रंग, जाति और धर्म की घुटनभरी दीवारों के उस पार स्वतंत्र, बराबरी के अधिकार वाले लोकतांत्रिक माहौल में ही विज्ञान और कला का विकास संभव है। मानव मुक्ति का इतिहास जोर-जुल्म और जातीय नफरत के स्याह पन्नों से रंगा है। आदमी का आदमी पर अत्याचार, इससे घृणित कुछ भी नहीं। हर दिन उगते सूरज की किरणें उन नायकों के अमर आह्वानों की गूंज चारों दिशाओं में फैला देती है, जिन्होंने युगों की गुलामी और अमानवीय अत्याचारों के आगे हार मान चुकी मानवता को एक नए संघर्ष के लिए उठ खड़े होने की ऊर्जा दी और मुक्ति का रास्ता दिखाया। मानवता के ऐसे ही नायकों में से एक थे मार्टिन लूथर किंग जूनियर। किंग की प्रिय उक्ति थी- 'हम वह नहीं हैं, जो हमें होना चाहिए और हम वह नहीं हैं, जो होने वाले हैं, लेकिन खुदा का शुक्र है कि हम वह भी नहीं हैं, जो हम थे'
साल 1963 गोरे और काले में बंटी नई दुनिया अमेरिका में आजादी और ऐशो-आराम के तमाम साधन केवल गोरों के लिए ही रिजर्व थे घोर नफरत और दमन झेल रहे अश्वेतों की परवाह किसी को भी नहीं थी। ऐसे में एक सार्वजनिक बस में सफर कर रही एक महिला ने अपनी सीट से उठने से इनकार कर दिया। वो बस की आगे वाली सीट को छोड़कर पीछे वाली सीट पर केवल इसलिए बैठने को तैयार नहीं थी, क्योंकि वो अश्वेत या नीग्रो थी। इस एक इनकार को महान नेता मार्टिन लूथर किंग ने देखते-ही-देखते हजारों-लाखों अश्वेतों के इनकार में तब्दील कर दिया। और 28 अप्रैल 1963 को अमेरिका के लिंकन स्क्वायर पर 250000 अश्वेतों के साथ मुट्ठी तानकर किंग ने पूरी जोरदारी के साथ कहा -
'आई हैव ए ड्रीम'
किंग का ये व्याख्यान मानव सभ्यता के इतिहास में सबसे प्रेरणादायी और जादुई संबोधनों में से एक है। अब से 50 साल पहले दोपहर करीब 2 बजे जब किंग लिंकन स्मारक की सीढ़ियों पर जनता को संबोधित करने के लिए पहुंचे तो व्हाइट हाउस के ओवल ऑफ़िस में राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी भी टेलीविज़न के सामने बैठे उनके भाषण का इंतज़ार कर रहे थे। किंग जब भाषण देने के लिए आए तो उन्होंने वहां मौजूद भीड़ को देखा। चारों तरफ़ बस लोग ही लोग थे।
किंग ने पहले से तैयार किया गया भाषण देना शुरू किया लेकिन उनके भाषण के प्रति जनता में कोई ख़ास उत्साह नहीं दिख रहा था। तभी वहां मौजूद महालिया जैक्सन ने किंग से कहा, "मार्टिन उन्हें सपने के बारे में बताओ..."
महालिया चाहती थीं कि किंग अपने चिर -परिचित खुले अंदाज़ में भाषण दें।
किंग ने अपने भाषण के तैयार किए नोट्स किनारे रख दिए और जोश में भरकर बोले, 'आई हैव ए ड्रीम'
भाषण के बाद किंग और उनके साथी लिंकन स्मारक से राष्ट्रपति केनेडी से मिलने सीधे व्हाइट हाउस गए। व्हाइट हाउस में किंग और उनके साथियों का स्वागत करते हुए केनेडी ने कहा, 'आई हैव ए ड्रीम'
इन महान प्रेरणादायी एतिहासिक भाषण की गोल्डन जुबली के अवसर पर ‘वॉयेजर’ अपने पाठकों के लिए इस एतिहासिक भाषण की एक-एक लाइन का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत कर इस महान नेता को श्रद्धांजलि अर्पित करता है –
“मैं खुश हूं कि मैं आज ऐसे मौके पर आपके साथ शामिल हूं जो इस देश के इतिहास में स्वतंत्रता के लिए किए गए सबसे बड़े प्रदर्शन के रूप में जाना जाएगा।
100 साल पहले , एक महान अमेरिकी , जिनकी प्रतीकात्मक छाया में हम सभी खड़े हैं , ने एक मुक्ति उद्घोषणा (Emancipation Proclamation) पर हस्ताक्षर किए थे। इस महत्त्वपूर्ण निर्णय ने अन्याय सह रहे लाखों गुलाम नीग्रोज़ के मन में उम्मीद की एक किरण जगा दी। ये ख़ुशी उनके लिए लम्बे समय तक अन्धकार कि कैद में रहने के बाद दिन के उजाले में जाने के समान था ।
परन्तु आज 100 वर्षों बाद भी , नीग्रोज़ स्वतंत्र नहीं हैं।100 साल बाद भी , एक नीग्रो की ज़िन्दगी अलगाव की हथकड़ी और भेद-भाव की जंजीरों से जकड़ी हुई हैं। 100 साल बाद भी नीग्रो समृद्धि के विशाल महासागर के बीच गरीबी के एक द्वीप पर रहता है। 100 साल बाद भी नीग्रो, अमेरिकी समाज के कोनों में सड़ रहा है और अपने देश में ही खुद को निर्वासित पाता है। इसीलिए आज हम सभी यहां इस शर्मनाक इस्थिति को दर्शाने के लिए इकठ्ठा हैं।
एक मायने में हम अपने देश की राजधानी में एक चेक कैश करने आए हैं। जब हमारे गणतंत्र के आर्किटेक्ट संविधान और स्वतंत्रता की घोषणा बड़े ही भव्य शब्दों में लिख रहे थे , तब दरअसल वे एक वचनपत्र पर हस्ताक्षर कर रहे थे जिसका हर एक अमेरिकी वारिस होने वाला था।ये पत्र एक वचन था की सभी व्यक्ति , हां सभी व्यक्ति चाहे काले हों या गोरे, सभी को जीवन, स्वाधीनता और अपनी प्रसन्नता के लिए अग्रसर रहने का अधिकार होगा।
आज ये स्पष्ट है कि अमेरिका अपने अश्वेत नागरिकों से ये वचन निभाने में चूक चुका है।इस पवित्र दायित्व का सम्मान करने के बजाय, अमेरिका ने नीग्रो लोगों को एक अनुपयुक्त चेक दिया है, एक ऐसा चेक जिसपर “अपर्याप्त कोष” लिखकर वापस कर दिया गया है। लेकिन हम ये मानने से करने इंकार करते हैं कि न्याय का बैंक दीवालिया हो चुका है। हम ये मानने से इनकार करते हैं कि इस देश में अवसर की महान तिजोरी में ‘अपर्याप्त कोष’ है। इसलिए हम इस चेक को कैश कराने आए हैं-एक ऐसा चेक जो मांगे जाने पर हमें धनोपार्जन कि आजादी और न्याय कि सुरक्षा देगा।
हम इस पवित्र स्थान पर इसलिए भी आए हैं कि हम अमेरिका को याद दिला सकें कि इसे तत्काल करने की सख्त आवश्यकता है।अब और शांत रहने या फिर खुद को दिलासा देने का वक़्त नहीं है।अब लोकतंत्र के दिए वचन को निभाने का वक़्त है। अब वक़्त है अंधेरी और निर्जन घटी से निकलकर नस्लीय न्याय (racial justice) के प्रकाशित मार्ग पर चलने का। अब वक़्त है अपने देश को नस्लीय अन्याय के दलदल से निकल कर भाई-चारे की ठोस चट्टान खड़ा करने का। अब वक़्त है नस्लीय न्याय को प्रभु की सभी संतानों के लिए वास्तविक बनाने का।
इस बात की तत्काल अनदेखी करना राष्ट्र के लिए घातक सिद्ध होगा। नीग्रोज के वैध असंतोष की गर्मी तब तक ख़तम नहीं होगी जब तक स्वतंत्रता और समानता की बहार नहीं आ जाती। 1963 एक अंत नहीं बल्कि एक शुरुआत है। जो ये आशा रखते हैं कि नीग्रो अपना क्रोध दिखाने के बाद फिर शांत हो जायेंगे देश फिर पुराने ढर्रे पर चलने लगेगा मनो कुछ हुआ ही नहीं, उन्हें एक असभ्य जाग्रति का सामना करना पड़ेगा। अमेरिका में तब तक सुख-शांति नहीं होगी जब तक नीग्रोज़ को नागरिकता का अधिकार नहीं मिल जाता है। विद्रोह का बवंडर तब तक हमारे देश की नीव हिलाता रहेगा जब तक न्याय की सुबह नहीं हो जाती।
लेकिन मैं अपने लोगों, जो न्याय के महल की देहलीज पर खड़े हैं, से ज़रूर कुछ कहना चाहूंगा। अपना उचित स्थान पाने कि प्रक्रिया में हमें कोई गलत काम करने का दोषी नहीं बनना है। हमें अपनी आजादी की प्यास घृणा और कड़वाहट का प्याला पी कर नहीं बुझानी है।
हमें हमेशा अपना संघर्ष अनुशासन और सम्मान के दायरे में रह कर करना होगा। हमें कभी भी अपने रचनात्मक विरोध को शारीरिक हिंसा में नहीं बदलना है। हमें बार-बार खुद को उस स्तर तक ले जाना है , जहां हम शारीरिक बल का सामना आत्म बल से कर सकें। आज नीग्रो समुदाय , एक अजीब आतंकवाद से घिरा हुआ है, हमें ऐसा कुछ नहीं करना है कि सभी श्वेत लोग हमपर अविश्वास न करने लगें , क्योंकि हमारे कई श्वेत बंधू इस बात को जान चुके हैं की उनका भाग्य हमारे भाग्य से जुड़ा हुआ है , और ऐसा आज उनकी यहां पर उपस्थिति से प्रमाणित होता है। वो इस बात को जान चुके हैं कि उनकी स्वतंत्रता हमारी स्वतंत्रता से जुडी हुई है । हम अकेले नहीं चल सकते।
हम जैसे जैसे चलें , इस बात का प्रण करें कि हम हमेशा आगे बढ़ते रहेंगे।हम कभी वापस नहीं मुड़ सकते।कुछ ऐसे लोग भी हैं जो हम नागरिक अधिकारों के भक्तों से पूछ रहे हैं कि, “आखिर हम कब संतुष्ट होंगे?”
हम तब तक संतुष्ट नहीं होंगे जब तक एक नीग्रो, पुलीस की अनकही भयावहता और बर्बरता का शिकार होता रहेगा।हम तब तक नहीं संतुष्ट होंगे जब तक यात्रा से थके हुए हमारे शारीर , राजमार्गों के ढाबों और शहर के होटलों में विश्राम नहीं कर सकते। हम तब तक नहीं संतुष्ट होंगे जब तक एक नीग्रो छोटी सी बस्ती से निकल कर एक बड़ी बस्ती में नहीं चला जाता। हम तब तक संतुष्ट नहीं होंगे जब तक हमारे बच्चों से उनकी पहचान छीनी जाती रहेगी और उनकी गरिमा को ,” केवल गोरों के लिए” संकेत लगा कर लूटा जाता रहेगा।हम तब तक संतुष्ट नहीं होंगे जब तक मिस्सीसिप्पी में रहने वाला नीग्रो मतदान नहीं कर सकता और जब तक न्यू योर्क में रहने वाला नीग्रो ये नहीं यकीन करने लगता कि अब उसके पास चुनाव करने के लिए कुछ है ही नहीं। नहीं, नहीं हम संतुष्ट नहीं हैं और हम तब तक संतुष्ट नहीं होंगे जब तक न्याय जल की तरह और धर्म एक तेज धरा की तरह प्रवाहित नहीं होने लगते।
मैं इस बात से अनभिज्ञ नहीं हूं कि आप में से कुछ लोग बहुत सारे कष्ट सह कर यहां आए हैं। आपमें से कुछ तो अभी-अभी जेल से निकल कर आए हैं। कुछ लोग ऐसी जगहों से आए हैं जहां स्वतंत्रता की खोज में उन्हें अत्याचार के थपरड़ों और पुलिस की बर्बरता से पस्त होना पड़ा है। आपको सही ढंग से कष्ट सहने का अनुभव है । इस विश्वास के साथ कि आपकी पीड़ा का फल अवश्य मिलेगा आप अपना काम जारी रखिये।
मिसीसिपी वापस जाइए , अलबामा वापस जाइए, साउथ कैरोलिना वापस जाइए , जोर्जिया वापस जाइए, लूजीआना वापस जाइए, शहरों की झोपड़ियों और बस्तियों में वापस जाइए, ये जानते हुए कि किसी न किसी तरह ये स्थिति बदल सकती है और बदलेगी आप अपने स्थानों पर वापस जाइए। अब हमें निराशा की घाटी में वापस नहीं जाना है।
मित्रों , आज आपसे मैं ये कहता हूं , भले ही हम आज-कल कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं , पर फिर भी मेरा एक सपना है (I have a dream), एक ऐसा सपना जिसकी जडें अमेरिकी सपने में निहित है ।
मेरा एक सपना है कि एक दिन ये देश ऊपर उठेगा और सही मायने में अपने सिद्धांतों को जी पायेगा।” हम इस सत्य को प्रत्यक्ष मानते हैं कि : सभी इंसान बराबर पैदा हुए हैं”
मेरा एक सपना है कि एक दिन जार्जिया के लाल पहाड़ों पर पूर्व गुलामो के पुत्र और पूर्व गुलाम मालिकों के पुत्र भाईचारे की मेज पर एक साथ बैठ सकेंगे।
मेरा एक सपना है कि एक दिन मिसीसिपी राज्य भी , जहां अन्याय और अत्याचार की तपिश है , एक आजादी और न्याय के नखलिस्तान में बदल जाएगा।
मेरा एक सपना है कि एक दिन मेरे चारों छोटे बच्चे एक ऐसे देश में रहेंगे जहां उनका मूल्यांकन उनकी चमड़ी के रंग से नहीं बल्कि उनके चरित्र की ताकत से किया जाएगा।
आज मेरा एक सपना है।
मेरा एक सपना है कि एक दिन अलबामा में , जहां भ्रष्ट जातिवाद है, जहां राज्यपाल के मुख से बस बीच-बचाव और संघीय कानून को न मानने के शब्द निकलते हैं, एक दिन उसी अलबामा में , छोटे-छोटे अश्वेत लड़के और लड़कियां छोटे-छोटे श्वेत लड़के और लड़कियों का हांथ भाई-बहिन के सामान थाम सकेंगे।
मेरा एक सपना है।
मेरा एक सपना है कि एक दिन हर एक घाटी उंची हो जाएगी , हर एक पहाड़ नीचे हो जाएगा, बेढंगे स्थान सपाट हो जायेंगे, और टेढ़े-मेधे रास्ते सीधे हो जायेंगे , और तब इश्वर की महिमा दिखाई देगी और सभी मनुष्य उसे एक साथ देखेंगे।
यही हमारी आशा है, इसी विश्वास के साथ मैं दक्षिण वापस जाऊंगा। इसी विश्वास से हम निराशा के पर्वत को आशा के पत्थर से काट पाएंगे। इसी विश्वास से हम कलह के कोलाहल को भाई-चारे के मधुर स्वर में बदल पाएंगे।इसी विश्वास से हम एक साथ काम कर पाएंगे,पूजा कर पाएंगे,संघर्ष कर पाएंगे,साथ जेल जा पाएंगे , और ये जानते हुए कि हम एक दिन मुक्त हो जायंगे , हम स्वतंत्रता के लिए साथ- साथ खड़े हो पायंगे।
ये एक ऐसा दिन होगा जब प्रभु की सभी संताने एक नए अर्थ के साथ गा सकेंगी, “My country
’tis of thee, sweet land of liberty, of thee I sing। Land where my fathers died, land of the pilgrim’s pride, from every mountainside, let freedom ring।”
और यदि अमेरिका को एक महान देश बनना है इसे सत्य होना ही होगा।
इसलिए न्यू हैम्पशायर के विलक्षण टीलों से आजादी की गूंज होने दीजिए।
न्यू योर्क के विशाल पर्वतों से आजादी की गूंज होने दीजिए,
पेंसिलवानिया के अल्घेनीज़ पहाड़ों से आजादी की गूंज होने दीजिए,
बर्फ से ढकी कोलराडो की चट्टानों से आजादी की गूंज होने दीजिए,
कैलिफोर्निया की घूमओदार ढलानों से आजादी की गूंज होने दीजिए,
यही नहीं, जार्जिया के इस्टोन माउंटेन से आजादी की गूंज होने दीजिए,
टेनेसी के लुकआउट माउंटेन से आजादी की गूंज होने दीजिए,
मिसीसिपी के टीलों और पहाड़ियों से आजादी की गूंज होने दीजिए।
हर एक पर्वत से से आजादी की गूंज होने दीजिए।
और जब ऐसा होगा , जब हम आजादी की गूंज होने देंगे , जब हर एक गांव और कसबे से, हर एक राज्य और शहर से आजादी की गूंज होने लगेगी तब हम उस दिन को और जल्द ला सकेंगे जब इश्वर की सभी संताने , श्वेत या अश्वेत, यहूदी या किसी अन्य जाती की , प्रोटेस्टंट या कैथोलिक, सभी हाथ में हाथ डालकर नीग्रोज का आध्यात्मिक गाना गा सकेंगे, ‘Free at last! free at last! thank God Almighty, we are free at last!’