मंगल ग्रह पर एक नए अभियान भेजने की योजना बनाई जा रही है जो मंगल की धूल में मौजूद जीवन के डीएनए पहचानेगा। मंगल की धरती के नीचे छिपा पानी की बर्फ का विशाल भंडार और मंगल के वातावरण में मिला मीथेन के बादल की खोज से इस ग्रह पर जीवन की मौजूदगी के संकेत और मजबूत हुए हैं, क्योंकि बैक्टीरिया जैसे कई सूक्ष्मजीव मीथेन पैदा करते हैं।
हॉवर्ड मेडिकल स्कूल के बायोलॉजिस्ट गैरी रवकुन और उनके सहयोगी मंगल पर डीएनए ढूंढकर उसकी सीक्वेंसिंग करने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। इसके लिए उनका प्लान अगले 10 सालों के दौरान मंगल पर एक डीएनए एंप्लीफायर और सीक्वेंसर भेजने का है। उन्हें भरोसा है कि मंगल पर मिलने वाले जीवन के निशान पृथ्वी के जैव विकास के दौरान लाल ग्रह से उसके संबंध को दिखाएंगे। इस वजह से इनके जिनेटिक कोड भी समान होंगे। इस खोज के लिए एक प्रोजेक्ट चल रहा है जिसका नाम है सर्च फॉर एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल जीनोम्स या एसईटीजी। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा भी इसे सपोर्ट कर रही है। इसके लिए मंगल पर भेजे जाने वाली लैब के प्रोटोटाइप या नमूने पर काम चल रहा है। फिलहाल इसे 2018 में लॉन्च करने का विचार है। यह रोबॉटिक लैब मंगल की सतह पर जाकर मिट्टी या बर्फ का सैंपल खोद कर उसका एक डाई के साथ मिक्सचर बनाएगी। इस डाई की खासियत यह है कि यह डीएनए के संपर्क में आते ही चमकने लगती है। जैसी ही मिक्सचर का कोई हिस्सा चमकेगा उसे डीएनए एंप्लीफिकेशन के लिए भेजा जाएगा। सुनने में यह आसान लग रहा है लेकिन ऐसा करना काफी मुश्किल है। फिलहाल वैज्ञानिक इस कोशिश में लगे हैं कि इस लैब का आकार इतना छोटा रखा जाए कि यह मार्स लैंडर के साथ मंगल तक जा सके।
हॉवर्ड मेडिकल स्कूल के बायोलॉजिस्ट गैरी रवकुन और उनके सहयोगी मंगल पर डीएनए ढूंढकर उसकी सीक्वेंसिंग करने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। इसके लिए उनका प्लान अगले 10 सालों के दौरान मंगल पर एक डीएनए एंप्लीफायर और सीक्वेंसर भेजने का है। उन्हें भरोसा है कि मंगल पर मिलने वाले जीवन के निशान पृथ्वी के जैव विकास के दौरान लाल ग्रह से उसके संबंध को दिखाएंगे। इस वजह से इनके जिनेटिक कोड भी समान होंगे। इस खोज के लिए एक प्रोजेक्ट चल रहा है जिसका नाम है सर्च फॉर एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल जीनोम्स या एसईटीजी। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा भी इसे सपोर्ट कर रही है। इसके लिए मंगल पर भेजे जाने वाली लैब के प्रोटोटाइप या नमूने पर काम चल रहा है। फिलहाल इसे 2018 में लॉन्च करने का विचार है। यह रोबॉटिक लैब मंगल की सतह पर जाकर मिट्टी या बर्फ का सैंपल खोद कर उसका एक डाई के साथ मिक्सचर बनाएगी। इस डाई की खासियत यह है कि यह डीएनए के संपर्क में आते ही चमकने लगती है। जैसी ही मिक्सचर का कोई हिस्सा चमकेगा उसे डीएनए एंप्लीफिकेशन के लिए भेजा जाएगा। सुनने में यह आसान लग रहा है लेकिन ऐसा करना काफी मुश्किल है। फिलहाल वैज्ञानिक इस कोशिश में लगे हैं कि इस लैब का आकार इतना छोटा रखा जाए कि यह मार्स लैंडर के साथ मंगल तक जा सके।
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