जबरदस्त भूकंप और सुनामी के कहर के बाद जापान अब रेडिएशन की खतरनाक मुसीबत का सामना कर रहा है। जिसकी शुरुआत हुई 12 मार्च को जब फुकुशिमा न्यूक्लियर पावर प्लांट का रिएक्टर नंबर-1 जोरदार धमाके के साथ फट गया...धमाका इतना जोरदार था कि रिएक्टर इमारत की छत ही उड़ गई। इसके बाद रिएक्टर नंबर-3 और रिएक्टर नंबर-2 भी धमाके से उड़ गए और इन सभी रिएक्टर्स से भाप के साथ धूल का एक बड़ा गुबार फूटता देखा गया। जापान में 55 रिएक्टर्स काम कर रहे हैं, जो इस देश की कुल ऊर्जा जरूरत के 15 फीसदी हिस्से की आपूर्ति करते हैं। सबसे बड़ी बात तो ये कि जापान ने अपने रिएक्टर्स की डिजाइन में इस बात का पूरा ख्याल रखा था कि ये भूकंप के बड़े झटके भी झेल सकें। लेकिन इसके बावजूद हिरोशिमा और नागासाकी पर एटम बम गिराए जाने के 66 साल बाद अब जापान एक बार फिर रेडिएशन के भारी खतरे का सामना कर रहा है। हालात की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है है फ्रांस और अमेरिका ने फुकुशिमा न्यूक्लियर पावर प्लांट से 50 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले अपने नागिरकों को तुरंत वहां से हट जाने को कहा है। जापान से आनेवाली हवाएं रूस और चीन के तटीय इलाकों में रेडिएशन की दहशत फैला रही हैं। इन सभी देशों के साथ भारत ने भी जापान से अपने देश के लोगों को हटाने का काम शुरू कर दिया है। जापान में हालात इतने गंभीर हैं कि सम्राट आकिहितो ने नेशनल टेलीविजन पर आकर मुसीबत की इस घड़ी में संवेदना जताई है। जापान के लिए ये एक दुर्लभ और स्थिति की गंभीरता को जाहिर करने वाला क्षण था। क्योंकि जापान में सम्राट देश को तभी संबोधित करते हैं जब हालात बहुत ज्यादा संवेदनशील हो चुके होते हैं। उदाहरण के तौर पर सम्राट हीरोहितो ने 15 अगस्त 1945 को रेडियो पर देश को संबोधित करके मित्र राष्ट्रों की सेना के सामने जापान के बिना शर्त समर्पण की घोषणा की थी। इससे छह दिन पहले अमेरिका हिरोशिमा-नागासाकी पर एटम बम गिरा चुका था।
आइए जानते हैं कि टेक्नोलॉजी के मामले में दुनिया के सबसे विकसित देश जापान में हलात हाथ से कैसे निकल गए ? आइए जानते हैं कि आखिर इन रिएक्टर्स में धमाके क्यों हुए? गड़बड़ी की शुरुआत कैसे हुई ?
जापान के फुकुशिमा न्यूक्लियर पावर प्लॉंट कैंपस में छह रिएक्टर्स काम कर रहे हैं और सभी बॉयलिंग वॉटर टेक्नोलॉजी पर आधारित हैं। ये बात अलग है कि सभी रिएक्टर्स की फ्यूल एसेंबली में अलग-अलग रेडियोएक्टिव पदार्थों का इस्तेमाल किया जा रहा है। जैसे रिएक्टर नंबर एक की फ्यूल एसेंबली में यूरेनियम की छड़ें इस्तेमाल हो रही थीं, जबकि रिएक्टर नंबर तीन में प्लूटोनियम ऑक्साइड और यूरेनियम ऑक्साइड की छड़ें। रिएक्टर नंबर एक की अंदरूनी डिजाइन के उदाहरण के साथ मैं इनकी कार्यप्रणाली के साथ इनमें आई गड़बड़ी को समझाने की कोशिश करूंगा।
रिएक्टर में सबसे संवेदनशील जगह वो होती है जहां रेडियोएक्टिव पदार्थ में चेन रिएक्शन करवाया जाता है और ये सबसे अहम काम होता है रिएक्टर के कोर में।
फुकुशिमा रिएक्टर नंबर एक का कोर स्टील की 8 इंच मोटी चादर से बना एक कंटेनर जैसा है, जो पानी से लबालब भरा रहता है। यूरेनियम की 12 फुट लंबी और आधे इंच मोटी छड़ों के बंडल्स यानि फ्यूल एसेंबली पूरी तरह इसमें डुबोई रखी जाती है। चेन रिएक्शन के दौरान यूरेनियम की छड़ें गर्मी पैदा करती हैं और पानी भाप में बदलता है। भाप को दूसरे पाइप्स से निकालकर टरबाइन चलाई जाती है जिससे जनरेटर बिजली बनाता है।
मेल्टडाउन
लेकिन रिएक्टर कोर में यूरेनियम की फ्यूल एसेंबली में चेन रिएक्शन के दौरान पानी अहम भूमिका निभाता है और ये यूरेनियम की छड़ों का तापमान 270 डिग्री सेंटीग्रेड से आगे बढ़ने नहीं देता। अगर ये कूलिंग फेल हो जाए तो यूरेनियम छड़ों का तापमान 1200 डिग्री सेंटीग्रेड तक बढ़ सकता है। ये तापमान इतना ज्यादा है कि यूरेनियम की छड़ों को पिघला सकता है, इसीको मेल्टडाउन कहते हैं। ये बेहद खतरनाक स्थिति है। क्योंकि पिघलने के साथ यूरेनियम का वाष्पीकरण भी होने लगता है और इस रेडियोएक्टिव पदार्थ के घातक अणु हवा में घुलने लगते हैं।
इस खतरनाक स्थिति से बचने के लिए दुनिया के सभी न्यूक्लियर रिएक्टर्स में तीन स्तरों वाली सुरक्षा अपनाई जाती है। जापान के रिएक्टर्स में भी सुरक्षा के यही तरीके अपनाए गए थे।
सुरक्षा का पहला स्तर – कंट्रोल रॉड्स
जिस वक्त भूकंप आया फुकुशिमा पावर प्लांट के रिएक्टर काम कर रहे थे। भूकंप के जबरदस्त झटकों से रिएक्टर नंबर -1 को गंभीर नुकसान पहुंचा और रिएक्टर कोर में मेल्टडाउन का स्थिति को बचाने के लिए पहले स्तर की सुरक्षा के तौर पर कंट्रोल रॉड्स का इस्तेमाल किया गया। आइए जानते हैं कि कंट्रोल रॉड्स किसे कहते हैं। रिएक्टर को जरूरत से ज्यादा गर्म होने से रोकने के लिए ऐसे खास पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है जो यूरेनियम में चेन रिएक्शन आगे बढ़ाने वाले न्यूट्रॉन्स को सोख लेते हैं जैसे बोरॉन। इन पदार्थों की छड़ें बनाई जाती हैं, जिसे कंट्रोल रॉड्स कहते हैं। चेन रिएक्शन बंद करने और यूरेनियम छड़ों को ठंडा करने के लिए इन कंट्रोल रॉड्स को यूरेनियम छड़ों के बीच फ्यूल एसेंबली के भीतर कुछ इस तरह डाल दिया जाता है। कंट्रोल रॉड्स के डालने पर चेन रिएक्शन की रफ्तार धीमी होने लगती है और रिएक्टर बंद होने लगता है।
सुरक्षा का दूसरा स्तर – कूलेंट
कंट्रोल रॉड्स के इस्तेमाल से रिएक्टर नंबर-1 बंद तो हो गया लेकिन यूरेनियम की छड़ें अब भी बहुत ज्यादा गर्म थीं। ठंडा करने के लिए इन्हें पानी में डुबाए रखना जरूरी था, लेकिन भूकंप की वजह से ऐसा नहीं हो सका। रिएक्टर नंबर-1 की सुरक्षा का दूसरा स्तर भी फेल हो गया। आपात स्थिति सामने आ गई। इंजीनियरों ने डीजल मोटर चला कर दहकती हुई यूरेनियम रॉड्स पर कूलेंट का स्प्रे करना शुरू कर दिया। लेकिन ये आपातकालीन कोशिश भी एक घंटे से ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाई। अचानक बिना किसी चेतावनी के डीजल मोटर ने काम करना बंद कर दिया और दहकती यूरेनियम की छड़ों पर किया जा रहा कूलेंट का स्प्रे भी बंद हो गया। रिएक्टर नंबर-1 को बचाने की आपात कालीन व्यवस्था भी फेल हो गई।
सुनामी से हालात बदतर - रिएक्टर नंबर-1 गंभीर आपात स्थिति से जूझ रहा था कि तभी सुनामी की 10 मीटर ऊंची जबरदस्त लहरें जापान के तटों से आ टकराईं। सुनामी की जोरदार टक्कर से फुकुशिमा रिएक्टर नंबर-1 में रही-सही कसर भी पूरी कर दी।
सुरक्षा का तीसरा स्तर – भाप को पानी में बदलकर कोर में भेजना
सुरक्षा के दोनों स्तरों की धज्जियां उड़ चुकी थीं। रिएक्टर नंबर-1 में मौजूद लोगों के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं। फुकुशिमा रिएक्टर नंबर एक आपात स्थिति का सामना कर रहा था और रिएक्टर में यूरेनियम की छड़ों को पिघलने यानि मेल्ट डाउन की गंभीर स्थिति टालने के लिए वैज्ञानिक और इंजीनियर जी-तोड़ कोशिशों में जुट गए। अब सुरक्षा के तीसरे स्तर को आजमाया गया। इसके तहत पाइपों में दौड़ रही भाप को ठंडा कर वापस रिएक्टर कोर में भेजने का काम शुरू किया गया। इससे यूरियम की छड़ें कुछ ठंडी तो हुईं, लेकिन कोर के भीतर भाप बनने की प्रक्रिया भी तेज हो गई और पानी का स्तर और नीचे गिर गया। कोर के भीतर तापमान एकबार फिर बढ़ने लगा। सुरक्षा के तीनों उपाय एक के बाद एक बेकार हो गए। जापान इनर्जी कमीशन के प्रो. आकिडो ओमोटो फुकुशिमा रिएक्टर की डिजाइन बनाने के काम में शामिल रहे हैं। उन्होंने बताया, “रिएक्टर नंबर-1 के कोर से पानी किसी तरह लीक कर गया। मेरे विचार से हमने सुनामी जैसी आपदा से सुरक्षा के सभी संभव उपाय किए थे...लेकिन जो कुछ हुआ वो अचानक और असंभावित सा था।”
बचाव का अंतिम रास्ता – बोरॉन और समुद्र का पानी
जब सुरक्षा के सारे उपाय फेल हो गए तब वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने रिएक्टर नंबर-1 को फटने से रोकने के लिए बोरॉन मिला समुद्र का पानी रिएक्टर कोर में पंप करना शुरू कर दिया। इंजीनियर बखूबी जानते थे कि समंदर का पानी रिएक्टर को हमेशा के लिए बर्बाद कर देगा और इसे दोबारा कभी इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। लेकिन रिएक्टर कोर को फटने और रेडिएशन को वातावरण में लीक होने से रेकने के लिए अब और कोई रास्ता नहीं बचा था। इस बीच वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की एक टीम ने रिएक्टर कोर से फ्यूल एसेंबली कंटेनर को निकालने की कोशिश भी की। लेकिन तभी भीतर दबाव इस कदर बढ़ गया कि जोरदार धमाका हो गया। फुकुशिमा के रिएक्टर नंबर तीन और अब नंबर दो में भी इन्हीं हालात में जोरदार धमाके हुए हैं।
एक बार फिर ...कुदरत ने बचाव के लिए की जी रही सर्वोच्च इंसानी कोशिशों पर पानी फेर दिया।
अद्भुत.
जवाब देंहटाएंरोमांचक.
वर्णन पढकर ऐसा लगा मानो सबकुछ आंखों के सामने हो रहा है. रिएक्टर में काम करने वाले साइंटिस्टों के अनुभवों का एक अंश ही सही, पर हर पाठक ने मह्सूस किया होगा. सरल भाषा में पूरी जानकारी मिली. धन्यवाद.
- विवेक गुप्ता
samany logo,n ke liye gahan jaankari. shukriya!
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