे गए,रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट "जुगनू" और "एसआरएमसेट " अपनी-अपनी कक्षाओं में सफलता से स्थापित हो गए है।
"जुगनू" के टीम लीडर आईाईटी कानपुर के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. नलिनाक्ष व्यास और उनके छात्रों की पूरी टीम "जुगनू" की कामयाबी के जश्न में डूबी है और इस अनोखी उपलब्धि की ये पार्टी अभी लंबे वक्त तक जारी रहेगी। छात्रों की टीम के साथ प्रो. व्यास "जुगनू" की लांचिंग को देखने के लिए श्रीहरिकोटा में मौजूद थे। उन्होंने लांचिंग के बाद एक प्रतिक्रिया में कहा कि जुगनू के सफल प्रक्षेपण के साथ ही हमारा वर्षो पुराना सपना साकार हो गया है। उन्होंने बताया कि जुगनू की मानीटरिंग सेंटर और ग्राउंड स्टेशन का काम उनके लौटते ही आईआईटी कानपुर से शुरू हो जाएगा ।
प्रो. व्यास ने बताया कि अंतरिक्ष में जगमगा रहे भारत के इस "जुगनू" से आने वाले पहले सिगनल्स को रिसीव होते देखना मेरे अब तक के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने बताया कि हमारा "जुगनू" स्वस्थ है और इसरो को इसके सिग्नल लगातार मिल रहे हैं। 800 किलोमीटर की ऊंचाई की कक्षा में होने की वजह से अभी इससे तस्वीरें नहीं मिल पा रही हैं। लेकिन कुछ दिनों बाद जैसे ही इसकी कक्षा में सुधार होगा , तस्वीरें मिलने लगेंगी। "जुगनू" अपने मूविंग एंगल के समय 10 मिनट के लिए कानपुर समेत आईआईटी के ऊपर से भी गुजर रहा है।
"जुगनू" ने छात्रों और शिक्षकों के बीच के खो चुके रिश्ते को पुनर्जीवित किया है, ये प्रोजेक्ट बिल्कुल बी आसान नहीं था और इसरो के वैज्ञानिकों को संतुष्ट करना और उन्हें "जुगनू" को लांच करने के लिए मनाना एक बहुत बड़ी चुनौती थी। साल की शुरुआत में आईआईटी कानपुर के छात्रों ने इसरो वैज्ञानिकों के साथ निर्णायक वीडियो कॉन्फ्रेंसिग की जो 5 घंटे तक चली। इस विडियो कॉन्फ्रेंसिंग में इसरो के स्मॉल सेटेलाइट निदेशक डी. राघवमूर्ति के साथ कंट्रोल एक्सपर्ट, पार्सल एक्सपर्ट, कम्यूनिकेशन एक्सपर्ट, रिसर्च एक्सपर्ट, सेंसर एक्सपर्ट सहित सेटेलाइट तकनीक के दूसरे क्षेत्रों के विशेषज्ञ भी मौजूद थे। दूसरी तरफ ,संस्थान के निदेशक प्रो. संजय गोविंद धोड़े, विभागाध्यक्ष व प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर प्रो. नलिनाक्ष व्यास, टीम इंचार्ज शांतनु अग्रवाल सहित 35 छात्रों हर सवाल का जवाब दे रहे थे। छात्रों ने इसरो विशेषज्ञों के सामने "जुगनू" के प्रोटोटाइप का प्रत्येक कोण से प्रदर्शन किया।
सबकी मेहनत सफल रही और हर तरह से संतुष्ट हो जाने पर इसरो वैज्ञानिकों ने छात्रों के "जुगनू" को अपना लिया और इसे लांच करने के लिए तैयार हो गए। "जुगनू" इन्फ्रारेड इमेजिंग के माध्यम से आईआईटी में ही फोटो व सूचनाएं भेजेगा। जहां इसका नियंत्रण केंद्र होगा, यहीं परिणामों का अध्ययन भी किया जाएगा। "जुगनू" अब हर दिन धरती के 14 से 15 चक्कर लगा रहा है और रोज 10 से 15 मिनट तक कानपुर परिक्षेत्र के ऊपर ही रहता है । जुगनू की मदद से कानपुर और आसपास इलाकों में खेती की स्थिति, गंगा नदी के बहाव की दिशा, मिट्टी की उर्वरा शक्ति, पर्यावरण तथा मिट्टी के कटाव की जानकारी के साथ अन्य तमाम महत्वपूर्ण सूचनाएं प्राप्त की जा सकेंगी।
स्टुडसैट की कामयाबी ने देश में साइंस स्टूडेंट्स के बीच एक्सपेरीमेंट और इनोवेशन का एक नया दौर शुरू कर दिया है। आईआईटी कानपुर के स्टूडेंट्स अपने तीन किलो के सेटेलाइट 'जुगनू' के बाद अब दूसरे सेटेलाइट की डिजाइन पर काम कर रहे हैं। आईआईटी मुंबई के स्टूडेंट्स 'प्रधान' नाम के अपने सेटेलाइट को बनाने में जुटे हैं। अन्ना यूनिवर्सिटी के 40 किलो के सेटेलाइट 'अनुसैट' की कामयाबी के बाद चेन्नई की एसआरएम यूनिवर्सिटी और सत्यभामा यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स भी 10 किलो से कम दो सेटेलाइट्स को विकसित करने में जुटे हैं।
ठीक ठाक खबर। बढ़िया।
जवाब देंहटाएंवाकई यह एक नया अध्याय है.
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