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रविवार, 17 नवंबर 2013

शिक्षा और विज्ञान में निवेश पर टिका है भारत का भविष्य: सीएनआर राव


देश ने विज्ञान की अहमियत को समझा है, डॉ. सीएनआर राव को भारत रत्न दिए जाने से ऐसा प्रतीत होता है. डॉ. राव भारत रत्न से सम्मानित किए जाने वाले देश के तीसरे वैज्ञानिक हैं. देश ने उनसे पहले केवल दो वैज्ञानिकों डॉ. सीवी रमन और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को ही भारत रत्न के लायक समझा. 'वॉयेजर' इस शीर्ष सम्मान से विभूषित होने पर डॉ. सीएनआर राव को बधाई देता है. भारत रत्न अलंकरण से सम्मानित होने के बाद डॉ. राव ने बंगलुरू में छात्रों और वैज्ञानिकों को संबोधित किया, 'वॉयेजर' के पाठकों के लिए पेश है डॉ. सीएनआर राव के व्याख्यान का अनुवाद खुद उन्हीं के शब्दों में-

'दोस्तों, भारत का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि वह शिक्षा एवं विज्ञान में कितना निवेश करता है . अफसोस की बात है कि विज्ञान को जितना समर्थन मिलना चाहिए, उतना नहीं मिल रहा. मैं आपको बता दूं कि दुनिया में जिन देशों ने वाकई प्रगति की है, वे ऐसे देश हैं जिन्होंने खुद को वैज्ञानिक तौर पर उन्नत बनाया है . जिन्होंने खुद को वैज्ञानिक तौर पर उन्नत नहीं बनाया, उस देश को कोई नहीं जानता.

हमें शिक्षा और विज्ञान में ज्यादा निवेश करना चाहिए ताकि भारत का भविष्य सुरक्षित रहे . देश के सेंसेक्स और कारोबार का अच्छा प्रदर्शन ही काफी नहीं है . यह तो 5-10 साल के लिए है . लंबे समय के लिए क्या होगा और यदि इस मामले में बेहतर करना है तो विज्ञान में आधुनिक बनना पड़ेगा.

‘मूर्ख’ नेताओं ने विज्ञान को पीछे धकेल दिया है. वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए और अधिक संसाधन उपलब्ध कराए जाने की जरूरत है. सरकार की तरफ से वैज्ञानिक समुदाय को पैसा दिये जाने के लिए हमने बहुत कोशिशें की हैं. लेकिन इन मूर्ख (ईडियट) नेताओं को वैज्ञानिक अनुसंधान की अहमियत समझ में ही नहीं आती. बेहद सीमित संसाधनों के बावजूद हम वैज्ञानिकों ने कुछ तो किया ही है. हमारा निवेश बहुत कम है, देर से मिलता है. हमें जितने पैसे मिल रहे हैं वो कुछ भी नहीं हैं.

चीन की तरक्की और भारत के पिछड़ जाने के लिए हमें खुद को ही जिम्मेदार ठहराना होगा. हम भारतीय कठिन परिश्रम नहीं करते. हम चीन वालों की तरह नहीं हैं. हम बहुत आरामपसंद हैं और उतने राष्ट्रवादी नहीं हैं. अगर हमें थोड़ा ज्यादा धन मिल जाता है तो विदेश जाने को तैयार हो जाते हैं.

विज्ञान आगे बढ़ने का रास्ता है. मुझे इस बात की खुशी है कि हमारे पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस बात पर यकीन किया. बदकिस्मती से उनके बाद विज्ञान को सरकारों से वो समर्थन नहीं मिला जितना होना चाहिए. थोड़ा-बहुत समर्थन है पर उतना नहीं है जितना होना चाहिए. इसमें और सुधार की गुंजाइश है.

बुनियादी शिक्षा के लिए, साधारण शिक्षा पर हमें अपनी जीडीपी का कम से कम 6 फीसदी निवेश करना चाहिए . सरकार को यह करना पड़ेगा क्योंकि अन्य लोग इसमें ज्यादा कुछ कर नहीं रहे, निजी क्षेत्र थोड़ा-बहुत कर रहे हैं . हम सिर्फ 2 फीसदी निवेश कर रहे हैं.  भारत का भविष्य इस पर निर्भर करता है कि शिक्षा और विज्ञान में किस तरह निवेश किया जाता है . हमें विज्ञान में अपने निवेश को 1 फीसदी से बढ़ाकर 2 फीसदी करना होगा . मैं उम्मीद करता हूं कि ये चीजें होंगी .

आज की टेक्नोलॉजी पुरानी जैसी नहीं रही . आज की टेक्नोलॉजी आधुनिक विज्ञान के आधार पर बहुत तेजी से विकसित होती है . आज के विज्ञान और कल की टेक्नोलॉजी के बीच का समय बहुत कम रह गया है . मेरा मानना है कि भारत को अभी यह सीखना है कि टेक्नोलॉजी और मौलिक रिसर्च में विज्ञान के नवीनतम नतीजों का इस्तेमाल किस तरह किया जाए . मौलिक रिसर्च में भारत की रैंकिंग काफी खराब है. मौलिक रिसर्च के मामले में हम 140 देशों में 66वीं पायदान पर हैं . हमें 66वीं पायदान से शीर्ष 10 में आना है .

भारत में मौलिक रिसर्च , टेक्नोलॉजीमें निवेश ज्यादा सफल नहीं रहा है और यही वजह रही है कि भारत चीन और दक्षिण कोरिया से प्रतिस्पर्धा करने में कामयाब नहीं हो पाया है . चीन और दक्षिण कोरिया ने मौलिक रिसर्च और शिक्षा के क्षेत्र में बहुत निवेश किए हैं . हमारे प्रधानमंत्री ने वादा तो किया है पर अब तक ऐसा हुआ नहीं है. वैज्ञानिक शोध पत्र प्रकाशित करने के मामले में भारत की स्थिति बदकिस्मती से बहुत खराब है .

अगले साल के शुरू में चीन पहले नंबर पर जाने को तैयार है . अब तक अमेरिका नंबर एक पर था जो दुनिया भर में हो रहे शोध कार्यों में 16.5 फीसदी पेश करता है . चीन करीब 12 फीसदी पेश कर रहा है जो 16.5 से 17 फीसदी होने को है . भारत महज 2.5 से 3 फीसदी पेश कर रहा है. मैं शोध पत्रों की संख्या के प्रति नहीं बल्कि उनकी गुणवत्ता को लेकर चिंतित हूं.

हमें ये समझना होगा कि सूचना-तकनीक का विज्ञान से कुछ लेना..देना नहीं है. अफसोस की बात है विज्ञान का मिजाज नहीं है.  आईटी कुछ लोगों के लिए पैसा बनाने का जरिया है और वहां काम करने वालों में नाखुश लोगों की तादाद ज्यादा है. क्योंकि मैं रोज अखबार में देखता हूं कि किसी ने आत्महत्या कर ली, किसी की हत्या कर दी गई, कुछ लोग नाखुश हैं कि जिंदगी खतरनाक है . मुझे देखिए मैं 80 वर्ष की उम्र में खुश हूं. मुझे कोई शिकायत नहीं है . मेरा मानना है कि खुशी कुछ अलग है.. आप जो कर रहे हैं उसका आनंद उठाईए.

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