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शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

‘मानव जाति की सबसे बड़ी खोज के लिए सबका साथ आना जरूरी’


मिशन कैप्लर के वैज्ञानिक डॉ. ज्योफ मर्सी का इंटरव्यू
हमने अपने सौरमंडल से बाहर पहले नए ग्रह की खोज की 1992 में, और तब से नए ग्रहों की लिस्ट लगातार लंबी होती जा रही है। इस लिस्ट में अबतक 500 नए ग्रह शामिल हो चुके हैं। नए ग्रहों की खोज में अब तक की सबसे महत्वपूर्ण घटना के तौर पर नासा ने स्पेस ऑब्जरवेटरी कैप्लर की करीब तीन साल तक की खोज के तमाम डेटा सार्वजनिक कर दिए हैं। नए ग्रहों की खोज मानवजाति की सबसे महान उपलब्धियों में से एक है और हम इन नए और अजनबी ग्रहों के अध्ययन के नए युग में प्रवेश कर रहे हैं। इन एलियन ग्रहों की अदभुत दुनिया का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों में से एक हैं बर्कले की यूनिवर्सिटी आफ कैलीफोर्निया के एस्ट्रोनॉमर डॉ. ज्योफ मर्सी। डॉ. मर्सी पृथ्वी जैसे ग्रह की तलाश में जुटे मिशन कैप्लर के सह-निरीक्षक हैं। डॉ. मर्सी ऐसे चुनिंदा वैज्ञानिकों में से हैं जिनके नाम सबसे ज्यादा नए ग्रहों की खोज दर्ज है। उन्होंने पहले 100 नए ग्रहों में से 70 ग्रहों की खोज में अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने ही सबसे पहले एक नया सौरमंडल खोज निकाला था। डॉ. मर्सी जनवरी में अमेरिकन एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी की विंटर मीटिंग में शामिल होने के लिए सिएटल आए थे, वहां उनका ये विशेष इंटरव्यू लिया गया। इस इंटरव्यू में डॉ. मर्सी से नए ग्रहों की खोज की लगातार तेज होती रफ्तार और धरती के अलावा कहीं और जीवन की संभावनाओं पर खास सवाल पूछे गए। पेश है वॉयेजर की खास पेशकश -
सवाल लग रहा है मानो नए ग्रहों की एकदम से बाढ़ सी आ गई है, आखिर इसकी वजह क्या है? क्या बेहतर उपकरण और बेहतर तकनीक ही इसकी वजह है?
डॉ. मर्सी देखिए मैं आपको एक दूसरा पहलू बताता हूं। हमारे बीच कुछ ऐसे एस्ट्रोनॉमर्स हैं, जो वाकई बेहद इनोवेटिव हैं और बहुत ज्यादा मेहनत कर रहे हैं। वो टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल नहीं कर रहे, बल्कि अपनी जरूरत के हिसाब से उसे इनोवेट कर रहे हैं, ताकि बेहतर वैज्ञानिक नतीजे सामने आ सकें। ये लोग रात-रात भर दुनियाभर से आई ऑब्जरवेशंस का करेक्शन किया करते हैं, ताकि पृथ्वी जैसे जीवन के योग्य ग्रह की तलाश मुमकिन हो सके। ये कह देना बेहद आसान है कि अरे ये तो नए कंप्यूटर या एडवांस ऑप्टिक्स का कमाल है। लेकिन यकीन मानिए अब महान खोजें सामने आ रही हैं। क्योंकि ये अदभुत और जुझारू लोग एक नया सपना देख रहे हैं और अपने सपने को अथक परिश्रम से नई खोजों में तब्दील कर रहे हैं।
सवाल अगर हम ये बातचीत 20 साल बाद कर रहे होते, तो आज की रफ्तार से क्या लगता है, उस वक्त तक हम कितने नए ग्रहों की खोज कर चुके होते?
डॉ. मर्सी ईमानदारी से कहूं तो कैप्लर इतना शानदार है कि इसके जैसा अब तक कोई नहीं। इसके नंबर्स शायद कभी खत्म नहीं होंगे। कैप्लर हजारों नए ग्रहों की खोज करने वाला है। यूरोप या अमेरिका में से कोई कैप्लर जैसी या इससे भी शक्तिशाली नए ग्रहों की खोज करने वाली स्पेस ऑब्जरवेटरी भी लांच कर सकता है। इसलिए आने वाले भविष्य में हम हजारों नए ग्रहों की खोज करने वाले हैं। मैं शर्त लगाकर कहता हूं कि 2020 तक हम 10,000 नए ग्रहों को खोज चुके होंगे और 2030 तक नए ग्रहों की तादाद बढ़कर 20,000 या 30,000 या फिर इससे भी ज्यादा हो चुकी होगी।
सवाल नए ग्रहों के बारे में वो कौन से सबसे बड़े रहस्य हैं, जिन्हें अभी समझना बाकी है?
डॉ. मर्सी हां एक बहुत बड़ा रहस्य है, जिसके बारे में कोई भी बात करना नहीं चाहता। ये एक युगों पुराना सवाल है, कि पृथ्वी जैसे ग्रह का वजूद क्या बहुत कॉमन यानि सामान्य सी बात है? हम जानते हैं, कि यकीनन पृथ्वी जैसे ग्रह और भी हैं। मेरा मतलब है, देखिए आसमान में कितने सारे सितारे हैं। लेकिन ये सवाल दो हिस्सों में है, पहला, पृथ्वी जैसे ग्रह से आपका मतलब क्या है? और दूसरा ये कि ऐसे ग्रह कितने कॉमन हैं? देखिए, हम सबको ये जानकर बहुत अच्छा लगेगा कि हमने एक और ऐसी दुनिया ढूंढ़ निकाली है, जहां हम रह सकते हैं, वो जिंदगी, जिससे हमारी जान-पहचान है, मुमकिन हो सकती है। जहां तक पृथ्वी जैसे गुणों का सवाल है, तो ये थोड़ा रहस्यमय है, लेकिन फिरभी हमें इसका कुछ आईडिया तो है। पृथ्वी जैसा ग्रह, यानि वहां पानी तरल स्वरूप में होना चाहिए, उस ग्रह का तापमान अरबों-लाखों सालों से स्थिर रहना चाहिए, ताकि डार्विन के विकासवाद को प्रोत्साहन मिल सके। अपने अक्ष पर ऐसे ग्रह के घूर्णन को व्यवस्थित करने के लिए एक चंद्रमा का होना भी जरूरी होगा। ऐसे ग्रह के सौरमंडल में बृहस्पति जैसे एक विशाल ग्रह की मौजूदगी बेहद जरूरी है, ताकि वो इस ग्रह और इसके आस-पास यहां-वहां बिखरा मलबा अपने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण बल की मदद से अपने पास खींच सके। इस नए ग्रह पर एक विशाल और स्थिर महासागर का होना भी जरूरी है, ताकि इसका खारा पानी इस ग्रह की बायोकैमिस्ट्री के लिए सॉल्वेंट का काम कर सके। वहां एक सघन वायुमंडल और मजबूत चुंबकीय क्षेत्र का होना भी जरूरी है। मैं समझता हूं कि किसी ग्रह पर मौजूद ये सारी चीजें ही उसे पृथ्वी जैसा बनाएंगी। लेकिन ऐसी नई पृथ्वियां कितनी कॉमन हैं, हम अभी ये नहीं जानते।
सवाल आपका शोध बताता है कि छोटे ग्रहों का वजूद एक सामान्य सी बात है। यानि आस-पास के सूरज जैसे हर सितारे के पास पृथ्वी जैसे आकार वाला ग्रह हो सकता है?
डॉ. मर्सी हां, लेकिन ज्यादातर लोग इस बारे में बात नहीं करना चाहते। क्योंकि बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून जैसे विशाल ग्रहों के मुकाबले पृथ्वी जैसे आकार वाले ग्रह इतने छोटे होते हैं कि ऑब्जरवेशन में इन्हें पहचानना बेहद मुश्किल है। ये बिल्कुल ऐसा है मानो 18-18 पहियों वाले विशाल और भारी-भरकम वाहनों से भरे हाईवे पर किसी बच्चे की एक छोटी सी ट्राईसाइकिल चल रही हो। हमारी पृथ्वी बिल्कुल ऐसी है, मानो 15 बड़ी बिलियर्ड्स की गेंदों के बीच किसी ने बिलियर्ड टेबल पर एक छोटा सा कंचा यानि मारबल रख दिया हो। अब आप जैसे ही इन विशाल गेंदों के बीच शॉट लेना शुरू करते हैं, तो ये छोटा कंचा या मारबल गोली टेबल पर कहां छिप जाती है पता ही नहीं चलता।
सवाल पृथ्वी जैसे ग्रह बन सकते हैं, ये तो एक बात है, लेकिन ऐसे ग्रह लंबे वक्त तक व्यवस्थित और स्थिर रह सकें ये कहना तो बिल्कुल एक अलग सवाल है
डॉ. मर्सी हां, और मेरे विचार से ऐसे ग्रह निश्चित तौर पर बने होंगे। ऐसे ग्रहों की रचना नहीं हुई, ये सोंचना तर्कसंगत नहीं है। अगर बृहस्पति जैसे विशाल ग्रह बन सकते हैं, तो फिर पृथ्वी जैसे छोटे ग्रहों की रचना क्यों नहीं हो सकती। शायद अंतरिक्ष के हाईवे पर हमारा सारा ध्यान इन 18 पहिए वाले विशाल और भारी-भरकम वाहनों पर ही फोकस रहता है, इसलिए हम आसपास से गुजरती छोटी ट्राईसाइकिल देख ही नहीं पाते। धरती जैसे आकार वाले ग्रह ये ट्राईसाइकिल ही हैं। इस हाईवे पर जब भारी-भरकम विशाल ग्रह इन छोटे ग्रहों के करीब से गुजरते होंगे तो भारी गुरुत्वाकर्षण बल का जबरदस्त धक्का इन छोटे ग्रहों को पूरे सिस्टम से ही बाहर कर देता होगा। इसलिए ये भी मुमकिन है कि पृथ्वी जैसे छोटे ग्रहों की रचना तो हुई, लेकिन विशाल ग्रहों के गुरुत्व धक्के से वो ब्रह्मांड के अंधेरे कोनों में ठेल दिए गए। जहां वो खुद के लिए अनुकूल परिस्थिति पैदा होने का इंतजार कर रहे हों। ऐसा पूरी तरह मुमकिन है, हमारा ग्रह पृथ्वी और शायद हम पृथ्वीवासी बेहद दुर्लभ भी हो सकते हैं। 
बाई-द-वे सेटी (सर्च फॉर एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस) सिगनल्स कहां हैं? अब तक हम उन्हें नहीं खोज सके हैं, ये बिल्कुल वैसा ही है, मानो कमरे में विशाल हाथी मौजूद हो और हम उसे देख ही नहीं पा रहे हों। 40 साल से भी ज्यादा वक्त से फ्रेंक ड्रेक और कार्ल सगान सेटी सिगनल्स की तलाश करते रहे हैं और अब तक हमारे पास नतीजे के नाम पर कुछ भी नहीं है। इसलिए इससे एक इशारा मिलता है, स्पष्ट नहीं तो धुंधला सा ही सही, कि हमारी पृथ्वी जितना हम समझते हैं उससे भी कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। 
सवाल पूरे ब्रह्मांड की तुलना में हमारा सौरमंडल काफी युवा है। और ब्रह्मांड इतना विशाल है। इसलिए उन्नत सभ्यताओं के पास हमसे संपर्क करने की कोशिश करने के लिए काफी वक्त और मौके रहे होंगे। कुछ लोग सोंचते हैं कि परग्रहीय सभ्यताओं ने अब तक हमसे संपर्क नहीं किया, इसका मतलब ये भी है कि शायद हम इस ब्रह्मांड में अकेले हैं ?
डॉ. मर्सी आपने बात को घुमा दिया है, किसी बुद्धिमान परग्रहीय सभ्यता की तरफ से किसी इंटेलिजेंस रेडियो या टेलीविजन सिगनल का न आना बस एक इंडिकेशन यानि बस इशारा भर है, कोई प्रमाण नहीं। शायद जीवन के अनुकूल किसी ग्रह पर अरबों साल से डार्विन के विकासवाद का चक्र चल रहा हो- शायद ये दुर्लभ हो। शायद।
सवाल आपका आंकलन क्या है ? आपका मन इस बारे में क्या कहता है?
डॉ. मर्सी अगर मैं शर्त लगा रहा होता, तो जरूर अनुमान लगाता, लेकिन साइंस में हम ऐसा नहीं कर सकते। मैं कहूंगा कि बौद्धिक और टेक्नोलॉजिकली उन्नत सभ्यताएं हमारी मिल्की-वे गैलेक्सी में दुर्लभ हैं। इसके प्रमाण भी धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं। हम होमो-सेपियंस तब तक विकसित नहीं हो सके थे, जब तक कि पूर्वी अफ्रीका के सवाना के वातावरण में नाटकीय बदलाव नहीं शुरू हो गए। ये बदलाव इतने महत्वपूर्ण थे कि मानव विकासवाद का अध्ययन करने वाले पुराविशेषज्ञ अब भी हमें ये नहीं बता सकते कि ऑस्ट्रेलोपिथेसिन्स आखिर बड़े मस्तिष्क का विकास कैसे कर सके थे, जो इतने कुशल थे कि आज के पियानो कॉन्सर्ट तक में भाग ले सकते थे। ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब सही-सही कहूं तो डार्विन के विकासवाद में नहीं है।
आखिर क्यों पूर्वी अफ्रीका के सवाना मैदानों की ऊंची- ऊंची झाड़ियों और घासों में रहने वाले आदिम मानव खुद को आज के पियानो कॉन्सर्ट में भाग लेने के लायक विकसित क्यों नहीं कर सके ? आखिर वो इवोल्यूशनरी ड्राइवर क्या था, जिसने हमें रॉकेट शिप्स का निर्माण करने वालों में तब्दील कर दिया ? सच्चाई ये है कि विकास के इस आयाम को छूने के लिए हमने आधुनिक मानव के बगैर चार अरब साल तक इंतजार किया है....चार अरब साल तक ? 
सवाल हां, हमें यहां तक पहुंचने में चार अरब साल का वक्त लगा
डॉ. मर्सी पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत से लेकर लाखों-करोड़ों साल तक बहुकोशकीय जीवन के उन्नत स्वरूपों का राज था। जरा अंदाजा लगाइए, इस दौरान मस्तिष्क का आकार कितना विकसित हुआ होगा ? ...मैं बताता हूं कुछ भी नहीं ! क्या आप पृथ्वी पर विचरने वाले सबसे महान प्राणी को जानते हैं ? वो डायनासोर थे हर बच्चा इसे जानता है। और क्यों ? ऐसा इसलिए, क्योंकि 10 करोड़ साल तक डायनासोर पृथ्वी पर राज करते रहे। उनमें विशाल डायनासोर भी थे और छोटे डायनासोर भी। हर पीढ़ी के शिशु डायनासोर को उस वक्त की दुनिया में मौजूद बाकी सभी डायनासोरों से होड़ करनी थी। 10 करोड़ साल बाद हर पीढ़ी का शिशु डायनासोर कुछ ज्यादा स्मार्ट होता गया और इस तरह जीवन आगे बढ़ता रहा। इसलिए निश्चित तौर पर डायनासोर के मस्तिष्क का आकार भी धीरे-धीरे बढ़ता गया। 
अब जरा डायनासोर विशेषज्ञों के रिकार्ड पर नजर डालें। डायनासोर विशेषज्ञों के मुताबिक डायनासोरों का मस्तिष्क मुर्गे के मस्तिष्क जितना था। इससे पता चलता है कि मस्तिष्क का आकार विकासवाद का मुख्य ड्राइवर नहीं है।  
सवाल आपने कहा कि हम नए ग्रहों के सुनहरे दौर में प्रवेश करने वाले हैं। क्या भविष्य इसी में छिपा है कि हम किसी अच्छे, अजनबी ग्रह पर सीधी-सीधी नजर डालें, जो जीवन के फलने-फूलने लायक बनने के लिए खुद को एडजेस्ट कर रहा हो ?
डॉ. मर्सी हमें दो बड़ी चीजें करनी चाहिए। पहली ये कि बतौर मानव जाति यानि इसका मतलब है कि यूरोपियन स्पेस एजेंसी, जापान, चीन, भारत और अमेरिका-कनाडा एक साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय एजेंसी के तौर पर काम करें। और ये अंतरराष्ट्रीय एजेंसी एक इंटरफेरोमीट्रिक स्पेस टेलिस्कोप को बनाकर अंतरिक्ष भेजे, ताकि हम इससे पृथ्वी जैसे आकार वाले और पृथ्वी से मिलते-जुलते ग्रहों की तस्वीर ले सकें। हम ये करना जानते हैं। हां, ये सही है कि ये प्रोजेक्ट काफी महंगा होगा, लेकिन साइंस में हम महंगे प्रोजेक्ट्स पर काम करते रहते हैं और फिर ये प्रोजेक्ट मानव जाति की सबसे बड़ी खोज को भी तो अंजाम देगा। तब हम इस सवाल का जवाब जान सकेंगे कि पृथ्वी जैसे और शायद जीवन को सहारा देने वाले दूसरे ग्रह कितने हैं ? और दूसरी चीज जो हमें करनी चाहिए, वो ये कि हमें अपोलो प्रोजेक्ट की तरह फुल-फ्लेज्ड सेटी तलाश में पूरी गंभीरता से जुट जाना चाहिए। आखिर हम अपने संसाधनों को एकसाथ मिलाकर सेटी की तलाश क्यों नहीं शुरू कर देते ?
सवाल किसी एलियन इंटेलिजेंट लाइफ यानि अजनबी बौद्धिक परग्रहीय जीवन की खोज बहुत बड़ी बात होगी। इससे खुद के प्रति और इस ब्रह्मांड में हमारे स्थान के प्रति हम जिस तरह से सोंचते हैं वो पूरा नजरिया ही बदल जाएगा।
डॉ. मर्सी यकीनन। तो फिर आखिर हम सब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकसाथ मिलकर अपने संसाधनों को एकजुट करके एक विशाल रेडियो टेलिस्कोप फेसिलिटी और अगर कुछ पैसे बच जाते हैं तो एक इंफ्रारेड फेसिलिटी का निर्माण क्यों नहीं करते ? और सेटी सिगनल्स की तलाश का एक विशाल अभियान क्यों नहीं छेड़ देते ? हम जानते हैं कि हमें क्या खोजना है ? बार-बार खुद को रिपीट करता हुआ रेडियो सिगनल। वाकई ये मानव जाति की सबसे बड़ी खोज होगी। सेटी रेडियो सिगनल का मिलना और परग्रहीय बौद्धिक सभ्यता की खोज बिल्कुल चंद्रमा पर आर्मस्ट्रांग के पहले कदम जैसी होगी, ये वैसा ही होगा जैसे कि नई दुनिया में कोलंबस के कदम। ये सबसे शानदार, सबसे प्रेरक प्रयास होगा।
Courtesy - space.com

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