
अचानक हलचल बढ़ गई और सबकी निगाहों के साथ स्पॉट लाइट ऑडिटोरियम के दाईं ओर घूम गई, अपनी व्हीलचेयर को ऑपरेट करते हुए प्रो. हॉकिंग वहां से मंच पर प्रवेश कर रहे हैं...और इसी के साथ ऑडिटोरियम में खामोशी छा गई। टॉक की शुरुआत प्रो. हॉकिंग ने अपने चिर-परिचित मजाकिया अंदाज में की। ऑडिटोरियम के स्पीकर्स पर प्रो. हॉकिंग की सेंथेसाइजर आवाज गूंजी.....
... कैन यू हियर मी?....

" जिंदगी का असली मजा खोज में है, एक नई और ऐसी खोज जिसके बारे में लोग पहले से कुछ भी न जानते हों। इस खोज, इस तलाश की तुलना मैं सेक्स से नहीं कर सकता, लेकिन इसकी खुमारी, इसका आनंद कहीं ज्यादा देर तक बरकरार रहता है।"
(इसी के साथ ऑडिटोरियम में ठहाके गूंज उठते हैं)
"बीते 49 साल से मै हर दिन मौत की आशंका के बीच जी रहा हूं। मुझे मरने से डर नहीं लगता लेकिन मुझे मरने की ऐसी कोई खास जल्दी भी नहीं है। ऐसे कई काम हैं जो मैं पहले करना चाहता हूं। जब वक्त से पहले आपका सामना मृत्यु की संभावना से होता है, उस क्षण आपको इसका अहसास होता है कि जिंदगी वाकई जीने के लायक है, और ऐसी तमाम सारी चीजें हैं जो आप करना चाहते हैं।
मेरे हिसाब से दिमाग एक कंप्यूटर की तरह है, जो तब काम करना बंद कर देता है जब इसके दूसरे हिस्से खराब हो जाते हैं। टूटे और एकदम खराब हो चुके कंप्यूटर के लिए कोई दूसरी जिंदगी और स्वर्ग जैसी चीजें नहीं होतीं। स्वर्ग-नर्क और मौत के बाद दूसरी जिंदगी की बातें ऐसे लोगों की कल्पनाएं भर हैं, जिन्हें अंधेरों से डर लगता है। दर्शऩशास्त्र और आध्यात्म का अध्ययन समय की बरबादी से ज्यादा कुछ नहीं, क्योंकि क्योंकि इनकी ज्यादातर बातें प्रायोगिक साक्ष्यों और आधुनिक विज्ञान के खिलाफ हैं।
बचपन में मेरा क्लासवर्क अशुद्धियों से भरा बेतरतीब होता था और मेरी हैंडराइटिंग तो मेरे शिक्षकों को निराशा से भर देती थी। लेकिन लड़कपन के मेरे दोस्तों ने मेरा नाम आइंस्टीन रख दिया था, मुझे तो पता नहीं, लेकिन शायद उन्हें मुझमें ऐसे कोई बेहतर लक्षण नजर आते होंगे। जब मैं 12 साल का था तब मेरे एक दोस्त ने दूसरे दोस्त के साथ ये कहते हुए चॉकलेट के एक पैकेट की बाजी लगाई थी कि देखना ये नालायक का नालायक ही रहेगा।
जब मैं ऑक्सफोर्ड आया तो दाखिले से पहले मुझे एक एक्जाम और देना पड़ा, इस परीक्षा का नतीजा ये रहा कि अगले तीन साल मुझे ऑक्सफोर्ड में बिताने पड़े, जिसका अंत एक और एक्जाम के साथ हुआ। मैंने एक बार गणित लगाया तो पता चला कि ऑक्सफोर्ड में तीन साल के दौरान मैंने एक हजार घंटे का काम किया। लेकिन औसतन ये बस रोजाना एक घंटे ही था, इसलिए मैं किसी शाबासी का दावा नहीं कर सकता था।
हमेशा एक छात्र बने रहना और कभी हिम्मत न हारना हमें आगे की ओर ले जाता है। याद रखिए, सितारों से भरे आसमान को देखिए और कभी घुटने मत टेकिए। आप जो देखते हैं महसूस करते हैं उसमें छिपे तार्किक अर्थ खोजिए। जिंदगी के हालात मुश्किल भी हो सकते हैं, लेकिन सबसे निराशाजनक परिस्थितियों में भी आपके लिए बहुत कुछ नया और अलग करने की गुंजाइश हमेशा छिपी रहती है। सफलता बस केवल एक ही बात पर निर्भर करती है और वो ये कि कभी हिम्मत मत हारिए।
हम सभी काफी भाग्यशाली हैं कि हम वक्त के ऐसे दौर में हैं जब थ्योरेटिकल फिजिक्स में नई-नई खोजें सामने आ रही हैं। बीते 40 साल के दौरान ब्रह्मांड के बारे में हमारी जानकारी में बहुत ज्यादा बदलाव आया है और ब्रह्मांड को लेकर हमारी समझ पूरी तरह बदल चुकी है और मुझे खुशी है कि इसमें मैं भी थोड़ा सा योगदान दे सका। हम मानव, जो कि प्रकृति के आधारभूत कणों के एक समूह मात्र हैं, उन नियमों को समझ सके जो हर पल हमपर और इस ब्रह्मांड पर असर डाल रहे हैं, ये सच्चाई पूरी मानव जाति के लिए एक बहुत महान जीत है।
– संदीप निगम
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बेहद अच्छा लेख
जवाब देंहटाएंGood sir ye bat sahi hai ki hamko manab jati ko bachane ke liye dusra gireh dekh lena chahiye
जवाब देंहटाएंजिंदगी का असली मजा
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