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गुरुवार, 5 जुलाई 2012

ये सृष्टि ईश्वर की नहीं, गॉड पार्टिकिल की रचना है


4 जुलाई 2012 का दिन हमेशा याद रखा जाएगा, क्योंकि इस दिन हमने अपने ज्ञान की अचंभित कर देने वाली ऊंचाई देखी, क्योंकि इस दिन पहली बार हमने पूरे तार्किक प्रमाणों के साथ जान लिया कि ये ब्रह्मांड-ये सृष्टि किसी ईश्वर की रचना नहीं, बल्कि फिजिक्स के नियमों के तहत काम करने वाले ऊर्जा कणों हिग्स-बोसॉन की रचना है। इस सृष्टि की शुरुआत कैसे हुई? ये सवाल हमारे अस्तित्व जितना ही पुराना है। खुद को, इस जमीन और आसमान को और इस पूरी दुनिया और उससे परे ब्रह्मांड को समझने की हमारी चाह कितनी गहरी रही है इसका पता इस बात से चलता है कि विश्व की हर संस्कृति में सृष्टि की शुरुआत से जुड़े अलग-अलग और कमाल के मिथक मौजूद हैं। विज्ञान कभी अहंकार से भरे दावे नहीं करता, बल्कि विनम्रता के साथ उन नए तथ्यों को सामने लाता है, जो लगातार प्रयोगों के बाद सामने आते हैं। ये ब्रह्मांड किसने बनाया? इस सृष्टि की शुरुआत कैसे हुई? वो असली रचनाकार कौन है? विज्ञान इन सवालों के जवाब 40 साल से ढूंढ़ रहा है। इसी क्रम में सत्येंद्रनाथ बोस और आइंस्टीन ने बोसॉन की अवधारणा सामने रखी। फिर पीटर हिग्स ने बोसॉन की प्रकृति से मिलते-जुलते ऊर्जा से दमकते एक अनोखे कण की बात कही, ये सैद्धांतिक कण इतना अनोखा था कि ये एक परमाणु से लेकर सूरज तक के वजन के लिए जिम्मेदार था। इसे हिग्स-बोसॉन कहा गया। हिग्स-बोसॉन की प्रकृति सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी है, इसलिए एक पत्रकार ने इसका नाम गॉड पार्टिकिल रख दिया, बस फिर क्या था, दुनिया रोमांच से भर उठी और प्रयोगशालाएं गॉड पार्टिकिल की तलाश में जुट गईं। गॉड पार्टिकिल की तलाश में सबसे ज्यादा तेजी पिछले चार साल के दौरान देखी गई जब फिजिक्स की प्रमुख प्रयोगशालाओं फर्मी लैब, टेवेट्रॉन और सर्न में गॉड पार्टिकिल के निशान मिलने से एक नई सनसनी मचने लगी। गॉड पार्टिकिल की खोज का रास्ता दिखाने का श्रेय जाता है अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी की पार्टिकिल फिजिसिस्ट डॉ. मीनाक्षी नारायण को। डॉ. मीनाक्षी नारायण ने फर्मी लैब में 1995 में सिंगल टॉप क्वार्क की खोज करके साबित कर दिया था कि गॉड पार्टिकिल कोई काल्पनिक कण नहीं है और इसे खोजा जा सकता है। और फिर वो दिन भी आ गया जब, 4 जुलाई को सर्न में हुई एक खास प्रेस कांफ्रेंस में खुद पीटर हिग्स ने एक नए तरह के गॉड पार्टिकिल मिलने की घोषणा कर दुनिया को अचंभे में डाल दिया। अपने पाठकों के लिए वॉयेजर पेश करता है गॉड पार्टिकिल की खोज की कहानी खुद डॉ. मीनाक्षी नारायण की जबानी।


मुझे बेहद खुशी है कि मैं विज्ञान के इस ऐतिहासिक पल की साक्षी बनी। मुझे भारतीय होने का गर्व है कि मैं एक पार्टिकिल फिजिसिस्ट हूं और विज्ञान के भविष्य की दिशा तय करने में मैं भी एक छोटा सा योगदान दे सकी। 4 जुलाई, यानि अमेरिका का स्वतंत्रता दिवस, लेकिन ये तारीख विज्ञान की दुनिया में एक अलग वजह के लिए याद रखी जाएगी। अज्ञानता के अंधेरे को पीछे छोड़कर ज्ञान की एक नई रोशनी की ओर कदम बढ़ाने के लिए। असतो मां ज्योतिर्गमय।
यूं तो गॉड पार्टिकिल की तलाश 40 साल पुरानी है और अगर सर्न की ही बात करें तो बीते 10 साल से वैज्ञानिक हिग्स-बोसॉन को तलाशने में जुटे थे। लेकिन पिछले तीन साल के दौरान जेनेवा की सर्न लैब में गॉड पार्टिकिल की खोज को लेकर गहमा-गहमी काफी बढ़ गई थी। दुनिया के अलग-अलग देशों से आई वैज्ञानिक टीम्स सर्न में मौजूद प्रोटॉन तोड़ने की मशीन लॉर्ज हैड्रॉन कोलाइडर के सीएमएस और एटलस डिटेक्टर्स में गॉड पार्टिकिल यानि हिग्स-बोसॉन को पकड़ने की कोशिश कर रहे थे। ये एक लुका-छिपी के खेल जैसा था, कभी तो लगता कि बस हमने बाजी मार ली और कभी प्रयोग के अपने तौर-तरीकों पर ही संदेह होने लगता था।  
और आज वो दिन भी आ गया जब दुनिया के कोने-कोने से आए फिजिसिस्ट के साथ हम सर्न के ऑडिटोरियम में इन प्रयोगों के नतीजों के जाहिर होने का इंतजार कर रहे थे। हिग्स-बोसॉन की खोज परमाणु को समझने के हमारे स्टैंडर्ड मॉडल की वो खोई कड़ी है जिसके बगैर हम ब्रह्मांड की रचना के रहस्य को समझ नहीं सकते।
सर्न में जब खबर मिली कि 1960 में हिग्स-बोसॉन के सिद्धांत को विकसित करने वाले पीटर हिग्स को 4 जुलाई की घोषणा करने के लिए निमंत्रित किया गया है तो यहां मौजूद सभी वैज्ञानिकों के दिलों की धड़कनें तेज हो गईं। हालात ये थि के 3 जुलाई की रात से ही हॉल के बाहर लाइनें लगने लगीं और कई लोगों ने तो रात बकायदा दरवाजा खुलने के इंतजार में बिताई। पीटर हिग्स की मौजूदगी ने लोगों को संकेत दे दिया कि कुछ ऐतिहासिक घटने वाला है। और 4 जुलाई को जेनेवा में ठीक 9 बजे लोग जिस खबर का इंतजार कर रहे थे इसे जो इन्कैडेला ने सार्वजनिक कर दी, “We have observed a new boson… हमने एक बिल्कुल नए तरह का बोसॉन खोज निकाला है।”
सर्न के डायरेक्टर जनरल रॉल्फ ह्युर ने कहा, “I think we have it, We have discovered a particle that is consistent with a Higgs boson... मुझे लगता है कि हमने ढूंढ निकाला। हमने एक ऐसा पार्टिकल खोज निकाला है जो हिग्स-बोसॉन जैसा है।”
पार्टिकिल फिजिक्स में कोई नई खोज कितनी महत्वपूर्ण है, इसका निर्धारण एक खास पैमाने से किया जाता है, जिसे सिगमा कहते हैं। वन सिगमा का अर्थ है कि नतीजे डेटा में अचानक किसी उतार-चढ़ाव की वजह से हैं। थ्री सिगमा तक के नतीजों को ऑब्जर्वेशन का दर्जा दिया जाता है और 5 सिगमा के नतीजों को एक नई खोज का सम्मान प्राप्त होता है। 4 जुलाई को जिन नतीजों की घोषणा की गई है वो शुरुआती हैं, क्योंकि 2012 के प्रयोगों के डेटा का परीक्षण अब भी जारी है। एलएचसी के डिटेक्टर्स एटलस और सीएमएस के प्रयोगों से मिले डेटा की समीक्षा जुलाई के अंत तक पूरी होने की उम्मीद है। जहां तक 4 जुलाई की उदघोषणा का सवाल है तो इसमें हिग्स-बोसॉन जैसे कण के मिलने की बात कही जा रही है, उसके सिगनल 4.3 सिगमा से ऊपर नहीं गए हैं। इसका मतलब ये है कि इस प्रायोगिक नतीजे में हिग्स-बोसॉन यानि गॉड पार्टिकिल के वास्तव में मिलने की संभावना 99.996 प्रतिशत है, शेष 0.0004 प्रतिशत संभावना इस बात की भी हो सकती है कि ये सिगनल महज नॉइस हों। जबकि दूसरी ओर 5 सिगमा सिगनल को पार्टिकिल फिजिक्स में ‘गोल्ड स्टैंडर्ड’ की उपमा दी जाती है। किसी नई खोज की घोषणा तभी की जाती है जब सिगनल 5 सिगमा के जादुई स्तर को स्पर्श कर लेता है।
पिछले दो साल से हिग्स कणों के पकड़ने के लगातार संकेत मिल रहे थे। इसके बाद ये संकेत संभावित साक्ष्य में तब्दील हो गए और अब हमने एक प्रामाणिक खोज करने में सफलता हासिल कर ली है। अगर एलएचसी ने हिग्स पार्टिकिल के संकेत नहीं पकड़े होते तो गॉड पार्टिकिल को खोज निकालने में ये नाकामी, देसी भाषा में कहूं तो मॉडर्न फिजिक्स को उल्टा टांग देती। लेकिन फिजिसिस्ट कभी चैन से नहीं बैठते वो काफी खोजी होते हैं, इसलिए गॉड पार्टिकिल को खोजने में हाथ आई ये नाकामी भी उन्हें एक नए उत्साह से भर देती और वो किसी नए समीकरण की तलाश में ब्लैकबोर्ड पर व्यस्त हो जाते। लेकिन हिग्स को लेकर संदेह जताने वाले सभी लोगों के लिए सबूत सामने हैं, इस बात के प्रबल साक्ष्य हैं कि हिग्स-बोसॉन या गॉड पार्टिकिल कोई काल्पनिक सिद्धांत नहीं बल्कि एक ठोस हकीकत हैं और स्टैंडर्ड मॉडल बिल्कुल उतना ही सटीक है, जितना कि किसी फिजिसिस्ट को उस पर यकीन है।

- डॉ. मीनाक्षी नारायण
प्रोफेसर, ब्राउन यूनिवर्सिटी
(लेखिका गॉड पार्टिकिल की खोज करने वाले वैज्ञानिकों की कोर टीम की सदस्य हैं)

इस तरह शुरु हुई गॉड पार्टिकिल की खोज

शिकागो के बटाविया की फर्मी लैब में लगी मेरी तस्वीर और उसके नीचे लिखा वाक्य – टॉप क्वार्क की अविष्कारक – मुझे लगातार कुछ और बेहतर करने को प्रेरित करता रहता है। मैं 1995 का वो पल नहीं भूल सकती जब फर्मी लैब की पार्टिकिल कोलाइडर मशीन में 20 अरब कणों की टक्कर से जब सिंगल टॉप क्वार्क्स कण पैदा हुए थे। ये अविश्वसनीय था, असाधारण, मानो कोई सपना सच हो गया हो। दुनियाभर के भौतिकशास्त्रियों ने परमाणु के नाभिक में मौजूद प्रोटान के भीतर टॉप क्वार्क की खोज पर कहा था कि इस खोज के बाद अब कुछ भी नामुमकिन नहीं रहा। अब आधुनिक भौतिक विज्ञान की धारा ही बदल जाएगी। 
सिंगल टॉप क्वार्क, हिग्स बोसॉन के जैसा ही एक सैद्धांतिक कण है। दरअसल 14 अरब साल पहले जब ऊर्जा के महाविस्फोट के बाद पदार्थ के शुरुआती कणों ने जन्म लिया तो उन कणों का गुण-धर्म तय करने वाले कई दूसरे अनजाने कण भी अस्तित्व में आ गए, मिसाल के तौर पर सिंगल टॉप क्वार्क और हिग्स बोसॉन। आधुनिक भौतिकी के सिद्धांत बताते हैं कि हिग्स-बोसॉन की मौजूदगी ने ही पदार्थ के कणों में वजन पैदा किया। लेकिन हिग्स बोसॉन इस कदर रहस्यमय हैं कि वैज्ञानिकों ने उन्हें गॉड पार्टिकिल यानि ईश्वरीय कणों का नाम दे रखा है। सिंगल टॉप क्वार्क कण की खोज के बाद पूरे भौतिक विज्ञान जगत का यकीन पुख्ता हो गया है कि वो गॉड-पार्टिकिल को भी खोज निकालने में कामयाब रहेंगे।
दरअसल, वैज्ञानिक एक सवाल पर हमेशा से बहस करते रहे हैं कि ब्रह्मांड की संरचनाओं, यहां तक कि इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन जैसे मूल अणुओं में मास यानि द्रव्यमान कहां से आता है। द्रव्यमान को बोलचाल की भाषा में हम वजन समझ लेते हैं लेकिन ये वजन से बिल्कुल अलग है। असल में जब द्रव्यमान पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति काम करती तो वजन पैदा होता है। मिसाल के लिए अगर हम चंद्रमा पर जाएं तो हमारे शरीर का द्रव्यमान वही रहेगा लेकिन उसका वजन कम हो जाएगा। वजह ये कि चांद पर गुरुत्वाकर्षण में कमी आने से हमारा वजन घट जाता है। भौतिक विज्ञान के मुताबिक पदार्थ में वजन का समावेश होता है हिग्स-बोसॉन यानि गॉड पार्टिकिल की वजह से, जो अब तक भौतिक वैज्ञानिकों की आंखों से बचता रहा है।
हिग्स बोसोन कण की खोज 1964 में ब्रिटिश भौतिकविद् पीटर हिग्स और भारतीय भौतिक विज्ञानी सत्येंद्रनाथ बोस ने की थी। 1924 में बोस ने एक सांख्यिकीय गणना का जिक्र करते हुए एक पत्र आइंस्टीन के पास भेजा था, जिसके आधार पर बोस-आइंस्टीन के गैस को द्रवीकृत करने के सिद्धांत का जन्म हुआ। इस सिद्धांत के आधार पर ही प्राथमिक कणों को दो भागों में बांटा जा सका और इनमें से एक का नाम बोसोन रखा गया जबकि दूसरे का नाम इटली के भौतिक वैज्ञानिक इनरिको फर्मी के नाम पर रखा गया। दशकों बाद 1964 में ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्स ने बिग बैंग के बाद एक सेकेंड के अरबवें हिस्से में ब्रह्मांड के द्रव्यों को मिलने वाले भार का सिद्धांत दिया, जो बोस के बोसोन सिद्धांत पर ही आधारित था। इसे बाद में 'हिग्स-बोसोन' के नाम से जाना गया। ये सिद्धांत न केवल ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्यों को जानने में मददगार साबित हुआ बल्कि इसके स्वरूप को परिभाषित करने में भी मदद की।
गॉड पार्टिकिल के रहस्य का एक संक्षिप्त इतिहास है। 30 साल पहले वैज्ञानिकों ने समीकरणों की एक श्रृंखला बनायी थी, जिसे स्टैंडर्ड मॉडल कहा गया। इसके अनुसार मूलभूत कणों और बलों के संबंध से ब्रह्मांड की संरचना समझायी गयी थी। लेकिन मॉडल मे कुछ कमियां हैं। भौतिकी की यह फितरत रही है कि एक गुत्थी सुलझते ही दूसरी आ खड़ी होती है। जिसे सुलझाने के लिए फिर नए सिरे से खोज शुरू की जाती है। ऐसी ही एक गुत्थी है, पदार्थ में मौजूद भार के मामले में। समस्या ये थी कि कुछ कणों का भार होता है और कुछ का नहीं। मुख्य थ्योरी ये थी कि कण का भार इस बात पर निर्भर करता है कि वो रहस्यमयी हिग्स फील्ड के साथ किस प्रकार अंतरक्रिया करता है, क्योंकि ये फील्ड सारे अंतरिक्ष में फैला हुआ है। सिंगल टॉप क्वार्क कणों की खोज ने कई गुत्थियां हल कर दीं, और गॉड पार्टिकिल की खोज के नए दरवाजे खोल दिए।

-    डॉ. मीनाक्षी नारायण,प्रोफेसर, ब्राउन यूनिवर्सिटी
(लेखिका गॉड पार्टिकिल की खोज करने वाली वैज्ञानिकों की कोर टीम की महत्वपूर्ण सदस्य हैं)