चार्ल्स डारविन का जन्म, दो सौ साल पहले, १२ फरवरी, १८०९ को, श्रेस्बरी (Shrewsbury) में हुआ था। उनके पिता चिकित्सक थे। आठ साल की उम्र में उनकी मां का देहान्त हो गया। अगले छ: साल उन्होंने विभिन्न स्कूलों में पढ़ाई की, जहां वे एक औसत विद्यार्थी रहे।
१६ साल की उम्र में उन्होंने चिकित्सा पढ़नी शुरू की पर यह उन्हें रास नहीं आयी। १८ साल की उम्र में, पिता के कहने पर, आध्यात्मविद्या (Theology) की शिक्षा लेकर पादरी बनने की सोची पर यह न हो सका। उन्हें प्राकृतिक इतिहास (Natural History) में रूचि थी। इसलिए उन्होंने, इसकी पढ़ाई, अपने वनस्पति विज्ञान (Botany) के प्रोफेसर, जान स्टीवेन्स् हेन्सलॉ (John Stevens Henslow) की देख-रेख में शुरू की। २२ वर्ष की उम्र में, डार्विन के पास कोई भी पेशा नहीं था उसका भविष्य अंधकारमय था, उसके समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। तभी उन्हें अपने प्रोफेसर हेन्सलॉ के कारण, एक पत्र मिला - 'क्या आप एच.एम.एस बीगल नामक पानी की जहाज पर प्राकृतिक विशेषज्ञ के रुप में दुनिया की सैर करना चाहेंगे।' डार्विन ने इसे स्वीकार कर लिया। इस समुद्र यात्रा न केवल उसके जीवन की पर दुनिया की ही दिशा बदल दी। यह समुद्र यात्रा २७ दिसम्बर १८३१ को शुरू हुई। इसे दो साल में समाप्त होना था पर इसे लगभग पांच साल लगे। यह २ अक्टूबर १८३६ में समाप्त हुई। समुद्र यात्रा के समय, डार्विन परम्परा वादी थे और अक्सर बाईबिल को उद्घरित करते थे लेकिन समुद्र यात्रा समाप्त होते- होते यह बदलने लगा। डार्विन का विश्वास, बाईबिल से उठने लगा। उसे लगा प्राणियों के उत्पत्ति के बारे में बाईबिल में लिखी कथा सच नहीं है। बाद के जीवन में उन्होंने चर्च भी जाना बन्द कर दिया। डार्विन को इस बात की चिन्ता लगने लगी कि मज़हब का, किस तरह से प्रचार किया जाता है। उसे लगने लगा कि यह लोगों को तर्क या तथ्य से नहीं, पर बचपन से ही घुटी पिला कर किया जाता है। जिसके कारण वे अपने बाद के जीवन में उससे बाहर नहीं निकल पाते हैं। डार्विन का बड़ा पुत्र विलियम, रग्बी स्कूल में पढ़ता था। यह स्कूल मज़हबी शिक्षा पर जोर देता था। डार्विन को लगा कि वहां जाकर उसका कौतूहल समाप्त हो रहा है, वह मंद हो रहा है - इसलिए उसने अपने बाकी चार पुत्रों को ग्रामर स्कूल में डाला। यह स्कूल कम जाने माने स्कूल थे पर वहां विज्ञान का वातावरण था।
१६ साल की उम्र में उन्होंने चिकित्सा पढ़नी शुरू की पर यह उन्हें रास नहीं आयी। १८ साल की उम्र में, पिता के कहने पर, आध्यात्मविद्या (Theology) की शिक्षा लेकर पादरी बनने की सोची पर यह न हो सका। उन्हें प्राकृतिक इतिहास (Natural History) में रूचि थी। इसलिए उन्होंने, इसकी पढ़ाई, अपने वनस्पति विज्ञान (Botany) के प्रोफेसर, जान स्टीवेन्स् हेन्सलॉ (John Stevens Henslow) की देख-रेख में शुरू की। २२ वर्ष की उम्र में, डार्विन के पास कोई भी पेशा नहीं था उसका भविष्य अंधकारमय था, उसके समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। तभी उन्हें अपने प्रोफेसर हेन्सलॉ के कारण, एक पत्र मिला - 'क्या आप एच.एम.एस बीगल नामक पानी की जहाज पर प्राकृतिक विशेषज्ञ के रुप में दुनिया की सैर करना चाहेंगे।' डार्विन ने इसे स्वीकार कर लिया। इस समुद्र यात्रा न केवल उसके जीवन की पर दुनिया की ही दिशा बदल दी। यह समुद्र यात्रा २७ दिसम्बर १८३१ को शुरू हुई। इसे दो साल में समाप्त होना था पर इसे लगभग पांच साल लगे। यह २ अक्टूबर १८३६ में समाप्त हुई। समुद्र यात्रा के समय, डार्विन परम्परा वादी थे और अक्सर बाईबिल को उद्घरित करते थे लेकिन समुद्र यात्रा समाप्त होते- होते यह बदलने लगा। डार्विन का विश्वास, बाईबिल से उठने लगा। उसे लगा प्राणियों के उत्पत्ति के बारे में बाईबिल में लिखी कथा सच नहीं है। बाद के जीवन में उन्होंने चर्च भी जाना बन्द कर दिया। डार्विन को इस बात की चिन्ता लगने लगी कि मज़हब का, किस तरह से प्रचार किया जाता है। उसे लगने लगा कि यह लोगों को तर्क या तथ्य से नहीं, पर बचपन से ही घुटी पिला कर किया जाता है। जिसके कारण वे अपने बाद के जीवन में उससे बाहर नहीं निकल पाते हैं। डार्विन का बड़ा पुत्र विलियम, रग्बी स्कूल में पढ़ता था। यह स्कूल मज़हबी शिक्षा पर जोर देता था। डार्विन को लगा कि वहां जाकर उसका कौतूहल समाप्त हो रहा है, वह मंद हो रहा है - इसलिए उसने अपने बाकी चार पुत्रों को ग्रामर स्कूल में डाला। यह स्कूल कम जाने माने स्कूल थे पर वहां विज्ञान का वातावरण था।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें