मेरे एक 'स्पेस शो' के दौरान एक बच्चे ने मुझसे पूछा कि दूसरे ग्रहों के लिए अंतरिक्ष अभियानों की शुरुआत कब हुई और वो ग्रह कौन सा था, जिसके लिए पहला स्पेस मिशन भेजा गया? मैंने उस छात्र को ये तो बता दिया कि हमने पहला प्लेनेटरी स्पेस मिशन वीनस यानि शुक्र ग्रह को भेजा था, लेकिन मिशन की डेट्स को लेकर मैं थोड़ा कन्फ्यूज था, इसलिए मैंने इस सवाल का पूरा जवाब देने के लिए उस छात्र की बात इसरो के एक प्लेनेटरी साइंटिस्ट से कराई और बच्चे को उसका जवाब मिल गया। लेकिन अब मेरे मन में वीनस यानि शुक्र ग्रह को लेकर कई सारे सवाल थे, जिनके जवाब मैंने तलाशने की कोशिश की है।
12 फरवरी 1961 वो तारीख थी जब, हमने पृथ्वी के अलावा किसी और ग्रह के लिए पहला स्पेस मिशन भेजा। ये मिशन था वेरेना-1 प्रोब जो धरती को पीछे छोड़ते हुए बढ़ा जा रहा था शुक्र ग्रह की ओर, और इस मिशन की कमांड और कट्रोल थी पूर्व सोवियत संघ के वैज्ञानिकों के हाथों। अकसर हमें सूरज डूबने के बाद पश्चिमी आसमान या सुबह सूरज निकलने से ठीक पहले पूरब दिशा में सबसे चमकीला नजर आने वाला ग्रह शुक्र, जो भोर या साझ के तारे के नाम से भी मशहूर है। पहले प्लेनेटरी मिशन के लिए इसी को चुना गया और इसकी बड़ी वजह ये थी कि शुक्र ग्रह को भौगोलिक रूप से पृथ्वी का जुड़वा कहा जाता है। शुक्र को भेजा गया पहला मिशन सोवियत प्रोब वेरेना-1 डायरेक्ट इम्पैक्ट ट्राजेक्टरी यानि सीधे-सीधे शुक्र पर लैड करने के लिए भेजा गया था, लेकिन लांचिग के सात दिन बाद जब वेरेना-1 धरती से करीब बीस लाख किलोमीटर की दूरी पर था, इसका संपर्क कंट्रोल रूम से टूट गया और ये अंतरिक्ष में कहीं खो गया। सोवियत स्पेस एजेंसी और नासा दोनों ही अंतरिक्ष अभियानों में बराबरी की हो़ड़ में जुटे थे, नासा ने भी मैरिनर मिशन के साथ अपना शुक्र अभियान छेड़ दिया। लेकिन सोवियत वेरेना-1 की तरह शुक्र अभियान पर निकला नासा का मिशन मैरिनर-1 भी नाकामयाब रहा। लेकिन नासा का मैरिनर-2 मिशन सफल रहा और 14 दिसंबर 1962 को मैरिनर-2 शुक्र ग्रह की कक्षा में प्रवेश करने में सफल रहा। इसी के साथ मैरिनर-2 दुनिया का पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन बन गया। मैरिनर-2 ने बताया कि शुक्र ग्रह के सल्फरडाई ऑक्साइड के बादल बेहद गर्म हैं और शुक्र की सतह का तापमान करीब 425 डिग्री सेंटीग्रेड तक हो सकता है।
सोवियत संघ के इंटरप्लेनेटरी मिशन वेरेना के तहत शुक्र को भेजा गया प्रोब वेरेना-3,1 मार्च 1966 को शुक्र की सतह पर लैंड करने में कामयाब रहा। वेरेना-3 हमारी बनाई वो पहली चीज थी जो किसी दूसरे ग्रह के वायुमंडल में प्रवेश करने और उसकी सतह पर लैंड करने में कामयाब रही थी। हालांकि शुक्र पर लैंड करते ही वेरेना-3 का संचार सिस्टम खराब हो गया और एक इतिहास बनाने के बावजूद वेरेना-3 हमें शुक्र की दुनिया के बारे में कोई जानकारी नहीं दे सका।
18 अक्टूबर 1967 को सोवियत प्रोब वेरेना-4 ने शुक्र के वायुमंडल में सफलतापूर्वक प्रवेश किया और शुक्र की धरती पर लैंड करने के दौरान हवा में ही इसने तमाम प्रयोग कर डाले और शुक्र के वायुमंडल के बारे में पहली बार हमें जानकारी दी। वेरेना-4 ने बताया कि शुक्र के वायुमंडल में 90 से 95 फीसदी तक कार्बन डाई ऑक्साइड मौजूद है और हमारे लिए जहरीली और अजनबी ये हवा धरती के मुकाबले कई गुना ज्यादा सघन है। अपने पैराशूट की मदद से वेरेना-4 शुक्र की सतह पर लैंड कर गया और शुक्र की धरती से हमें 93 मिनट तक नई-नई जानकारियां भेजता रहा। वेरेना-4 ने बताया कि 500 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान वाली शुक्र की सतह किसी भट्ठी से भी ज्यादा दहक रही है। लैंड करने के 93 मिनट बाद वेरेना-4 से संपर्क टूट गया और सूरज की प्रचंड गर्मी में ये प्रोब पूरी तरह पिघल गया। वेरेना-4 के पिघल जाने के बाद अगले ही दिन यानि 19 अक्टूबर 1967 को नासा का मिशन मैरिनर-5 शुक्र ग्रह के करीब से गुजरा। नासा ने मंगल अभियान पर गए अपने पहले स्पेसक्राफ्ट मैरिनर-4 के बैकअप के तौर पर मैरिनर-5 को बनाया था। लेकिन मैरिनर-4 की शानदार कामयाबि के बाद नासा ने इसके बैकअप मैरिनर-5 को शुक्र के सफर पर भेज दिया। मैरिनर-5 ने वीनस फ्लाईबाई से पता लगाया कि शुक्र ग्रह का वायुमंडल किन-किन गैसों से बना है, उसका दबाव कितना है और शुक्र की हवा का घनत्व कितना है।
सोवियत वेरेना मिशन और नासा का मैरिनर अभियान शुक्र ग्रह की टुकड़ों-टुकड़ों में तस्वीर पेश कर रहे थे। इन टुकड़ों को मिलाकर शुक्र की असली तस्वीर देखने-समझने के लिए वैज्ञानिक मजबूर हो गए और तब अंतरिक्ष के क्षेत्र का पहला अंतरराष्ट्रीय सहयोग सामने आया। सोवियत और अमेरिकी वैज्ञानिक एकसाथ मिलकर बैठे और वेरेना और मैरिनर मिशन की जानकारियां साझा की गईं।
मिशन वीनस के अपने शुरुआती मिशन्स से सबक लेते हुए सोवियत वैज्ञानिकों ने जनवरी 1969 को पांच दिन के अंतर से दो प्रोब वेरेना-5 और वेरेना-6 शुक्र ग्रह को रवाना कर दिए और ये दोनों एक दिन के अंतर से 16 मई और 17 मई को उसी साल शुक्र पहुंच गए। ये दोनों प्रोब शुक्र के बेहद घने वायुमंडल में दाखिल हुए और रास्ते में कई वैज्ञानिक प्रयोग करते और उनके डेटा धरती को भेजते हुए दोनों शुक्र की जमीन की ओर बढ़ चले लेकिन वायुमंडलीय दबाव इतना जबरदस्त था कि वेरेना-5 और 6 शुक्र की जमीन से करीब 20 किलोमीटर की ऊंचाई पर ही नष्ट हो गए।
मिशन वीनस के अपने शुरुआती मिशन्स से सबक लेते हुए सोवियत वैज्ञानिकों ने जनवरी 1969 को पांच दिन के अंतर से दो प्रोब वेरेना-5 और वेरेना-6 शुक्र ग्रह को रवाना कर दिए और ये दोनों एक दिन के अंतर से 16 मई और 17 मई को उसी साल शुक्र पहुंच गए। ये दोनों प्रोब शुक्र के बेहद घने वायुमंडल में दाखिल हुए और रास्ते में कई वैज्ञानिक प्रयोग करते और उनके डेटा धरती को भेजते हुए दोनों शुक्र की जमीन की ओर बढ़ चले लेकिन वायुमंडलीय दबाव इतना जबरदस्त था कि वेरेना-5 और 6 शुक्र की जमीन से करीब 20 किलोमीटर की ऊंचाई पर ही नष्ट हो गए।
सोवियत वैज्ञानिकों ने अगले चार साल के दौरान वेरेना कार्यक्रम के तहत शुक्र पर चार प्रोब्स और भेजे। वेरेना-11 और 12 ने शुक्र के गर्म और तूफानी बादलों में कौंधने वाली बिजली का पता लगाया। 1 मार्च 1982 को वेरेना-13 और 5 मार्च 1982 को वेरेना-14 शुक्र की धरती पर लैंड करने में कामयाब रहे। इन दोनों प्रोब्स ने रंगीन तस्वीरें भेजकर शुक्र की दुनिया की पहली झलक हमें दिखाई। यहां लगी शुक्र की धरती की ये तस्वीर भी वेरेना-13 की ली हुई है। वेरेना-13 ने अपने उपकरण एक्स-रे फ्लोरेसेंस स्पेक्ट्रोमीटर की मदद से शुक्र की मिट्टी के नमूनों की जांच की। वेरेना-14 ने अपने ही कैमरे की पहले अलग हो चुकी कैप पर लैंडिंग की, इस वजह से वो शुक्र की मिट्टी को छू नहीं सका। शुक्र की धरातल की जो भी तस्वीर हम देखते हैं वो वेरेना-13 और 14 प्रोब्स की ही ली हुई है। कुछ मिनटों तक काम करते रहने के बाद शुक्र पर दिन के 500 डिग्री सेंटीग्रेड के भीषण तापमान में ये दोनों प्रोब पिघलने लगे और कुछ ही पलों में इनका संपर्क धरती से टूट गया।
रोचक जानकारी है।आभार।
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