कॉरनेल यूनिवर्सिटी में उत्साह का माहौल है, नासा के धूमकेतु मिशन 'स्टारडस्ट-नेक्स्ट' ने अपने लक्ष्य कॉमेट टेम्पल-1 की पहली तस्वीर भेजी है और यहां के प्रो. जो वेवेरका समेत वैज्ञानिकों की एक पूरी टीम इसके विश्वलेषण में जुटी है। कॉरनेल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की ये टीम नासा के स्टारडस्ट मिशन में अहम भूमिका निभा रही है। अंतरिक्ष के महासागर में एक धूमकेतु जैसे छोटे और तेज रफ्तार लक्ष्य को साधना हमेशा बेहद मुश्किल काम रहा है। लेकिन हम स्पेसक्राफ्ट स्टारडस्ट के जरिए ये कर रहे हैं आखिर मामला वेलेंटाइन्स-डे का जो है।
कॉरनेल यूनिवर्सिटी समेत नासा के वैज्ञानिक इस बार अंतरिक्ष में एक अनोखी मुलाकात के जरिए इस बार के वेलेंटाइन डे को यादगार बनाने की कोशिश कर रहे हैं। 7 फरवरी को अंतरिक्ष में 12 साल पूरे कर लेने के बाद मिशन स्टारडस्ट-नेक्स्ट ने अब अपने रॉकेट का इस्तेमाल करके खुद को धूमकेतु टेम्पल-1 की दिशा में घुमा लिया है। मिशन स्टारडस्ट ने कैमरे से अपने लक्ष्य धूमकेतु टेम्पल-1 की पहली तस्वीर लेकर हमें भेजी है। स्पेसक्राफ्ट स्टारडस्ट-नेक्स्ट की आंख से ये रहा धूमकेतु टेम्पल-1...वेलेंटाइन डे यानि 14 फरवरी को भारतीय समय के अनुसार सुबह करीब 10.30 बजे नासा का ये खास कॉमेट मिशन- स्पेसक्राफ्ट स्टारडस्ट धूमकेतु टेम्पल-1 के बेहद करीब से गुजरेगा। नासा के इस मिशन से जुड़े वैज्ञानिकों के अनुसार इस अनोखी फ्लाईबाई में स्टारडस्ट स्पेसक्राफ्ट इस धूमकेतु के 200 किलोमीटर तक करीब जाएगा।
स्टारडस्ट-नेक्स्ट मिशन अब डेढ़ मील प्रति घंटे की रफ्तार से करीब 8 किलोमीटर बड़े धूमकेतु टेम्पल-1 की ओर बढ़ा चला जा रहा है। धूमकेतु टेम्पल-1 पांच साल और छह महीने में सूरज की एक परिक्रमा पूरी करता है। ये वही धूमकेतु है, जिसपर नासा के एक और मिशन डीप इम्पैक्ट ने जुलाई 2005 में इसपर एक भारी इम्पैक्टर की टक्कर करवाई थी। इस इम्पैक्ट एक्सपेरीमेंट से छिटके धूल और गुबार के रासायनिक विश्लेषण के बाद मिशन डीप इम्पैक्ट ने ये खोज की थी कि धूमकेतु टेम्पल-1 जैसे विशाल धूमकेतुओं के धरती पर गिरने से ही हमारे महासागरों का जन्म हुआ है। 2005 के इस इम्पैक्ट एक्सपेरीमेट के बाद अब दोबारा एक और साइंस मिशन स्टारडस्ट-नेक्स्ट इस धूमकेतु की ओर बढ़ा चला जा रहा है।
वैलेंटाइन्स-डे पर अंतरिक्ष में हो रही इस मुलाकात का मकसद ये पता लगाना है कि 2005 के उस इम्पेक्ट एक्सपेरीमेंट के बाद अब इस धूमकेतु में क्या बदलाव आए हैं, ये धूमकेतु किन पदार्थों से बना है और इनका जन्म कैसे हुआ? कॉमेट यानि धूमकेतुओं के रहस्य को समझने के लिए इस मिशन को 1999 में लांच किया गया था। मिशन स्टारडस्ट अपने अभियान में काफी सफल रहा है और इसने 2006 में कॉमेट वाइल्ड-2 की पूंछ से उत्सर्जित हो रहे पदार्थों के सैंपल एक कैप्सूल में लेकर उसे धरती को वापस भेजा था। कॉमेट वाइल्ड-2 की सफल सैंपलिंग के बाद वैज्ञानिकों ने इसे दूसरे मिशन पर कॉमेट टेम्पल-1 की ओर रवाना कर दिया और इसे एक नया नाम दे दिया - मिशन स्टारडस्ट-नेक्स्ट
कॉरनेल यूनिवर्सिटी समेत नासा के वैज्ञानिक इस बार अंतरिक्ष में एक अनोखी मुलाकात के जरिए इस बार के वेलेंटाइन डे को यादगार बनाने की कोशिश कर रहे हैं। 7 फरवरी को अंतरिक्ष में 12 साल पूरे कर लेने के बाद मिशन स्टारडस्ट-नेक्स्ट ने अब अपने रॉकेट का इस्तेमाल करके खुद को धूमकेतु टेम्पल-1 की दिशा में घुमा लिया है। मिशन स्टारडस्ट ने कैमरे से अपने लक्ष्य धूमकेतु टेम्पल-1 की पहली तस्वीर लेकर हमें भेजी है। स्पेसक्राफ्ट स्टारडस्ट-नेक्स्ट की आंख से ये रहा धूमकेतु टेम्पल-1...वेलेंटाइन डे यानि 14 फरवरी को भारतीय समय के अनुसार सुबह करीब 10.30 बजे नासा का ये खास कॉमेट मिशन- स्पेसक्राफ्ट स्टारडस्ट धूमकेतु टेम्पल-1 के बेहद करीब से गुजरेगा। नासा के इस मिशन से जुड़े वैज्ञानिकों के अनुसार इस अनोखी फ्लाईबाई में स्टारडस्ट स्पेसक्राफ्ट इस धूमकेतु के 200 किलोमीटर तक करीब जाएगा।
स्टारडस्ट-नेक्स्ट मिशन अब डेढ़ मील प्रति घंटे की रफ्तार से करीब 8 किलोमीटर बड़े धूमकेतु टेम्पल-1 की ओर बढ़ा चला जा रहा है। धूमकेतु टेम्पल-1 पांच साल और छह महीने में सूरज की एक परिक्रमा पूरी करता है। ये वही धूमकेतु है, जिसपर नासा के एक और मिशन डीप इम्पैक्ट ने जुलाई 2005 में इसपर एक भारी इम्पैक्टर की टक्कर करवाई थी। इस इम्पैक्ट एक्सपेरीमेंट से छिटके धूल और गुबार के रासायनिक विश्लेषण के बाद मिशन डीप इम्पैक्ट ने ये खोज की थी कि धूमकेतु टेम्पल-1 जैसे विशाल धूमकेतुओं के धरती पर गिरने से ही हमारे महासागरों का जन्म हुआ है। 2005 के इस इम्पैक्ट एक्सपेरीमेट के बाद अब दोबारा एक और साइंस मिशन स्टारडस्ट-नेक्स्ट इस धूमकेतु की ओर बढ़ा चला जा रहा है।
वैलेंटाइन्स-डे पर अंतरिक्ष में हो रही इस मुलाकात का मकसद ये पता लगाना है कि 2005 के उस इम्पेक्ट एक्सपेरीमेंट के बाद अब इस धूमकेतु में क्या बदलाव आए हैं, ये धूमकेतु किन पदार्थों से बना है और इनका जन्म कैसे हुआ? कॉमेट यानि धूमकेतुओं के रहस्य को समझने के लिए इस मिशन को 1999 में लांच किया गया था। मिशन स्टारडस्ट अपने अभियान में काफी सफल रहा है और इसने 2006 में कॉमेट वाइल्ड-2 की पूंछ से उत्सर्जित हो रहे पदार्थों के सैंपल एक कैप्सूल में लेकर उसे धरती को वापस भेजा था। कॉमेट वाइल्ड-2 की सफल सैंपलिंग के बाद वैज्ञानिकों ने इसे दूसरे मिशन पर कॉमेट टेम्पल-1 की ओर रवाना कर दिया और इसे एक नया नाम दे दिया - मिशन स्टारडस्ट-नेक्स्ट
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