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सोमवार, 21 जून 2010

टाइटन पर कुछ अजीब घट रहा है!

टाइटन पर कुछ ऐसा अजीब घट रहा है, वैज्ञानिक जिसे करीब से देखने और समझने की कोशिश में जुटे हैं। इसी कोशिश के तहत, रविवार 20 जून को, शनि की कक्षा में मौजूद स्पेसक्राफ्ट कसीनी ने टाइटन के वायुमंडल में से होते हुए एक नजदीक की फ्लाई-बाई पूरी की है। उम्मीद है कि रोमांच से भरे कसीनी के इस फ्लाईबाई से वैज्ञानिकों को उन सवालों के जवाब तलाशने में मदद मिलेगी जो शनि के इस रहस्यमय चंद्रमा से उठ रहे हैं। हाइड्रोकार्बन से भरपूर टाइटन पर हाल ही में ऐसी खोज हुई है जो वहां जारी किसी महत्वपूर्ण रासायनिक प्रक्रिया की ओर इशारा कर रही है। ये रासायनिक प्रक्रिया टाइटन पर मौजूद जिंदगी की किसी शक्ल के रूप में भी हो सकती है।
फ्लाई बाई यानि बेहद तेज रफ्तार के साथ टाइटन के वायुमंडल में एक तरफ से प्रवेशकर काफी गहराई तक गोता लगाने के साथ ही, उसी रफ्तार से दूसरी ओर से बाहर निकल जाने के दौरान स्पेसक्राफ्ट कसीनी के मैग्नेटोमीटर को ये पता लगाना है कि टाइटन का अपना चुंबकीय क्षेत्र है या नहीं? क्योंकि चुंबकीय क्षेत्र की मौजूदगी, टाइटन पर जीवन की संभावना को मजबूत करने के साथ ये भी सुराग देगी कि टाइटन की अंदरूनी बनावट कैसी है?
टाइटन को लेकर वैज्ञानिकों की दिलचस्पी बहुत ज्यादा है, इसकी वजह ये है कि टाइटन के आईने में हमारी धरती के बचपन की झलक मौजूद है। टाइटन वैसा ही है, जैसी कि करोड़ों साल पहले हमारी धरती थी, जहां न तो ऑक्सीजन थी और न ही जीवन। शनि के 61 चंद्रमाओं में सबसे बड़ा चंद्रमा टाइटन मीथेन की विशाल झीलों से पटा हुआ है। और टाइटन की इस अनोखी दुनिया की हवा से हाइड्रोजन और जमीन से एक खास तत्व एसिटलीन की भारी कमी होती जा रही है। वैज्ञानिक यही जानना चाहते हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है? क्या इसकी वजह मीथेन में पनपने वाले खास बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीव हैं, या फिर वहां के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र में किसी रासायनिक अभिक्रिया का चेन रिएक्शन चल रहा है?
टाइटन पर जारी इस रहस्यमय प्रक्रिया की दो वजहें हो सकती हैं। सूरज की अल्ट्रावायलेट किरणें जब तरल मीथेन के अणु को तोड़ती है तो हाइड्रोजन गैस और कार्बन के ठोस परमाणु बनते हैं। हाइड्रोजन गैस टाइटन की हवा में घुलकर इस चंद्रमा के वायुमंडल को बनाती है। एक संभावना ये भी है कि टाइटन की जमीन के आसपास एक उल्टी प्रक्रिया भी चल रही हो, जो हवा की हाइड्रोजन और कार्बन को मिलाकर वापस मीथेन की बूंदों का निर्माण कर रही हो। एक अनोखी संभावना ये भी है कि ये काम और कोई नहीं बल्कि मीथेन में पलने वाला कोई बैक्टीरिया जैसा जीव ही कर रहा हो। कुछ भी हो, दोनों ही सूरतों में जमीन के करीब वाली हवा से हाइड्रोजन की मात्रा कम हो जाएगी। वैज्ञानिक अब यही जानने की कोशिश कर रहे हैं, कि टाइटन पर हकीकत में हो क्या रहा है? टाइटन का तापमान बेहद कम यानि शून्य से 179 डिग्री सेल्सियस नीचे है, ये गजब की ठंड रासायनिक अभिक्रिया वाली संभावना को कम कर देती है, क्योंकि इतने कम तापमान पर या तो कोई रासायनिक अभिक्रिया होगी ही नहीं, या फिर अगर होगी भी तो उसकी रफ्तार बेहद धीमी होगी। अब रह गया सवाल टाइटन पर मौजूद किसी बैक्टीरिया का, तो पलड़ा इस संभावना की ओर ही झुकता नजर आ रहा है, लेकिन वैज्ञानिक टाइटन पर जीवन की संभावना पर गंभीरता से तभी विचार करेंगे, जब रासायनिक अभिक्रिया वाली बात पूरी तरह से खारिज हो जाएगी।

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