हमारा पड़ोसी ग्रह शुक्र, आकार और भौगोलिक रूप से पृथ्वी जैसा ही पथरीला ग्रह, लेकिन 3 करोड़ 80 लाख किलोमीटर के फासले ( शुक्र की पृथ्वी से न्यूनतम दूरी) ने एक ग्रह को जीवन का वरदान दे दिया, जबकि दूसरे को सूखा-बेजान और भट्ठी से भी गर्म बना डाला। साइंस फिक्शन में कई ऐसी कहानियां हैं जिनमें वीनस यानि शुक्र ग्रह पर हवा में तैरती मानव बस्तियों की कल्पना की गई है। ऐसा इसलिए, क्योंकि शुक्र की सतह का तापमान 500 डिग्री सेंटीग्रेड है और सतह पर वायुदाब पृथ्वी से करीब 95 फीसदी ज्यादा है। यानि अगर आप 500 डिग्री के भीषण तापमान को झेल सकने वाले खास सूट को पहनकर शुक्र की धरती पर खड़े हों तो भी आप सुरक्षित नहीं होंगे, क्योंकि शुक्र का भयानक वायुमंडलीय दबाव ही आपकी जान ले लेने के लिए काफी होगा। लेकिन ऐसा शुक्र की सतह पर है, सतह से ऊपर नहीं। शुक्र की सतह से 50 किलोमीटर ऊपर कार्बन डाई ऑक्साइड की सघन हवा और सल्फ्यूरिक एसिड के बादलों के बीच तापमान और वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी की सतह जैसा ही है। इसलिए कल्पना की जा रही है कि शुक्र के बादलों में जमीन की भट्ठी से 50 किलोमीटर ऊपर हवा में तैरती मानव बस्तियां बसाई जा सकती हैं।
लेकिन शुक्र ग्रह के बादलों पर बसने के सपने देखने से पहले वहां जाना और उस अनोखी दुनिया को करीब से जानना जरूरी है। बेहद कम लोगों को ये बात मालूम है कि चंद्रमा पर गए अपोलो मिशन की कामयाबी से उत्साहित नासा के वैज्ञानिकों ने शुक्र ग्रह पर मानव मिशन भेजने की तैयारी कर ली थी। जो ऐन वक्त पर किसी गोपनीय वजह से रद्द करनी पड़ी थी।
1960 के बीच के महीनों में जब कि चंद्रमा पर उतरने की तैयारी चल ही रही थी, नासा ने एक अजीब सपना देखा। नासा वैज्ञानिकों ने योजना बनाई कि अपोलो टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर एक मानव मिशन शुक्र ग्रह के सफर पर भेजा जाए। शुक्र पर पहली बार भेजे जाने वाले इस तीन सदस्यीय मानव मिशन की सारी रूपरेखा तैयार कर ली गई और तीन स्टेज वाला एक खास स्पेसक्राफ्ट भी तैयार कर लिया गया। नासा की योजना तीन सदस्यीय मानव मिशन को शुक्र ग्रह पर लैंड कराने की नहीं थी, बल्कि नासा वैज्ञानिक शुरुआत में मानव मिशन को बस शुक्र ग्रह के करीब से गुजारना चाहते थे। सारी तैयारी पूरी हो गई और तय हो गया कि शुक्र को जाने वाला पहला मानव मिशन सैटर्न फाइव रॉकेट के जरिए 31 अक्टूबर 1973 को लांच किया जाएगा, जो 3 मार्च 1974 को शुक्र के करीब से, यानि शुक्र की जमीन से लगभग 5000 किलोमीटर की ऊंचाई से गुजरेगा और फिर मिशन पूरा करके 1 दिसंबर 1974 को धरती पर वापस आ जाएगा। शुक्र तक जाने वाले करीब एक साल की अवधि वाले इस मानव मिशन की सारी तैयारियां बेहद गोपनीय ढंग से पूरी की गईं। लेकिन फिर न जाने ऐसा क्या घटा कि 31 अक्टूबर 1973 की मिशन वीनस की लांचिंग कभी नहीं हो सकी।
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