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बुधवार, 21 दिसंबर 2011

2012 में विनाश की भविष्यवाणियां और उनकी सच्चाई



मैक्सिको से खबर आई है कि इस देश के दक्षिणी इलाके में रहने वाले माया सभ्यता के पुजारियों ने आने वाले 21 दिसंबर 2012 के लिए विशेष धार्मिक कर्मकांड शुरू कर दिए हैं। दरअसल मैक्सिको प्रशासन के अधिकारियों को बैठे-बिठाए 2012 के नाम पर पर्यटन से मोटा मुनाफा कमाने का फार्मूला मिल गया है और इसी सिलसिले में किया जा रहा ये धार्मिक कर्मकांड माया सभ्यता की ओर दुनियाभर के लोगों का ध्यान खींचने की कोशिश भर है। अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वाहन करते हुए वायेजर 2012 के नाम पर लोगों को डरा कर मुनाफा बटोरने की हर कोशिश की कड़े शब्दों में निंदा करता है। 2012 के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हमारी विशेष सीरीज का आयोजन जारी है और इसी सिलसिले में प्रस्तुत है 2012 को लेकर तमाम संस्कृतियों और स्वयंभू भविष्यवक्ताओं के दावों का गहन विवेचन -  
चार साल पहले मेरे एक पुरातत्वशास्त्री मित्र ने मुझे सुमेरिया और माया सभ्यताओं में 2012 को लेकर की गई गणनाओं के बारे में बताया था। तब हमने ये नहीं सोंचा था कि 2012 को लेकर एक डर का माहौल बनाने की कोशिश की जाएगी। 2012 में दुनिया खत्म हो जाएगी ! इस दावे के साथ अब तक दो मुख्य तर्क दिए गए हैं। एक तो ये कि माया सभ्यता का कैलेंडर 2012 में खत्म हो रहा है और दूसरा ये कि सुमेरिया सभ्यता की भविष्यवाणी है कि 2012 में नाइबरू नाम का एक ग्रह धरती से टकरा सकता है। प्रसिद्ध भविष्यवेत्ता नास्त्रेदमस की एक पहेली जैसे पद को भी 2012 के महाविनाश से जोड़कर देखा जा रहा है। तिब्बत के कुछ बौद्ध भिक्षुओं ने भी अपने भविष्य के आंकलन में 2012 में किसी बड़ी अनहोनी घटने की आशंका जताई है। एक हिंदू मान्यता भी है कि 2012 के बाद कलियुग का स्वर्णकाल शुरू होगा। पश्चिम के एक ज्योतिषी सेंट क्लेयर की भविष्यवाणी है कि 2012 में दूसरी दुनिया के लोग यानि एलियन्स धरती पर आएंगे। इसके अलावा हावर्ड यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री जेफ्री फ्रैंकेल का आंकलन है कि 2012 के आसपास दुनिया की ज्यादातर अर्थव्यवस्थाएं ढह जाएंगी। खगोलविज्ञान के अनुसार देखें तो दिसंबर में हमारी आकाशगंगा का केंद्र उगते हुए संक्रांति के सूरज के एक सीध में आ जाएगा।
इन सारी डरावनी सी लगने वाली बातों का क्या मतलब है ? क्या मानव जाति के पास अब केवल एक साल का ही वक्त शेष है ? 2012 में हमपर ऐसी कौन सी आफत टूटने वाली है ? आखिर 2012 का रहस्य क्या है ? और इतनी सारी आशंकाओं के बीच घिरे हम लोगों को आखिर क्या करना चाहिए ?
सुमेरिया सभ्यता का शिलालेख
सबसे पहले जानते हैं कि सदियों पहले लुप्त हो चुकी सुमेरिया सभ्यता के निवासियों ने ऐसा क्या लिख दिया, जिसे पढ़कर हम अबतक परेशान हैं। सुमेरिया सभ्यता सीरिया, ईराक और इरान के भूभाग पर दजला और फरात नदियों के डेल्टा पर ईसा के जन्म से 3400 साल पहले आबाद थी। सुमेरिया दुनिया की पहली विकसित शहर सभ्यताओं में से एक थी, सबसे खास बात तो ये कि उनकी अपनी एक भाषा लिपि भी थी। हमें अब तक जो सबसे पुराने शिलालेख मिले हैं वो सुमेरिया के ही हैं और कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सुमेरियाई संदेशों की लिपि में संस्कृत के अंश मौजूद हैं। सुमेरियाई लोगों ने अपने शिलालेखों में लिखा है कि मानव जाति इस धरती की संतान नहीं, बल्कि मानवों को देवताओं ने नाइबरू नाम के एक ग्रह से लाकर पृथ्वी पर बसाया है। सुमेरियाई लोगों को यकीन था कि उनके देवता नाइबरू ग्रह पर मौजूद हैं, जो एक ऐसे रास्ते से सूरज की परिक्रमा कर रहा है जो सौरमंडल के अन्य ग्रहों की तरह क्षैतिज न होकर ऊर्ध्व है। सुमेरियाई शिलालेखों में एक भविष्यवाणी दर्ज है कि नाइबरू ग्रह 2012 को धरती के करीब आ रहा है। दुनिया में कई लोग इन लाइनों में धरती के विनाश की आहट तलाश रहे हैं। 2012 में हमारी दुनिया के साथ कुछ बुरा होने जा रहा है, इस पर विश्वास करने वालों का कहना है कि साइंस पृथ्वी से मिलते-जुलते और जीवन से भरपूर जिस प्लेनेट एक्स की तलाश कर रहा है वो नाइबरू ही है।  नाइबरू को लेकर ये डर बताया जा रहा है कि 2012 में ये धरती से टकरा सकता है और अगर नहीं भी टकराता तो ये धरती के इतने करीब से गुजरेगा कि इसके जबरदस्त गुरुत्वाकर्षण खिंचाव से महासागरों में प्रलयंकारी सुनामी आ जाएगी जिसकी चपेट में आकर धरती का करीब आधा हिस्सा डूब जाएगा।
माया सभ्यता का कैलेंडर
सुमेरिया सभ्यता की भविष्यवाणी के बाद, दावा किया जाता है कि 2012 में अनहोनी की भविष्यवाणी माया सभ्यता के लोगों ने भी की थी। लेकिन माया सभ्यता की भविष्यवाणी किसी शिलालेख में नहीं है, बल्कि इसका इशारा छिपा है माया सभ्यता के कैलेंडर में। इस कैलेंडर के बारे में बात करने से पहले माया सभ्यता के बारे में जानना जरूरी है। ईसा की मृत्यु के बाद तीसरी सदी से दसवीं सदी के बीच दक्षिणी मैक्सिको, ग्वाटेमाला और बेलाइज के मिलेजुले भूभाग में मौजूद थी, अपने वक्त की बेहद विकसित और काफी हद तक उन्नत सभ्यता, जिसे इतिहास माया सभ्यता के नाम से जानता है। लेकिन ईसा की मृत्यु से 1200 साल बाद ये सभ्यता खत्म हो गई। माया सभ्यता क्यों खत्म हुई इसका कोई सही-सही कारण इतिहास में नहीं दर्ज है। इसके बारे में बस कुछ अनुमान ही हैं, जिनमें से एक है स्पेनी लुटेरों का हमला। माया सभ्यता के लोगों की खास रुचि नक्षत्र विज्ञान में भी थी और वैज्ञानिक गणनाओं के आधार पर उन्होंने अपना एक कैलेंडर भी बना रखा था। 2012 को लेकर सारी आशंकाओं और डर की वजह ये कैलेंडर ही है। अंग्रेजी ग्रिगोरियन कैलेंडर से तुलना करें तो माया सभ्यता का कैलेंडर कुछ ऐसा है कि इसमें 2012 तक की गणनाएं तो हैं लेकिन 21 दिसंबर 2012 के बाद की नहीं। दूसरे शब्दों में कहें तो माया सभ्यता का कैलेंडर 21 दिसंबर 2012 को खत्म हो रहा है। इसीलिए दुनियाभर में एक ऐसा तबका सामने आ रहा है जो मानता है कि 21 दिसंबर 2012 का दिन दुनिया का आखिरी दिन होगा।
अगस्त 2004 में ब्रिटेन के विल्टशर में एक किसान के खेत में खड़ी फसल एक गोलाकार संरचना के भीतर कुचली हुई पाई गई। हेलीकॉप्टर से इस इलाके के सर्वेक्षण में पाया गया कि इस क्रॉप सर्किल, यानि खेत में खड़ी फसलों के बीच मौजूद कुचली हुई फसलों के इस दायरे, में कुछ खास चिन्ह भी मौजूद हैं जो माया सभ्यता के चिन्हों से मिलते-जुलते हैं। स्थानीय क्रॉप सर्किल विशेषज्ञ फ्रांसिस ब्लेक ने इसका अर्थ समझाते हुए कहा कि क्रॉप सर्किल में मौजूद ये खास चिन्ह बताते हैं कि दुनिया में कुछ नाटकीय बदलाव आने वाले हैं। इस क्रॉप सर्किल को माया सभ्यता के कैलेंडर से जोड़ते हुए उन्होंने बताया, चंद्रमा धरती की परिक्रमा करता है, धरती सूरज की और पूरे सौरमंडल के साथ सूरज इस आकाशगंगा मिल्की-वे की। आकाशगंगा का ये परिक्रमा चक्र 26000 साल में पूरा होता है और इसका वक्त आ चुका है। माया कैलेंडर के मुताबिक ये परिक्रमा पूरी हो रही है 2012 में। इसके बाद कैलेंडर नहीं है, यानि वक्त खत्म।
2012 पर तिब्बत के बौद्ध भिक्षुओं के विचार
2012 में दुनिया का वक्त क्या वाकई खत्म हो रहा है ? इसपर बात करने से पहले ये जानना जरूरी है कि 2012 को लेकर ई-मेल, ब्लॉग साइट्स और इंटरनेट पर मौजूद तमाम किस्से क्या हैं। मुझे एक मेल भेजी गई है जिसमें ये लिखा है कि  तिब्बत के बौद्ध भिक्षु 2012 के बारे में क्या सोचते हैं। इस मेल और इंटरनेट सामग्री के मुताबिक, बौद्ध भिक्षुओं की भविष्यवाणी है कि 2010 और 2012 के बीच पूरी दुनिया का ध्रुवीकरण हो जाएगा और लोग 2012 में टूटने वाली आफत का सामना करने को लिए तैयार होने लगेंगे, भारी राजनीतिक हलचल के बाद 2012 में दुनिया प्रलयंकारी नाभिकीय युद्ध के खतरे से घिर जाएगी। ऐन मौके पर जब नाभिकीय हमलों की शुरुआत होने ही वाली होगी धरती को बचाने के लिए दैवीय ताकतें हस्तक्षेप करेंगी। ये वो वक्त होगा जब हमें पता चलेगा कि इस धरती के भाग्यविधाता हम नहीं हैं और हर पल हमारी निगरानी कर रहीं दूसरी दुनिया की ताकतें धरती पर आकर दुनिया को खत्म होने से बचा लेंगी।
2012 और नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी
कुछ लोग मानते हैं कि 16वीं सदी के फ्रेंच भविष्यवेत्ता नास्त्रेदमस ने अपनी मशहूर किताब द प्रोफेसीज में भी 2012 में घटने वाली घटनाओं का ब्योरा अपने पहेलीनुमा पदों में दिया है। नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी के मुताबिक धनु राशि का तीर एक स्याह हलचल की ओर इशारा कर रहा है, विनाश की शुरुआत से पहले तीन ग्रहण पड़ेंगे और तब सूरज और धरती पर तीव्र भूकंप आएंगे। उनका कहना है कि जैसे-जैसे हम 2012 के करीब पहुंचते जाएंगे आपदाएं भी बढ़ने लगेंगी। सूरज पर भूकंप से विकिरण के तीव्र तूफान उठेंगे जो धरती को इस कदर गरमा देंगे कि ध्रुवों पर जमी बर्फ पिघलने लगेगी। जब ऐसा होगा तब धरती के ध्रुव भी बदल जाएंगे। कुंभ राशि के युग की शुरुआत में आसमान से एक बड़ी आफत धरती पर आ टूटेगी। धरती का ज्यादातर हिस्सा प्रलयंकारी बाढ़ की चपेट में आ जाएगा और तब जान और माल की भारी क्षति होगी। हैरानी की बात ये है कि नास्त्रेदमस ने कुंभ राशि के जिस युग की शुरुआत की बात की है वो वक्त है 21 दिसंबर 2012 के बाद का। 
सेंट क्लेयर की गणनाएं 
पूर्वाभास और ज्योतिष की मदद से भविष्यवाणी करने वाले अमेरिकी भविष्यवेत्ता माइकल सेंट क्लेयर की भी 2012 को लेकर अपनी कुछ गणनाएं हैं। सेंट क्लेयर के मुताबिक शुरुआत होगी 2011 से जब चंद्रमा वृश्चिक राशि से धनु राशि में प्रवेश करेगा। सेंट क्लेयर कहते हैं कि ये वैसी ही स्थिति है जैसी की बीसवीं सदी के अंत और इक्कीसवीं सदी की शुरुआत, यानि 1999 और 2000 के संधिकाल में थी। उस वक्त दुनिया Y2K के अनजाने खतरे से परेशान थी। उनकी गणना है कि बृहस्पति की छाया जब धनु से होते हुए मीन राशि में आएगी तब यूरेनस ग्रह और बृहस्पति एक सीध में होंगे। सेंट क्लेयर के मुताबिक ये खगोलीय स्थिति एक नए खगोलीय रहस्य के दरवाजे खोलेगी और तब ये सच्चाई या तो लोगों की आंखें खोल देगी या फिर उन्हें हमेशा के लिए गहरी नींद में सुला देगी। तब नेप्च्यून-यूरेनस एक साथ नजर आएंगे और तब लोगों की आंखों के सामने वो दुनिया साकार हो उठेगी जो अब तक अदृश्य है। ठीक इसी वक्त हम आसमान के दूसरे छोर से आने वाले संदेशों को भी समझ सकेंगे। सेंट क्लेयर की गणना है कि 2011 के बाद जब यूरेनस और बृहस्पति जब मेष राशि में प्रवेश करेंगे तो कुछ महान खोजें होंगी और दूसरी दुनिया के लोग धरती पर उतरेंगे और इसीके साथ धरतीवासियों यानि हम सबका भविष्य हमेशा के लिए बदल जाएगा।  
ब्रह्मवैवर्त पुराण का आख्यान
ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्रीकृष्ण गंगा को बताते हैं कि कलियुग में भी एक स्वर्ण युग आएगा। श्रीकृष्ण भविष्यवाणी करते हैं स्वर्ण युग की शुरुआत कलियुग के शुरू होने से 5000 साल बाद होगी और ये सुनहरा युग अगले 10,000 साल तक रहेगा। संस्कृत के कुछ विद्वानों और ज्योतिषियों की गणना है हिंदू जिसे कलियुग कहते हैं उसकी शुरुआत होती है ईसा के जन्म से 3102 साल पहले, 18 फरवरी को। माया कैलेंडर शुरू होता है ईसा के जन्म से 3114 साल पहले, यानि कलियुग के कैलेंडर और माया कैलेंडर में केवल 12 साल का अंतर है। हैरानी की बात है कि दोनों कैलेंडर शुरु हुए करीब 5000 साल पहले और दोनों ही कैलेंडरों में 5000 साल बाद दुनिया में किसी बहुत बड़े बदलाव की ओर इशारा किया गया है। इससे ज्यादा हैरानी की बात ये कि हिंदू और माया सभ्यताओं के बीच कभी कोई संपर्क रहा हो, इसके कोई प्रमाण नहीं हैं। प्राचीन भारत में ज्यादातर चंद्र कैलेंडर का इस्तेमाल होता था, हालांकि सूर्य कैलेंडर भी चलन में था। अगर चंद्रमा की तिथि के अनुसार देखें तो एक साल में हुए 354.36 दिन। कुछ लोगों की गणना है कि चंद्र तिथि के मुताबिक कलियुग में स्वर्णयुग की शुरुआत हो रही है 21 दिसंबर 2012 के आसपास, ये वही तिथि है जब माया सभ्यता का कैलेंडर खत्म हो रहा है।
 आई चिंग की गणना
अमेरिकी अंक ज्योतिष विशेषज्ञ भाइयों डेनिस जॉन मैक्केना और टेरेंस मैक्केना ने 1993 में एक किताब लिखी जिसका शीर्षक था इनविजिबिल लैंडस्केप : माइंड हैलोसिनोजेन्स एंड द आई चिंग। आई चिंग प्राचीन चीन के सबसे पुराने लेख हैं, जिनका संबंध ब्रह्मांड और नई शुरुआत से है। मैक्केना भाइयों के मुताबिक 2012 में 22 दिसंबर की तारीख काफी खास है, इस दिन कुछ ऐसी घटनाएं घटेंगी जो दुनिया को खात्मे की ओर ले जा सकती हैं। उनका दावा है कि 2012 को लेकर उन्होंने 1970 के शुरुआती दौर में ही गणना कर ली थी, जबकि उस वक्त उन्होंने माया कैलेंडर के बारे में सुना तक नहीं था। अंक ज्योतिषियों के मुताबिक हमारी आकाशगंगा का केंद्र धनु राशि के तारामंडल में 26 डिग्री 54 मिनट की स्थिति पर है। 2010 में ये स्थिति बदलकर 27 डिग्री 0 मिनट की हो जाएगी, जबकि 2012 में आकाशगंगा के केंद्र की स्थिति होगी 27 डिग्री और 1 मिनट। अंक ज्योतिष के मुकाबिक 27+1 = 10 = 1+0 = 1 =  यानि, एक नई शुरुआत।
अर्थशास्त्रियों की नजर में 2012
2012 के बारे में एक और भविष्यवाणी की है अर्थशास्त्रियों ने, जिनमें मुख्य हैं हॉवर्ड यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री जेफ्री फ्रैंकल। जेफ्री कहते हैं कि अर्थशास्त्र के कुछ सिद्धांतों के मुताबिक दुनिया में अगली सबसे बड़ी आर्थिक मंदी 2012 में आएगी। जेफ्री के मुताबिक विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थों में, जिसमें भारत भी शामिल है, 15 साल का एक खास पैटर्न देखने को मिलता है। जिसमें 7 साल की मजबूती के बाद अगले 7 साल कमजोर यानि मंदी के दिखाई देते हैं। इन दो स्थितियों के बीच एक साल ऐसा आता है जब वित्तीय तरलता यानि पैसों का प्रवाह अचानक थम जाता है। विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था पर नजर डालें तो लगातार 7 साल की मजबूती के बाद 1997 में एशियाई अर्थव्यवस्थाएं एक के बाद एक ढहती नजर आने लगीं थीं। हालांकि भारत 1997 के एशियाई संकट से अछूता रहा था, लेकिन फिर भी अगर हम पूरे एशिया की बात करें तो ये सिद्धांत काम करता नजर आता है। इस सिद्धांत के मुताबिक न केवल एशिया बल्कि दुनियाभर में तेजी से आगे बढ़ रहे देशों की अर्थव्यवस्थाओं को एक तगड़ा झटका 2011 या 2012 में लगेगा।
विनाश की भविष्यवाणियों की हकीकत
ये हैं वो तमाम आशंकाएं जो दिसंबर 2012 को लेकर जताई जा रही हैं। अब इन तमाम भविष्यवाणियों पर एक-एक कर नजर डालते हैं और ये जानने की कोशिश करते हैं कि 2012 को लेकर हमारा डर कितना वाजिब है। सबसे पहले बात सुमेरिया सभ्यता की, महत्वपूर्ण सवाल ये कि आखिर प्राचीन काल के एक शिलालेख को लेकर आज हम गंभीर क्यों हैं ?  दरअसल हमारे सौरमंडल के स्वरूप को लेकर सुमेरियाई लोगों की अवधारणा बहुत-कुछ वैसी ही थी, जैसी कि हमारी आज है। दूसरी सदी में टॉलमी और अरस्तु का मानना था कि धरती आसमान का केंद्र है और सभी ग्रह और तारे इसकी परिक्रमा करते हैं। इसे हम जियोसेंट्रिक थ्योरी के नाम से जानते हैं। निकोलस कोपर्निकस (1473-1543) पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने कहा कि ये सिद्धांत गलत है। उन्होंने हेलियोसेंट्रिक थ्योरी दी और कहा कि ब्रह्मांड का केंद्र धरती नहीं बल्कि सूरज है। कोपरनिकस के सिद्धांत को सही साबित करने वाले गैलीलियो को चर्च ने कैद कर लिया था। कैपलर(1571-1630) ने भी बाद में साबित किया कि सूरज हमारे सैरमंडल का केंद्र है और तारों के साथ ब्रह्मांड के दूसरे पिंडों का उससे कोई लेना-देना नहीं। 
खास बात ये, कि हमारे सौरमंडल का केंद्र सूरज है और पृथ्वी समेत अन्य ग्रह उसकी परिक्रमा करते हैं, ईसा के जन्म से 3400 साल पहले ही सुमेरियाई लोग इसे जानते थे। जबकि प्रकृति की इस सच्चाई को जानने में हमें दूसरी सदी से सोलहवीं सदी यानि करीब 1400 साल लग गए और इस दौरान न जाने कितनी कुर्बानियां देनी पड़ीं। सुमेरियाई लोग मानते थे कि हमारे सौरमंडल में 11 ग्रह हैं जो केंद्र सूरज की परिक्रमा करते रहते हैं, ये ग्रह हैं, प्लूटो, नेप्च्यून, यूरेनस, शनि, ब्रहस्पति, मंगल, पृथ्वी, शुक्र, बुध, चंद्रमा और 11 वां धूमकेतु ग्रह नाइबरू। सुमेराई लोग मानते थे कि उनके संरक्षक 12 देवता नाइबरू से ही धरती पर आए थे और मानव जाति को धरती पर विकसित करने के साथ इस दुनिया और ब्रह्मांड को समझने का ज्ञान भी दिया था। सरमंडल को लेकर सुमेरियाई लोगों की समझ ही वो एकमात्र कारण है जिससे 2012 को लेकर उनकी भविष्यवाणी खबरों में हैं।
हाल ही में हमें प्लूटो के पास एक विशाल पिंड मिला है, जिसका आकार लगभग प्लूटो जितना ही है। साइंटिस्टों के मुताबिक ये अब तक खोजा गया सबसे विशाल धूमकेतु है, जिसका आकार किसी ग्रह की तरह गोल है, हां, दूसरे धूमकेतुओं की तरह इसके कोई पूंछ नहीं है, इसकी वजह ये कि सूरज से बेहद दूर होने की वजह से इसमें वाष्पीकरण नहीं हो रहा। लेकिन प्लूटो जितना बड़ा ये गोल धूमकेतु सुमेरियाई लोगों का 11 वां ग्रह नाइबरू नहीं है, क्योंकि एक तो ये बिल्कुल बेजान है और दूसरा ये कि अभी कई सौ साल तक इसके धरती के पास आने की कोई संभावना भी नहीं है। सौरमंडल के ग्रहों की संख्या भी हर दूसरे दिन बढ़ा नहीं करती, कोई ऐसा नया ग्रह नहीं है जो हमारे सौरमंडल में मौजूद हो और हम जिससे अबतक अनजान हों। यानि सुमेरियाई लोगों का नाइबरू ग्रह हमारे सौरमंडल में तो नहीं है। सौरमंडल से बाहर अबतक हम करीब 700 नए ग्रह तलाश चुके हैं जो अपने-अपने सूरज की परिक्रमा कर रहे हैं, लेकिन ये पृथ्वी से इतनी दूर हैं कि चार-पांच साल तो छोड़िए चार-पांच लाख साल में भी धरती के पास नहीं फटक सकते। साइंस जरूर जीवन से भरपूर प्लेनेट एक्स को तलाश रहा है, लेकिन अब तक हमें ऐसा कोई ग्रह नहीं मिला है जहां जीवन फल-फूल रहा हो और जो पृथ्वी के जैसा हो। इसलिए 2012 में नाइबरू ग्रह धरती से टकराएगा या करीब से गुजरेगा ये बात कल्पना की उड़ान से ज्यादा कुछ और नहीं है।
अब बात माया सभ्यता के कैलेंडर की। माया सभ्यता के लोग भले ही खगोल विज्ञान में दिलचस्पी रखते हों, लेकिन झाड़-फूंक और बलि जैसी कुप्रथाएं भी उनके समाज में थीं। सूर्यग्रहण में हमें कोई खास बात नहीं नजर आती, लेकिन माया सभ्यता के लोग ग्रहण से कांप उठते थे और सूर्य देवता को खुश करने के लिए जाने कितने लोगों को बलि पर चढ़ा दिया जाता था। अपने घर की दीवार पर टंगे जिस कैलेंडर हम रोज निगाह दौड़ाते हैं, पहले-पहल उसका इस्तेमाल किया गया था यूरोप में 1582 को। ये ग्रिगोरियन कैलेंडर पर आधारित था और इसके मुताबिक धरती 365.25 दिन में सूरज की एक परिक्रमा पूरी करती है। 400 साल से हम इसी कैलेंडर का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। माया लोगों का कैलेंडर, उनके पूर्वजों ओल्मेक लोगों की गणनाओं से प्रभावित था। सोलहवीं सदी के यूरोपियन उपकरणों की मदद के बिना ही 3000 साल पहले ओल्मेक लोगों ने ये गणना कर ली थी कि एक साल में 365.24 दिन होते हैं। माया कैलेंडर का डर दिखाकर प्रलय की भविष्यवाणी का आधार ये है कि माया कैलेंडर इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वो 21 दिसंबर 2012 से आगे की तारीख नहीं बताता। इसीलिए कुछ लोग ये कह रहे हैं कि 21 दिसंबर 2012 दुनिया का अंतिम दिन है और इसके बाद सबकुछ खत्म। यूनिवर्सिटी आफ सिडनी के डॉ. कार्ल क्रूजेल्निकी माया सभ्यता के कैलेंडर का हौव्वा खड़ा करने वालों को एक माकूल जवाब देते हैं। डॉ. क्रूजेल्निकी कहते हैं जब कोई कैलेंडर अपना एक चक्र पूरा कर लेता है, तो वो खुद-ब-खुद अगले चक्र में प्रवेश कर जाता है। हम अपने कैलेंडर की मिसाल लें तो हर साल 31 दिसंबर आता है, लेकिन ऐसा तो नहीं है कि अगले दिन प्रलय टूट पड़ती है। 31 दिसंबर के बाद दुनिया नहीं खत्म होती बल्कि एक नया कैलेंडर शुरू हो जाता है, ठीक इसी तरह माया कैलेंडर भी 21 दिसंबर के बाद फिर वापस अपनेआप नए चक्र में प्रवेश कर जाएगा। यानि 21 दिसंबर हमारे 31 दिसंबर जैसा ही है और इसके बाद माया कैलेंडर खत्म जरूर होगा लेकिन नए कैलेंडर की शुरुआत भी हो जाएगी।
बौद्ध भिक्षुओं की भविष्यवाणी को अगर गौर से देखें तो कोई नई बात नहीं है। दुनिया में नाभिकीय हमले का खौफ 6 अगस्त 1945 से ही मंडरा रहा है, जब हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया गया था। भविष्य में नाभिकीय हमले से धरती को बचाने के लिए दैवीय ताकतें हस्तक्षेप करें न करें लेकिन हम धरतीवासियों ने आपस में ही मिलकर ऐसी अंतरराष्ट्रीय निगरानी व्यवस्था जरूर बना ली है जो अब हिरोशिमा जैसी घटना अब दोबारा नहीं होने देगी। हमारी ये व्यवस्था किस कदर कारगर है इसका पता इस बात से चलता है कि बीते 63 साल में धरती पर दोबारा फिर कभी परमाणु बम नहीं गिराया गया।
हाल में घटी कई ऐसी घटनाएं हैं लोग जिनके सूत्र 500 साल पहले की गई नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियों में खोज सकते हैं। लेकिन साथ ही कई ऐसी बातें भी हैं जो नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियों को गलत भी साबित करती हैं। मिसाल के तौर पर सूरज पर भूकंप नहीं आ सकता, इस आपदा के लिए पथरीली जमीन का होना जरूरी है जो सूरज पर नहीं है। हां, सौर विकिरण के तूफान जरूर कहर बरपाते हैं लेकिन छिटपुट घटनाओं को छोड़ दें तो अबतक सौर विकिरण की कोई ऐसी घटना नहीं हुई जिससे पूरी दुनिया एकसाथ प्रभावित हो जाए। रही बात आसमानी आफत टूटने की तो धरती पर किसी उल्का के आ गिरने की आशंका हमेशा से रही है। लेकिन इस खतरे की निगरानी और बचाव दोनों पर हमारा ध्यान है। नासा का नियर अर्थ ऑब्जेक्ट प्रोग्राम और यूरोपियन स्पेस एजेंसी लगातार ऐसी उल्काओं की निगरानी में जुटे हैं जिनसे धरती को खतरा हो सकता है...और अब तक हमें एक भी ऐसी उल्का नहीं मिली। नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियां पहेलीनुमा हैं, जिससे हर कोई अपने-अपने अर्थ निकाल सकता है।
जेनेवा में मौजूद सेर्न प्रयोगशाला में ब्रह्मांड के राज जानने में जुटी भारतीय टीम का नेतृत्व कर रहे वैज्ञानिक प्रो. वाई पी वियोगी कहते हैं अमेरिकी लोगों को कुछ ज्यादा ही डर लगता है। इसीलिए वो हमारी दुनिया को नए-नए खतरों की आशंकाएं जाहिर करते रहते हैं। प्रो. वियोगी की ये टिप्पणी बेहद महत्वपूर्ण है और इसी की झलक मिलती है अमेरिकी भविष्यवेत्ता माइकल सेंट क्लेयर  की भविष्यवाणी में। 21 दिसंबर 2012 को लेकर सेंट क्लेयर ने जो कुछ कहा है उसका संबंध वास्तविक दुनिया से कम और किसी हॉलीवुड फिल्म की पटकथा जैसा ज्यादा लगता है।
अब बात ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखी श्रीकृष्ण की भविष्यवाणी पर। कलियुग में स्वर्णयुग के शुरुआत की बात को माया सभ्यता के कैलेंडर से जोड़ने की कोशिश उन लोगों की है जो किसी तरह से ये साबित करना चाहते हैं कि दिसंबर 2012 में कुछ बहुत ही भयानक घटने वाला है। माया सभ्यता के कैलेंडर और ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखी श्रीकृष्ण की बातों में कुछ एक मिलते-जुलते तथ्य निकाले जा सकते हैं। लेकिन ये अपनी बात को साबित करने के लिए की गई शैतानी दिमाग की बाजीगरी ज्यादा है। अगर गौर से देखें तो कलियुग का स्वर्णयुग तो 20वीं सदी की शुरुआत को माना जाना चाहिए जबकि साइंस में सबसे ज्यादा खोजें हुईं। कलियुग में होने वाला कल्कि अवतार, क्या हम सब में नहीं छिपा है चंद्रमा पर हमारे कदमों के निशान मौजूद हैं, हमने मंगल ग्रह पर पानी खोज निकाला है, शनि की परिक्रमा के साथ उसके चंद्रमा टाइटन पर मौजूद झीलों की झलक देखी है और अब हम तैयारी में हैं धरती के अलावा किसी और ग्रह पर बसने की ....इंटरनेट और मोबाइल ने हमें सर्वज्ञ और सर्वव्यापी बना दिया है। हमारे पास विनाश के हथियार भी हैं तो नई सृष्टि की शुरुआत की तकनीक भी। मृत्यु और रोगों पर विजय पाने की हमारी कोशिश जारी है। ये सब श्रीकृष्ण के वक्त कहां था ?  गोपिकावल्लभ गोवर्धनधारी भले ही देव हों, लेकिन गौर से देखिए तो ईश्वरांश तो हम भी हैं।
रही बात अंक ज्योतिष की, तो ये महज गणित का खेल है, इससे ज्यादा कुछ नहीं। ज्योतिषी कोई भी हों उनका धंधा लोगों की परेशानियों और उनके डर के आधार पर ही चलता है। अंत में जिक्र 2012 के बारे में अर्थशास्त्रियों की भविष्यवाणी का। हॉवर्ड यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री जेफ्री फ्रैंकल का सिद्धांत सच भी हो सकता है और नहीं भी। पैसे के खेल में फायदा भी है और नुकसान भी। अगर हम मान लें कि 2012 में दुनिया किसी बड़ी आर्थिक मंदी की चपेट में आने वाली है, तो इसका मतलब ये कतई नहीं कि ये मंदी फिर कभी खत्म नहीं होगी। आर्थिक दुनिया में उतार-चढाव तो लगा ही रहता है। अब तक जाने कितनी बार शेयर बाजारों में एतिहासिक गिरावटें दर्ज हो चुकी हैं, लेकिन इससे दुनिया के कारोबार पर तो असर नहीं पड़ा, और न ही हमारी रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित हुई।
भय का बाजार
हमेशा किसी न किसी आशंका से घबराते रहना और उस काल्पनिक खतरे से खुद को बचाने के लिए आक्रामकता दिखाना अमेरिकी संस्कृति है। भारत के लोग डर का कारोबार नहीं करते, बल्कि हम तो जीयो और जीने दो पर अमल करने वाले लोग हैं। 2012 में जिन खतरों की आशंकाएं जताई जा रही हैं, मानव जाति उनसे भी कई गुना बड़ी आपदाओं को झेल चुकी है। द्वितीय विश्वयुद्ध, हिरोशिमा-नागासाकी पर नाभिकीय हमला, शीत-युद्ध, साम्यवाद के नाम पर ढाए गए बेइंतहा जुल्मो-सितम, बोस्निया के नरसंहार और ऐसी ही न जाने कितनी आफतें हमें डिगा नहीं सकीं। हम उस वक्त भी जिंदगी का हाथ थामे मजबूत कदमों से आगे बढ़ रहे थे जब धरती बर्फ की मोटी चादर तले गहरी नींद सो गई थी। उस हिमयुग से लेकर आजतक तमाम रोगों-दुखों और आतंकवाद जैसी समस्याओं से जूझते हुए हम लगातार आगे बढ़ रहे हैं। अबतक कभी भी  विनाश की जीत नहीं हुई, हर बार विजय हुई है, मुसीबतों से जूझते हुए जिंदगी का रास्ता बनाने की इंसानी जज्बे की और 2012 और उससे भी आगे हमेशा ऐसा ही होगा।

माया पुजारियों ने विशेष धार्मिक कर्मकांड शुरू किए


मैक्सिको के दक्षिण में रहने वाले माया समुदाय ने 21 दिसंबर 2012 के लिए उल्टी गिनती शुरू कर दी है. उस दिन माया सभ्यता के प्राचीन पंचांग के अनुसार पांचवी सहस्राब्दी समाप्त होगी।
कुछ लोग माया पंचांग के युगांत को दुनिया के समाप्त होने की भविष्यवाणी मानते हैं, जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि ये एक युग का अंत भर है, दुनिया का नहीं। माया समुदाय के पुजारियों ने उल्टी गिनती के शुरू करते हुए विशेष धार्मिक कर्मकांड किए हैं।उधर मैक्सिको में अधिकारी इस वर्ष आने वाले पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे हैं।
मैक्सिको की पर्यटन एजेंसी को उम्मीद है कि साल 2012 उनके देश में पांच करोड़ से अधिक पर्यटक आ सकते हैं और इनमें से अधिकतर मैक्सिको के दक्षिणी हिस्से की ओर रुख़ कर सकते हैं।

दूसरी दुनिया से किसी के आने की भविष्यवाणी?

माया सभ्यता 250 ईस्वी से 900 ईस्वी के बीच अपने चरम पर थी. इस सभ्यता में खगोलशास्त्र, गणित और कालचक्र को काफ़ी महत्त्व दिया जाता था। माया सभ्यता का पंचांग 3114 ईसा पूर्व शुरु किया गया था। इस क्लैंडर में हर 394 वर्ष के बाद बाक्तुन नाम के एक काल का अंत होता है। अगले वर्ष 21 दिसबंर उस कैलेंडर का 13वां बाक्तुन खत्म हो जाएगा। करीब 1300 साल पहले एक पत्थर पर एक संदेश को कुछ लोग दुनिया की समाप्ति की भविष्यवाणी मान बैठे हैं और अब तो ये कथित भविष्यवाणी इंटरनेट के ज़रिए सारी दुनिया फैल चुकी है।
लेकिन पुरातत्वविद और माया सभ्यता के विशेषज्ञ मानते हैं कि ये भविष्यवाणी दुनिया की समाप्ति के बारे में न होकर, किसी दूसरी दुनिया से किसी सर्वशक्तिमान ईश्वर के पृथ्वी आगमन के बारे में है। माया सभ्यता और इसकी भविष्यवाणियों को वैज्ञानिक एक मनोरंजन से ज्यादा की अहमियत नहीं देते। लेकिन फिरभी दुनिया में विशेषकर इंटरनेट के ज़रिए प्रलय का डर फैलाया गया है।

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

2012 से नहीं, अज्ञान से डरिए – डॉ. क्रुप


2011 बीतने को है, इसी के साथ 2012 को लेकर लोगों के मन में आशंकाओं का गुबार भी उठ रहा है। पूरी जोरदारी के साथ वॉयेजर 2012 के संबंध में प्रचारित सभी आशंकाओं का खंडन करता है। लोगों को जागरूक करने के लिए हम 2012 पर एक विशेष सीरीज की शुरुआत कर चुके हैं। इसकी अगली कड़ी के तौर पर प्रस्तुत हैं 2012 से जुड़ी भ्रांतियों के संबंध में लॉस एंजेल्स की ग्रिफिथ ऑब्जरवेटरी के निदेशक डॉ.ई.सी.क्रुप के विचार उन्हीं के शब्दों में-
जैसे-जैसे 2011 के कैलेंडर की तारीख आगे बढ़ रही है, लोगों के बीच 2012 के डर का एक पुराना मजाक फिर से सुगबुगाने लगा है। आप किसी सेमिनार या वर्कशॉप में जाएं, जहां आम लोग और छात्र भी हों और उन्हें मालूम हो कि आप एक अंतरिक्ष वैज्ञानिक हैं तो सवाल-जवाब के सत्र में ये सवाल फिर से उछलने लगा है कि 2012 में क्या होगा? इस सवाल के जवाब से पहले आपको कुछ और भी जानना जरूरी है।
'विनाश' का जन्म
तबाही, बर्बादी और जान-माल का भारी नुकसान, हमें अब ऐसी शैतानी भविष्यवाणियों की आदत पड़ चुकी है। विनाश की इन भविष्यवाणियों में अजीब से डर का एक मनोरंजक रोमांच छिपा है, जो सुनने या पड़ने वाले को अपनी ओर खींचता है। 1 जनवरी 2000 भी ऐसी ही एक तारीख थी, जब दुनिया Y2K की अराजक आशंका से जूझ रही थी। मुझे ताज्जुब नहीं होगा अगर आप इसे भूल गए हों, Y2K एक कंप्यूटर वायरस था और दावे किए जा रहे थे कि ये नई शताब्दी की पहली तारीख 1 जनवरी 2000 को दुनियाभर के कंप्यूटर्स ऑपरेशनल सॉफ्टवेयर को बेकार कर देगा। मुझे तो याद नहीं कि फिर क्या हुआ था, क्या आपको याद है?  ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं जो तबाही और बर्बादी की अफवाहें उड़ाने की लत के शिकार हैं, ये लोग लोगों का ध्यान खींचने के लिए अकसर 16 वीं सदी के फ्रेंच ज्योतिषी नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियों का सहारा लेते हैं। लेखक चार्ल्स बर्लिट्ज ने 1981 में प्रकाशित अपनी किताब 'डूम्सडे 1999' में प्रलय की भविष्यवाणी की थी। इस किताब में उन्होंने 1999 में भीषण बाढ़, सूखे, प्रदूषण और धरती के चुंबकीय ध्रुवों के पलट जाने की भविष्यवाणी की थी। इतना ही नहीं उन्होंने 5 मई 2000 को ग्रहों के एक सीध में आ जाने, खतरनाक सौर तूफान उमड़ने, विनाशकारी भूकंपों, भौगोलिक परिवर्तनों और धरती में धमाके होने की भी भविष्यवाणियां की थीं। 21वीं सदी की शुरुआत से ऐन पहले भी ऐसी भविष्यवाणियों की बाढ़ आ गई थी, जिनमें नई सदी में भूकंपों, प्लेग के प्रकोप, ध्रुवों के परिवर्तन और अपनी जगह से खिसककर महाद्वीपों के समुद्र में समा जाने की बातें की गई थीं। 
लेकिन जब 1 जनवरी 2000 आई और बीत गई तो फिर विनाश के इन प्रचारकों ने तबाही की तारीख में एक नया बदलाव कर दिया, उन्होंने कहा कि पता चला है कि प्रलय अब कई महीने बाद 5 मई 2000 को आएगी। ये तारीख भी आई और गुजर गई। 1974 में जॉन ग्रिबिन और स्टीफेन प्लागेमन ने एक किताब लिखकर 10 मार्च 1982 को 'जुपिटर इफेक्ट' के चलते धरती पर तबाही और बर्बादी टूटने की भविष्यवाणी की थी। ग्रिफिन और प्लागेमन के इन ऊल-जुलूल दावों ने अखबारों की सुर्खियां तो बटोरीं, लेकिन हुआ कुछ भी नहीं। इतिहास के पन्ने ऐसे बेसिरपैर के दावों से भरे पड़े हैं। तबाही के भविष्यवक्ता हर बार गलत साबित होते हैं और हर बार वो एक नई तारीख एक नया बहाना गढ़ लेते हैं।
कैलेंडर के बदलते पन्ने
माया कैलेंडर में आखिर है क्या? कुछ लोग हैं जिनका दावा है कि ये कैलेंडर 21 दिसंबर 2012 को खत्म हो रहा है। हालांकि माया कैलेंडर के हिसाब से देखें तो ये हजार साल का अंत नहीं है, बल्कि इस तारीख को 'बक्तून-13' खत्म हो रहा है। माया कैलेंडर समय के कई चक्र पर आधारित है इन्हीं में से एक समय चक्र है 'बक्तून'...एक 'बक्तून' में 1,44,000 दिन होते हैं। आइए जानते हैं कि माया कैलेंडर और दुनिया के अंत की इस भविष्यवाणी की शुरुआत कैसे हुई?
1975 में रोमांटिक और काल्पनिक भविष्य की रूपरेखा रचने में माहिर लेखक फ्रैंक वाटर्स ने अपनी किताब मैक्सिको मिस्टीक में पहली बार माया सभ्यता के कैलेंडर का जिक्र किया। उन्होंने '13-बक्तून' के समयकाल को 'ग्रेट माया साइकिल' का नाम दिया और बढ़ाचढ़ा कर इसकी अवधि 5,200 साल की बताई। वाटर्स की गणना थी कि अब तक ऐसी 5 'ग्रेट माया टाइम साइकिल' बीत चुकी है और हर साइकिल का खात्मा दुनिया में भारी विनाश और पुनर्रचना के साथ हुआ। मजे की बात ये कि माया परंपरा के मूल कैलेंडर में ऐसी किसी विपदा या विनाश की कोई बात कहीं नहीं है। इतना ही नहीं वाटर्स ने उस तारीख को पहचानने में भी गलती की जब माया का कैलेंडर खत्म हो रहा था। वाटर्स के मुताबिर माया कैलेंडर 24 दिसंबर 2011 को खत्म हो रहा है और इस दिन ऐसा भीषण भूकंप आएगा कि पूरी दुनिया ही खत्म हो जाएगी। बस फिर क्या था, माया कैलेंडर की आड़ में तबाही और बर्बादी की बातें वाटर्स से शुरू होकर चल निकलीं...लोगों को मजा आने लगा और नए-नए किस्से जुड़ते चले गए।         
एक और किताब थी जिसने इस अफवाह को और भी फैलाया। 1975 में डेनिस और टेरेंस मैक्केना ने अपनी किताब 'द इनविजिबिल लैंडस्केप-माइंड, हैलुसिनोजन्स एंड द आई चिंग' में माया कैलेंडर के खत्म होने पर व्यापक चर्चा की। इस किताब में कम से कम पहली बार 'बक्तून-13' और माया कैलेंडर के खत्म होने की तारीख की सही गणना की गई, ये थी 21 दिसंबर 2012। ये तारीख कुछ और नहीं बल्कि 2012 के विंटर सोल्सटाइस का दिन है, जब सूरज गैलेक्टिक सेंटर से करीब 3 डिग्री धनु राशि में होगा और संयोग से इक्लिप्टिक लाइन से इसकी स्थिति 2 डिग्री की होगी। मैक्केना ने अपनी किताब में कहा कि इस दिन सूरज गैलेक्टिक सेंटर यानि आकाशगंगा के केंद्र पर ग्रहण की स्थिति बनाएगा। वास्तविकता में देखें तो ऐसी स्थिति कभी नहीं बनने वाली, लेकिन जब अफवाहों का बाजार गर्म हो, तब तथ्यों की परवाह कौन करे। 
 2012 के हिस्टीरिया की शुरुआत 1987 से हुई, जब जोश एरगुएल्स की किताब 'द मायन फैक्टर-पाथ बियांड टेक्नोलॉजी' बाजार में आई। मैक्केना की कल्पना को आगे बढ़ाते हुए जोश ने अपनी किताब में लिखा कि 21 दिसंबर 2012 को जब सूरज आकाशगंगा के केंद्र से ग्रहण की स्थिति बनाएगा तब आकाशगंगा के केंद्र से एक किरण सी फूटेगी। लेखक के मुताबिक माया लोग इस किरण के बारे में जानते थे और वो ये भी जानते थे कि धरती कब इस किरण में प्रवेश करेगी और कब इससे बाहर निकलेगी। जोश ने लिखा कि ये किरण एक अदृश्य आकाशगंगीय जीवन धागे की तरह काम करेगी और धरती के सभी लोगों, इस पूरे ग्रह और सूरज को आकाशगंगा के केंद्र से जोड़ देगी। तथ्यों की बात करें तो, इस अनोखी कल्पना का जिक्र न तो माया सभ्यता की परंपरा में कहीं है और न ही आधुनिक अंतरिक्ष विज्ञान ही ऐसी बेसिर-पैर की बातों का समर्थन करता है। 
 1987 में जोश एरगुएल्स और दुनियाभर में फैल चुके उनके समर्थकों ने भविष्यवाणी की कि उस साल 16-17 अगस्त को 'माया-आकाशगंगीय किरण का जीवन धागा' पूरी दुनिया पर छा जाएगा। इन लोगों ने दावा किया कि इस घटना का असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा और हजारों लोगों को धरती के 'एक्यूप्रेशर बिंदुओं' पर इकट्ठा होकर एक 'बायो-इलेक्ट्रोमैग्नेटिक बैटरी' का निर्माण करना चाहिए। लेकिन ये तारीख आई और शांति से गुजर गई और जोश-उनके समर्थकों के दिमागों को छोड़कर कहीं कुछ नहीं हुआ।

आकाशगंगा का खिलवाड़
आइए जल्दी से 1995 की बात करें, इस साल जॉन मेजर जेनकिन्स ने दुनिया के खात्मे औप प्रलय के तमाम दावों को माया कॉस्मोजेनेसिस 2012 के साथ जोड़ दिया। जेनकिन्स के मुताबिक 2012 के विंटर सोल्सटाइस के दिन सूरज आकाशगंगा के केंद्र के बिल्कुल एकसीध में आ जाएगा। जेनकिन्स का दावा था कि माया लोग इस घटना के बारे में जानते थे और इसीलिए इसकी तारीख बताने के लिए उन्होंने इस खास कैलेंडर का निर्माण किया।  
साइंस के नजरिए से देखें तो अंतरिक्ष विज्ञान में ऐसे आकाशगंगीय संयोग की गणना नहीं की जा सकती। हमारी आकाशगंगा मिल्की-वे का सटीक बाहरी सीमांकन संभव नहीं है। इसके अलावा सबसे बड़ा तथ्य ये है कि हमारी आकाशगंगा गोलाकार है और गोले के व्यास पर आप कहीं भी हों हर वक्त केंद्र के साथ एकसीध की स्थिति में ही रहेंगे। इस लिहाज से हमारा सूरज हरदिन हर पल आकाशगंगा के केंद्र के साथ एकसीध में ही रहता है। इस छोटे से तथ्य को इंटरनेट पर छाई 2012 की एक से बढ़कर एक तबाही की भविष्यवाणियों और उनके प्रणेताओं के साथ ही ज्यादातर लोग भी नहीं समझते। 2012 में दुनिया को तबाह होते देखने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे ये लोग अब ये दुष्प्रचार कर रहे हैं कि हमारा सूरज अब आकाशगंगा के केंद्र की ओर खिंचा चला जा रहा है और साथ ही ये धरती और दूसरे ग्रहों को भी लेता जा रहा है। इसके नतीजे के तौर पर बताया जा रहा है कि 2012 को धरती के चुंबकीय ध्रुव पलट जाएंगे। 2012 के प्रलय के बारे में जितनी भी बातें कही गई हैं वो सब किसी तिलिस्मी परीकथा से ज्यादा कुछ और नहीं। साइंस पहले भी दुनिया को बेहतर बनाने का काम करती रही है और वैज्ञानिक तथ्यों के नजरिए से देखें तो दुनिया 2012 में और भी ज्यादा सुरक्षित, और भी ज्यादा सुखद और और भी ज्यादा बेहतर होगी। 

डॉ. ई.सी.क्रुप, निदेशक, ग्रिफिथ ऑब्जरवेटरी, लॉस एंजिल्स

बुधवार, 30 नवंबर 2011

2012 - एक पुराना मजाक !


साल 2011 अब अपने आखिरी महीने में आगे खिसक रहा है, और इसी के साथ 2012 में दुनिया के अंत की बातें भी रोजाना की बतकही में बार-बार लौट रही हैं। लोग एक रोमांचक मजाक के तौर पर इसका जिक्र करते हैं, लेकिन अगर वे अंदर से यकीन न कर रहे होते तो बात उनकी जुबान पर नहीं आती। कितना यकीन? आप कहेंगे 20 पर्सेंट। हो सकता है कोई 80 पर्सेंट तक भी जा पहुंचे। लेकिन मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि 100 पर्सेंट यकीन का हलफनामा कोई नहीं देगा।
कोई नहीं, क्योंकि हम हंड्रेड पर्सेंट यकीन करते ही नहीं। न 2012 पर, न भाग्य पर और न ही ईश्वर पर। इंसान की यही बेहद दिलचस्प खामी या खासियत है कि वह यकीन पर भी पूरा यकीन नहीं करता। वह यकीन पर भी शक करता है। वैज्ञानिक प्रक्रिया और वैज्ञानिक खोजों का आधार भी यही है। एक वैज्ञानिक अपने सिद्धांत पर खुद ही शक करता है और इसीलिए प्रयोगों और प्रेक्षणों के जरिए इसकी बार-बार पुष्टि करने के लिए वो दूसरे वैज्ञानिकों को आमंत्रित करता है। इस तरह जब हर बार अलग-अलग प्रयोगों से भी एक ही नतीजा निकलता है, तभी उसे वैज्ञानिक सिद्धांत या नई खोज का दर्जा दिया जाता है। अपने यकीन पर शक की इसी विशेषता से आदिम युग से निकलकर मानव अब विकास की नई सीढ़ियां चढ़ रहा है।
कोई एलियन धरती पर आए, इंसान के दिमाग में झांके तो उसे हैरानी होगी। शायद वह इसे सबसे बड़ा रहस्य मान बैठे। लॉजिक तो यही कहता है अगर आप ईश्वर पर यकीन करते हैं, मानते हैं कि उसी ने दुनिया बनाई और आपको इसमें एक रोल निभाने भेजा, तो फिर आपके जीवन में चिंता मिट जानी चाहिए। अगर यह सब माया है तो फिर इसे लेकर उलझने का सवाल पैदा नहीं होता। ईश्वर ने मुझे अपनी वजहों से बनाया है, वही मेरा नियंता है, तो मैं क्यों खुद को कर्ता समझूं और क्यों उन दुखों से गुजरूं जो मेरे आसपास पैदा होते रहते हैं। एक बार ईश्वर पर यकीन हो जाने के बाद इस नतीजे तक पहुंचने में क्या देर हो सकती है।
यही बात भाग्यवाद पर भी लागू होती है। अगर सब कुछ पहले से तय है और मैं महज एक मोहरा हूं तो मैं संसार को लेकर क्यों परेशान होता रहूं। जो हो रहा है, वह होना था और जी होगा, वह भी। यहां तक कि जो मैं करता हूं वह भी डिवाइन स्क्रिप्ट के मुताबिक है। भाग्यवाद के इस अंजाम तक पहुंचने में क्या दिक्कत हो सकती है।
लेकिन हम इंसान हैं। हम ईश्वर पर यकीन के बाद उससे आंख चुराने के रास्ते खोज लेते हैं। हम भाग्यवाद की दुहाई देने के अगले पल संसार को चैलेंज करने निकल पड़ते हैं। खुदा के दरबार में भी हम अपने कुर्ते के भीतर ईगो की मिसाइल छिपाए रखने की नाकाम कोशिश करते हैं। जैसे हम भगवान के केयरटेकर हों, हम यह भी खुद तय कर लेते हैं कि वह अंतर्यामी, त्रिकालदर्शी अक्सर अपने बंदों की तरफ नहीं देख रहा होता है और उसी समय मुसीबत टूट पड़ती है, लिहाजा उसका ध्यान खींचते रहना जरूरी है। और देखिए कि हमें उसके सामने धमक कर ऐलान करना पड़ जाता है, खुश तो तुम बहुत होगे आज...
इसलिए मैंने 2012 के खौफ में जी रहा कोई शख्स अब तक नहीं देखा, जिसने अपनी तिकड़मों और दंद-फंद को इन आखिरी दिनों में आराम दे दिया हो। कोई नहीं देखा, जिसने 2013 के लिए तैयारियां करनी और उन्हें लेकर परेशान होना मुल्तवी कर दिया हो। धर्म, परलोक, जादू और चमत्कारों की दुहाई देने वाले भी अपने सगों से विदाई लेते नहीं दिखते।
वे दिखेंगे भी नहीं। वरना तो दूध पीने वाले गणेश जी के इस देश में उस चमत्कार के बाद अधर्म के लिए जगह बचनी ही नहीं चाहिए थी। दूध पी लेने से ज्यादा कोई ईश्वर अपने होने की और क्या गारंटी दे सकता है। क्या हम चाहते हैं कि वह हमारे सामने साक्षात प्रकट हो, हमें झापड़ मारे और कहे मैं हूं, सुप्रीम कोर्ट में जाए और खुद के होने को साबित कर दे। क्या ईश्वर के साक्षात दर्शन कर लेने के बाद भी सांसारिकता बची रह सकती है?
बची रह सकती है। रहेगी ही। क्योंकि हम तो ऐसे ही हैं। हम अधूरे हैं। हमारा यकीन अधूरा है। इसलिए कि हमें अपने यकीन पर ही यकीन नहीं है। हम अधूरे धार्मिक, अधूरे भाग्यवादी हैं। विश्वास का यह अधूरा सफर बहुत सी उलझनों को जन्म देता है। यह एक अनिश्चित दिमाग का संकेत है, जो कई भ्रमों में अपनी एनर्जी को भटकाए रखता है, ऐसी स्थितियों के बीच झूलता है, जो किसी अंजाम तक नहीं पहुंचतीं, फैंटेसी में सिर छिपाता है, उसी में जीने लगता है और दुश्वारियों को जन्म देता है। मानसिक बीमारियों, जादू, टोने और प्रेत बाधा से परेशान करोड़ों लोगों पर नजर डालिए।
लेकिन कुछ और नुक्ते हैं। क्या धर्म भी एक परीकथा है जो इंसान ने खुद को राहत देने के लिए रची है और इस परीकथा के भीतर-बाहर होने का हक उसने अपने लिए रिजर्व रखा है। या फिर यह तो नहीं कि अधूरा यकीन इंसान की बुनियादी फितरत हो। यह फितरत उसे यकीन पर सवाल उठाने की, परंपरा तोड़ने की और नया गढ़ने की ताकत देती हो। यही फितरत उसकी आजादी हो, क्योंकि वही आजादी ईश्वर के हजार चेहरे गढ़ने, ईश्वर की बातों को नए-नए मतलब देने और उन मतलबों पर आपस में लड़ मरने का मजा देती है। महाभारत में ठीक ही कह दिया गया है- इंसान सबसे बड़ा है, उससे बड़ा कुछ नहीं। इसके अलावा कहा भी क्या जा सकता था?

साभार - संजय खाती

शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

धरती से दूर जिंदगी की संभावना?


दूसरे ग्रहों पर जीवन की संभावनाओं पर काम कर रहे वैज्ञानिकों ने एक सूची तैयार की है कि किन ग्रहों और किन चंद्रमाओं पर जीवन के लिए मददगार माहौल होने की संभावना सबसे ज्यादा है इस लिस्ट के मुताबिक हमारे सौरमंडल के शनि ग्रह का चंद्रमा टाइटन और हमारे सौर मंडल से बाहर का एक ग्रह 'ग्लीज़ 581जी' में जीवन के किसी स्वरूप के मौजूद होने या फिर जीवन के फलने-फूलने के लिए मददगार माहौल के होने की संभावना सबसे ज्यादा हो सकती है।
वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने दूसरे ग्रहों में जीवन की संभावना के लिए दो तरह की सूची तैयार की है। एक सूची उन ग्रहों और चंद्रमाओं की है जो भौगोलिक रूप से पृथ्वी जैसे हैं इसे 'अर्थ सिमिलरिटी इंडेक्स (ईएसआई)' का नाम दिया गया। दूसरी सूची उन ग्रहों-चंद्रमाओं की है जहां जीवन पनपने की संभावना सबसे ज्यादा है, इसे 'प्लैनेटरी हैबिटैबिलिटी इंडेक्स (पीएचआई)' का नाम दिया गया है। ये रिसर्च पेपर एस्ट्रोबायोलॉजी के एक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
इस शोधपत्र के सहलेखक, अमेरिका की वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के डॉ डिर्क शुल्ज़ माकश कहते हैं, "चूंकि हम अपने अनुभवों से जानते हैं कि पृथ्वी जैसी परिस्थितियां हों तो वहां जीवन पनप सकता है, इसलिए पहला सवाल ये था कि क्या किसी और दुनिया में पृथ्वी जैसी परिस्थितियां हैं?"
डॉ.शुल्ज कहते हैं, "दूसरा सवाल ये था कि किसी और सौरमंडल में क्या कोई ऐसा ग्रह है जहां ऐसा मौसम है कि वहाँ किसी और रूप में जीवन पनप सकता है, चाहे उसकी जानकारी हमें हो या हो।" लिस्ट की पहली श्रेणी ईएसआई में उन ग्रहों को रखा गया जो पृथ्वी की तरह हैं, इसमें उनके आकार, घनत्व और अपने सितारे से उनकी दूरी को ध्यान में रखा गया। जबकि दूसरी सूची यानी पीएचआई में दूसरे पैमाने रखे गए, जैसे कि उस दुनिया का मौसम कैसा है? उसकी सतह चट्टानी है या बर्फ़ीली? वहां वायुमंडल है या चुंबकीय क्षेत्र? वैज्ञानिकों ने अपने शोध में ये भी अध्ययन किया कि क्या उस ग्रह या चंद्रमा में कोई कार्बनिक यौगिक पदार्थ मौजूद है या कोई ऐसा तरल पदार्थ मौजूद है जो व्यापक रासायनिक क्रिया करने में सक्षम हो?
ईएसआई यानी पृथ्वी से समानता वाली सूची में सबसे अधिक अंक 1.00 दिया गया, जो कि ज़ाहिर तौर पर पृथ्वी के लिए था लेकिन दूसरे नंबर पर ग्लीज़ 581जी आया जिसे 0.89 अंक मिले। इसके बाद इससे मिलता जुलता ही एक ग्रह ग्लीज़ 581डी आया जिसे 0.74 अंक मिले। ये दुनिया हमारी धरती से करीब 20.5 प्रकाश वर्ष दूर है। हमारे अपने सौर मंडल में जिन ग्रहों को सबसे ज़्यादा अंक मिले उनमें मंगल (0.70 अंक) और बुध (0.60 अंक) हैं। जबकि उन ग्रहों या चंद्रमाओं में जो पृथ्वी की तरह तो नहीं हैं लेकिन फिर भी वहां जीवन हो सकता है, सबसे अधिक 0.64 अंक मिले शनि के चंद्रमा टाइटन को, दूसरे मंगल (0.59 अंक) को और तीसरे बृहस्पति (0.47 अंक) को।
नासा के स्पेस टेलिस्कोप केप्लर ने अब तक एक हज़ार ऐसे ग्रहों या चंद्रमाओं का पता लगाया है जहां जीवन पनपने की संभावना हो सकती है। उनका कहना है कि भविष्य में जो टेलिस्कोप बनेंगे, उनमें ये क्षमता भी होगी कि वह किसी ग्रह में जैविक पदार्थों से निकलने वाली रौशनी को पहचान सके। उदाहरण के तौर पर क्लोरोफ़िल की उपस्थिति जो किसी भी पेड़-पौधे में मौजूद अहम तत्व होता है।

पृथ्वी से समानता सूचकांक

पृथ्वी -                1.00
ग्लीज़ 581जी -    8.89
ग्लीज़ 581डी -     0.74
ग्लीज़ 581सी -    0.70
मंगल -                0.70
बुध -                   0.60
एचडी 69830 -     0.60
55 सीएनसी सी - 0.56
चंद्रमा -               0.56
ग्लीज़ 581 -      0.53

जीवन पनपने की संभावना सूचकांक

टाइटन -             0.64
मंगल -               0.59
यूरोपा -              0.49
ग्लीज़ 581जी -   0.45
ग्लीज़ 581डी -    0.43
ग्लीज़ 581सी -   0.41
वृहस्पति -          0.37
शनि -                0.37
शुक्र -                 0.37
एन्सेलैड्स -       0.35