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शनिवार, 2 जनवरी 2010

धरती पर डार्क मैटर की अनोखी खोज


धरती पर डार्क मैटर की खोज बीते साल की सबसे बड़ी वैज्ञानिक खोजों में से है। हालांकि इस खोज की खबर बस एक ही लैब से आई है, लेकिन फिर भी कुछ वैज्ञानिक 1970 से जारी डार्क मैटर की खोज की कोशिश को मिली इस पहली कामयाबी को मानव इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी खोज का दर्जा दे रहे हैं। डार्क मैटर यानि ऐसी चीज जो नजर तो नहीं आती, लेकिन जो एक जबरदस्त गुरुत्वाकर्षण यानि खिंचाव के जरिए अपनी मैजूदगी का पुरजोर एहसास करवाती है। जैसे कि हमारी भावनाएं, प्रेम-गुस्सा या फिर नफरत जो दिखती नहीं बस महसूस हो जाती हैं। जैसे कि कहीं किसी जगह एक अनजाने से डर का एहसास, सामने एक सूनापन-सबकुछ खाली-खाली है, लेकिन फिरभी मन कहता है कि नहीं यहां कुछ है। जैसे किसी आध्यात्मिक अनुभव की बारिश, कहीं कोई नहीं लेकिन फिरभी किसी दिव्य एहसास भर से आप ओतप्रोत हो उठें। डार्क मैटर भी बस कुछ ऐसा ही है, जो नजर तो नहीं आता, लेकिन फिरभी एक जबरदस्त एहसास दिलाता है कि मैं यहां हूं।
हजारों साल से हम आसमान में जगमगाते इन सितारों को देखकर यकीन करते रहे कि पूरा ब्रह्मांड इन्हीं जगमगाते सितारों से मिलकर बना है। लेकिन ये पूरा सच नहीं। अगर आप अंतरिक्ष की किसी ऐसी छत पर खड़े हों जहां से अरबों-खरबों जगमगाते सितारों और चमकदार आकाशगंगाओं के रूप में चारों ओर फैले संपूर्ण ब्रह्मांड को देख सकते...तो आप देखते अनंत शून्य के गहन अंधकार में टिमटिमाती हुई रोशनी के लाखों-करोड़ों-अरबों द्वीप। सफेद, पीली, नारंगी, लाल, नीली रोशनी से जगमगाते अनगिनत सितारे और आकाशगंगाएं। तब आपके मन में सवाल उठता, क्या यही है संपूर्ण ब्रह्मांड ?
नहीं, अनगिनत दियों की तरह जगमगाते जिस अदभुत नजारे को आप देख रहे हैं, वो पूरा ब्रह्मांड नहीं, बल्कि उसका एक बहुत छोटा, महज चार फीसदी हिस्सा ही है। जी हां, ब्रह्मांड का केवल 4 फीसदी हिस्सा ही ऐसे पदार्थ से बना है जिसे हम देख सकते हैं और छूकर महसूस कर सकते हैं ...आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि हमारे ब्रह्मांड का 96 फीसदी हिस्सा कुछ ऐसी अजीबोगरीब चीजों से बना है, जिन्हें न तो हमारी आंखें देख सकती हैं और न ही हमारे संवेदनशील उपकरण। लेकिन फिरभी जिसके वजूद का बेहद ताकतवर एहसास इस कायनात के जर्रे-जर्रे में समाया हुआ है। पूरे ब्रह्मांड को मौजूदा सांचे में ढालने और इसके एक–एक सितारे की साज-संभाल करने वाला वो सर्वशक्तिमान छिपा है, सितारों और आकाशगंगाओं के बीच मौजूद घोर अंधकार के अथाह समंदर में। उस सर्वशक्तिमान का नाम है, डार्क मैटर
ये न तो ठोस है और न ही द्रव या गैस। इसे छुआ नहीं जा सकता, लेकिन फिरभी ये डार्क मैटर हमारे घर, हमारी धरती से लेकर हमारी आकाशगंगा और इस ब्रह्मांड के कोने-कोने में मौजूद है। ये सर्वशक्तिमान है क्योंकि पूरे ब्रह्मांड की कोई भी चीज इसे रोक नहीं सकती। ये सूरज से भी नहीं घबराता और उसे भेदते हुए आर-पार निकल जाता है। फिर ग्रहों और चंद्रमाओँ की तो बिसात ही क्या ! ये सर्वशक्तिमान इसलिए भी है, क्योंकि डार्क मैटर की वजह से ही आकाशगंगाओं को एक खास आकार मिलता है और तमाम सितारे अपनी-अपनी जगह पर बने रहते हैं।
इस गहन ब्रह्मांड में एक खास ताकत भी काम कर रही है, जिसे देखना या महसूस करना मुमकिन नहीं...लेकिन फिरभी जो तमाम आकाशगंगाओं और सितारों को एक-दूसरे से दूर धकेलती जा रही है, इस ताकत का नाम है डार्क इनर्जी । सर्वशक्तिमान डार्क मैटर और डार्क इनर्जी के रहस्य को समझना बेहद जरूरी है, क्योंकि इनके गहरे रहस्य में छिपी है तकदीर, हमारे ब्रह्मांड की। और जवाब इस सवाल का कि क्या हमारा ब्रह्मांड एक दिन अपने ही अपार गुरुत्वाकर्षण की आपसी खौफनाक टक्कर से एकदूसरे में सिमटते हुए भीषण ऊर्जा की जबरदस्त तपिश में जलकर-झुलसकर खत्म हो जाएगा? या फिर सर्वशक्तिमान डार्क इनर्जी पूरे ब्रह्मांड को खींचते हुए टुकड़ों-टुकड़ों में बांटकर अनंत में एक–दूसरे से दूर फेंक देगी ? आइए चलते हैं, अनदेखे ब्रह्मांड के रोमांचक सफर पर और करते हैं मुलाकात सर्वशक्तिमान डार्क मैटर से।
करीब 14 अरब साल पहले, शून्य में ऊर्जा का महाविस्फोट.... बिगबैंग...जिसने जन्म दिया दिखने वाले सभी पदार्थों यानि मैटर और नजर न आने वाले डार्क मैटर को। डार्क मैटर का गुरुत्वाकर्षण बल किसी मकड़ी के जाले की तरह चारों ओर फैला था, जिसके जबरदस्त खिंचाव ने शुरुआती पदार्थ के कणों को एक-दूसरे के करीब आने पर मजबूर कर दिया। फिर क्या था डार्क मैटर के इसी गुरुत्वाकर्षण ढांचे पर मैटर यानि नजर आने वाले पदार्थों ने आपस में जुड़कर, नए-नए पदार्थ बनाए और जन्म दिया आकाशगंगाओं, सितारों, ग्रहों और सौरमंडलों को और इस तरह हो गई शुरुआत इस सृष्टि की।
पदार्थों के अणुओं-परमाणुओं ने तो रासायनिक क्रियाओं के जरिए आपस में जुड़कर और ढेर सारे नए-नए पदार्थ रचकर अपनी जगमगाती दुनिया रच डाली,लेकिन अदृश्य डार्क मैटर सृष्टि की इस रचना प्रक्रिया में शामिल नहीं हो सके। क्योंकि डार्क मैटर के परमाणुओं में आपस में जुड़ने और कुछ नया रच डालने की काबिलियत थी ही नहीं, इसलिए डार्क मैटर के अणु पूरे ब्रह्मांड में स्याह घने बादल की शक्ल में फैल गए। अंधकार के इस बादल में जहां-जहां डार्क मैटर के अणुओं की मौजूदगी बेहद सघन थी, उन घने हिस्सों में बन गईं डार्क मैटर की आकाशगंगाएं।
ब्रह्मांड का ये सबसे बड़ा रहस्य तब तक छिपा रहा, जब तक टेक्नोलॉजी की तरक्की ने हमें आसमान के पार झांकने की काबिलियत नहीं दे दी। 1920 तक तो हम ये भी नहीं जानते थे कि हमारी आकाशगंगा के अलावा कहीं कोई और भी आकाशगंगा है। अमेरिकी एस्ट्रोनॉमर एडविन हब्बल ने टेलिस्कोप से दूर अंतरिक्ष में पहली बार कुछ धुंधले से नन्हें धब्बे देखे, ये दूसरी आकाशगंगाएं थीं, जिन्हें पहली बार देखा गया। हब्बल ने बताया हमारा ब्रह्मांड जितना हम सोंचते हैं उससे कहीं ज्यादा विशाल है और हमारी आकाशगंगा तो बस इसका एक छोटा सा हिस्सा भर है। हब्बल की बात सुनकर पूरी दुनिया चौंक उठी।
कैलीफोर्निया इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी के स्विस एस्ट्रोनॉमर फ्रिट्ज विकी कोमा क्लस्टर में मौजूद आकाशगंगाओं की गति का अध्ययन कर रहे थे। उन्होंने देखा कि आकाशगंगा के केंद्र के चारों ओर घूमते सितारों की रफ्तार बहुत ज्यादा थी, जबकि उनके पदार्थों के वजन के मुताबिक ये रफ्तार काफी कम होनी चाहिए थी। इसका सीधा मतलब ये था कि इन आकाशगंगाओं में कोई और चीज भी मौजूद है, जो नजर भले ही न आ रही हो, लेकिन सभी सितारों की रफ्तार पर लगातार अपना जोरदार असर डाल रही है। ये एक अदभुत खोज थी, जिसने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। विकी ने उस अदृश्य ताकत का नाम रखा डार्क मैटर।
फ्रिट्ज विकी के नतीजों के 40 साल बाद डार्क मैटर पर सबसे बड़ी खोज की कार्नेगी इंस्टीट्यूट आफ वाशिंगटन की एक युवा वैज्ञानिक वेरा रूबिन ने। साल था 1970 का और अपनी क्रिसमस की छुट्टियां रद्द कर वेरा रूबिन एक अनोखी खोज में जुटी थीं। रूबिन पड़ोस की आकाशगंगा एंड्रोमेडा का अध्ययन कर रहीं थीं। कुदरत ने अपने सबसे बड़े रहस्य को जाहिर करने के लिए रूबिन का चुनाव कर लिया था। रूबिन जान चुकीं थीं कि उनका सामना कुदरत के सबसे अनोखे रहस्य से होने जा रहा है। उनका दिल जोरों से धड़क रहा था और दिसंबर की कड़ाके की ठंड के बावजूद उनके माथे पर पसीना छलक आया था। न्यूटन और आइंस्टीन के एक खास सिद्धांत के मुताबिक किसी केंद्र की परिक्रमा कर रहे सबसे नजदीक के पिंड की गति उसी केंद्र की परिक्रमा पर रहे सबसे दूर के पिंड से कहीं ज्यादा होगी। मिसाल के तौर पर हमारे सौरमंडल में सूरज ही गुरुत्वाकर्षण बल का सबसे बड़ा जरिया है और इसकी परिक्रमा कर रहे सबसे नजदीक के ग्रह बुध की गति सबसे दूर मौजूद प्लूटो से कई गुना ज्यादा होती है। क्योंकि सूरज के गुरुत्व का सबसे ज्यादा असर बुध पर होता है, जबकि प्लूटो पर सबसे कम। इसीलिए प्लूटो सूरज की परिक्रमा करने में सबसे ज्यादा समय लेता है। फिजिक्स के नियम पूरे ब्रह्मांड में एकसमान रूप से लागू होते हैं, इसलिए वेरा रूबिन जानना चाहती थीं कि सौरमंडल पर काम करने वाला न्यूटन और आइंस्टीन का सिद्धांत आकाशगंगाओं पर भी लागू होना चाहिए, क्योंकि किसी आकाशगंगा में केंद्र की परिक्रमा कर रहे सितारे भी हमारे सौरमंडल की तरह ही व्यवहार करते हैं। यानि न्यूटन और आइंस्टीन के नियम के मुताबिक आकाशगंगा के केंद्र के नजदीक वाले सितारों की गति सबसे तेज और आकाशगंगा के बाहरी छोर पर मौजूद सितारों की गति सबसे कम होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं था। वेरा रूबिन ने अपने ऑब्जरवेशन से साबित कर दिया कि आकाशगंगाओं में मौजूद सभी सितारे एक ही रफ्तार से केंद्र के चक्कर काटते हैं, चाहे वो केंद्र से नजदीक हों या फिर दूर। ये बेहद चौंका देने वाला नतीजा था।
क्या न्यूटन और आइंस्टीन के सिद्धांत गलत थे ? आकाशगंगा के सभी सितारे एक ही रफ्तार से क्यों घूम रहे हैं ? वेरा रूबिन के नतीजों को जब हब्बल की खोज से मिलाकर देखा गया, तो एक बार फिर ये बात सामने आई कि आकाशगंगाओं में भारी तादाद में कोई ऐसी चीज मौजूद है, जो नजर तो नहीं आती लेकिन वो हर सितारे पर अपना भरपूर असर डाल रही है और इसी वजह से आकाशगंगाओं के सभी सितारे एकसमान गति से अपने केंद्र के चक्कर काट रहे हैं। ये नजर न आने वाली रहस्यमय चीज थी डार्क मैटर।
आइंस्टीन ने कहा था कि शून्य में गुरुत्वाकर्षण बल का असर इतना जबरदस्त होता है कि एक सीधी रेखा में चलने वाली प्रकाश की किरण जब इसके आसपास से होकर गुजरती है, तो गुरुत्वाकर्षण बल के असर से प्रकाश की किरण भी मुड़ जाती है। आइंस्टीन का ये सिद्धांत ग्रैविटेशनल लेंसिंग के नाम से मशहूर है। आइंस्टीन जिस ग्रेविटेशनल लेंसिंग की बात कर रहे थे अंतरिक्ष में मौजूद ऑब्जरवेटरी हब्बल ने जब कुदरत की इस नायाब घटना को अपनी आंखों के सामने घटते देखा तो दुनियाभर के वैज्ञानिक रोमांच से भर उठे।
सुदूर आकाशगंगाओं के उस पार से आती रोशनी जैसे ही सितारों के आसपास से गुजरती है वो गोलाकार रूप से मुड़ जाती है। सबसे बड़ा सवाल ये कि आखिर क्यों ? सितारों के आसपास अंतरिक्ष के अंधियारे में ऐसी क्या चीज मौजूद है, जिसका जबरदस्त गुरुत्वाकर्षण रोशनी को भी मुड़ने पर मजबूर कर देता है ? इस सवाल का जवाब मिला डार्क मैटर में। अंतरिक्ष के अंधियारे में मौजूद वो डार्क मैटर ही है जो अपनी जबरदस्त गुरुत्वाकर्षण की ताकत से आसपास से गुजरती हुई रोशनी को भी मरोड़ देता है। हब्बल ने डार्क मैटर की इस जबरदस्त ताकत की तस्वीर जब पहली बार वैज्ञानिकों को दिखाई तो वो कुदरत के इस अनोखे रहस्य के बारे में और भी ज्यादा जानकारी जुटाने में जुट गए।
डार्क मैटर के बारे में सबसे ज्यादा सनसनीखोज खुलासा तब हुआ जब हमें इस बात के सबूत मिले कि डार्क मैटर दूर आकाशगंगाओं और सितारों पर ही असर नहीं डालता, बल्कि वो हमारी पृथ्वी के आरपार से गुजरता हुआ चारों ओर मौजूद है। इतना ही नहीं, बल्कि हमें ये भी पता चला कि हमारी पृथ्वी और चंद्रमा के बीच डार्क मैटर का एक बहुत बड़ा बादल भी मौजूद है। जिसकी वजह से चंद्रमा पर गुरुत्वाकर्षण का एक अतिरिक्त खिंचाव भी काम कर रहा है। ये एक चौंकाने वाली खोज थी। जिसने हमें डार्क मैटर की पहचान करने और उसे महसूस करके देखने पर मजबूर कर दिया। सर्वशक्तिमान डार्क मैटर को वीकली इंटरैक्टिव मैसिव पार्टिकिल्स यानि विम्प्स, एक्जियॉन्स और माचोज जैसे कुदरत के सबसे नायाब और सबसे अनोखे कण मिलकर बनाते हैं। इसी जानकारी के आधार पर स्पेस ऑब्जरवेटरी हब्बल ने पहली बार डार्क मैटर का थ्री-डी मैप बनाने में सफलता हासिल की।
अपनी पृथ्वी पर हम जितनी चीजों को जानते-समझते...महसूस करते हैं डार्क मैटर उन सबसे अलग और अनोखा है। हर सेकेंड नजर न आने वाले डार्क मैटर के अरबों विम्प्स कण सामने आने वाली हर चीज- पेड़, पत्थर, पहाड़, मकान, कार, धरती यहां तक कि खुद हमें भी भेदते हुए गुजर रहे हैं। सबसे अदभुत बात तो ये कि किसी को बगैर कोई नुकसान पहुंचाए। डार्क मैटर जब सूरज को भेदता है तो वो प्रकृति के एक और अनोखे कण न्यूट्रिनोज को जन्म देता है। ऐसा ही तब भी होता है जब डार्क मैटर के बादल हमारी पृथ्वी के दहकते हुए कोर से होकर गुजरते हैं। डार्क मैटर की तरह न्यूट्रिनोज के कण भी सामने आने वाली हर चीज को भेदते हुए गुजर जाते हैं। डार्क मैटर का वजन, उनका गुरुत्वाकर्षण इतना ज्यादा है कि वो आकाशगंगाओं को भी प्रभावित करने की ताकत रखते हैं। डार्क मैटर की मौजूदगी हर जगह है, वो सही मायनों में सर्वव्यापी हैं। कुदरत की इस सबसे अनोखी रचना को लेकर सवालों की भरमार है और अब पूरी मानव जाति के इतिहास में पहली बार हमें मिला है एक धुंधला सा पहला जवाब।
आप सोंच रहे होंगे कि आसमान से बरसने वाले इस सर्वशक्तिमान डार्क मैटर के विम्प्स कणों की तलाश में वैज्ञानिक दिन-रात आसमान में नजरें गढ़ाए रहते होंगे। नहीं ऐसा नहीं है, दुनियाभर के वैज्ञानिकों की कई टीम्स जमीन से कई किलोमीटर नीचे मौजूद खास प्रयोगशालाओं में 40 साल से इस कोशिश में जुटी हैं कि किसी तरह डार्क मैटर के अनोखे कणों विम्प्स को पकड़ा जा सके और ये साबित किया जा सके कि डार्क मैटर का वजूद महज कोई किताबी बात नहीं बल्कि हर पल हमारी आंखों के सामने से गुजरती एक ठोस हकीकत है। डार्क मैटर की खोज हम धरती के नीचे जाकर ही कर सकते हैं, ऐसा इसलिए ताकि आसमान से बरसने वाली कॉस्मिक किरणों से इस प्रयोग को सुरक्षित रखा जा सके। डार्क मैटर के कण हर पल भारी तादा में पूरी धरती से आरपार गुजर रहे हैं, इसलिए वैज्ञानिकों का मामना है कि धरती के नीचे बनी प्रयोगशालाओं में मौजूद कुछ खास सेंसर्स की मदद से नजर न आने वाले डार्क मैटर के कणों खासतौर पर पर विम्प्स के आगमन को पकड़ा जा सकता है।
डार्क मैटर की प्रयोगशालाएं दुनियाभर में धरती से हजारों फुट की गहराइयों में काम कर रही हैं। डार्क मैटर की ऐसी ही सबसे बड़ी सर्च लैब मौजूद है अमेरिकी राज्य मिनेसोटा की सबसे पुरानी, सबसे गहरी और अब खाली पड़ी लोहे की खान में। यहां एसएलएसी नेशनल लैबोरेटरी, यूनिवर्सिटी आफ कैलीफोर्निया और फर्मीलैब के सहयोग से, धरती से करीब आधे मील की गहराई में मौजूद क्रायोजेनिक डार्क मैटर सर्च यानि सीडीएमएस लैब में कई दशक से डार्क मैटर की खोज जारी है। इस खान से लोहे के अयस्क को निकालने का काम 1912 में ही बंद हो चुका है और अब ये खान दुनियाभर के वैज्ञानिकों के आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र बन चुकी है। इसकी वजह है इसी खान की गहराइयों में धरती से करीब डेढ़ किलोमीटर नीचे मौजूद एक संवेदनशील प्रयोगशाला, जहां डार्क मैटर के कण विम्प्स को पहली बार पकड़ने में पहली कामयाबी हासिल हुई है।
आइए जानते हैं कि सीडीएमएस यानि क्रायोजेनिक डार्क मैटर सर्च लैब में मौजूद दुनियाभर में डार्कमैटर के सबसे संवेदनशील डिटेक्टर ने डार्क मैटर के कण विम्प्स को आखिर कैसे पकड़ा ?
सीडीएमएस में दुनियाभर के 13 संस्थानों से आए 46 वैज्ञानिकों की टीम डार्क मैटर की तलाश में जुटी है। यहीं है वो खास क्रायोजेनिक चैंबर जिसमें रखे हैं वो खास डिटेक्टर्स जिन्होंने डार्क मैटर के कणों विम्प्स को पहली बार पकड़ा है। डार्क मैटर के ये सेंसर जरमेनियम से बने हैं, जरमेनियम इसलिए क्योंकि इसके अणुओं के बीच खाली जगह बहुत कम होती है और जरमेनियम के इस ब्लॉक के ऊपर लगे हैं वो खास सेंसर जो तापमान में होने वाले हल्के से हल्के अंतर को भी तुरंत पहचान लेते हैं। जरमेनियम के ऐसे कई ब्लॉक्स को इस क्रायोजेनिक चैंबर के भीतर एब्सोल्यूट जीरो यानि शून्य से दो सौ तिहत्तर दशमलव एक पांच डिग्री सेंटीग्रेड से एक डिग्री ऊपर वाले तापमान के पचास हजारवें हिस्से तक बेहद ठंडे माहौल में सील कर दिया जाता है। पूरी धरती पर इतनी ठंडी जगह कोई दूसरी नहीं और तापमान को कहीं और इस हद तक कम करना भी मुमकिन नहीं।
डार्क मैटर के कण विम्प्स को पकड़ने का काम इस सिद्धांत पर काम करता है कि आमतौर पर डार्क मैटर सामान्य पदार्थ से कोई भी क्रिया नहीं करते, लेकिन बेहद दुर्लभ मौके पर विम्प्स के कण सामान्य पदार्थ के नाभिक से जा टकराते हैं, और जब भी ऐसा होता है जरमेनियम में कंपन होता है और उसका तापमान बढ़ जाता है। कई साल से वैज्ञानिक बस इसी दुर्लभ घटना को पकड़ने की कोशिश कर रहे थे। मशहूर साइंस जर्नल नेचर के दिसंबर 2009 के अंक में छपी रिपोर्ट के अनुसार डार्क मैटर को पकड़ने में पहली सफलता मिली है इसी सीडीएमएस लैब को, जहां क्रायोजेनिक चैंबर के बेहद ठंडे माहौल में में रखे जरमेनियम सेंसर के तापमान में अचानक मामूली वृद्धि रिकार्ड की गई, जिसका सीधा मतलब ये है कि डार्क मैटर के किसी विम्प्स कण की टक्कर जरमेनियम परमाणु के नाभिक से वाकई में हो गई। यानि ये साबित हो गया कि सर्वशक्तिमान डार्क मैटर का वजूद महज कोई किताबी बात नहीं बल्कि एक ठोस हकीकत है। हमारे ब्रह्मांड का 96 फीसदी हिस्सा इसी डार्क मैटर से बना है जो दिखाई तो नहीं देता लेकिन जो सौ फीसदी वजूद में है। सीडीएमएस लैब यानि धरती पर डार्क मैटर की ये खोज इस सदी की सबसे बड़ी खोजों में से एक है। वैज्ञानिक अब इंतजार कर रहे हैं कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में जमीन के भीतर काम कर रही डार्क मैटर की अन्य प्रयोगशालाओं से मिलने वाले नतीजों का। उम्मीद है कि ये प्रयोगशालाएं भी भी डार्क मैटर के विम्प्स कणों को पकड़ने में कामयाब रहेंगी।
सर्वशक्तिमान डार्क मैटर की जो दूसरी सबसे बड़ी खूबी है वो ये कि ये अनोखी और अदृश्य चीज ब्रह्मांड के 96 फीसदी हिस्से में तो है ही साथ ही ये नजर आने वाले सामान्य पदार्थों के परमाणुओं के भीतर भी मौजूद है। दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला सेर्न की महामशीन एलएचसी में हो रहे, प्रोटॉन बीम की आपस में टक्कर के महाप्रयोग का मकसद भी यही है कि ब्रह्मांड की शुरुआत यानि बिगबैंग के वक्त के माहौल को फिर से रचा जाए। ताकि पदार्थ यानि मैटर और डार्क मैटर दोनों के बनने के रहस्य को समझा जा सके। साथ ही सेर्न में परमाणु के भीतर झांककर वहां डार्क मैटर की मौजूदगी के सबूत ढूढने की कोशिश भी की जा रही है।
धरती पर डार्क मैटर की खोज ऐसे वक्त में हुई है, जब वैज्ञानिक हमारी आकाशगंगा के आसपास घट रही एक अनोखी घटना पर निगाहें जमाए हुए हैं। हमारी आकाशगंगा के आसपास डार्क मैटर की बहुत सारी अदृश्य आकाशगंगाएं जमा हो रही हैं और डार्क मैटर का ये बवंडर हमारी आकाशगंगा से टकरा सकता है। इसकी खोज करने वाले यूनिवर्सिटी आप सिडनी के वैज्ञानिकों ने कहा है कि डार्क मैटर के बादल की इस टक्कर से हमें या हमारे सौरमंडल को कोई खतरा नहीं, लेकिन ये घटना वैज्ञानिकों को डार्क मैटर के बारे में जानने का एक मौका जरूर उपलब्ध कराएगी।

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