11 मार्च, शुक्रवार को दोपहरबाद करीब 3 बजे (जापान के समय के अनुसार) जिस वक्त भूकंप आया, मैं अपने ऑफिस में था। मेरा ऑफिस टोक्यो यूनिवर्सिटी के साइंस स्कूल की बिल्डिंग की 7 वीं मंजिल पर है। उस वक्त मैं अपने लैपटॉप पर कुछ टाइप करने में व्यस्त था। टोक्यो में मध्यम दर्जे के भूकंप का आना एक सामान्य सी बात है, इसलिए मैंने भूकंप के झटकों पर ध्यान नहीं दिया और टाइपिंग करता रहा।
भूवैज्ञानिक होने के नाते मैं तुरंत भांप गया कि भूकंप के झटकों की ताकत असामान्य है और इनकी अवधि भी ज्यादा है। खास बात ये थी कि तीखे झटके पूरी तरह से गायब थे, इसलिए पहले-पहल ये अंदाजा लगाना मुश्किल हो गया कि ये भूकंप किस तरह का है। तीखे और बेहद खतरनाक झटकों के न आने की वजह ये थी कि भूकंप की लहरें जैसे-जैसे आगे बढ़ती हैं, धरती उन्हें आहिस्ता से खुद में सोखती जाती है। लेकिन तीखे झटकों के न आने के बावजूद मैं समझ गया कि ये एक बड़ा भूकंप है, जिसका केंद्र शायद काफी दूरी पर है। फिरभी मैं बहुत ज्यादा परेशान नहीं हुआ। मेरी कुर्सी के पीछे मौजूद कैबिनेट से किताबें और दूसरी चीजें मेरे ऊपर गिरने लगीं, इसलिए खुद को बचाने के लिए मैं अपनी मेज के नीचे छिप गया।
कुछ मिनटों के बाद जब भूकंप के झटके थमे, मैं मेज के नीचे से निकला, अपना लैपटॉप वापस खोला और फिर टाइपिंग करने में जुट गया। इस बीच मेरे कुछ छात्र मेरा हालचाल लेने आ गए, मैंने बड़ी लापरवाही और एक शिक्षक की तरह थोड़ी तल्खी के साथ उन्हें वापस अपने काम में जुट जाने का हुक्म सुना दिया। लेकिन कुछ देर बाद जब भूकंप के झटके फिर से शुरू हो गए तो हमारे सुरक्षा अधिकारी ने फैसला लिया कि हमें अब स्कूल की इमारत खाली कर देना चाहिए। फिर मैंने ऐसा ही किया और दूसरे सहयोगियों के साथ हम सब सीढ़ियों से उतरकर स्कूल की इमारत से बाहर आ गए। झटके अब भी रुक-रुक कर आ रहे थे, लेकिन ये काफी हल्के थे। आधे घंटे तक बाहर खड़े रहने के बाद हम सबने फैसला लिया कि बहुत हुआ अब हमें वापस अपने-अपने काम पर ध्यान देना चाहिए। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एलीवेटर्स बंद कर दिए गए थे, इसलिए हम सब सीढ़ियों से चढ़कर ऊपर अपने-अपने ऑफिस में गए और अपना-अपना काम खत्म करने के बाद वापस घर को चल दिए।
नागरिकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए रेलगाड़ियां बंद कर दी गईं थीं। हालांकि मेरे पास सबवे से जाने का विकल्प था, लेकिन साफ मौसम को देखते हुए पैदल ही टहलते हुए मैं घर की ओर चल दिया। 55 मिनट बाद मै घर पहुंच गया, जब मैं घर पहुंचा तो देखा कि वहां भूकंप से कोई नुकसान नहीं हुआ था। लेकिन भूकंप डिटेक्टर यंत्र ने गैस की लाइन अपनेआप काट दी थी। मैंने मुस्कराते हुए लापरवाही के साथ गैस मीटर का बटन दबाया और पाइप में गैस की आपूर्ति फिर से शुरू हो गई।
भूकंप को आए 8 घंटे बीत चुके थे। फोन नेटवर्क शानदार तरीके से काम कर रहा था। अब मैंने अपनी पत्नी, उसकी मां और बहन की खोज-खबर ली, जोकि उत्तरी जापान में एक हॉट स्प्रिंग रिसॉर्ट में छुट्टियां मना रहे थे। मैंने ये जानकर चैन की सांस ली कि वहां वो सब सुरक्षित थे। टोक्यो के दूसरे कई लोगों की अपेक्षा मैं भाग्यशाली रहा, क्योंकि ज्यादातर लोग सारी रात अपने दफ्तरों में ही फंसे रहे। हालांकि वहीं भी उन्हें कोई खतरा नहीं था, लेकिन बेकार की परेशानी तो थी ही। अब जबकि भूकंप के 32 घंटे बाद मैं अपनी डायरी लिख रहा हूं, टोक्यो में हालात आहिस्ता-आहिस्ता सामान्य होने लगे हैं।
दुर्भाग्य से भूकंप से सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में हालात बहुत बदतर थे। टीवी पर सारी खबरें भूकंप और उससे हुए जान-माल के नुकसान पर ही केंद्रिंत थीं। भूकंप और उसके बाद आई सुनामी से तबाह हो गई बस्तियों के खौफनाक दृश्य बार-बार रिपीट किए जा रहे थे। हजारों लोगों ने इस हादसे में अपना सबकुछ खो दिया और वो दयनीय स्थिति में अस्थाई टेंटों में शरणार्थियों की तरह रहने को मजबूर थे। बाहर कड़ाके की ठंड थी और बिजली न आने की वजह से हालात गंभीर थे। हालांकि बाहर उन सभी के पास खाना, पानी और कंबल जैसी चीजें थीं, लेकिन बाहर की खुली सर्दी मं सभी ठिठुर रहे थे।
तभी खबर आई कि फुकुशिमा के न्यूक्लियर पावर प्लांट को गंभीर नुकसान पहुंचा है और वहां से रेडिएशन का रिसाव हो रहा है। हमें खबर मिली कि रिएक्टर के आसपास के 20 किलोमीटर दायरे के इलाके में लोगों के घर खाली कराए जा रहे हैं। लेकिन ये खतरा कितना बड़ा है, ये नहीं पता चल पा रहा था, क्योंकि जो खबरें आ रही थीं, उनमें कुछ भी साफ नहीं था।
संक्षेप में कहूं तो भूकंप की इस बड़ी आपदा का सामना करने के लिए जापान की सरकार ने जो भी कदम उठाए हैं, वो काफी कारगर रहे हैं। लेकिन जापान में आए 9.1 तीव्रता वाले भूकंप और इसके बाद आई सुनामी से जो तबाही और बर्बादी हुई उसे नहीं रोका जा सका। अब सारा ध्यान बचाव-राहत और पुर्ननिर्माण के कामों पर ही है। लेकिन जापान में आए इस भूकंप के बड़े ही दूरगामी परिणाम होंगे और ये भूकंप पब्लिक पॉलिसी बनाने में अहम भूमिका निभाएगा। अंत में इतना ही, कि ऐसे वक्त में जब कि हम भविष्य में आने वाले भूकंपों और उनका सामना करने के तौर-तरीकों पर सारा ध्यान लगाए बैठे थे, तभी ये भयानक अनहोनी घट गई। जैसा कि कैलीफोर्निया इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोल़ाजी के प्रोफेसर हिरो कानामोरी कहते हैं, हमें हमेशा अनअपेक्षित का सामना करने को तैयार रहना चाहिए।
- डॉ. रॉबर्ट गेलर, जियोफिजिसिस्ट, यूनिवर्सिटी आफ टोक्यो, जापान
यह पूरा अनुभव बताता है कि जापान में लोग किस कदर हिम्मतवाले हैं. कुदरती विनाश झेलने के बावजूद एक भी जापानी ने अपने आप को दयनीय नहीं दर्शाया होगा. कुदरत के कोप से तबाही तो हो गई, पर तत्काल उससे उबरकर वे लोग पुनर्निर्माण में जुट गए. यही इंसान की जिजीविषा है. धन्य है जापान.
जवाब देंहटाएं- विवेक गुप्ता