कोलकाता के अंतरिक्ष विज्ञानी दिव्येंदु नंदी ने सौर-चक्र की सदियों पुरानी एक गुत्थी का हल ढूंढ निकाला है। नासा के दो वैज्ञानिकों के साथ मिलकर उन्होंने सूरज में दिखने वाले बदलावों का एक ऐसा कंप्यूटर मॉडल विकसित किया है, जिससे यह जाना जा सकता है कि आने वाले सालों में इसमें कोई असामान्य हलचल तो नहीं होने वाली।
अभी कुछ दशक पहले तक हमें सिर्फ धरती के मौसम की चिंता करनी होती थी, लेकिन अब सूरज के मौसम की फिक्र करना भी हमारे लिए जरूरी हो गया है। दुनिया के ज्यादातर टेलिफोनिक संवाद और टीवी प्रसारण कृत्रिम उपग्रहों पर निर्भर करते हैं। सूरज में उठा कोई भी तूफान इस व्यवस्था के नष्ट-भ्रष्ट हो जाने का खतरा पैदा कर देता है। सुनने में अजीब लगता है, लेकिन धरती के लिए सूरज के अशांत होने से भी ज्यादा बड़ी समस्या इसका असाधारण रूप से शांत होना है। दो साल पहले ऐसा हुआ था और इसके नुकसान अब तक देखे जा रहे हैं।
सूरज के ज्यादा शांत होने से हमारे वायुमंडल की सबसे ऊपरी सतह सिकुड़ने लगती है। इससे धरती पर जहां-तहां असाधारण ठंड, गर्मी और बरसात (एक्स्ट्रीम वेदर इवेंट्स) की आशंका बढ़ जाती है।
सूरज के शांत या अशांत होने का अंदाजा सौर कलंक यानी सूरज के धब्बों की गिनती करके और उनका आकार नापकर लगाया जाता है। ज्यादा और बड़े धब्बों का अर्थ है सूरज का अधिक अशांत होना। इन धब्बों के क्रमश: ज्यादा और कम होने का ग्यारह-ग्यारह वर्षों का चक्र चला करता है, लेकिन 2008-09 में काफी अर्से तक ये धब्बे सिरे से नदारद रहे।
ऐसी घटना सदियों में एकाध बार ही हुआ करती है और पिछली बार यह 1910 के आसपास देखी गई थी। दिव्येंदु नंदी और नासा की टीम ने सम्मिलित रूप से इसकी जो व्याख्या की है, वह सौर-चक्रों के पिछले सौ वर्षों के रेकॉर्ड पर बिल्कुल खरी उतरती है। 2014 के आसपास शुरू हो रहा सूरज का शांतिकाल अगर इस विश्लेषण के अनुरूप निकला तो नंदी और नासा का यह काम सदी की सबसे कारगर खोजों में गिना जाएगा।
अभी कुछ दशक पहले तक हमें सिर्फ धरती के मौसम की चिंता करनी होती थी, लेकिन अब सूरज के मौसम की फिक्र करना भी हमारे लिए जरूरी हो गया है। दुनिया के ज्यादातर टेलिफोनिक संवाद और टीवी प्रसारण कृत्रिम उपग्रहों पर निर्भर करते हैं। सूरज में उठा कोई भी तूफान इस व्यवस्था के नष्ट-भ्रष्ट हो जाने का खतरा पैदा कर देता है। सुनने में अजीब लगता है, लेकिन धरती के लिए सूरज के अशांत होने से भी ज्यादा बड़ी समस्या इसका असाधारण रूप से शांत होना है। दो साल पहले ऐसा हुआ था और इसके नुकसान अब तक देखे जा रहे हैं।
सूरज के ज्यादा शांत होने से हमारे वायुमंडल की सबसे ऊपरी सतह सिकुड़ने लगती है। इससे धरती पर जहां-तहां असाधारण ठंड, गर्मी और बरसात (एक्स्ट्रीम वेदर इवेंट्स) की आशंका बढ़ जाती है।
सूरज के शांत या अशांत होने का अंदाजा सौर कलंक यानी सूरज के धब्बों की गिनती करके और उनका आकार नापकर लगाया जाता है। ज्यादा और बड़े धब्बों का अर्थ है सूरज का अधिक अशांत होना। इन धब्बों के क्रमश: ज्यादा और कम होने का ग्यारह-ग्यारह वर्षों का चक्र चला करता है, लेकिन 2008-09 में काफी अर्से तक ये धब्बे सिरे से नदारद रहे।
ऐसी घटना सदियों में एकाध बार ही हुआ करती है और पिछली बार यह 1910 के आसपास देखी गई थी। दिव्येंदु नंदी और नासा की टीम ने सम्मिलित रूप से इसकी जो व्याख्या की है, वह सौर-चक्रों के पिछले सौ वर्षों के रेकॉर्ड पर बिल्कुल खरी उतरती है। 2014 के आसपास शुरू हो रहा सूरज का शांतिकाल अगर इस विश्लेषण के अनुरूप निकला तो नंदी और नासा का यह काम सदी की सबसे कारगर खोजों में गिना जाएगा।
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