टीवी चैनल चीख रहे हैं, पाकिस्तान में आतंकवादी नई साजिशें रच रहे हैं, तालिबान का स्वात घाटी पर कब्जा, आतंकवाद-आतंकवाद-आतंकवाद, खौफ-दहशत-तबाही और इन सबके पीछे पाकिस्तान। हमें डराया जा रहा है, हमें बताया जा रहा है कि भले ही आज हमारे शहर की सड़कें शांत हों, लेकिन हमारे बच्चों के लिए आने वाला कल खौफनाक है, दहशत और बर्बादी से भरा है...और इन सबके पीछे है पाकिस्तान, आतंकवादी, तालिबानी।
क्या पाकिस्तान इन्हीं चीजों से भरा है? क्या वहां के हर आदमी के घर में गोला-बारूद की फैक्ट्री चल रही है? जिनमें भारत यानि हम लोगों को तबाह-ओ-बर्बाद करने का सामान बनाया जा रहा है? क्या पाकिस्तान में आम आदमी नहीं बसते? वो आम आदमी जो सारा दिन अपना घर चलाने के लिए खटता है और रात को जब वो सोता है तो उसे देर तक इसलिए नींद नहीं आती कि मेरे बच्चे का भविष्य क्या होगा? घोर निराशा और हताशा के माहौल में एक अच्छी खबर आई है, पाकिस्तान से। सरहद के उस पार कुछ जुनूनी लोग इस तस्वीर को बदलने की कोशिश में जुटे हैं और ये लोग हैं गैर पेशेवर खगोलशास्त्री।
9 फरवरी को जब साल का पहला चंद्रग्रहण पड़ रहा था, उसवक्त भारत और पाकिस्तान की सरहद पर दोनों तरफ के बच्चों ने एकसाथ मिलकर कुदरत की ये घटना देखी। खगोल विज्ञान की इस पहल में दोनों तरफ से करीब 200 बच्चे, उनके मां-बाप शिक्षक और गैर पेशेवर खगोलशास्त्री शामिल हुए। अपनी तरह का ये पहला आयोजन कच्छ एस्ट्रोनॉमी क्लब और लाहौर की सोसाइटी आफ द सन 'स्टारपीस' ने मिलकर किया और सरहद के आरपार के बच्चों को जोड़ने का काम किया इंटरनेट ने। उस एक रात के लिए इन बातों को भुला दिया गया कि ये मुंबई पर आतंकवादी हमले के लिए जिम्मेदार देश के बच्चे हैं, हमें इनके मुल्क से बदला लेना है। उस एक रात के लिए पाकिस्तान आतंकवादी मुल्क नहीं रहा, बल्कि वो आम लोगों और उनके जोशीले बच्चों का मुल्क बन गया, जो साइंस की आंखों से दुनिया को देखने और कुदरत के रहस्यों के समझने के लिए बेताब हैं।
क्या पाकिस्तान इन्हीं चीजों से भरा है? क्या वहां के हर आदमी के घर में गोला-बारूद की फैक्ट्री चल रही है? जिनमें भारत यानि हम लोगों को तबाह-ओ-बर्बाद करने का सामान बनाया जा रहा है? क्या पाकिस्तान में आम आदमी नहीं बसते? वो आम आदमी जो सारा दिन अपना घर चलाने के लिए खटता है और रात को जब वो सोता है तो उसे देर तक इसलिए नींद नहीं आती कि मेरे बच्चे का भविष्य क्या होगा? घोर निराशा और हताशा के माहौल में एक अच्छी खबर आई है, पाकिस्तान से। सरहद के उस पार कुछ जुनूनी लोग इस तस्वीर को बदलने की कोशिश में जुटे हैं और ये लोग हैं गैर पेशेवर खगोलशास्त्री।
9 फरवरी को जब साल का पहला चंद्रग्रहण पड़ रहा था, उसवक्त भारत और पाकिस्तान की सरहद पर दोनों तरफ के बच्चों ने एकसाथ मिलकर कुदरत की ये घटना देखी। खगोल विज्ञान की इस पहल में दोनों तरफ से करीब 200 बच्चे, उनके मां-बाप शिक्षक और गैर पेशेवर खगोलशास्त्री शामिल हुए। अपनी तरह का ये पहला आयोजन कच्छ एस्ट्रोनॉमी क्लब और लाहौर की सोसाइटी आफ द सन 'स्टारपीस' ने मिलकर किया और सरहद के आरपार के बच्चों को जोड़ने का काम किया इंटरनेट ने। उस एक रात के लिए इन बातों को भुला दिया गया कि ये मुंबई पर आतंकवादी हमले के लिए जिम्मेदार देश के बच्चे हैं, हमें इनके मुल्क से बदला लेना है। उस एक रात के लिए पाकिस्तान आतंकवादी मुल्क नहीं रहा, बल्कि वो आम लोगों और उनके जोशीले बच्चों का मुल्क बन गया, जो साइंस की आंखों से दुनिया को देखने और कुदरत के रहस्यों के समझने के लिए बेताब हैं।
आम लोगों में वैज्ञानिक सोच विकसित करना मिडिया के प्रमुख दायित्वों में से एक है. लेकिन बाज़ार उसे उसके दायित्वों से दूर ही रखता है. एक पत्रकार को बाजारुपन के एहसास से बचने के लिए ब्लॉग ही सबसे ससक्त माध्यम है.
जवाब देंहटाएंविज्ञान जैसे जटिल समझे जाने वाले विषय का रोचक प्रस्तुतीकरण सराहनीय कदम है. आप बधाई के पात्र हैं.