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बुधवार, 21 दिसंबर 2011

2012 में विनाश की भविष्यवाणियां और उनकी सच्चाई



मैक्सिको से खबर आई है कि इस देश के दक्षिणी इलाके में रहने वाले माया सभ्यता के पुजारियों ने आने वाले 21 दिसंबर 2012 के लिए विशेष धार्मिक कर्मकांड शुरू कर दिए हैं। दरअसल मैक्सिको प्रशासन के अधिकारियों को बैठे-बिठाए 2012 के नाम पर पर्यटन से मोटा मुनाफा कमाने का फार्मूला मिल गया है और इसी सिलसिले में किया जा रहा ये धार्मिक कर्मकांड माया सभ्यता की ओर दुनियाभर के लोगों का ध्यान खींचने की कोशिश भर है। अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वाहन करते हुए वायेजर 2012 के नाम पर लोगों को डरा कर मुनाफा बटोरने की हर कोशिश की कड़े शब्दों में निंदा करता है। 2012 के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हमारी विशेष सीरीज का आयोजन जारी है और इसी सिलसिले में प्रस्तुत है 2012 को लेकर तमाम संस्कृतियों और स्वयंभू भविष्यवक्ताओं के दावों का गहन विवेचन -  
चार साल पहले मेरे एक पुरातत्वशास्त्री मित्र ने मुझे सुमेरिया और माया सभ्यताओं में 2012 को लेकर की गई गणनाओं के बारे में बताया था। तब हमने ये नहीं सोंचा था कि 2012 को लेकर एक डर का माहौल बनाने की कोशिश की जाएगी। 2012 में दुनिया खत्म हो जाएगी ! इस दावे के साथ अब तक दो मुख्य तर्क दिए गए हैं। एक तो ये कि माया सभ्यता का कैलेंडर 2012 में खत्म हो रहा है और दूसरा ये कि सुमेरिया सभ्यता की भविष्यवाणी है कि 2012 में नाइबरू नाम का एक ग्रह धरती से टकरा सकता है। प्रसिद्ध भविष्यवेत्ता नास्त्रेदमस की एक पहेली जैसे पद को भी 2012 के महाविनाश से जोड़कर देखा जा रहा है। तिब्बत के कुछ बौद्ध भिक्षुओं ने भी अपने भविष्य के आंकलन में 2012 में किसी बड़ी अनहोनी घटने की आशंका जताई है। एक हिंदू मान्यता भी है कि 2012 के बाद कलियुग का स्वर्णकाल शुरू होगा। पश्चिम के एक ज्योतिषी सेंट क्लेयर की भविष्यवाणी है कि 2012 में दूसरी दुनिया के लोग यानि एलियन्स धरती पर आएंगे। इसके अलावा हावर्ड यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री जेफ्री फ्रैंकेल का आंकलन है कि 2012 के आसपास दुनिया की ज्यादातर अर्थव्यवस्थाएं ढह जाएंगी। खगोलविज्ञान के अनुसार देखें तो दिसंबर में हमारी आकाशगंगा का केंद्र उगते हुए संक्रांति के सूरज के एक सीध में आ जाएगा।
इन सारी डरावनी सी लगने वाली बातों का क्या मतलब है ? क्या मानव जाति के पास अब केवल एक साल का ही वक्त शेष है ? 2012 में हमपर ऐसी कौन सी आफत टूटने वाली है ? आखिर 2012 का रहस्य क्या है ? और इतनी सारी आशंकाओं के बीच घिरे हम लोगों को आखिर क्या करना चाहिए ?
सुमेरिया सभ्यता का शिलालेख
सबसे पहले जानते हैं कि सदियों पहले लुप्त हो चुकी सुमेरिया सभ्यता के निवासियों ने ऐसा क्या लिख दिया, जिसे पढ़कर हम अबतक परेशान हैं। सुमेरिया सभ्यता सीरिया, ईराक और इरान के भूभाग पर दजला और फरात नदियों के डेल्टा पर ईसा के जन्म से 3400 साल पहले आबाद थी। सुमेरिया दुनिया की पहली विकसित शहर सभ्यताओं में से एक थी, सबसे खास बात तो ये कि उनकी अपनी एक भाषा लिपि भी थी। हमें अब तक जो सबसे पुराने शिलालेख मिले हैं वो सुमेरिया के ही हैं और कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सुमेरियाई संदेशों की लिपि में संस्कृत के अंश मौजूद हैं। सुमेरियाई लोगों ने अपने शिलालेखों में लिखा है कि मानव जाति इस धरती की संतान नहीं, बल्कि मानवों को देवताओं ने नाइबरू नाम के एक ग्रह से लाकर पृथ्वी पर बसाया है। सुमेरियाई लोगों को यकीन था कि उनके देवता नाइबरू ग्रह पर मौजूद हैं, जो एक ऐसे रास्ते से सूरज की परिक्रमा कर रहा है जो सौरमंडल के अन्य ग्रहों की तरह क्षैतिज न होकर ऊर्ध्व है। सुमेरियाई शिलालेखों में एक भविष्यवाणी दर्ज है कि नाइबरू ग्रह 2012 को धरती के करीब आ रहा है। दुनिया में कई लोग इन लाइनों में धरती के विनाश की आहट तलाश रहे हैं। 2012 में हमारी दुनिया के साथ कुछ बुरा होने जा रहा है, इस पर विश्वास करने वालों का कहना है कि साइंस पृथ्वी से मिलते-जुलते और जीवन से भरपूर जिस प्लेनेट एक्स की तलाश कर रहा है वो नाइबरू ही है।  नाइबरू को लेकर ये डर बताया जा रहा है कि 2012 में ये धरती से टकरा सकता है और अगर नहीं भी टकराता तो ये धरती के इतने करीब से गुजरेगा कि इसके जबरदस्त गुरुत्वाकर्षण खिंचाव से महासागरों में प्रलयंकारी सुनामी आ जाएगी जिसकी चपेट में आकर धरती का करीब आधा हिस्सा डूब जाएगा।
माया सभ्यता का कैलेंडर
सुमेरिया सभ्यता की भविष्यवाणी के बाद, दावा किया जाता है कि 2012 में अनहोनी की भविष्यवाणी माया सभ्यता के लोगों ने भी की थी। लेकिन माया सभ्यता की भविष्यवाणी किसी शिलालेख में नहीं है, बल्कि इसका इशारा छिपा है माया सभ्यता के कैलेंडर में। इस कैलेंडर के बारे में बात करने से पहले माया सभ्यता के बारे में जानना जरूरी है। ईसा की मृत्यु के बाद तीसरी सदी से दसवीं सदी के बीच दक्षिणी मैक्सिको, ग्वाटेमाला और बेलाइज के मिलेजुले भूभाग में मौजूद थी, अपने वक्त की बेहद विकसित और काफी हद तक उन्नत सभ्यता, जिसे इतिहास माया सभ्यता के नाम से जानता है। लेकिन ईसा की मृत्यु से 1200 साल बाद ये सभ्यता खत्म हो गई। माया सभ्यता क्यों खत्म हुई इसका कोई सही-सही कारण इतिहास में नहीं दर्ज है। इसके बारे में बस कुछ अनुमान ही हैं, जिनमें से एक है स्पेनी लुटेरों का हमला। माया सभ्यता के लोगों की खास रुचि नक्षत्र विज्ञान में भी थी और वैज्ञानिक गणनाओं के आधार पर उन्होंने अपना एक कैलेंडर भी बना रखा था। 2012 को लेकर सारी आशंकाओं और डर की वजह ये कैलेंडर ही है। अंग्रेजी ग्रिगोरियन कैलेंडर से तुलना करें तो माया सभ्यता का कैलेंडर कुछ ऐसा है कि इसमें 2012 तक की गणनाएं तो हैं लेकिन 21 दिसंबर 2012 के बाद की नहीं। दूसरे शब्दों में कहें तो माया सभ्यता का कैलेंडर 21 दिसंबर 2012 को खत्म हो रहा है। इसीलिए दुनियाभर में एक ऐसा तबका सामने आ रहा है जो मानता है कि 21 दिसंबर 2012 का दिन दुनिया का आखिरी दिन होगा।
अगस्त 2004 में ब्रिटेन के विल्टशर में एक किसान के खेत में खड़ी फसल एक गोलाकार संरचना के भीतर कुचली हुई पाई गई। हेलीकॉप्टर से इस इलाके के सर्वेक्षण में पाया गया कि इस क्रॉप सर्किल, यानि खेत में खड़ी फसलों के बीच मौजूद कुचली हुई फसलों के इस दायरे, में कुछ खास चिन्ह भी मौजूद हैं जो माया सभ्यता के चिन्हों से मिलते-जुलते हैं। स्थानीय क्रॉप सर्किल विशेषज्ञ फ्रांसिस ब्लेक ने इसका अर्थ समझाते हुए कहा कि क्रॉप सर्किल में मौजूद ये खास चिन्ह बताते हैं कि दुनिया में कुछ नाटकीय बदलाव आने वाले हैं। इस क्रॉप सर्किल को माया सभ्यता के कैलेंडर से जोड़ते हुए उन्होंने बताया, चंद्रमा धरती की परिक्रमा करता है, धरती सूरज की और पूरे सौरमंडल के साथ सूरज इस आकाशगंगा मिल्की-वे की। आकाशगंगा का ये परिक्रमा चक्र 26000 साल में पूरा होता है और इसका वक्त आ चुका है। माया कैलेंडर के मुताबिक ये परिक्रमा पूरी हो रही है 2012 में। इसके बाद कैलेंडर नहीं है, यानि वक्त खत्म।
2012 पर तिब्बत के बौद्ध भिक्षुओं के विचार
2012 में दुनिया का वक्त क्या वाकई खत्म हो रहा है ? इसपर बात करने से पहले ये जानना जरूरी है कि 2012 को लेकर ई-मेल, ब्लॉग साइट्स और इंटरनेट पर मौजूद तमाम किस्से क्या हैं। मुझे एक मेल भेजी गई है जिसमें ये लिखा है कि  तिब्बत के बौद्ध भिक्षु 2012 के बारे में क्या सोचते हैं। इस मेल और इंटरनेट सामग्री के मुताबिक, बौद्ध भिक्षुओं की भविष्यवाणी है कि 2010 और 2012 के बीच पूरी दुनिया का ध्रुवीकरण हो जाएगा और लोग 2012 में टूटने वाली आफत का सामना करने को लिए तैयार होने लगेंगे, भारी राजनीतिक हलचल के बाद 2012 में दुनिया प्रलयंकारी नाभिकीय युद्ध के खतरे से घिर जाएगी। ऐन मौके पर जब नाभिकीय हमलों की शुरुआत होने ही वाली होगी धरती को बचाने के लिए दैवीय ताकतें हस्तक्षेप करेंगी। ये वो वक्त होगा जब हमें पता चलेगा कि इस धरती के भाग्यविधाता हम नहीं हैं और हर पल हमारी निगरानी कर रहीं दूसरी दुनिया की ताकतें धरती पर आकर दुनिया को खत्म होने से बचा लेंगी।
2012 और नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी
कुछ लोग मानते हैं कि 16वीं सदी के फ्रेंच भविष्यवेत्ता नास्त्रेदमस ने अपनी मशहूर किताब द प्रोफेसीज में भी 2012 में घटने वाली घटनाओं का ब्योरा अपने पहेलीनुमा पदों में दिया है। नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी के मुताबिक धनु राशि का तीर एक स्याह हलचल की ओर इशारा कर रहा है, विनाश की शुरुआत से पहले तीन ग्रहण पड़ेंगे और तब सूरज और धरती पर तीव्र भूकंप आएंगे। उनका कहना है कि जैसे-जैसे हम 2012 के करीब पहुंचते जाएंगे आपदाएं भी बढ़ने लगेंगी। सूरज पर भूकंप से विकिरण के तीव्र तूफान उठेंगे जो धरती को इस कदर गरमा देंगे कि ध्रुवों पर जमी बर्फ पिघलने लगेगी। जब ऐसा होगा तब धरती के ध्रुव भी बदल जाएंगे। कुंभ राशि के युग की शुरुआत में आसमान से एक बड़ी आफत धरती पर आ टूटेगी। धरती का ज्यादातर हिस्सा प्रलयंकारी बाढ़ की चपेट में आ जाएगा और तब जान और माल की भारी क्षति होगी। हैरानी की बात ये है कि नास्त्रेदमस ने कुंभ राशि के जिस युग की शुरुआत की बात की है वो वक्त है 21 दिसंबर 2012 के बाद का। 
सेंट क्लेयर की गणनाएं 
पूर्वाभास और ज्योतिष की मदद से भविष्यवाणी करने वाले अमेरिकी भविष्यवेत्ता माइकल सेंट क्लेयर की भी 2012 को लेकर अपनी कुछ गणनाएं हैं। सेंट क्लेयर के मुताबिक शुरुआत होगी 2011 से जब चंद्रमा वृश्चिक राशि से धनु राशि में प्रवेश करेगा। सेंट क्लेयर कहते हैं कि ये वैसी ही स्थिति है जैसी की बीसवीं सदी के अंत और इक्कीसवीं सदी की शुरुआत, यानि 1999 और 2000 के संधिकाल में थी। उस वक्त दुनिया Y2K के अनजाने खतरे से परेशान थी। उनकी गणना है कि बृहस्पति की छाया जब धनु से होते हुए मीन राशि में आएगी तब यूरेनस ग्रह और बृहस्पति एक सीध में होंगे। सेंट क्लेयर के मुताबिक ये खगोलीय स्थिति एक नए खगोलीय रहस्य के दरवाजे खोलेगी और तब ये सच्चाई या तो लोगों की आंखें खोल देगी या फिर उन्हें हमेशा के लिए गहरी नींद में सुला देगी। तब नेप्च्यून-यूरेनस एक साथ नजर आएंगे और तब लोगों की आंखों के सामने वो दुनिया साकार हो उठेगी जो अब तक अदृश्य है। ठीक इसी वक्त हम आसमान के दूसरे छोर से आने वाले संदेशों को भी समझ सकेंगे। सेंट क्लेयर की गणना है कि 2011 के बाद जब यूरेनस और बृहस्पति जब मेष राशि में प्रवेश करेंगे तो कुछ महान खोजें होंगी और दूसरी दुनिया के लोग धरती पर उतरेंगे और इसीके साथ धरतीवासियों यानि हम सबका भविष्य हमेशा के लिए बदल जाएगा।  
ब्रह्मवैवर्त पुराण का आख्यान
ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्रीकृष्ण गंगा को बताते हैं कि कलियुग में भी एक स्वर्ण युग आएगा। श्रीकृष्ण भविष्यवाणी करते हैं स्वर्ण युग की शुरुआत कलियुग के शुरू होने से 5000 साल बाद होगी और ये सुनहरा युग अगले 10,000 साल तक रहेगा। संस्कृत के कुछ विद्वानों और ज्योतिषियों की गणना है हिंदू जिसे कलियुग कहते हैं उसकी शुरुआत होती है ईसा के जन्म से 3102 साल पहले, 18 फरवरी को। माया कैलेंडर शुरू होता है ईसा के जन्म से 3114 साल पहले, यानि कलियुग के कैलेंडर और माया कैलेंडर में केवल 12 साल का अंतर है। हैरानी की बात है कि दोनों कैलेंडर शुरु हुए करीब 5000 साल पहले और दोनों ही कैलेंडरों में 5000 साल बाद दुनिया में किसी बहुत बड़े बदलाव की ओर इशारा किया गया है। इससे ज्यादा हैरानी की बात ये कि हिंदू और माया सभ्यताओं के बीच कभी कोई संपर्क रहा हो, इसके कोई प्रमाण नहीं हैं। प्राचीन भारत में ज्यादातर चंद्र कैलेंडर का इस्तेमाल होता था, हालांकि सूर्य कैलेंडर भी चलन में था। अगर चंद्रमा की तिथि के अनुसार देखें तो एक साल में हुए 354.36 दिन। कुछ लोगों की गणना है कि चंद्र तिथि के मुताबिक कलियुग में स्वर्णयुग की शुरुआत हो रही है 21 दिसंबर 2012 के आसपास, ये वही तिथि है जब माया सभ्यता का कैलेंडर खत्म हो रहा है।
 आई चिंग की गणना
अमेरिकी अंक ज्योतिष विशेषज्ञ भाइयों डेनिस जॉन मैक्केना और टेरेंस मैक्केना ने 1993 में एक किताब लिखी जिसका शीर्षक था इनविजिबिल लैंडस्केप : माइंड हैलोसिनोजेन्स एंड द आई चिंग। आई चिंग प्राचीन चीन के सबसे पुराने लेख हैं, जिनका संबंध ब्रह्मांड और नई शुरुआत से है। मैक्केना भाइयों के मुताबिक 2012 में 22 दिसंबर की तारीख काफी खास है, इस दिन कुछ ऐसी घटनाएं घटेंगी जो दुनिया को खात्मे की ओर ले जा सकती हैं। उनका दावा है कि 2012 को लेकर उन्होंने 1970 के शुरुआती दौर में ही गणना कर ली थी, जबकि उस वक्त उन्होंने माया कैलेंडर के बारे में सुना तक नहीं था। अंक ज्योतिषियों के मुताबिक हमारी आकाशगंगा का केंद्र धनु राशि के तारामंडल में 26 डिग्री 54 मिनट की स्थिति पर है। 2010 में ये स्थिति बदलकर 27 डिग्री 0 मिनट की हो जाएगी, जबकि 2012 में आकाशगंगा के केंद्र की स्थिति होगी 27 डिग्री और 1 मिनट। अंक ज्योतिष के मुकाबिक 27+1 = 10 = 1+0 = 1 =  यानि, एक नई शुरुआत।
अर्थशास्त्रियों की नजर में 2012
2012 के बारे में एक और भविष्यवाणी की है अर्थशास्त्रियों ने, जिनमें मुख्य हैं हॉवर्ड यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री जेफ्री फ्रैंकल। जेफ्री कहते हैं कि अर्थशास्त्र के कुछ सिद्धांतों के मुताबिक दुनिया में अगली सबसे बड़ी आर्थिक मंदी 2012 में आएगी। जेफ्री के मुताबिक विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थों में, जिसमें भारत भी शामिल है, 15 साल का एक खास पैटर्न देखने को मिलता है। जिसमें 7 साल की मजबूती के बाद अगले 7 साल कमजोर यानि मंदी के दिखाई देते हैं। इन दो स्थितियों के बीच एक साल ऐसा आता है जब वित्तीय तरलता यानि पैसों का प्रवाह अचानक थम जाता है। विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था पर नजर डालें तो लगातार 7 साल की मजबूती के बाद 1997 में एशियाई अर्थव्यवस्थाएं एक के बाद एक ढहती नजर आने लगीं थीं। हालांकि भारत 1997 के एशियाई संकट से अछूता रहा था, लेकिन फिर भी अगर हम पूरे एशिया की बात करें तो ये सिद्धांत काम करता नजर आता है। इस सिद्धांत के मुताबिक न केवल एशिया बल्कि दुनियाभर में तेजी से आगे बढ़ रहे देशों की अर्थव्यवस्थाओं को एक तगड़ा झटका 2011 या 2012 में लगेगा।
विनाश की भविष्यवाणियों की हकीकत
ये हैं वो तमाम आशंकाएं जो दिसंबर 2012 को लेकर जताई जा रही हैं। अब इन तमाम भविष्यवाणियों पर एक-एक कर नजर डालते हैं और ये जानने की कोशिश करते हैं कि 2012 को लेकर हमारा डर कितना वाजिब है। सबसे पहले बात सुमेरिया सभ्यता की, महत्वपूर्ण सवाल ये कि आखिर प्राचीन काल के एक शिलालेख को लेकर आज हम गंभीर क्यों हैं ?  दरअसल हमारे सौरमंडल के स्वरूप को लेकर सुमेरियाई लोगों की अवधारणा बहुत-कुछ वैसी ही थी, जैसी कि हमारी आज है। दूसरी सदी में टॉलमी और अरस्तु का मानना था कि धरती आसमान का केंद्र है और सभी ग्रह और तारे इसकी परिक्रमा करते हैं। इसे हम जियोसेंट्रिक थ्योरी के नाम से जानते हैं। निकोलस कोपर्निकस (1473-1543) पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने कहा कि ये सिद्धांत गलत है। उन्होंने हेलियोसेंट्रिक थ्योरी दी और कहा कि ब्रह्मांड का केंद्र धरती नहीं बल्कि सूरज है। कोपरनिकस के सिद्धांत को सही साबित करने वाले गैलीलियो को चर्च ने कैद कर लिया था। कैपलर(1571-1630) ने भी बाद में साबित किया कि सूरज हमारे सैरमंडल का केंद्र है और तारों के साथ ब्रह्मांड के दूसरे पिंडों का उससे कोई लेना-देना नहीं। 
खास बात ये, कि हमारे सौरमंडल का केंद्र सूरज है और पृथ्वी समेत अन्य ग्रह उसकी परिक्रमा करते हैं, ईसा के जन्म से 3400 साल पहले ही सुमेरियाई लोग इसे जानते थे। जबकि प्रकृति की इस सच्चाई को जानने में हमें दूसरी सदी से सोलहवीं सदी यानि करीब 1400 साल लग गए और इस दौरान न जाने कितनी कुर्बानियां देनी पड़ीं। सुमेरियाई लोग मानते थे कि हमारे सौरमंडल में 11 ग्रह हैं जो केंद्र सूरज की परिक्रमा करते रहते हैं, ये ग्रह हैं, प्लूटो, नेप्च्यून, यूरेनस, शनि, ब्रहस्पति, मंगल, पृथ्वी, शुक्र, बुध, चंद्रमा और 11 वां धूमकेतु ग्रह नाइबरू। सुमेराई लोग मानते थे कि उनके संरक्षक 12 देवता नाइबरू से ही धरती पर आए थे और मानव जाति को धरती पर विकसित करने के साथ इस दुनिया और ब्रह्मांड को समझने का ज्ञान भी दिया था। सरमंडल को लेकर सुमेरियाई लोगों की समझ ही वो एकमात्र कारण है जिससे 2012 को लेकर उनकी भविष्यवाणी खबरों में हैं।
हाल ही में हमें प्लूटो के पास एक विशाल पिंड मिला है, जिसका आकार लगभग प्लूटो जितना ही है। साइंटिस्टों के मुताबिक ये अब तक खोजा गया सबसे विशाल धूमकेतु है, जिसका आकार किसी ग्रह की तरह गोल है, हां, दूसरे धूमकेतुओं की तरह इसके कोई पूंछ नहीं है, इसकी वजह ये कि सूरज से बेहद दूर होने की वजह से इसमें वाष्पीकरण नहीं हो रहा। लेकिन प्लूटो जितना बड़ा ये गोल धूमकेतु सुमेरियाई लोगों का 11 वां ग्रह नाइबरू नहीं है, क्योंकि एक तो ये बिल्कुल बेजान है और दूसरा ये कि अभी कई सौ साल तक इसके धरती के पास आने की कोई संभावना भी नहीं है। सौरमंडल के ग्रहों की संख्या भी हर दूसरे दिन बढ़ा नहीं करती, कोई ऐसा नया ग्रह नहीं है जो हमारे सौरमंडल में मौजूद हो और हम जिससे अबतक अनजान हों। यानि सुमेरियाई लोगों का नाइबरू ग्रह हमारे सौरमंडल में तो नहीं है। सौरमंडल से बाहर अबतक हम करीब 700 नए ग्रह तलाश चुके हैं जो अपने-अपने सूरज की परिक्रमा कर रहे हैं, लेकिन ये पृथ्वी से इतनी दूर हैं कि चार-पांच साल तो छोड़िए चार-पांच लाख साल में भी धरती के पास नहीं फटक सकते। साइंस जरूर जीवन से भरपूर प्लेनेट एक्स को तलाश रहा है, लेकिन अब तक हमें ऐसा कोई ग्रह नहीं मिला है जहां जीवन फल-फूल रहा हो और जो पृथ्वी के जैसा हो। इसलिए 2012 में नाइबरू ग्रह धरती से टकराएगा या करीब से गुजरेगा ये बात कल्पना की उड़ान से ज्यादा कुछ और नहीं है।
अब बात माया सभ्यता के कैलेंडर की। माया सभ्यता के लोग भले ही खगोल विज्ञान में दिलचस्पी रखते हों, लेकिन झाड़-फूंक और बलि जैसी कुप्रथाएं भी उनके समाज में थीं। सूर्यग्रहण में हमें कोई खास बात नहीं नजर आती, लेकिन माया सभ्यता के लोग ग्रहण से कांप उठते थे और सूर्य देवता को खुश करने के लिए जाने कितने लोगों को बलि पर चढ़ा दिया जाता था। अपने घर की दीवार पर टंगे जिस कैलेंडर हम रोज निगाह दौड़ाते हैं, पहले-पहल उसका इस्तेमाल किया गया था यूरोप में 1582 को। ये ग्रिगोरियन कैलेंडर पर आधारित था और इसके मुताबिक धरती 365.25 दिन में सूरज की एक परिक्रमा पूरी करती है। 400 साल से हम इसी कैलेंडर का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। माया लोगों का कैलेंडर, उनके पूर्वजों ओल्मेक लोगों की गणनाओं से प्रभावित था। सोलहवीं सदी के यूरोपियन उपकरणों की मदद के बिना ही 3000 साल पहले ओल्मेक लोगों ने ये गणना कर ली थी कि एक साल में 365.24 दिन होते हैं। माया कैलेंडर का डर दिखाकर प्रलय की भविष्यवाणी का आधार ये है कि माया कैलेंडर इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वो 21 दिसंबर 2012 से आगे की तारीख नहीं बताता। इसीलिए कुछ लोग ये कह रहे हैं कि 21 दिसंबर 2012 दुनिया का अंतिम दिन है और इसके बाद सबकुछ खत्म। यूनिवर्सिटी आफ सिडनी के डॉ. कार्ल क्रूजेल्निकी माया सभ्यता के कैलेंडर का हौव्वा खड़ा करने वालों को एक माकूल जवाब देते हैं। डॉ. क्रूजेल्निकी कहते हैं जब कोई कैलेंडर अपना एक चक्र पूरा कर लेता है, तो वो खुद-ब-खुद अगले चक्र में प्रवेश कर जाता है। हम अपने कैलेंडर की मिसाल लें तो हर साल 31 दिसंबर आता है, लेकिन ऐसा तो नहीं है कि अगले दिन प्रलय टूट पड़ती है। 31 दिसंबर के बाद दुनिया नहीं खत्म होती बल्कि एक नया कैलेंडर शुरू हो जाता है, ठीक इसी तरह माया कैलेंडर भी 21 दिसंबर के बाद फिर वापस अपनेआप नए चक्र में प्रवेश कर जाएगा। यानि 21 दिसंबर हमारे 31 दिसंबर जैसा ही है और इसके बाद माया कैलेंडर खत्म जरूर होगा लेकिन नए कैलेंडर की शुरुआत भी हो जाएगी।
बौद्ध भिक्षुओं की भविष्यवाणी को अगर गौर से देखें तो कोई नई बात नहीं है। दुनिया में नाभिकीय हमले का खौफ 6 अगस्त 1945 से ही मंडरा रहा है, जब हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया गया था। भविष्य में नाभिकीय हमले से धरती को बचाने के लिए दैवीय ताकतें हस्तक्षेप करें न करें लेकिन हम धरतीवासियों ने आपस में ही मिलकर ऐसी अंतरराष्ट्रीय निगरानी व्यवस्था जरूर बना ली है जो अब हिरोशिमा जैसी घटना अब दोबारा नहीं होने देगी। हमारी ये व्यवस्था किस कदर कारगर है इसका पता इस बात से चलता है कि बीते 63 साल में धरती पर दोबारा फिर कभी परमाणु बम नहीं गिराया गया।
हाल में घटी कई ऐसी घटनाएं हैं लोग जिनके सूत्र 500 साल पहले की गई नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियों में खोज सकते हैं। लेकिन साथ ही कई ऐसी बातें भी हैं जो नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियों को गलत भी साबित करती हैं। मिसाल के तौर पर सूरज पर भूकंप नहीं आ सकता, इस आपदा के लिए पथरीली जमीन का होना जरूरी है जो सूरज पर नहीं है। हां, सौर विकिरण के तूफान जरूर कहर बरपाते हैं लेकिन छिटपुट घटनाओं को छोड़ दें तो अबतक सौर विकिरण की कोई ऐसी घटना नहीं हुई जिससे पूरी दुनिया एकसाथ प्रभावित हो जाए। रही बात आसमानी आफत टूटने की तो धरती पर किसी उल्का के आ गिरने की आशंका हमेशा से रही है। लेकिन इस खतरे की निगरानी और बचाव दोनों पर हमारा ध्यान है। नासा का नियर अर्थ ऑब्जेक्ट प्रोग्राम और यूरोपियन स्पेस एजेंसी लगातार ऐसी उल्काओं की निगरानी में जुटे हैं जिनसे धरती को खतरा हो सकता है...और अब तक हमें एक भी ऐसी उल्का नहीं मिली। नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियां पहेलीनुमा हैं, जिससे हर कोई अपने-अपने अर्थ निकाल सकता है।
जेनेवा में मौजूद सेर्न प्रयोगशाला में ब्रह्मांड के राज जानने में जुटी भारतीय टीम का नेतृत्व कर रहे वैज्ञानिक प्रो. वाई पी वियोगी कहते हैं अमेरिकी लोगों को कुछ ज्यादा ही डर लगता है। इसीलिए वो हमारी दुनिया को नए-नए खतरों की आशंकाएं जाहिर करते रहते हैं। प्रो. वियोगी की ये टिप्पणी बेहद महत्वपूर्ण है और इसी की झलक मिलती है अमेरिकी भविष्यवेत्ता माइकल सेंट क्लेयर  की भविष्यवाणी में। 21 दिसंबर 2012 को लेकर सेंट क्लेयर ने जो कुछ कहा है उसका संबंध वास्तविक दुनिया से कम और किसी हॉलीवुड फिल्म की पटकथा जैसा ज्यादा लगता है।
अब बात ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखी श्रीकृष्ण की भविष्यवाणी पर। कलियुग में स्वर्णयुग के शुरुआत की बात को माया सभ्यता के कैलेंडर से जोड़ने की कोशिश उन लोगों की है जो किसी तरह से ये साबित करना चाहते हैं कि दिसंबर 2012 में कुछ बहुत ही भयानक घटने वाला है। माया सभ्यता के कैलेंडर और ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखी श्रीकृष्ण की बातों में कुछ एक मिलते-जुलते तथ्य निकाले जा सकते हैं। लेकिन ये अपनी बात को साबित करने के लिए की गई शैतानी दिमाग की बाजीगरी ज्यादा है। अगर गौर से देखें तो कलियुग का स्वर्णयुग तो 20वीं सदी की शुरुआत को माना जाना चाहिए जबकि साइंस में सबसे ज्यादा खोजें हुईं। कलियुग में होने वाला कल्कि अवतार, क्या हम सब में नहीं छिपा है चंद्रमा पर हमारे कदमों के निशान मौजूद हैं, हमने मंगल ग्रह पर पानी खोज निकाला है, शनि की परिक्रमा के साथ उसके चंद्रमा टाइटन पर मौजूद झीलों की झलक देखी है और अब हम तैयारी में हैं धरती के अलावा किसी और ग्रह पर बसने की ....इंटरनेट और मोबाइल ने हमें सर्वज्ञ और सर्वव्यापी बना दिया है। हमारे पास विनाश के हथियार भी हैं तो नई सृष्टि की शुरुआत की तकनीक भी। मृत्यु और रोगों पर विजय पाने की हमारी कोशिश जारी है। ये सब श्रीकृष्ण के वक्त कहां था ?  गोपिकावल्लभ गोवर्धनधारी भले ही देव हों, लेकिन गौर से देखिए तो ईश्वरांश तो हम भी हैं।
रही बात अंक ज्योतिष की, तो ये महज गणित का खेल है, इससे ज्यादा कुछ नहीं। ज्योतिषी कोई भी हों उनका धंधा लोगों की परेशानियों और उनके डर के आधार पर ही चलता है। अंत में जिक्र 2012 के बारे में अर्थशास्त्रियों की भविष्यवाणी का। हॉवर्ड यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री जेफ्री फ्रैंकल का सिद्धांत सच भी हो सकता है और नहीं भी। पैसे के खेल में फायदा भी है और नुकसान भी। अगर हम मान लें कि 2012 में दुनिया किसी बड़ी आर्थिक मंदी की चपेट में आने वाली है, तो इसका मतलब ये कतई नहीं कि ये मंदी फिर कभी खत्म नहीं होगी। आर्थिक दुनिया में उतार-चढाव तो लगा ही रहता है। अब तक जाने कितनी बार शेयर बाजारों में एतिहासिक गिरावटें दर्ज हो चुकी हैं, लेकिन इससे दुनिया के कारोबार पर तो असर नहीं पड़ा, और न ही हमारी रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित हुई।
भय का बाजार
हमेशा किसी न किसी आशंका से घबराते रहना और उस काल्पनिक खतरे से खुद को बचाने के लिए आक्रामकता दिखाना अमेरिकी संस्कृति है। भारत के लोग डर का कारोबार नहीं करते, बल्कि हम तो जीयो और जीने दो पर अमल करने वाले लोग हैं। 2012 में जिन खतरों की आशंकाएं जताई जा रही हैं, मानव जाति उनसे भी कई गुना बड़ी आपदाओं को झेल चुकी है। द्वितीय विश्वयुद्ध, हिरोशिमा-नागासाकी पर नाभिकीय हमला, शीत-युद्ध, साम्यवाद के नाम पर ढाए गए बेइंतहा जुल्मो-सितम, बोस्निया के नरसंहार और ऐसी ही न जाने कितनी आफतें हमें डिगा नहीं सकीं। हम उस वक्त भी जिंदगी का हाथ थामे मजबूत कदमों से आगे बढ़ रहे थे जब धरती बर्फ की मोटी चादर तले गहरी नींद सो गई थी। उस हिमयुग से लेकर आजतक तमाम रोगों-दुखों और आतंकवाद जैसी समस्याओं से जूझते हुए हम लगातार आगे बढ़ रहे हैं। अबतक कभी भी  विनाश की जीत नहीं हुई, हर बार विजय हुई है, मुसीबतों से जूझते हुए जिंदगी का रास्ता बनाने की इंसानी जज्बे की और 2012 और उससे भी आगे हमेशा ऐसा ही होगा।

25 टिप्‍पणियां:

  1. कलियुग तो 432000 सालों का है। और कहने को बीते मात्र 5000 साल तो यह बात वैसे भी गलत होती है। वैसे तो ये सब गलत-सलत बात मूर्खता ही है। अब भला कोई कैलेंडर भी कोई चीज है!

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  2. theek he.koi bhi preshan nahi he.sab aaj me jeete he kal ki koi nahi sochta

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  3. theek he.koi bhi preshan nahi he.sab aaj me jeete he kal ki koi nahi sochta

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  4. jain dherm ke hisab se 18500 saal tak dharti ka kuch nahi hoga

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  5. lekhak mahoday apni hi baat ko galat sabit kar rahe hai. Sumeriyai sabhyata ke baare me jara sonchiye wo log bhale hi bhoot pret me yakin karte ho bhale hi bali me yakin karte ho magar ye bhi sach hai ki wo hamse kahi jyada nakshtro ka gyan prapt kar chuke the usi gadna k aadhar par unhone us calender ko banaya hoga wo bhi bina kisis technology ke yani wo hamse jyada jaankar the to fir unki bhavishya vaniyo ko galat kaise bata sakte hai

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  6. दुनिया में तरकी तो हो गई है
    परन्तु पर्दूषण को देखिये
    यहाँ भारत के आधुनिक आर्य लोग अपने मूत्र को फिल्टर कर के पी रहें हैं
    पीने के लिए पानी नहीं मिलेगा
    अंधेर नगरी चोपट राजा

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  7. प्रलय तो आयेगी ही !
    अवश्य

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  8. jo hona hai vo too hoga hi GOD jiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii

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  9. चूतिया है तू। वर्तमान दशा को समझ फिर लिखा कर। देख मनुष्य किस तरह पशुवत व्यवहार कर रहा है।

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  11. are ab seo karke kya fayda.............sari moh maya yahi reh jaayegi

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  13. jo hona hai vo to hokar hi rahega ham aap ise nahi rok sakte

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  14. bishwash pr pura sansar tika hai so hame ye lagta hai kuch baat sahi v hai or kuch galat v hai

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  15. itne achchhe lekho par aesi aesi tippaniyo ko padh kar pata chalta hai ki kyun duniya ek din tabaah ho jayegi.

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