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मंगलवार, 3 अगस्त 2010

क्या हम किसी ब्लैक होल के भीतर हैं?

हो सकता है कि हम सब एक ब्लैक होल के भीतर मौजूद हैं ! ये बड़ी अदभुत और चौंका देने वाली बात है। लेकिन ये हैरान कर देने वाला बयान, आइंस्टीन की जनरल थ्योरी आफ रिलेटिविटी में संशोधन पर आधारित एक कॉस्मोलॉजिस्ट का अनोखा निष्कर्ष है। आइंस्टीन की जनरल थ्योरी आफ रिलेटिविटी में संशोधन ने ब्लैक होल के कोर यानि केंद्र में जारी हलचल के बारे में हमारी जानकारी बिल्कुल बदलकर रख दी है। इंडियाना यूनिवर्सिटी, ब्लूमिंगटन के कॉस्मोलॉजिस्ट डॉ. निकोडेम पोप्लाव्स्की ने ब्लैक होल के भीतर प्रवेश करने वाले अणुओं की गति का विश्लेषण कर ये दर्शाया है कि हर ब्लैक होल के केंद्र में एक दूसरा ब्रह्मांड मौजूद हो सकता है। डॉ. निकोडेम की इस अनोखी रिसर्च के पेपर्स हाल ही में कई मशहूर फिजिक्स जर्नल्स में प्रकाशित हुए हैं। डॉ. निकोडेम बताते हैं," हमारी आकाशगंगा के केंद्र में मौजूद विशाल बेलैक होल और दूसरी आकाशगंगाएं शायद किसी दूसरे ब्रह्मांड तक ले जाने वाले पुल से ज्यादा कुछ और नहीं। और 'अगर' ये सही है, और ये 'बहुत बड़ा' अगर है, तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हमारा ब्रह्मांड खुद एक ब्लैक होल के भीतर मौजूद है।"
आइंस्टीन की जनरल थ्योरी आफ रिलेटिविटी के मुताबिक ब्लैक होल्स के भीतर 'सिंगुलैरिटीज' यानि ऐसे क्षेत्र होते हैं जहां पदार्थ का घनत्व अनंत तक पहुंच जाता है। अब ये 'सिंगुलैरिटी' क्या अनंत घनत्व का वास्तविक बिंदु है, या फिर जनरल रिलेटिविटी के महज एक गणितीय खामी, ये स्पष्ट नहीं है। ब्लैक होल्स के भीतर आइंस्टीन की थ्योरी आफ जनरल रिलेटिविटी के समीकरण खत्म हो जाते हैं। जबकि डॉ. निकोडेम के संशोधन के बाद सामने आए आइंस्टीन के समीकरण के इस नए संस्करण में सिंगुलैरिटी बिल्कुल दरकिनार कर दिया गया है।
अपनी रिसर्च के लिए डॉ. निकोडेम ने आइंस्टीन-कार्टेन-किब्बले-सियामा (ECKS) थ्योरी आफ ग्रेविटी के नाम से मशहूर जनरल रिलेटिविटी के एक वैरिएंट का इस्तेमाल किया है। आइंस्टीन के समीकरणों के विपरीत ECKS का गुरुत्व सिद्धांत प्राथमिक कणों के स्पिन या एंगुलर मोमेंटम पर आधारित है। गुरुत्व की गणना में पदार्थ के स्पिन यानि घूर्णन को शामिल करने से स्पेस-टाइम की जियोमिट्री के एक खास गुण 'टॉर्सन' की गणना संभव हो जाती है।
जब किसी ब्लैक होल के भीतर पदार्थ का घनत्व विशालतम अनुपात (यानि, 10 टु द पावर 50 किलोग्राम पर क्यूबिक मीटर से भी ज्यादा) तक पहुंच जाता है, ऐसे में 'टॉर्सन' एक ऐसे बल के रूप में सामने आ जाता है जो लगातार बढ़ते गुरुत्वाकर्षण बल को संतुलित करने लगता है। इससे पदार्थ के अनंत घनत्व तक दबने-सिकुड़ने की लगातार जारी प्रक्रिया धीमी पड़ने लगती है, और एक बिंदु के बाद ये प्रक्रिया रुक जाती है। इससे सिंगुलैरिटी की घटना टल जाती है। डॉ. निकोडम बताते हैं कि इसके बजाय ब्लैक होल के भीतर पदार्थ जबरदस्त प्रतिक्रिया करता है और वापस दोबारा फैलने लगता है।
इससे इस संभावना को बल मिलता है कि ब्लैक होल के भीतर एक नया ब्रह्मांड मौजूद हो सकता है। अब हमें इस बात का पता कैसे चले, कि हम किसी ब्लैक होल के भीतर हैं या नहीं? डॉ. निकोडम इसका जवाब देते हुए बताते हैं," एक घूमता हुआ ब्लैक होल अपने भीतर के स्पेस-टाइम पर असर डालते हुए उसे कुछ न कुछ स्पिन जरूर प्रदान करता होगा और इस स्पिन से हमारे ब्रह्मांड को कोई न कोई एक तय दिशा भी जरूर मिलती होगी। ब्रह्मांड को मिलने वाली ऐसी तय दिशा लॉरेंट्ज सिमिट्री के नाम से मशहूर स्पेस-टाइम के गुण के उल्लंघन के नतीजे के रूप में सामने आती होगी। अगर हम वाकई एक ब्लैक होल के भीतर मौजूद हैं, तो इसने हमारे ब्रह्मांड को जरूर कोई विशेष तय दिशा दे रखी होगी। दुर्भाग्य से हम इस बात का अध्ययन नहीं कर सकते कि किसी दूसरे ब्लैक होल के भीतर ब्रह्मांड मौजूद है या नहीं। जैसे-जैसे आप ब्लैक होल के करीब जाएंगे, समय की रफ्तार अपने आप धीमी, और धीमी होती चली जाएगी। इसलिए ब्लैक होल के बाहर मौजूद किसी पर्यवेक्षक के लिए ब्लैक होल के भीतर कोई नया ब्रह्मांड केवल तभी जन्म लेगा जब समय की अनंत मात्रा व्यतीत हो चुकी होगी।
कॉस्मोलॉजिस्ट डॉ. निकोडेम पोप्लाव्स्की की ये रिसर्च बेहद महत्वपूर्ण है, इसलिए इसे प्रकाशित करने से मैं खुद को रोक नहीं पाया। लेकिन इस हाई फिजिक्स रिसर्च पेपर को अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करने से पहले मैंने सोंच-विचार में लंबा वक्त लगाया, कि अपने पाठकों को मैं इस रिसर्च की जानकारी सरल शब्दों में कैसे दूं। जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो तय किया कि सबसे पहले हाई फिजिक्स के शब्दों में ही इस रिसर्च को पेश किया जाए और अंत में अपनी विशेष टिप्पणी के जरिए मैं पाठकों के दिल में उठ रहे सवालों के जवाब के साथ उन तकनीकी बातों को भी स्पष्ट कर दूं जिनका जिक्र इस रिसर्च पेपर में किया गया है।
सबसे पहले सिंगुलैरिटी -
आइंस्टीन और भौतिकी के नियमों के मुताबिक अगर मैं इस पूरी धरती को चारों ओर से कुछ इस तरह दबाना शुरू कर दूं कि ये धरती एक टेनिस बॉल की शक्ल में आ जाए। तो दो चीजें सामने आएंगी,पहली तो ये कि धरती के पदार्थ का घनत्व सामान्य से हजारों-लाखों गुना ज्यादा बढ़ जाएगा और दूसरा इसी अनुपात में धरती का गुरुत्वाकर्षण बल भी बढ़ता चला जाएगा। अब अगर मैं धरती को और ज्यादा दबाना जारी रखूं कि वो एक अणु की शक्ल में आ जाए तो ऐसी स्थिति में गुरुत्वाकर्षण बल इस कदर बढ़ जाएगा कि उसके जबरदस्त असर से एक अणु की शक्ल में सिमटा धरती का पूरका पदार्थ ही कोलैप्स कर जाएगा, जिसकी परिणति एक भीषणतम धमाके के रूप में होगी। सृष्टि की शुरुआत भी ऐसे ही महाविस्फोट से हुई थी, जिसे बिगबैंग के नाम से जाना जाता है। यानि गुरुत्वाकर्षण बल की उस उच्चतम स्थिति को ही सिंगुलैरिटी कहते हैं, जब बिगबैंग की घटना सामने आती है।
डॉ. निकोडम की रिसर्च ब्लैक होल के बारे में सबसे ज्यादा प्रचलित दो अहम बातों को खारिज करती है...पहला, कि ब्लैक होल के भीतर गुरुत्वाकर्षण बल इतना जबरदस्त और विनाशकारी होता है कि एक बार उसमें फंसने के बाद कोई भी चीज उससे बाहर नहीं निकल सकती। डॉ. निकोडम के सिद्धांत के मुताबिक ब्लैक होल के भीतर गुरुत्वाकर्षण बल एक बिंदु तक ही बढ़ता जाता है, इसके बाद 'टॉर्सन' सामने आ जाता है, जो इस विशाल गुरुत्वाकर्षण बल को संतुलित करने लगता है।
दूसरा ये कि ब्लैक होल के भीतर गुरुत्वाकर्षण इतने विनाशकारी स्तर पर होता है कि वहां सिगुलैरिटी की घटनाएं जारी रहती हैं। यानि अगर कोई पदार्थ या ग्रह किसी ब्लैक होल में फंसकर उसमें गिर जाता है तो वो बिगबैंग जैसे महाविस्फोट के साथ खत्म हो जाएगा। डॉय निकोडम की रिसर्च के मुताबिक ब्लैक होल के भीतर बहुत मुमकिन है कि सिंगुलैरिटी यानि ऊर्जा के महाविस्फोट जैसी घटना होती ही न हो।

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