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रविवार, 25 सितंबर 2011

सत्यम्-शिवम्-सुंदरम्


 सेर्न और ग्रान सैसो का ओपेरा एक्सपेरीमेंट
'टाइम-स्पेस और प्रकाश की गति के ताने-बाने में हल्का सा स्पंदन
न्यूट्रिनो ने प्रकाश की गति सीमा तोड़ी

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
कार्य-कारण सिद्धांत की ये सनातन भारतीय अभिव्यक्ति है। फल यानि कारण या 'इफेक्ट' का निर्धारण कर्म यानि कार्य या 'कॉज' के अनुसार ही होता है, इसमें दखल नहीं दिया जा सकता। सापेक्षता के सिद्धांत में आइंस्टीन बताते हैं कि हमारे आसपास और इस ब्रह्मांड में जो कुछ भी घटता है, उसके लिए प्रकृति का मूलभूत कार्य-कारण सिद्धांत यानि कॉज एंड इफेक्ट ही जिम्मेदार है। सापेक्षतावाद के साथ आइंस्टीन ने एक ऐसे नियम की खोज की जो इस संपूर्ण ब्रह्मांड, हमारे आस-पास के इस संपूर्ण दृश्य जगत और खुद हमारी जिंदगी की आधारशिला है। वो सार्वभौम नियम ये है कि परमाणु के भीतर मौजूद ऊर्जा कणों से लेकर ब्रह्मांड के विशालतम पिंड तक प्रकाश की गति सीमा का उल्लंघन नहीं कर सकते। सापेक्षतावाद में आइंस्टीन ने बताया और अब इसकी पुष्टि भी हुई है कि ये संपूर्ण सृष्टि खुद को कुछ इस तरह से संतुलित रखती है कि कोई भी चीज प्रकाश की गति की सीमा को पार न कर सके।
आइंस्टीन बताते हैं कि 'टाइम-स्पेस एंड लाइट' यानि समय-काल और प्रकाश की गति वो तीन आधारस्तंभ हैं जिनपर संपूर्ण ब्रह्मांड और ये सृष्टि टिकी है और संचालित हो रही है। सापेक्षतावाद में 'टाइम-स्पेस एंड लाइट' यानि समय-काल और प्रकाश की गति के अंतर संबंधों की व्याख्या करते हुए आइंस्टीन ने ब्रह्मांड और सृष्टि के उदभव रहस्यों को समझाया है। भारतीय दर्शन में वर्णित सत्यम्-शिवम्-सुंदरम् की अवधारणा इसके काफी करीब है। सत्यम् यानि समय या 'TIME', शिवम् यानि काल या 'SPACE' और सुंदरम् यानि प्रकाश या 'LIGHT' । ये भी अदभुत साम्य है कि भारतीय दर्शन में समय को अंतिम सत्य, काल यानि मृत्यु और फिर जन्म या पुनर्निर्माण को शिव और मोक्ष या ज्ञान को प्रकाश कहा गया है।
सापेक्षतावाद के अनुसार किसी चीज का वेग बढ़ाने से उसका द्रव्यमान भी बढ़ता है और उसी अनुपात में बढ़ा हुआ गुरुत्वाकर्षण बल उस चीज के आसपास, चारों ओर के स्पेस पर असर डालता है और उसे मोड़ देता है। अगर आप प्रकाश के वेग से चलना चाहें तो आपका द्रव्यमान अनंत हो जाएगा, जिसे प्रकाश का वेग देने के लिए अनंत ऊर्जा की जरूरत होगी। ये संभव नहीं है, इसलिए ब्रह्मांड की कोई भी चीज एक तो प्रकाश के वेग की बराबरी नहीं कर सकती, और अगर कर भी लिया तो किसी भी सूरत में वो ब्रह्मांड में वेग की इस उच्चतम सीमा- प्रकाश के वेग का उल्लंघन नहीं कर सकती। क्योंकि ऐसा करते ही वो चीज भूतकाल में चली जाएगी। क्योंकि प्रकाश का वेग हासिल कर लेने पर समय जीरो हो जाता है और प्रकाश की रफ्तार से आगे निकलने पर समय ऋणात्मक यानि भूतकाल में चला जाता है। यही है 'टाइम ट्रैवेल' यानि वेग को नियंत्रित कर समय में भविष्य और भूतकाल की यात्रा करने का रहस्य। आइंस्टीन ने सापेक्षतावाद में इसे गणितीय रूप से साबित किया है, लेकिन साथ ही ये भी बताया है कि प्रकाश की गति से आगे निकलकर भूतकाल की यात्रा करना असंभव है। क्योंकि ब्रह्मांड के जन्म के बाद से इसे संचालित करने वाले तीनों मुख्य नियंत्रकों समय-काल और प्रकाश की गति ने इस संपूर्ण सृष्टि का डिजाइन कुछ इस तरह से रचा है कि ये हमेशा आगे की ओर बढ़ता है...भविष्य की ओर। आइंस्टीन के सापेक्षतावाद में मौजूद कार्य-कारण या कॉज एंड इफेक्ट सिद्धांत भी यही है। संपूर्ण सृष्टि कुछ इस तरह से काम कर रही है कि प्रकाश के अलावा कोई भी दूसरी चीज गति की इस अंतिम सीमा को हासिल न कर सके।
'टाइम-स्पेस एंड लाइट' यानि समय-काल और प्रकाश की गति के ताने-बाने में एक हल्का सा स्पंदन हुआ है। ओपेरा नाम के हाई-इनर्जी पार्टिकिल फिजिक्स के एक प्रयोग से कुछ ऐसे नतीजे आए हैं कि संपूर्ण वैज्ञानिक जगत भौचक्का है। ऊर्जा कण न्यूट्रिनो ने ब्रह्मांड के नियम का उल्लंघन करते हुए प्रकाश से भी तेज रफ्तार प्रदर्शित की है। इस प्रयोग से जुड़े भौतिकविज्ञानी आश्चर्यचकित हैं कि ऐसा कैसे हुआ? क्या सापेक्षतावाद के सिद्धांतों को गढने में आइंस्टीन से कोई भूल हो गई? अगर ये सही है तो फिर इसके नतीजे बड़े व्यापक होंगे और फिजिक्स के सारे नियम-सारे सिद्धांत फिर से लिखने पड़ेंगे।
सूरज के केंद्र में एक खास ऊर्जा कण जन्म लेते हैं, जिनका नाम है न्यूट्रिनो। सौर विकिरण के तूफान के साथ अरबों-खरबों की तादाद में न्यूट्रिनो कण पूरे सौरमंडल में बिखर जाते हैं। न्यूट्रिनो में ना के बराबर द्रव्यमान होता है और इनमें कोई इलेक्टि्रिक चार्ज नहीं होता। न्यूट्रिनो की सबसे बड़ी खासियत ये है कि कोई भी चीज उन्हें रोक नहीं पाती और किसी भी तरह का कोई नुकसान पहुंचाए बगैर, वो सामने आने वाली हर चीज के आर-पार निकल जाते हैं। हमारे आसपास की हर चीज के हरेक एक वर्ग सेंटीमीटर के दायरे से सूरज से जन्म लेने वाले 60 अरब न्यूट्रिनो कणों की बौछार हर सेकेंड गुजर रही है। न्यूट्रिनो उच्च ऊर्जायुक्त कण हैं और इनकी मौजूदगी परमाणु के भीतर भी महसूस की गई है। न्यूट्रिनो इतने सूक्ष्म हैं कि किसी भी सूक्ष्मदर्शी से इन्हें देखा नहीं जा सकता, हां कुछ बेहद संवेदनशील सेंसर्स की मदद से इनकी मौजूदगी का अनुभव जरूर किया जा सकता है। 
लेकिन न्यूट्रिनो के ये कण केवल सूरज से ही नहीं पैदा होते, इन्हें जेनेवा में जमीन से 100 मीटर नीचे मौजूद दुनिया की सबसे बड़ी भौतिकी प्रयोगशाला सेर्न में बनाया भी जाता है। सेर्न की एक खास एक्सीलरेटर मशीन सुपर प्रोटॉन सिंक्रोटॉन यानि एसपीएस से हर दिन अरबों-खरबों न्यूट्रिनोज की ऊर्जा-किरण पैदा की जाती है। हर दिन न्यूट्रिनोज की ये ऊर्जा-किरण सेर्न से 732 किलोमीटर दूर इटली के बीचोंबीच जमीन के नीचे मौजूद एक दूसरी प्रयोगशाला ग्रान सैसो पार्टिकिल एक्सीलेरेटर की ओपेरा डिटेक्टर मशीन की ओर छोड़ी जाती है। न्यूट्रिनोज की ये किरण मात्र ढाई मिलीसेकेंड में जेनेवा से इटली के बीच की 732 किलोमीटर की दूरी तय कर लेती है। ओपेरा एक्सपेरीमेंट के नाम से सेर्न और इटली के ग्रान सैसो पार्टिकिल एक्सीलरेटर के बीच ये प्रयोग तीन साल से हर दिन दोहराया जा रहा है।
सेर्न की एसपीएस मशीन से न्यूट्रिनोज की बौछार करीब प्रकाश की गति यानि 2,99,792.458 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से छोड़ी जाती है। लेकिन ओपेरा एक्सपेरीमेंट में काम कर रहे वैज्ञानिक तीन साल से एक खास चीज नोटिस कर रहे हैं, जिससे उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं है। जेनेवा से छूटकर इटली के ग्रैन सैसो के डिटेक्टर में पहुंचने वाले न्यूट्रिनोज आइंस्टीन के नियम का पालन नहीं कर रहे हैं। ये न्यूट्रिनोज प्रकाश से भी तेज गति से आकर टकरा रहे हैं। सापेक्षता सिद्धांत के 106 साल के दौरान प्रकाश से तेज गति कभी नहीं देखी गई। फिजिक्स के नियमों के अनुसार ये असंभव है।
ओपेरा एक्सपेरीमेंट के वैज्ञानिकों को पहले लगा कि शायद प्रयोग में कुछ गड़बड़ी है। जेनेवा के सेर्न से लेकर इटली के ग्रान सैसो एक्सिलेरेटर तक हर चीज, हर प्रक्रिया कई-कई बार जांची परखी गई, लेकिन हर बार सेर्न से आने वाले न्यूट्रिनोज की रफ्तार प्रकाश की गति के मुकाबले एक सेकेंड के 60 अरबवें हिस्से जितनी ज्यादा तेज रेकार्ड की गई। प्रकाश की सनातन गति सीमा के उल्लंघन की घोषणा करने से पहले ओपेरा एक्सपेरीमेंट के वैज्ञानिक तीन साल तक अपने प्रयोग की खामियां तलाशते रहे। लेकिन उन्हें प्रयोग में एक भी कमी, एक भी गड़बड़ी नहीं मिली। वैज्ञानिकों ने अब दुनिया के दूसरे वैज्ञानिकों से ये प्रयोग दोहराने की अपील की है। अगर दूसरी प्रयोगशालाओं के नतीजों से भी प्रकाश की गति सीमा के टूटने की बात सामने आ गई, तो ये साइंस की अब तक की सबसे बड़ी खोज और चंद्रमा पर पैर रखने से भी बड़ी उपलब्धि साबित होगी।
सेर्न और ग्रान सैसो के ओपेरा प्रयोग के नतीजों ने वर्तमान और भूतकाल के बीच की सीमारेखा धुंधला दी है। भले ही गणितीय रूप से ही सही, लेकिन समय के पीछे जा सकने और भूतकाल में सूचना भेज सकने की संभावनाएं जगा दी हैं। प्रकाश के वेग का उल्लंघन कर रहे न्यूट्रिनोज ने कार्य-कारण यानि कॉज एंड इफेक्ट के मूलभूत सिद्धांत को ही पलट कर ब्रह्मांड के आधारभूत नियमों के बारे में मानवजाति की अब तक की सारी समझ को ही तहस-नहस कर डाला है।
इटली के ग्रान सैसो में ओपेरा प्रयोग के समन्वयक एंटोनियो रेडिटाटो बताते हैं,प्रयोग के नतीजों से हम भौचक्के हैं, लेकिन इन नतीजों को हम तब तक नई खोज का नाम नहीं दे सकते, जब तक कि दूसरे वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशालाओं में इन नतीजों की पुष्टि नहीं कर देते। अगर आप किसी बुनियादी चीज के बारे में बात कर रहे हैं तो आपको बहुत सावधान रहना चाहिए।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पार्टिकिल थ्योरी के विभागाध्यक्ष डॉ. सुबीर सरकार ने प्रतिक्रिया में कहा है, अगर ये नतीजे दूसरी जगह भी साबित हो गए, तो ये मानव इतिहास में अब तक की सबसे विलक्षण घटना होगी। ये कुछ ऐसा है, जिसके बारे में कभी किसी ने सपने में भी कल्पना नहीं की थी। प्रकाश की गति वो आधारशिला है जिसपर स्पेस और टाइम के बारे में हमारी सारी समझ टिकी है। सही मायनों में जो ये बताता है कि कॉज के बाद ही इफेक्ट आता है। यानि कोई भी कार्य बिना किसी कारण के नहीं हो सकता। कभी ऐसा नहीं हो सकता कि इफेक्ट पहले आ जाए और उसका कॉज बाद में, पूरे ब्रह्मांड का जन्म ही इसी बुनियाद पर हुआ है। अगर कार्य-कारण सिद्धांत भंग होता है तो फिर हम नहीं समझ पाएंगे कि ब्रह्मांड का जन्म कैसे हुआ। ये काफी अराजक स्थिति होगी। 
भौतिकशास्त्री डॉ. एलेन कॉस्टेलेकी और उनकी टीम ने 1985 में प्रस्तुत एक सिद्धांत में बताया था कि निर्वात में मौजूद एक अज्ञात क्षेत्र से संपर्क कर न्यूट्रिनो प्रकाश की गति सीमा को तोड़ सकते हैं। इंडियाना यूनिवर्सिटी में प्रकाश की गति से भी तेज जाने की संभावना तलाशने के एक रिसर्च में शामिल डॉ. कॉस्टेलेकी कहते हैं, हालांकि भौतिकशास्त्री अब दूसरी जगहों पर पुष्टि होने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन ऐसे नतीजों का आना ही अपनेआप में काफी रोमांचक है। इस प्रयोग की पृष्ठभूमि में ये भी कहा जा सकता है कि हम ब्रह्मांड में जिस सबसे तेज रफ्तार की बात अब तक करते आए थे मुमकिन है कि वो रफ्तार प्रकाश के बजाय न्यूट्रिनोज की हो। हम सबसे तेज रफ्तार का मालिक अब तक प्रकाश को समझते रहे, और अब असलियत सामने आई है कि असली चीज तो न्यूट्रिनो है।
डॉर्टमंड यूनिवर्सिटी के फिजिसिस्ट हेनरिक पाएस एक अनोखा मॉडल पेश करते हैं, जिससे ग्रान सैसो के नतीजों को समझने में मदद मिलती है। हेनरिक कहते हैं कि मुमकिन है कि सेर्न से छूटने वाले न्यूट्रिनोज स्पेस और टाइम में एक अतिरिक्त डायमेंश के जरिए एक शॉर्टकट बनाकर इटली के ग्रान सैसो पहुंच रहे हों। इससे ग्रान सैसो के ओपेरा डिटेक्टर में काम करने वाले वैज्ञानिकों को यही महसूस होगा कि न्यूट्रिनो प्रकाश की गति से तेज सफर कर रहे हैं।
सेर्न और इटली के ग्रान सैसो के प्रयोग को जापान के टीटूके और अमेरिका में शिकागो के नजदीक फर्मीलैब में माइनॉस एक्सपेरीमेंट के जरिए दोहराया जा रहा है। और इस न्यूट्रिनोज के प्रकाश की गति से तेज चलने या ना चलने के बारे में पहला समाचार अब यहीं से मिलेगा। इस सिलसिले में खास बात ये है कि 2007 में माइनॉस एक्सपेरीमेंट के वैज्ञानिकों ने न्यूट्रिनोज के प्रकाश की गति से भी तेज चलने का दावा किया था, लेकिन दूसरी प्रयोगशालाओं में इसकी पुष्टि नहीं हो सकी थी। 

रविवार, 18 सितंबर 2011

गिर रहा है 6.5 टन का सेटेलाइट


आपको शायद जानकर हैरानी हो कि मानव निर्मित 2200 टन कबाड़ पृथ्वी की कक्षा में मौजूद है। पृथ्वी की कक्षा में सेटेलाइट भेजने वाले देशों की संख्या बढ़ती जा रही है। नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर की 1997 की सेटेलाइट सिचुएशन रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी की कक्षा में करीब 25000 सेटेलाइट्स मौजूद हैं। चिंता की बात ये कि इनमें से 16000 से ज्यादा सेटेलाइट्स बहुत पहले काम करना बंद कर चुके हैं और अब ये दूसरे सेटेलाइट्स के लिए खतरा बन गए हैं।
ये डेटा 14 साल पुराना है और एक दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक पृथ्वी की कक्षा में मौजूद सेटेलाइट्स की संख्या करीब 35000 तक हो चुकी है। हाल ही में यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने 20 साल तक काम कर चुके अपने सेटेलाइट ईआरएस-2 को रिटायर कर दिया। इसी बीच एक दूसरी खबर नासा से आई कि 20 साल पहले अंतरिक्ष भेजा गया उसका एक भारी-भरकम सेटेलाइट अब बेकाबू होकर धरती पर गिर रहा है। इस सेटेलाइट का नाम है अपर एटमॉस्फियर रिसर्च सेटेलाइट यानि यूएआरएस और इसे 20 साल पहले 1991 में अंतरिक्ष भेजा गया था। इस गिरते हुए सेटेलाइट पर लगातार नजर रख रहे नासा के वैज्ञानिकों ने जानकारी दी है कि साढ़े छह टन वजनी ये बेकाबू सेटेलाइट 23 सितंबर को धरती के वातावरण में प्रवेश कर सकता है। लेकिन, सबसे बड़ा खतरा ये कि वैज्ञानिक नहीं जानते कि ये अनियंत्रित सेटेलाइट, जमीन पर गिरेगा या फिर समुद्र में।
सेटेलाइट यूएआरएस दूसरे सामान्य सेटेलाइट के मुकाबले काफी भारी-भरकम है। इसकी लंबाई 10 मीटर और वजन करीब 6.5 टन है। पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में मौजूद ओजोन लेयर का अध्ययन करना इस सेटेलाइट का मकसद था और इसकी मदद से 20 साल तक हम ओजोन लेयर के बारे में गहराई से अध्ययन करने में कामयाब भी रहे। लेकिन, 20 साल तक धरती के ऊपरी वायुमंडल का अध्ययन करने के बाद अब इसका ईंधन खत्म हो गया है और इसे निर्देशित करने वाले कंप्यूटर्स फेल हो चुके हैं। धरती से इस सेटेलाइट का संपर्क टूट चुका है और अब साढ़े छह टन का ये सेटेलाइट हर दिन धरती की ओर गिरता चला जा रहा है।
नासा के ऑरबिटल डेबरीज प्रोग्राम के चीफ साइंटिस्ट निक जॉनसन के मुताबिक कोई भी ये ठीक-ठीक नहीं बता सकता कि ये सेटेलाइट धरती पर कहां गिरेगा। वैज्ञानिकों ने इस सेटेलाइट का मलबा किसी बस्ती पर गिरने की आशंका 3,200 में 1 जताई है। लेकिन वैज्ञानिकों ने ये भी कहा है कि इससे घबराने की जरूरत नहीं है। क्योंकि अंतरिक्ष अभियान के 54 साल के इतिहास के दौरान सेटेलाइट के गिरते मलबे से कभी किसी को चोट नहीं लगी है।
ताजा जानकारी के मुताबिक ये भारी-भरकम सेटेलाइट यूएआरएस इस वक्त ऐसी कक्षा में है जो छह महाद्वीपों और तीन महासागरों के ऊपर से गुजरती है। नासा के वैज्ञानिक इस गिरते हुए सेटेलाइट की लगातार निगरानी कर रहे हैं। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वायुमंडल में रीइंट्री के दौरान इस सेटेलाइट का ज्यादातर हिस्सा जल जाएगा, लेकिन फिर भी आशंका है कि इससे कुछ बड़े टुकड़े छिटक सकते हैं।
 इस सेटेलाइट में 150 किलो से ज्यादा वजन वाले 26 भारी-भरकम कलपुर्जे ऐसे हैं जो वातावरण में प्रवेश के दौरान सेटेलाइट से छिटक कर धरती तक पहुंच सकते हैं। ताजा अनुमान के मुताबिक इस सेटेलाइट के टुकड़े उत्तरी कनाडा से लेकर दक्षिणी अमेरिका तक 800 किलोमीटर के दायरे में बिखर सकते हैं। ये सेटेलाइट इतना विशाल है कि इसके वायुमंडल में प्रवेश करते ही लोगों को दिन की रोशनी में भी एक फॉयरबाल का नजारा दिख सकता है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी जारी की है कि इस सेटेलाइट से छिटके टुकड़े अगर किसी को मिलें तो उन्हें छूने के बजाय स्थानीय प्रशासन को इसकी खबर दें।