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बुधवार, 31 अगस्त 2011

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन मुसीबत में


अंतरिक्ष में लगभग चार सौ किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी की अग्रिम चौकी की तरह काम कर रहे इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन के अस्तित्व पर अचानक गंभीर खतरा मंडराने लगा है। मौजूदा सदी के करीब ग्यारह वर्षों में लगातार इस पर कुछ न कुछ अंतरिक्ष यात्री मौजूद रहे हैं, लेकिन आने वाले दिनों में यह सिलसिला शायद कायम न रह पाए। स्पेस स्टेशन और धरती के बीच नियमित आवाजाही की व्यवस्था नासा की जिस शटल सेवा पर टिकी थी, उसे अमेरिकी सरकार के एक फैसले के तहत समाप्त किया जा चुका है। शटल की अनुपस्थिति में इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन धरती से संपर्क के लिए पूरी तरह से रूस के सोयुज यानों पर निर्भर करता है। लेकिन रूसी अंतरिक्ष कार्यक्रम में इधर मात्र एक हफ्ते में हुई दो दुर्घटनाओं ने इस भरोसे को छिन्न-भिन्न कर दिया। सोयुज के प्रक्षेपण के लिए रूस जिन नए रॉकेटों का इस्तेमाल करने जा रहा था, उन्होंने पिछले 18 अगस्त और 24 अगस्त को दगा दे दिया और दो बहुत महंगे व महत्वपूर्ण प्रक्षेपणों को धूल में मिला दिया। ऐसे में रूस ने इन रॉकेटों की गड़बड़ियों को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हुए बगैर कोई और प्रक्षेपण न करने की घोषणा कर दी है।
स्पेस स्टेशन पर फिलहाल कुल छह अंतरिक्ष यात्री मौजूद हैं और अगले दो महीनों के लिए उनके पास रसद-पानी भी है। वहां से धरती पर उनकी वापसी में भी कोई बड़ी समस्या नहीं है, क्योंकि इमर्जेंसी के लिए स्पेस स्टेशन पर दो सोयुज यान हमेशा तैयार रखे जाते हैं। असल मुश्किल यह है कि स्टेशन को बिल्कुल खाली रखने पर इसे एक-दो महीने से ज्यादा समय तक बचाए रखना संभव नहीं हो पाएगा।
शीतयुद्ध के बाद की एकीकृत दुनिया के प्रतीक के रूप में सोलह देशों के संयुक्त प्रयास से करीब डेढ़ दशक में तैयार हुआ इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन किसी फुटबॉल फील्ड जितना लंबा-चौड़ा और कुतुब मीनार से भी ज्यादा ऊंचा है। किसी भरी हुई मालगाड़ी जितने वजन वाला यह विराट ढांचा जमीन से सैकड़ों किलोमीटर दूर बिल्कुल अधर में 18 हजार मील प्रति घंटे की रफ्तार से घूम रहा है। इस स्पेस स्टेशन में लगातार चलने वाले शोधकार्यों ने विज्ञान की लगभग सभी शाखाओं को समृद्ध किया है।
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टिप्पणियों के लिए धन्यवाद,  मौका मिलने के बावजूद भारत इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन का निर्माण और संचालन करने वाले 16 सदस्य देशों के ग्रुप में शामिल नहीं हो सका । माधवन नायर जब इसरो के प्रमुख थे तब स्पेस स्टेशन के अभियान में भारत के भी शामिल होने की बात चल रही थी। सब कुछ ठीक था और भारत को स्पेस स्टेशन में भागीदारी करने वाले 16 वें और अकेले एशियाई देश होने का गौरव मिलने ही वाला था कि तभी अज्ञात कारणों से हम ये सम्मान नहीं पा सके - संपादक

मंगलवार, 30 अगस्त 2011

सप्तऋषि का ‘8वां सितारा’


सुपरनोवा नजर आने की दुर्लभ घटना
हम जल्दी ही एक अदभुत खगोलीय घटना के साक्षी बनने जा रहे हैं। दूर अंतरिक्ष में सुपरनोवा धमाके के साथ एक सितारे की मौत हुई है और इस जबरदस्त धमाके से निकली ऊर्जा की चमक अब हम तक पहुंच रही है। हमारे जाने-पहचाने सप्तऋषि तारामंडल में जल्दी ही आठवें ऋषि यानि एक और चमकीले सितारे के दर्शन होने जा रहे हैं। ये चमकीला सितारा यानि सप्तऋषि का आठवां ऋषि यही सुपरनोवा होगा।
किसी सुपरनोवा के नजर आने की घटना बेहद दुर्लभ है और 24 साल यानि एस्ट्रोनॉमर्स की पूरी एक पीढ़ी के बाद अब ये मौका आया है जब हम सुपरनोवा धमाके को धरती से देख सकेंगे। ये सुपरनोवा हमारी पृथ्वी से 2 करोड़ 10 लाख प्रकाशवर्ष दूर है, लेकिन अगर इस दूरी को मानक सीमा मानते हुए एक काल्पनिक गोल दायरा खींचें तो बीते 40 साल में सुपरनोवा जैसी घटना इस दायरे में नहीं हुई थी। इस दायरे में सुपरनोवा की घटना पहली बार हुई है। हमारी आकाशगंगा मिल्की-वे में 1604 के बाद से अब तक कोई सुपरनोवा विस्फोट नहीं हुआ है। हमारी आकाशगंगा में 1604 में हुए सुपरनोवा विस्फोट के बारे में रिकार्डों में दर्ज है आसमान में चमकते एक सितारे के रूप में इसकी तेज चमक दिन में भी दिखाई देती रही थी।
अंतरिक्ष में सबसे चमकीला और सबसे शक्तिशाली ऊर्जा का विस्फोट है सुपरनोवा। सुपरनोवा घटना की मदद से ही वैज्ञानिक ब्रह्मांड के लगातार फैलाव का अध्ययन करते हैं। कैलीफोर्निया में माउंट पालोमर ऑब्जरवेटरी के स्वनियंत्रित स्काई सर्वे पालोमर ट्रांसिएंट फैक्ट्री (PTF) पर काम करने वाले एस्ट्रोनॉमर्स 2 करोड़ 10 लाख प्रकाशवर्ष दूर पिनव्हील गैलेक्सी (M101) का सर्वे कर रहे थे, कि तभी उन्होंने यहां सुपरनोवा की इस दुर्लभ घटना को अपनी आंखों से घटते हुए देखा और इसे रिकार्ड कर लिया। सुपरनोवा को इससे पहले कभी उसके ऐन घटते वक्त रिकार्ड नहीं किया गया था।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एस्ट्रोनॉमी प्रोफेसर और पालोमर ट्रांसिएंट फैक्ट्री के कोलेब्रेटर मार्क सुलिवान कहते हैं, सुपरनोवा जैसी घटना को इतने करीब घटते देखकर हम बेहद रोमांचित हैं। सबसे अनोखी बात ये है कि सुपरनोवा विस्फोट हमने आंखों के सामने घटते देखा है।
आने वाले दिनों में हवाई की मौना केया जैसी ग्राउंड और हब्बल जैसी स्पेस ऑब्जरवेटरीज इस सुपरनोवा का गहराई से अध्ययन करेंगी। कैलीफोर्निया बर्कले की लॉरेंस बर्कले नेशनल लैबोरेटरी के पीटर नुगेंट कहते हैं,अब तक देखा गया IA श्रेणी का ये सबसे शानदार सुपरनोवा है, जो अब भी विस्फोट और फैलाव की प्रक्रिया में है। यही वजह है कि ये सुपरनोवा हर घंटे बदल रहा है और इसके ऑब्जरवेशन और अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों में होड़ सी लग गई है।
आमतौर पर सुपरनोवा यानी जबरदस्त धमाके के साथ सितारे की मौत की घटना तब घटती है जब सितारे का केंद्र या कोर कोलैप्स कर जाती है। लेकिन सितारों में IA श्रेणी का सुपरनोवा विस्फोट तब होता है, जब व्हाइट ड्वार्फ सितारे में सैद्धांतिक सीमा से कई गुना ज्यादा द्रव्यमान इस कदर इकट्ठा हो जाता है जिसे सितारा संभाल नहीं पाता और थर्मोन्यूक्लियर डेटोनेशन की प्रक्रिया शुरू होकर सुपरनोवा के जबरदस्त धमाके को जन्म दे देती है। साइंस के लिए ये घटनाएं बेहद महत्वपूर्ण होती हैं, क्योंकि इनकी मदद से वैज्ञानिक दो आकाशगंगाओं के बीच की दूरी की गणना करते हैं और पुराने डेटा से तुलना करके ये पता लगाते हैं कि क्या आकाशगंगाओं के बीच की दूरी उतनी ही है, या फिर इसमें कोई बदलाव आया है। आकाशगंगाओं के बीच की दूरी में आया बदलाव ये बताता है कि ब्रह्मांड के फैलने की रफ्तार क्या है। 
दूर-दराज की आकाशगंगाओं में हुए IA श्रेणी के सुपरनोवा धमाके के अध्ययन से 1998 में एक चौंकाने वाली बात सामने आई। वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि बह्मांड के फैलने की रफ्तार लगातार बढ़ रही है, और इसकी वजह है डार्क इनर्जी की मौजूदगी है। इसके बाद के अध्ययनों से हमें पता चला कि हमारे ब्रह्मांड का मौजूदा आकार डार्क इनर्जी ने ही गढ़ा है।  
सुपरनोवा धमाके के साथ फूटने वाली चमक के स्पेक्टोग्राफी अध्ययन से उस सितारे में मौजूद धातुओं की जानकारी भी मिलती है। सीधा सा नियम ये है कि जिस सितारे में जितना ज्यादा धातुएं मौजूद होंगीं उसके सुपरनोवा में उतनी ही तेज चमक होगी।  
प्रोफेसर मार्क सुलिवान बताते हैं कि सितंबर के पहले हफ्ते तक इस सुपरनोवा की चमक इतनी ज्यादा बढ़ जाएगी कि ये 9 से 10 विजुअल मैग्नीट्यूट वाले सितारे जैसा नजर आने लगेगा। आसमान में इस अनोखे सुपरनोवा को देखने के लिए उर्सा मेजर या बिग डिपर कांस्टलेशन को खोजिए। हम भारतीय इसे सप्तऋषि तारामंडल के नाम से जानते हैं। इस तारामंडल की पूंछ या हैंडल के करीब मौजूद 7 वें सितारे से थोड़ा ऊपर की ओर देखिए, यहीं मौजूद है पिनहोल गैलेक्सी (M101) और अगर आप शहर की जगमगाहट से दूर हैं तो शायद यहीं आपको एक सितारा जगमगाता नजर आ जाएगा, जो असल में कोई सितारा नहीं, बल्कि IA श्रेणी का सुपरनोवा है। अगर आपके पास शक्तिशाली दूरबीन या फिर कोई साधारण टेलिस्कोप है तो सुपरनोवा का ये नजारा और भी खूबसूरत नजर आएगा। 

रविवार, 21 अगस्त 2011

ब्रह्मांड का सबसे बड़ा रहस्य - एंटीमैटर



एंटीमैटर के घेरे में धरती


एंटीमैटर के बारे में पूरी जानकारी


खुद को आईने में देखिए, वहां ठीक आपके सामने कौन है ? आप कहेंगे मेरा प्रतिबिम्ब...कभी सोंचा है कि वहां आईने में जो हू-ब-हू आपके जैसी, लेकिन विपरीत तस्वीर दिख रही है, अगर वो हकीकत बन, आइने से निकल कर सामने आ खड़ी हो, तो उसे क्या कहेंगे ? इस सवाल का जवाब फिजिक्स में मौजूद है, उसे आपका प्रति-व्यक्तित्व (Anti You) कहेंगे। इतना ही नहीं फिजिसिस्टों ने इससे भी कई कदम आगे की अवधारणाएं सामने रखी हैं, कि हमारी दुनिया की तरह कहीं बहुत दूर इसकी एक ‘मिरर इमेज’ यानि बिल्कुल हमारी जैसी एक और दुनिया होगी। प्रति-सितारों (Anti Stars), प्रति-घरों (Anti-Houses) और प्रति-जीवन (Anti-Life, यहां इसका आशय मृत्यु नहीं है) से भरा-पूरा एक प्रति-विश्व या एंटी वर्ल्ड भी होगा। हमारी दुनिया, ये संपूर्ण ब्रह्मांड पदार्थ यानि मैटर से बना है, जबकि वो दूसरी दुनिया इस पदार्थ की विपरीत अवस्था यानि प्रति-पदार्थ या एंटीमैटर से बनी होगी।
अब एंटीमैटर से जुड़ी एक ताजा खबर, यूरोपियन सेटेलाइट पामेला ने हमारी धरती के चारों ओर पहली बार एंटीमैटर की बेल्ट खोजी है। ये खोज इतनी अनोखी है कि साइंस की दुनिया में इसे अब तक हुई सबसे महत्वपूर्ण खोजों में से एक समझा जा रहा है। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टिकिल कोलाइडर प्रयोगशाला सर्न और फर्मीलैब में वैज्ञानिक एंटीमैटर पैदाकर उसे समझने की कोशिशों में जुटे हैं, लेकिन धरती के करीब ही एंटीमैटर की खोज ने एक नई हलचल पैदा कर दी है। एंटीमैटर की खोज से घबराने की जरूरत नहीं, इससे हमारी धरती को कोई खतरा नहीं है, क्योंकि धरती के चारों ओर मौजूद इस बेल्ट में एंटीमैटर की मात्रा काफी कम है।
 ये दुनिया, ये ब्रह्मांड दो विपरीत शक्तियों का एक अनोखा संयोग भर है। प्रकाश-अंधकार, निर्माण-विध्वंस-पुनर्निमाण, दिन-रात, अच्छाई-बुराई, शिव-शक्ति, ऋणावेश-धनावेश, इनर्जी-डार्क इनर्जी और मैटर-एंटीमैटर।
आइए, अब समझते हैं कि एंटीमैटर आखिर है क्या ? पदार्थ के तीन स्वरूप हैं, ठोस, द्रव और गैस और हमारे चारों ओर मौजूद सभी चीजें और हम खुद पदार्थ के इन्हीं तीनों स्वरूपों से रचे हैं। सैकड़ों ईंटों से बनी किसी दीवार और अनगिनत बूंदों से बने महासागर की तरह पदार्थ के ये तीनों स्वरूप भी छोटी-छोटी ईंटों से बने हैं। लेकिन पदार्थ की ये ईंटें इतनी सूक्ष्म हैं कि इन्हें हम सामान्य आंखों से नहीं देख सकते। ये सूक्ष्म ईंटें अणु हैं, जिनकी संरचना परमाणुओं से हुई है और परमाणुओं के भीतर एक और दुनिया है, जहां केंद्र में प्रोटान और न्यूट्रान का नाभिक है, जैसे हमारे सौरमंडल का केंद्र सूरज और ग्रहों की तरह इसकी रिक्रमा करते हुए इलेक्ट्रान्स। परमाणु की सूक्ष्मतम दुनिया और सौरमंडल के विस्तार वाली प्रकृति की इस अनोखी व्यवस्था में एक अदभुत आध्यात्मिक और दार्शनिक समानता है। परमाणु के भीतर झांकने में हमें बस एक दशक पहले ही सफलता मिली है और पता चला है कि परमाणु के भीतर केवल प्रोटान, न्यूट्रान और इलेक्ट्रान ही नहीं, बल्कि 16 या शायद इससे भी ज्यादा अलग-अलग गुण-धर्म वाले ऊर्जा कण मौजूद हैं।
परमाणु के भीतर की ये अनोखी दुनिया लंबे वक्त तक रहस्यों में लिपटी रही, वैज्ञानिक प्रोटान, न्यूट्रान और इलेक्ट्रान के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे। तब ब्रिटिश भौतिकशास्त्री पॉल एड्रियन मॉरिस डाइरेक ने परमाणु के भीतर प्रोटान, न्यूट्रान और इलेक्ट्रान की बात सामने रखी और खासतौर पर इलेक्ट्रान के व्यवहार और उसके गुणधर्म का पता लगाया। लेकिन पॉल डाइरेक जो कह रहे थे, वो कुछ अधूरा सा था, ये कमी तभी पूरी हो सकती थी अगर वहां इलेक्ट्रान से मिलता-जुलता, बिल्कुल किसी मिरर इमेज यानि प्रतिबिम्ब की तरह, लेकिन विपरीत आवेश वाला कोई जुड़वां ऊर्जा कण भी मौजूद हो। पॉल डाइरेक ने इसे ‘एंटीइलेक्ट्रान’ या ‘पॉजिट्रॉन’ कहा। इलेक्ट्रॉन ऋणात्मक आवेश वाला ऊर्जा कण है, जबकि इसका प्रतिबिम्ब पॉजिट्रॉन धनावेशित ऊर्जा कण। पॉजिट्रॉन की तरह प्रोटान के एंटीप्रोटान और न्यूट्रान के एंटीन्यूट्रान होने की बात भी सामने आई। पॉजिट्रॉन, एंटीप्रोटान और एंटीन्यूट्रान की अवधारणा इतनी अनोखी थी कि पॉल डाइरेक खुद हतप्रभ रह गए कि आखिर ऐसा अनोखा विचार उन्हें सूझा कैसे? क्योंकि प्रोटान, न्यूट्रान और इलेक्ट्रान के संयोग से पदार्थ बनता है। इसका मतलब ये हुआ कि एंटीप्रोटान, एंटीन्यूट्रान और पॉजिट्रॉन के संयोग से जो चीज बनती है वो पदार्थ की मिरर इमेज या प्रतिबिम्ब यानि एंटीमैटर या प्रतिपदार्थ है।
पॉल डाइरेक ने इसे रोटी बनाने वाले गुंधे आटे की मदद से समझाया। एक व्याख्यान के दौरान उन्होंने बेलन की मदद से गुंधे आटे की एकसमान पर्त मेज पर फैला दी और एक सांचे की मदद से सितारे के आकार का एक टुकड़ा काटा और उसे हाथ में लेकर सबको दिखाया। पॉल ने कहा, “ ये देखिए मेरे हाथ में एक सितारा है, लेकिन जरा मेज पर आटे की ओर तो देखिए, वहां बिल्कुल मेरे हाथ में मौजूद सितारे से मिलता-जुलता एक सितारा और है। इन दोनों सितारों में फर्क बस इतना है कि मेरे हाथ में एक ठोस सितारा है, जबकि मेज के आटे पर सितारे के आकार का छेद, यानि इस असली सितारे का बिल्कुल विपरीत या फिर एक निगेटिव इमेज (Anti Star)। आप मेज के इस आटे से चाहे जो भी आकार काट कर अलग करें, वहां छेद के रूप में उसकी एक निगेटिक इमेज अपने आप बन जाएगी। मेरे हाथ का ये ठोस सितारा पदार्थ यानि मैटर है, जबकि मेज के आटे पर मौजूद सितारे के आकार का छेद एंटीमैटर।” पाल डाइरेक मानते थे कि इस ब्रह्मांड में मौजूद संपूर्ण पदार्थ के परमाणुओं ने अपने पीछे एक निगेटिव मिरर इमेज यानि एंटीपार्टिकिल बनाते हुए ही जन्म लिया होगा, बिल्कुल आटे के सितारे और मेज के आटे पर मौजूद सितारे के आकार के छेद की तरह।
ऊर्जा ही वो गुंधा हुआ आटा है जिसने इस ब्रह्मांड में मौजूद संपूर्ण पदार्थ को जन्म दिया। हां, इस आटे को काट कर ब्रह्मांड रचने लायक पदार्थ बनाने के लिए कुदरत ने तीन अलग-अलग सांचों प्रोटान, न्यूट्रान और इलेक्ट्रान का इस्तेमाल किया। सबसे अनोखी बात ये कि जब ऊर्जा के आटे से प्रोटान, न्यूट्रान और इलेक्ट्रान सांचे से काटकर बनाए गए, तब हर बार उनके पीछे आटे में छेद के रूप में एक निगेटिव मिरर इमेज यानि एंटीपार्टिकिल भी बनते चले गए। यानि ऊर्जा ने पार्टिकिल और एंटीपार्टिकिल दोनों को एकसाथ जन्म दिया।
 भौतिकशास्त्रियों का मानना है कि पॉल डाइरेक का आइडिया काफी शानदार है और इससे एंटीमैटर की गुत्थी को समझने में काफी मदद मिलती है। लेकिन दुनियाभर के वैज्ञानिक स्कूली बच्चों की तरह होते हैं, वो किसी भी बात को तब तक नहीं मानते जब तक कि उसे साबित नहीं कर लिया जाता। इसलिए जब पॉल डाइरेक ने एंटीपार्टिकिल की मौजूदगी की बात कही, तो भौतिकशास्त्रियों ने उनसे सबूत मांगे। इस तरह दुनियाभर में भौतिकशास्त्री पार्टिकिल कोलाइडर लैबोरेटरी में एंटीमैटर के प्रमाण तलाशने में जुट गए। इस सिलसिले में पहली सफलता तब मिली जब पहला इलेक्ट्रान-पॉजीट्रॉन पेयर बना लिया गया। इसके बाद प्रोटॉन-एंटीप्रोटॉन और न्यूट्रॉन-एंटीन्यूट्रॉन बनाया गया। इससे सबूत मिल गया कि पॉल डाइरेक जो कह रहे थे वो बिल्कुल सच है। प्रकृति में एंटीमैटर मौजूद है और उसका सबूत भी खोज लिया गया। पॉल डाइरेक को बाद में फिजिक्स के नोबेल से भी सम्मानित किया गया।
करीब 100 साल से भी ज्यादा वक्त पहले अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक बहुत महत्वपूर्ण खोज की। आइंस्टीन ने 1905 में एक मशहूर समीकरण E=mc2 देकर बताया था कि द्रव्यमान ऊर्जा का ही एक परिवर्तनशील स्वरूप है। उन्होंने बताया कि मैटर यानि पदार्थ कुछ और नहीं बल्कि ऊर्जा का ही बेहद सघन रूप है। ऊर्जा और पदार्थ एक ही चीज के दो रूप हैं, यानि आप पदार्थ से ऊर्जा उत्पन्न कर सकते हैं और ऊर्जा से पदार्थ। लेकिन असली सवाल ये कि ऊर्जा को पदार्थ और पदार्थ को ऊर्जा में तब्दील करने का तरीका क्या है ?
कोई भी बड़ी उल्का हमारे सौरमंडल में 30 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से प्रवेश करती है। इस रफ्तार से जब उल्का पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती है तो उसकी गतिज ऊर्जा तापमान में बदलने लगती है और उसका तापमान 100000 डिग्री सेंटीग्रेड तक या फिर इससे भी ज्यादा बढ़ जाता है। इस बेहद ऊंचे तापमान पर उल्का का ज्यादातर पदार्थ पिघलने लगता है। यानि तेज गति पदार्थ को ऊर्जा में तब्दील करने लगती है।
हमारे पास अभी ऐसी टेक्नोलॉजी नहीं है कि हम प्रकाश की रफ्तार यानि 300,000 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से चलने वाला स्पेसक्राफ्ट बना सकें। लेकिन ऐसा नामुमकिन नहीं है। जेनेवा में मौजूद पार्टिकिल कोलाइडर लैब सेर्न में वैज्ञानिक ऐसा हर रोज कर रहे हैं। भूमिगत प्रयोगशाला सेर्न के लॉर्ज हैड्रॉन कोलाइडर में विपरीत दिशाओं से हाइड्रोजन परमाणु के नाभिकों यानि प्रोटॉन्स की दो बीम्स छोड़कर उनकी रफ्तार प्रकाश की गति तक बढ़ाई जाती है। पिछले साल हुए इस अनोखे प्रयोग में करीब प्रकाश की गति से विपरीत दिशाओं में घूम रही प्रोटॉन बीम्स की जब आपस में टक्कर करवाई गई तो करीब प्रकाश की रफ्तार से हुई प्रोटॉन बीम्स की इस टक्कर से 10,000,000,000,000 डिग्री सेंटीग्रेड से भी भीषण तापमान पैदा हो गया। वैज्ञानिक पहली बार प्रयोगशाला के नियंत्रित माहौल में सृष्टि के जन्म की घटना बिगबैंग को उत्पन्न करने में सफल रहे। इस जबरदस्त टक्कर से बिगबैंग यानि सृष्टि को रचने वाले ऊर्जा के महाविस्फोट ने जन्म लिया और इस जबरदस्त ऊर्जा से मैटर और एंटीमैटर के शुरुआती कण लॉर्ज हैड्रान कोलाइडर मशीन में अगले ही पल पैदा हो गए।
नोबेल फिजिसिस्ट डॉ. मिशियो काकू बताते हैं कि ब्रह्मांड की शुरुआत यानि ऊर्जा के महाविस्फोट बिगबैंग से पदार्थ और एंटीमैटर दोनों ही समान मात्रा में उत्पन्न हुए, लेकिन आपस में संपर्क करते ही एक जबरदस्त विस्फोट के साथ पदार्थ का बहुत बड़ा हिस्सा एंटीमैटर निगल गया और जो पदार्थ बच गया उसने इस पूरे ब्रह्मांड और हमारी रचना की। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये कि कुदरत ने ब्रह्मांड और हमारी रचना करने के लिए पदार्थ को ही क्यों चुना ? एंटीमैटर का चुनाव क्यों नहीं किया गया ? इससे भी बड़ी गुत्थी ये कि क्या हमारे सौरमंडल और आकाशगंगाओं की तरह एंटीमैटर से बने सौरमंडल और आकाशगंगाएं भी हैं ? क्या सामान्य पदार्थ से रचे गए जीवन की तरह कहीं कोई एंटीमैटर से बना जीवन भी मौजूद है ?
जेनेवा की भूमिगत प्रयोगशाला सेर्न में प्रयोग की हर साइकिल (एक मिनट में एक बार) के दौरान वैज्ञानिक 5 करोड़ एंटीप्रोटॉन बनाते हैं, इससे हम कुछ सौ एंटी हाइड्रोजन परमाणु बना सकते हैं। पार्टिकिल एक्सीलेरेटर के खास कॉन्फिगुरेशन की मदद से इनकी मात्रा 10 गुना तक भी बढ़ाई जा सकती है। पढ़ने में शायद ये काफी ज्यादा लगे लेकिन एक साल में सेर्न की लैब में वैज्ञानिक एक ग्राम के अरबवें हिस्से तक का ही एंटीमैटर बना पाते हैं। बनने के बाद एंटीमैटर को ज्यादा समय तक संभाले रखना बेहद कठिन है, क्योंकि एंटीमैटर जैसे ही सामान्य पदार्थ के साथ संपर्क में आता है वो एक स्पार्क के साथ उसे निगल जाता है, इसे एन्हीलेशन कहते हैं। हाल ही में सेर्न में एंटीमैटर को सबसे ज्यादा देर तक बरकरार रखने का रिकार्ड बनाया गया। खास मैगनेटिक कंटेनर की मदद से वैज्ञानिकों ने एंटीमैटर को 10 मिनट तक रोके रखने में कामयाबी हासिल की है।
सिक्के बनाने वाली फैक्टरी में सिक्के वाला सांचा धातु की चादर में बार-बार पंच करके उससे सिक्के काटता है। हर बार पंचिंग के बाद एक सिक्का और धातु की चादर में सिक्के के बराबर एक छेद बन जाता है। जो हाथ में आया वो क्वाइन यानि सिक्का और धातु की चादर में जो सिक्के के बराबर का छेद बन गया वो एंटीक्वाइन यानि प्रतिसिक्का (सिक्के की विपरीत,निगेटिव मिरर इमेज)। कभी ऐसा नहीं हो सकता कि धातु की चादर पर सिक्के के बराबर छेद बनाए बगैर ही सिक्के काट लिए जाएं। इसी तरह ऐसा भी कभी नहीं देखा गया कि केवल पदार्थ या मैटर की ही रचना हो, प्रति-पदार्थ या एंटीमैटर की नहीं। न तो केवल पदार्थ रचा जा सकता है और न ही कभी केवल एंटीमैटर, ये दोनों चीजें हमेशा जोड़े में ही उत्पन्न होती हैं।
ऊर्जा प्रकृति की जमा-पूंजी है जो दो अलग-अलग करेंसी में मिलती है और जिसकी एक्सचेंज दर अपरिमित, यानि प्रकाश की रफ्तार के वर्ग के बराबर है। आइंस्टीन के इस पदार्थ-ऊर्जा समीकरण के मुताबिक एक किलोग्राम पदार्थ को 25,000,000,000 किलोवॉट ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है।
एंटीमैटर की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि ये खुद को पूरा का पूरा यानि सौ फीसदी ऊर्जा में परिवर्तित कर सकता है। जबकि प्रकृति ने सामान्य पदार्थ को ऐसा करने की इजाजत नहीं दी है। मैटर यानि सामान्य पदार्थ केवल अपने एक फीसदी हिस्से को ही ऊर्जा में बदल सकता है। आइंस्टीन के समीकरण के मुताबिक अगर एक किलोग्राम शक्कर या एक लीटर पानी या फिर एक किलो वजन वाली किसी भी चीज को अगर आप पूरी तरह ऊर्जा में तब्दील कर सकें तो इससे इतनी ऊर्जा हासिल हो जाएगी कि आप अपनी कार को एक लाख साल तक बिना रुके लगातार चला सकते हैं। इस हिसाब से महज एक ग्राम पदार्थ से इतनी ऊर्जा मिल सकती है कि एक मध्यम आकार के शहर की एक दिन की ऊर्जा जरूरत पूरी की जा सकती है।
बाह्य अंतरिक्ष से आने वाली कॉस्मिक किरणें ही वो पहले हाई इनर्जी पार्टिकिल्स थे जिनका पहली बार अध्ययन किया गया था। सेर्न और फर्मीलैब जैसी पार्टिकिल कोलाइडर्स लैब्स के बनने से पहले परमाणु के भीतर की अनोखी दुनिया की झलक हमें सबसे पहले कॉस्मिक किरणों के अध्ययन से ही मिली थी। आप कहीं भी हों, कुछ कॉस्मिक किरणें हर दिन-हर सेकेंड हमारे शरीर से आर-पार आती-जाती रहती हैं। कुछ कॉस्मिक किरणों के स्रोत मरते हुए सितारों के भीषण धमाके यानि सुपरनोवा होते हैं, लेकिन ये बताना मुश्किल है कि सारी कॉस्मिक किरणों के स्रोत्र क्या हैं? क्योंकि पृथ्वी पर हर पल- हर दिशा से कॉस्मिक किरणों की लगातार बौछार होती रहती है। अंतरिक्ष से पृथ्वी पर बरसने वाली कॉस्मिक किरणें सबसे पहले वायुमंडल की ऊपरी पर्त से टकराती हैं। कॉस्मिक किरणों के परमाणु प्रकाश की गति से वायुमंडल के परमाणुओं से जा टकराते हैं और इससे भारी मात्रा में ऊर्जा निकलती है, जो आइंस्टीन के समीकरण के अनुसार तुरंत ही मैटर और एंटीमैटर के नए कणों में तब्दील हो जाती है। कॉस्मिक किरणों की हमारे वायुमंडल से टक्कर प्रकृति में एंटीमैटर पैदा होने का सबसे बड़ा जरिया है। 1932 में कार्ल एंडरसन ने कॉस्मिक किरणों का अध्ययन कर पहले एंटीपार्टिकिल एंटीइलेक्ट्रान या पॉजीट्रॉन का पता लगाया था।
मैटर यानि सामान्य पदार्थ और एंटीमैटर का आपस में संपर्क और उनका विलुप्त होकर ऊर्जा में तब्दील हो जाना यानि एन्हीलेशन प्रक्रिया, इस संपूर्ण ब्रह्मांड में ऊर्जा का सबसे जबरदस्त स्रोत है। ये देखा गया है जब इलेक्ट्रान और एंटीइलेक्ट्रान यानि पॉजिट्रॉन आपस में संपर्क कर एक दूसरे को खत्म करते हैं, तब एन्हीलेशन की इस प्रक्रिया से गामा किरणों के रूप में ऊर्जा का विस्फोट सामने आता है।
यूरोपियन स्पेस एजेंसी के सेटेलाइट इंटिगरल यानि इंटरनेशनल गामा-रे एस्ट्रोफिजिक्स लैबोरेटरी ने चार साल तक लगातार ऑब्जरवेशन से पता लगाया है कि हमारी आकाशगंगा के पश्चिमी हिस्से से गामा-रे पॉजिट्रॉन (एंटीइलेक्ट्रान) का चमकीला बादल उमड़ रहा है। संयोग से एंटीपार्टिकिल का ये बादल आकाशगंगा के ऐसे हिस्से में मौजूद है, जहां बहुत सारे बाइनरी स्टार सिस्टम यानि जुड़वां सितारे मौजूद हैं और माना जाता है कि वहां एक बहुत बड़ा ब्लैक होल भी है। नासा के वैज्ञानिक जोर देकर कहते हैं कि ये घूमते हुए बाइनरी स्टार सिस्टम हमारी आकाशगंगा में मौजूद आधे एंटीमैटर या शायद संपूर्ण एंटीमैटर को ठीक उसी तरह जन्म दे रहे हैं, जैसे दही को मथकर मक्खन निकाला जाता है। कोई नहीं जानता कि ब्लैक होल्स और न्यूट्रॉन स्टार्स एंटीमैटर को कि तरह से जन्म दे रहे हैं ? ये भी बहुत बड़ी गुत्थी है कि आखिर ब्लैक होल के भीषण गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के क्षेत्र से एंटीमैटर बाहर निकलने में कामयाब कैसे हुए ? यूरोपियन स्पेस एजेंसी का सेटेलाइट इंटिगरल और नासा की फर्मी गामा-रे स्पेस ऑब्जरवेटरी (ग्लास्ट) इन सवालों के जवाब तलाशने में जुटी है।
एंटीमैटर, यानि पदार्थ का प्रतिबिम्ब और सौ फीसदी खुद को ऊर्जा में बदल सकने की इसकी ताकत ये सबकुछ इतना अनोखा था कि एंटीमैटर की खोज करने वाले पॉल डाइरेक और अन्य वैज्ञानिक भी इसे लेकर भयभीत हो उठे थे। साइंस फिक्शन ने इस परिकल्पना में नए पंख लगा दिए।
अगर आपने अमेरिकी लेखक डैन ब्राउन का उपन्यास 'एंजेल्स एंड डिमॉन्स' पढ़ा है, जिसपर निर्देशक रॉन हॉवर्ड ने इसी नाम से फिल्म भी बनाई है, तो वो पूरी कहानी एंटीमैटर-बम पर ही आधारित है, जिससे वैटिकन को उड़ाने की साजिश रची जाती है। नोबेल फिजिसिस्ट डॉ. मिशियो काकू बताते हैं कि एंटीमैटर-बम की ताकत एटमबम से 100 गुना ज्यादा होगी। क्योंकि एटमबम परमाणु की ताकत के महज एक फीसदी हिस्से का इस्तेमाल करते हैं। जबकि एंटीमैटर-बम परमाणु से उसकी 100 फीसदी ताकत निचोड़ लेता है। महज आधा ग्राम एंटीमैटर में एक टन डाइनामाइट की जबरदस्त ताकत छिपी होती है और महज आधा किलो एंटीमैटर से पूरे भारत देश की तीन दिन की ऊर्जा जरूरत पूरी की जा सकती है। एंटीमैटर बेशकीमती भी है, डॉ. मिशियो काकू के मुताबिक महज 29 ग्राम एंटीमैटर की कीमत है 44 हजार अरब रुपये। एंटीमैटर का इस्तेमाल अब हर दिन मेडिसिन के क्षेत्र में ब्रेन स्कैन के लिए किया जा रहा है। ये भविष्य का ईंधन भी है, मशहूर टीवी सीरियल स्टार ट्रैक का स्पेसक्राफ्ट स्टारशिप इंटरप्राइज एंटीमैटर इंजन से चलता था। अब वैज्ञानिक असलियत में इस संभावना पर काम कर रहे हैं कि क्या यूरेनियम की तरह ही एंटीमैटर का इस्तेमाल भी ईंधन की तरह किया जा सकता है ?
दूसरे ग्रहों और सूरज की तरह हमारी पृथ्वी मैटर यानि पदार्थ से बनी है और पदार्थ को चट कर जाने वाला एंटीमैटर  इसके चारों ओर मौजूद है। लेकिन इससे हमारी धरती और यहां मौजूद पदार्थ से रचे जीवन को कोई खतरा नहीं है। क्योंकि एंटीमैटर धरती को तभी नुकसान पहुंचा सकता है, जब उसकी मात्रा धरती के पदार्थ के बराबर हो। अच्छी बात ये कि धरती के चारों ओर मौजूद एंटीमैटर काफी कम मात्रा में है, यानि हम बगैर किसी खतरे के ऊर्जा हासिल करने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।    
धरती के चारों ओर मौजूद एंटीमैटर की बेल्ट की खोज बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि इससे एक नए भविष्य की झलक दिखाई देती है, जब हम अपनी ऊर्जा की जरूरतों को धरती की इस बेल्ट में मौजूद एंटीमैटर से पूरा कर पाएंगे। इतना ही नहीं, शायद कुछ पीढ़ियों बाद हम स्टार ट्रैक के स्पेसक्राफ्ट स्टारशिप इंटरप्राइज के जैसा एक स्पेसक्राफ्ट बना सकेंगे। जिसके ताकतवर इंजन्स में पृथ्वी के चारों ओर बिखरे एंटीमैटर का इस्तेमाल किया जाएगा। इस अनोखे एंटीमैटर स्टारशिप की मदद से हम प्रकाश या उससे भी तेज रफ्तार से सितारों के सफर पर जा सकेंगे।

-संदीप निगम