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रविवार, 3 जनवरी 2010
एंटी सेटेलाइट वीपन
भारतीय रक्षा वैज्ञानिक एक ऐसा सिस्टम बना रहे हैं जो दुश्मन के सैटलाइटों को अंतरिक्ष में ही मार गिराएगा। डीआरडीओ के महानिदेशक वी. के. सारस्वत ने 97वीं इंडियन साइंस कांग्रेस में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस तकनीक का तैयार करने के लिए जरूरी तत्व बनाए जा रहे हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि रक्षा वैज्ञानिकों ने इस तकनीक का परीक्षण करने की फिलहाल कोई योजना नहीं बनाई है लेकिन इस तरह की टेक्नॉलजी की योजना बनानी शुरू कर दी गई है, जिसका इस्तेमाल देश में एक हथियार विकसित करने में किया जा सकता है। रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार की जिम्मेदारी निभा रहे सारस्वत ने बताया कि वैज्ञानिक ऐसा हथियार तैयार करने की प्लानिंग कर रहे हैं, जिससे धरती की लोअर कक्षाओं और ध्रुवीय कक्षा में उपग्रहों पर निशाना साधकर उन्हें नष्ट किए जा सकेंगे। उन्होंने बताया कि आमतौर पर इस तरह की कक्षाओं में नेटवर्क पर केंद्रित लड़ाइयों में इस्तेमाल होने वाले सैटलाइट तैनात रहते हैं। इन्हें निष्क्रिय कर देने से दुश्मन की अपने सैटलाइटों तक संपर्क की क्षमता नष्ट हो जाती है और उसका कम्यूनिकेशन टूट जाता है। सैटलाइट निष्क्रिय करने वाली तकनीक को हासिल करने के लिए बलिस्टिक मिसाइल डिफेंस प्रोग्राम के तहत रॉकेट तैयार किया जा रहा है। जनवरी 2007 में चीन ने इसी तरह के एक परीक्षण में अपने एक सैटलाइट को अंतरिक्ष में ही नष्ट कर दिया था। मौसम संबंधी यह सैटलाइट धरती से 500 मील दूर धरती की कक्षा में चक्कर काट रहा था। भविष्य में अंतरिक्ष में घूमते अपने सैटलाइटों की सुरक्षा करना एक बहुत बड़ा मुद्दा होगा। भारत को इस क्षेत्र में पीछे नहीं रहना है, इसीलिए इस एंटी सैटलाइट तकनीक हासिल करने की दिशा में काम किया जा रहा है। सारस्वत ने बताया कि डीआरडीओ अपनी इंटरसेप्टर मिसाइल का अडवांस्ड वर्जन तैयार कर रहा है, जिसकी रेंज 120 से 140 किलोमीटर तक होगी। इसका सितंबर में परीक्षण होने की उम्मीद है।
शनिवार, 2 जनवरी 2010
धरती पर डार्क मैटर की अनोखी खोज
धरती पर डार्क मैटर की खोज बीते साल की सबसे बड़ी वैज्ञानिक खोजों में से है। हालांकि इस खोज की खबर बस एक ही लैब से आई है, लेकिन फिर भी कुछ वैज्ञानिक 1970 से जारी डार्क मैटर की खोज की कोशिश को मिली इस पहली कामयाबी को मानव इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी खोज का दर्जा दे रहे हैं। डार्क मैटर यानि ऐसी चीज जो नजर तो नहीं आती, लेकिन जो एक जबरदस्त गुरुत्वाकर्षण यानि खिंचाव के जरिए अपनी मैजूदगी का पुरजोर एहसास करवाती है। जैसे कि हमारी भावनाएं, प्रेम-गुस्सा या फिर नफरत जो दिखती नहीं बस महसूस हो जाती हैं। जैसे कि कहीं किसी जगह एक अनजाने से डर का एहसास, सामने एक सूनापन-सबकुछ खाली-खाली है, लेकिन फिरभी मन कहता है कि नहीं यहां कुछ है। जैसे किसी आध्यात्मिक अनुभव की बारिश, कहीं कोई नहीं लेकिन फिरभी किसी दिव्य एहसास भर से आप ओतप्रोत हो उठें। डार्क मैटर भी बस कुछ ऐसा ही है, जो नजर तो नहीं आता, लेकिन फिरभी एक जबरदस्त एहसास दिलाता है कि मैं यहां हूं।
हजारों साल से हम आसमान में जगमगाते इन सितारों को देखकर यकीन करते रहे कि पूरा ब्रह्मांड इन्हीं जगमगाते सितारों से मिलकर बना है। लेकिन ये पूरा सच नहीं। अगर आप अंतरिक्ष की किसी ऐसी छत पर खड़े हों जहां से अरबों-खरबों जगमगाते सितारों और चमकदार आकाशगंगाओं के रूप में चारों ओर फैले संपूर्ण ब्रह्मांड को देख सकते...तो आप देखते अनंत शून्य के गहन अंधकार में टिमटिमाती हुई रोशनी के लाखों-करोड़ों-अरबों द्वीप। सफेद, पीली, नारंगी, लाल, नीली रोशनी से जगमगाते अनगिनत सितारे और आकाशगंगाएं। तब आपके मन में सवाल उठता, क्या यही है संपूर्ण ब्रह्मांड ?
नहीं, अनगिनत दियों की तरह जगमगाते जिस अदभुत नजारे को आप देख रहे हैं, वो पूरा ब्रह्मांड नहीं, बल्कि उसका एक बहुत छोटा, महज चार फीसदी हिस्सा ही है। जी हां, ब्रह्मांड का केवल 4 फीसदी हिस्सा ही ऐसे पदार्थ से बना है जिसे हम देख सकते हैं और छूकर महसूस कर सकते हैं ...आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि हमारे ब्रह्मांड का 96 फीसदी हिस्सा कुछ ऐसी अजीबोगरीब चीजों से बना है, जिन्हें न तो हमारी आंखें देख सकती हैं और न ही हमारे संवेदनशील उपकरण। लेकिन फिरभी जिसके वजूद का बेहद ताकतवर एहसास इस कायनात के जर्रे-जर्रे में समाया हुआ है। पूरे ब्रह्मांड को मौजूदा सांचे में ढालने और इसके एक–एक सितारे की साज-संभाल करने वाला वो सर्वशक्तिमान छिपा है, सितारों और आकाशगंगाओं के बीच मौजूद घोर अंधकार के अथाह समंदर में। उस सर्वशक्तिमान का नाम है, डार्क मैटर
ये न तो ठोस है और न ही द्रव या गैस। इसे छुआ नहीं जा सकता, लेकिन फिरभी ये डार्क मैटर हमारे घर, हमारी धरती से लेकर हमारी आकाशगंगा और इस ब्रह्मांड के कोने-कोने में मौजूद है। ये सर्वशक्तिमान है क्योंकि पूरे ब्रह्मांड की कोई भी चीज इसे रोक नहीं सकती। ये सूरज से भी नहीं घबराता और उसे भेदते हुए आर-पार निकल जाता है। फिर ग्रहों और चंद्रमाओँ की तो बिसात ही क्या ! ये सर्वशक्तिमान इसलिए भी है, क्योंकि डार्क मैटर की वजह से ही आकाशगंगाओं को एक खास आकार मिलता है और तमाम सितारे अपनी-अपनी जगह पर बने रहते हैं।
इस गहन ब्रह्मांड में एक खास ताकत भी काम कर रही है, जिसे देखना या महसूस करना मुमकिन नहीं...लेकिन फिरभी जो तमाम आकाशगंगाओं और सितारों को एक-दूसरे से दूर धकेलती जा रही है, इस ताकत का नाम है डार्क इनर्जी । सर्वशक्तिमान डार्क मैटर और डार्क इनर्जी के रहस्य को समझना बेहद जरूरी है, क्योंकि इनके गहरे रहस्य में छिपी है तकदीर, हमारे ब्रह्मांड की। और जवाब इस सवाल का कि क्या हमारा ब्रह्मांड एक दिन अपने ही अपार गुरुत्वाकर्षण की आपसी खौफनाक टक्कर से एकदूसरे में सिमटते हुए भीषण ऊर्जा की जबरदस्त तपिश में जलकर-झुलसकर खत्म हो जाएगा? या फिर सर्वशक्तिमान डार्क इनर्जी पूरे ब्रह्मांड को खींचते हुए टुकड़ों-टुकड़ों में बांटकर अनंत में एक–दूसरे से दूर फेंक देगी ? आइए चलते हैं, अनदेखे ब्रह्मांड के रोमांचक सफर पर और करते हैं मुलाकात सर्वशक्तिमान डार्क मैटर से।
करीब 14 अरब साल पहले, शून्य में ऊर्जा का महाविस्फोट.... बिगबैंग...जिसने जन्म दिया दिखने वाले सभी पदार्थों यानि मैटर और नजर न आने वाले डार्क मैटर को। डार्क मैटर का गुरुत्वाकर्षण बल किसी मकड़ी के जाले की तरह चारों ओर फैला था, जिसके जबरदस्त खिंचाव ने शुरुआती पदार्थ के कणों को एक-दूसरे के करीब आने पर मजबूर कर दिया। फिर क्या था डार्क मैटर के इसी गुरुत्वाकर्षण ढांचे पर मैटर यानि नजर आने वाले पदार्थों ने आपस में जुड़कर, नए-नए पदार्थ बनाए और जन्म दिया आकाशगंगाओं, सितारों, ग्रहों और सौरमंडलों को और इस तरह हो गई शुरुआत इस सृष्टि की।
पदार्थों के अणुओं-परमाणुओं ने तो रासायनिक क्रियाओं के जरिए आपस में जुड़कर और ढेर सारे नए-नए पदार्थ रचकर अपनी जगमगाती दुनिया रच डाली,लेकिन अदृश्य डार्क मैटर सृष्टि की इस रचना प्रक्रिया में शामिल नहीं हो सके। क्योंकि डार्क मैटर के परमाणुओं में आपस में जुड़ने और कुछ नया रच डालने की काबिलियत थी ही नहीं, इसलिए डार्क मैटर के अणु पूरे ब्रह्मांड में स्याह घने बादल की शक्ल में फैल गए। अंधकार के इस बादल में जहां-जहां डार्क मैटर के अणुओं की मौजूदगी बेहद सघन थी, उन घने हिस्सों में बन गईं डार्क मैटर की आकाशगंगाएं।
ब्रह्मांड का ये सबसे बड़ा रहस्य तब तक छिपा रहा, जब तक टेक्नोलॉजी की तरक्की ने हमें आसमान के पार झांकने की काबिलियत नहीं दे दी। 1920 तक तो हम ये भी नहीं जानते थे कि हमारी आकाशगंगा के अलावा कहीं कोई और भी आकाशगंगा है। अमेरिकी एस्ट्रोनॉमर एडविन हब्बल ने टेलिस्कोप से दूर अंतरिक्ष में पहली बार कुछ धुंधले से नन्हें धब्बे देखे, ये दूसरी आकाशगंगाएं थीं, जिन्हें पहली बार देखा गया। हब्बल ने बताया हमारा ब्रह्मांड जितना हम सोंचते हैं उससे कहीं ज्यादा विशाल है और हमारी आकाशगंगा तो बस इसका एक छोटा सा हिस्सा भर है। हब्बल की बात सुनकर पूरी दुनिया चौंक उठी।
कैलीफोर्निया इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी के स्विस एस्ट्रोनॉमर फ्रिट्ज विकी कोमा क्लस्टर में मौजूद आकाशगंगाओं की गति का अध्ययन कर रहे थे। उन्होंने देखा कि आकाशगंगा के केंद्र के चारों ओर घूमते सितारों की रफ्तार बहुत ज्यादा थी, जबकि उनके पदार्थों के वजन के मुताबिक ये रफ्तार काफी कम होनी चाहिए थी। इसका सीधा मतलब ये था कि इन आकाशगंगाओं में कोई और चीज भी मौजूद है, जो नजर भले ही न आ रही हो, लेकिन सभी सितारों की रफ्तार पर लगातार अपना जोरदार असर डाल रही है। ये एक अदभुत खोज थी, जिसने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। विकी ने उस अदृश्य ताकत का नाम रखा डार्क मैटर।
फ्रिट्ज विकी के नतीजों के 40 साल बाद डार्क मैटर पर सबसे बड़ी खोज की कार्नेगी इंस्टीट्यूट आफ वाशिंगटन की एक युवा वैज्ञानिक वेरा रूबिन ने। साल था 1970 का और अपनी क्रिसमस की छुट्टियां रद्द कर वेरा रूबिन एक अनोखी खोज में जुटी थीं। रूबिन पड़ोस की आकाशगंगा एंड्रोमेडा का अध्ययन कर रहीं थीं। कुदरत ने अपने सबसे बड़े रहस्य को जाहिर करने के लिए रूबिन का चुनाव कर लिया था। रूबिन जान चुकीं थीं कि उनका सामना कुदरत के सबसे अनोखे रहस्य से होने जा रहा है। उनका दिल जोरों से धड़क रहा था और दिसंबर की कड़ाके की ठंड के बावजूद उनके माथे पर पसीना छलक आया था। न्यूटन और आइंस्टीन के एक खास सिद्धांत के मुताबिक किसी केंद्र की परिक्रमा कर रहे सबसे नजदीक के पिंड की गति उसी केंद्र की परिक्रमा पर रहे सबसे दूर के पिंड से कहीं ज्यादा होगी। मिसाल के तौर पर हमारे सौरमंडल में सूरज ही गुरुत्वाकर्षण बल का सबसे बड़ा जरिया है और इसकी परिक्रमा कर रहे सबसे नजदीक के ग्रह बुध की गति सबसे दूर मौजूद प्लूटो से कई गुना ज्यादा होती है। क्योंकि सूरज के गुरुत्व का सबसे ज्यादा असर बुध पर होता है, जबकि प्लूटो पर सबसे कम। इसीलिए प्लूटो सूरज की परिक्रमा करने में सबसे ज्यादा समय लेता है। फिजिक्स के नियम पूरे ब्रह्मांड में एकसमान रूप से लागू होते हैं, इसलिए वेरा रूबिन जानना चाहती थीं कि सौरमंडल पर काम करने वाला न्यूटन और आइंस्टीन का सिद्धांत आकाशगंगाओं पर भी लागू होना चाहिए, क्योंकि किसी आकाशगंगा में केंद्र की परिक्रमा कर रहे सितारे भी हमारे सौरमंडल की तरह ही व्यवहार करते हैं। यानि न्यूटन और आइंस्टीन के नियम के मुताबिक आकाशगंगा के केंद्र के नजदीक वाले सितारों की गति सबसे तेज और आकाशगंगा के बाहरी छोर पर मौजूद सितारों की गति सबसे कम होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं था। वेरा रूबिन ने अपने ऑब्जरवेशन से साबित कर दिया कि आकाशगंगाओं में मौजूद सभी सितारे एक ही रफ्तार से केंद्र के चक्कर काटते हैं, चाहे वो केंद्र से नजदीक हों या फिर दूर। ये बेहद चौंका देने वाला नतीजा था।
क्या न्यूटन और आइंस्टीन के सिद्धांत गलत थे ? आकाशगंगा के सभी सितारे एक ही रफ्तार से क्यों घूम रहे हैं ? वेरा रूबिन के नतीजों को जब हब्बल की खोज से मिलाकर देखा गया, तो एक बार फिर ये बात सामने आई कि आकाशगंगाओं में भारी तादाद में कोई ऐसी चीज मौजूद है, जो नजर तो नहीं आती लेकिन वो हर सितारे पर अपना भरपूर असर डाल रही है और इसी वजह से आकाशगंगाओं के सभी सितारे एकसमान गति से अपने केंद्र के चक्कर काट रहे हैं। ये नजर न आने वाली रहस्यमय चीज थी डार्क मैटर।
आइंस्टीन ने कहा था कि शून्य में गुरुत्वाकर्षण बल का असर इतना जबरदस्त होता है कि एक सीधी रेखा में चलने वाली प्रकाश की किरण जब इसके आसपास से होकर गुजरती है, तो गुरुत्वाकर्षण बल के असर से प्रकाश की किरण भी मुड़ जाती है। आइंस्टीन का ये सिद्धांत ग्रैविटेशनल लेंसिंग के नाम से मशहूर है। आइंस्टीन जिस ग्रेविटेशनल लेंसिंग की बात कर रहे थे अंतरिक्ष में मौजूद ऑब्जरवेटरी हब्बल ने जब कुदरत की इस नायाब घटना को अपनी आंखों के सामने घटते देखा तो दुनियाभर के वैज्ञानिक रोमांच से भर उठे।
सुदूर आकाशगंगाओं के उस पार से आती रोशनी जैसे ही सितारों के आसपास से गुजरती है वो गोलाकार रूप से मुड़ जाती है। सबसे बड़ा सवाल ये कि आखिर क्यों ? सितारों के आसपास अंतरिक्ष के अंधियारे में ऐसी क्या चीज मौजूद है, जिसका जबरदस्त गुरुत्वाकर्षण रोशनी को भी मुड़ने पर मजबूर कर देता है ? इस सवाल का जवाब मिला डार्क मैटर में। अंतरिक्ष के अंधियारे में मौजूद वो डार्क मैटर ही है जो अपनी जबरदस्त गुरुत्वाकर्षण की ताकत से आसपास से गुजरती हुई रोशनी को भी मरोड़ देता है। हब्बल ने डार्क मैटर की इस जबरदस्त ताकत की तस्वीर जब पहली बार वैज्ञानिकों को दिखाई तो वो कुदरत के इस अनोखे रहस्य के बारे में और भी ज्यादा जानकारी जुटाने में जुट गए।
डार्क मैटर के बारे में सबसे ज्यादा सनसनीखोज खुलासा तब हुआ जब हमें इस बात के सबूत मिले कि डार्क मैटर दूर आकाशगंगाओं और सितारों पर ही असर नहीं डालता, बल्कि वो हमारी पृथ्वी के आरपार से गुजरता हुआ चारों ओर मौजूद है। इतना ही नहीं, बल्कि हमें ये भी पता चला कि हमारी पृथ्वी और चंद्रमा के बीच डार्क मैटर का एक बहुत बड़ा बादल भी मौजूद है। जिसकी वजह से चंद्रमा पर गुरुत्वाकर्षण का एक अतिरिक्त खिंचाव भी काम कर रहा है। ये एक चौंकाने वाली खोज थी। जिसने हमें डार्क मैटर की पहचान करने और उसे महसूस करके देखने पर मजबूर कर दिया। सर्वशक्तिमान डार्क मैटर को वीकली इंटरैक्टिव मैसिव पार्टिकिल्स यानि विम्प्स, एक्जियॉन्स और माचोज जैसे कुदरत के सबसे नायाब और सबसे अनोखे कण मिलकर बनाते हैं। इसी जानकारी के आधार पर स्पेस ऑब्जरवेटरी हब्बल ने पहली बार डार्क मैटर का थ्री-डी मैप बनाने में सफलता हासिल की।
अपनी पृथ्वी पर हम जितनी चीजों को जानते-समझते...महसूस करते हैं डार्क मैटर उन सबसे अलग और अनोखा है। हर सेकेंड नजर न आने वाले डार्क मैटर के अरबों विम्प्स कण सामने आने वाली हर चीज- पेड़, पत्थर, पहाड़, मकान, कार, धरती यहां तक कि खुद हमें भी भेदते हुए गुजर रहे हैं। सबसे अदभुत बात तो ये कि किसी को बगैर कोई नुकसान पहुंचाए। डार्क मैटर जब सूरज को भेदता है तो वो प्रकृति के एक और अनोखे कण न्यूट्रिनोज को जन्म देता है। ऐसा ही तब भी होता है जब डार्क मैटर के बादल हमारी पृथ्वी के दहकते हुए कोर से होकर गुजरते हैं। डार्क मैटर की तरह न्यूट्रिनोज के कण भी सामने आने वाली हर चीज को भेदते हुए गुजर जाते हैं। डार्क मैटर का वजन, उनका गुरुत्वाकर्षण इतना ज्यादा है कि वो आकाशगंगाओं को भी प्रभावित करने की ताकत रखते हैं। डार्क मैटर की मौजूदगी हर जगह है, वो सही मायनों में सर्वव्यापी हैं। कुदरत की इस सबसे अनोखी रचना को लेकर सवालों की भरमार है और अब पूरी मानव जाति के इतिहास में पहली बार हमें मिला है एक धुंधला सा पहला जवाब।
आप सोंच रहे होंगे कि आसमान से बरसने वाले इस सर्वशक्तिमान डार्क मैटर के विम्प्स कणों की तलाश में वैज्ञानिक दिन-रात आसमान में नजरें गढ़ाए रहते होंगे। नहीं ऐसा नहीं है, दुनियाभर के वैज्ञानिकों की कई टीम्स जमीन से कई किलोमीटर नीचे मौजूद खास प्रयोगशालाओं में 40 साल से इस कोशिश में जुटी हैं कि किसी तरह डार्क मैटर के अनोखे कणों विम्प्स को पकड़ा जा सके और ये साबित किया जा सके कि डार्क मैटर का वजूद महज कोई किताबी बात नहीं बल्कि हर पल हमारी आंखों के सामने से गुजरती एक ठोस हकीकत है। डार्क मैटर की खोज हम धरती के नीचे जाकर ही कर सकते हैं, ऐसा इसलिए ताकि आसमान से बरसने वाली कॉस्मिक किरणों से इस प्रयोग को सुरक्षित रखा जा सके। डार्क मैटर के कण हर पल भारी तादा में पूरी धरती से आरपार गुजर रहे हैं, इसलिए वैज्ञानिकों का मामना है कि धरती के नीचे बनी प्रयोगशालाओं में मौजूद कुछ खास सेंसर्स की मदद से नजर न आने वाले डार्क मैटर के कणों खासतौर पर पर विम्प्स के आगमन को पकड़ा जा सकता है।
डार्क मैटर की प्रयोगशालाएं दुनियाभर में धरती से हजारों फुट की गहराइयों में काम कर रही हैं। डार्क मैटर की ऐसी ही सबसे बड़ी सर्च लैब मौजूद है अमेरिकी राज्य मिनेसोटा की सबसे पुरानी, सबसे गहरी और अब खाली पड़ी लोहे की खान में। यहां एसएलएसी नेशनल लैबोरेटरी, यूनिवर्सिटी आफ कैलीफोर्निया और फर्मीलैब के सहयोग से, धरती से करीब आधे मील की गहराई में मौजूद क्रायोजेनिक डार्क मैटर सर्च यानि सीडीएमएस लैब में कई दशक से डार्क मैटर की खोज जारी है। इस खान से लोहे के अयस्क को निकालने का काम 1912 में ही बंद हो चुका है और अब ये खान दुनियाभर के वैज्ञानिकों के आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र बन चुकी है। इसकी वजह है इसी खान की गहराइयों में धरती से करीब डेढ़ किलोमीटर नीचे मौजूद एक संवेदनशील प्रयोगशाला, जहां डार्क मैटर के कण विम्प्स को पहली बार पकड़ने में पहली कामयाबी हासिल हुई है।
आइए जानते हैं कि सीडीएमएस यानि क्रायोजेनिक डार्क मैटर सर्च लैब में मौजूद दुनियाभर में डार्कमैटर के सबसे संवेदनशील डिटेक्टर ने डार्क मैटर के कण विम्प्स को आखिर कैसे पकड़ा ?
सीडीएमएस में दुनियाभर के 13 संस्थानों से आए 46 वैज्ञानिकों की टीम डार्क मैटर की तलाश में जुटी है। यहीं है वो खास क्रायोजेनिक चैंबर जिसमें रखे हैं वो खास डिटेक्टर्स जिन्होंने डार्क मैटर के कणों विम्प्स को पहली बार पकड़ा है। डार्क मैटर के ये सेंसर जरमेनियम से बने हैं, जरमेनियम इसलिए क्योंकि इसके अणुओं के बीच खाली जगह बहुत कम होती है और जरमेनियम के इस ब्लॉक के ऊपर लगे हैं वो खास सेंसर जो तापमान में होने वाले हल्के से हल्के अंतर को भी तुरंत पहचान लेते हैं। जरमेनियम के ऐसे कई ब्लॉक्स को इस क्रायोजेनिक चैंबर के भीतर एब्सोल्यूट जीरो यानि शून्य से दो सौ तिहत्तर दशमलव एक पांच डिग्री सेंटीग्रेड से एक डिग्री ऊपर वाले तापमान के पचास हजारवें हिस्से तक बेहद ठंडे माहौल में सील कर दिया जाता है। पूरी धरती पर इतनी ठंडी जगह कोई दूसरी नहीं और तापमान को कहीं और इस हद तक कम करना भी मुमकिन नहीं।
डार्क मैटर के कण विम्प्स को पकड़ने का काम इस सिद्धांत पर काम करता है कि आमतौर पर डार्क मैटर सामान्य पदार्थ से कोई भी क्रिया नहीं करते, लेकिन बेहद दुर्लभ मौके पर विम्प्स के कण सामान्य पदार्थ के नाभिक से जा टकराते हैं, और जब भी ऐसा होता है जरमेनियम में कंपन होता है और उसका तापमान बढ़ जाता है। कई साल से वैज्ञानिक बस इसी दुर्लभ घटना को पकड़ने की कोशिश कर रहे थे। मशहूर साइंस जर्नल नेचर के दिसंबर 2009 के अंक में छपी रिपोर्ट के अनुसार डार्क मैटर को पकड़ने में पहली सफलता मिली है इसी सीडीएमएस लैब को, जहां क्रायोजेनिक चैंबर के बेहद ठंडे माहौल में में रखे जरमेनियम सेंसर के तापमान में अचानक मामूली वृद्धि रिकार्ड की गई, जिसका सीधा मतलब ये है कि डार्क मैटर के किसी विम्प्स कण की टक्कर जरमेनियम परमाणु के नाभिक से वाकई में हो गई। यानि ये साबित हो गया कि सर्वशक्तिमान डार्क मैटर का वजूद महज कोई किताबी बात नहीं बल्कि एक ठोस हकीकत है। हमारे ब्रह्मांड का 96 फीसदी हिस्सा इसी डार्क मैटर से बना है जो दिखाई तो नहीं देता लेकिन जो सौ फीसदी वजूद में है। सीडीएमएस लैब यानि धरती पर डार्क मैटर की ये खोज इस सदी की सबसे बड़ी खोजों में से एक है। वैज्ञानिक अब इंतजार कर रहे हैं कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में जमीन के भीतर काम कर रही डार्क मैटर की अन्य प्रयोगशालाओं से मिलने वाले नतीजों का। उम्मीद है कि ये प्रयोगशालाएं भी भी डार्क मैटर के विम्प्स कणों को पकड़ने में कामयाब रहेंगी।
सर्वशक्तिमान डार्क मैटर की जो दूसरी सबसे बड़ी खूबी है वो ये कि ये अनोखी और अदृश्य चीज ब्रह्मांड के 96 फीसदी हिस्से में तो है ही साथ ही ये नजर आने वाले सामान्य पदार्थों के परमाणुओं के भीतर भी मौजूद है। दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला सेर्न की महामशीन एलएचसी में हो रहे, प्रोटॉन बीम की आपस में टक्कर के महाप्रयोग का मकसद भी यही है कि ब्रह्मांड की शुरुआत यानि बिगबैंग के वक्त के माहौल को फिर से रचा जाए। ताकि पदार्थ यानि मैटर और डार्क मैटर दोनों के बनने के रहस्य को समझा जा सके। साथ ही सेर्न में परमाणु के भीतर झांककर वहां डार्क मैटर की मौजूदगी के सबूत ढूढने की कोशिश भी की जा रही है।
धरती पर डार्क मैटर की खोज ऐसे वक्त में हुई है, जब वैज्ञानिक हमारी आकाशगंगा के आसपास घट रही एक अनोखी घटना पर निगाहें जमाए हुए हैं। हमारी आकाशगंगा के आसपास डार्क मैटर की बहुत सारी अदृश्य आकाशगंगाएं जमा हो रही हैं और डार्क मैटर का ये बवंडर हमारी आकाशगंगा से टकरा सकता है। इसकी खोज करने वाले यूनिवर्सिटी आप सिडनी के वैज्ञानिकों ने कहा है कि डार्क मैटर के बादल की इस टक्कर से हमें या हमारे सौरमंडल को कोई खतरा नहीं, लेकिन ये घटना वैज्ञानिकों को डार्क मैटर के बारे में जानने का एक मौका जरूर उपलब्ध कराएगी।
हजारों साल से हम आसमान में जगमगाते इन सितारों को देखकर यकीन करते रहे कि पूरा ब्रह्मांड इन्हीं जगमगाते सितारों से मिलकर बना है। लेकिन ये पूरा सच नहीं। अगर आप अंतरिक्ष की किसी ऐसी छत पर खड़े हों जहां से अरबों-खरबों जगमगाते सितारों और चमकदार आकाशगंगाओं के रूप में चारों ओर फैले संपूर्ण ब्रह्मांड को देख सकते...तो आप देखते अनंत शून्य के गहन अंधकार में टिमटिमाती हुई रोशनी के लाखों-करोड़ों-अरबों द्वीप। सफेद, पीली, नारंगी, लाल, नीली रोशनी से जगमगाते अनगिनत सितारे और आकाशगंगाएं। तब आपके मन में सवाल उठता, क्या यही है संपूर्ण ब्रह्मांड ?
नहीं, अनगिनत दियों की तरह जगमगाते जिस अदभुत नजारे को आप देख रहे हैं, वो पूरा ब्रह्मांड नहीं, बल्कि उसका एक बहुत छोटा, महज चार फीसदी हिस्सा ही है। जी हां, ब्रह्मांड का केवल 4 फीसदी हिस्सा ही ऐसे पदार्थ से बना है जिसे हम देख सकते हैं और छूकर महसूस कर सकते हैं ...आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि हमारे ब्रह्मांड का 96 फीसदी हिस्सा कुछ ऐसी अजीबोगरीब चीजों से बना है, जिन्हें न तो हमारी आंखें देख सकती हैं और न ही हमारे संवेदनशील उपकरण। लेकिन फिरभी जिसके वजूद का बेहद ताकतवर एहसास इस कायनात के जर्रे-जर्रे में समाया हुआ है। पूरे ब्रह्मांड को मौजूदा सांचे में ढालने और इसके एक–एक सितारे की साज-संभाल करने वाला वो सर्वशक्तिमान छिपा है, सितारों और आकाशगंगाओं के बीच मौजूद घोर अंधकार के अथाह समंदर में। उस सर्वशक्तिमान का नाम है, डार्क मैटर
ये न तो ठोस है और न ही द्रव या गैस। इसे छुआ नहीं जा सकता, लेकिन फिरभी ये डार्क मैटर हमारे घर, हमारी धरती से लेकर हमारी आकाशगंगा और इस ब्रह्मांड के कोने-कोने में मौजूद है। ये सर्वशक्तिमान है क्योंकि पूरे ब्रह्मांड की कोई भी चीज इसे रोक नहीं सकती। ये सूरज से भी नहीं घबराता और उसे भेदते हुए आर-पार निकल जाता है। फिर ग्रहों और चंद्रमाओँ की तो बिसात ही क्या ! ये सर्वशक्तिमान इसलिए भी है, क्योंकि डार्क मैटर की वजह से ही आकाशगंगाओं को एक खास आकार मिलता है और तमाम सितारे अपनी-अपनी जगह पर बने रहते हैं।
इस गहन ब्रह्मांड में एक खास ताकत भी काम कर रही है, जिसे देखना या महसूस करना मुमकिन नहीं...लेकिन फिरभी जो तमाम आकाशगंगाओं और सितारों को एक-दूसरे से दूर धकेलती जा रही है, इस ताकत का नाम है डार्क इनर्जी । सर्वशक्तिमान डार्क मैटर और डार्क इनर्जी के रहस्य को समझना बेहद जरूरी है, क्योंकि इनके गहरे रहस्य में छिपी है तकदीर, हमारे ब्रह्मांड की। और जवाब इस सवाल का कि क्या हमारा ब्रह्मांड एक दिन अपने ही अपार गुरुत्वाकर्षण की आपसी खौफनाक टक्कर से एकदूसरे में सिमटते हुए भीषण ऊर्जा की जबरदस्त तपिश में जलकर-झुलसकर खत्म हो जाएगा? या फिर सर्वशक्तिमान डार्क इनर्जी पूरे ब्रह्मांड को खींचते हुए टुकड़ों-टुकड़ों में बांटकर अनंत में एक–दूसरे से दूर फेंक देगी ? आइए चलते हैं, अनदेखे ब्रह्मांड के रोमांचक सफर पर और करते हैं मुलाकात सर्वशक्तिमान डार्क मैटर से।
करीब 14 अरब साल पहले, शून्य में ऊर्जा का महाविस्फोट.... बिगबैंग...जिसने जन्म दिया दिखने वाले सभी पदार्थों यानि मैटर और नजर न आने वाले डार्क मैटर को। डार्क मैटर का गुरुत्वाकर्षण बल किसी मकड़ी के जाले की तरह चारों ओर फैला था, जिसके जबरदस्त खिंचाव ने शुरुआती पदार्थ के कणों को एक-दूसरे के करीब आने पर मजबूर कर दिया। फिर क्या था डार्क मैटर के इसी गुरुत्वाकर्षण ढांचे पर मैटर यानि नजर आने वाले पदार्थों ने आपस में जुड़कर, नए-नए पदार्थ बनाए और जन्म दिया आकाशगंगाओं, सितारों, ग्रहों और सौरमंडलों को और इस तरह हो गई शुरुआत इस सृष्टि की।
पदार्थों के अणुओं-परमाणुओं ने तो रासायनिक क्रियाओं के जरिए आपस में जुड़कर और ढेर सारे नए-नए पदार्थ रचकर अपनी जगमगाती दुनिया रच डाली,लेकिन अदृश्य डार्क मैटर सृष्टि की इस रचना प्रक्रिया में शामिल नहीं हो सके। क्योंकि डार्क मैटर के परमाणुओं में आपस में जुड़ने और कुछ नया रच डालने की काबिलियत थी ही नहीं, इसलिए डार्क मैटर के अणु पूरे ब्रह्मांड में स्याह घने बादल की शक्ल में फैल गए। अंधकार के इस बादल में जहां-जहां डार्क मैटर के अणुओं की मौजूदगी बेहद सघन थी, उन घने हिस्सों में बन गईं डार्क मैटर की आकाशगंगाएं।
ब्रह्मांड का ये सबसे बड़ा रहस्य तब तक छिपा रहा, जब तक टेक्नोलॉजी की तरक्की ने हमें आसमान के पार झांकने की काबिलियत नहीं दे दी। 1920 तक तो हम ये भी नहीं जानते थे कि हमारी आकाशगंगा के अलावा कहीं कोई और भी आकाशगंगा है। अमेरिकी एस्ट्रोनॉमर एडविन हब्बल ने टेलिस्कोप से दूर अंतरिक्ष में पहली बार कुछ धुंधले से नन्हें धब्बे देखे, ये दूसरी आकाशगंगाएं थीं, जिन्हें पहली बार देखा गया। हब्बल ने बताया हमारा ब्रह्मांड जितना हम सोंचते हैं उससे कहीं ज्यादा विशाल है और हमारी आकाशगंगा तो बस इसका एक छोटा सा हिस्सा भर है। हब्बल की बात सुनकर पूरी दुनिया चौंक उठी।
कैलीफोर्निया इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी के स्विस एस्ट्रोनॉमर फ्रिट्ज विकी कोमा क्लस्टर में मौजूद आकाशगंगाओं की गति का अध्ययन कर रहे थे। उन्होंने देखा कि आकाशगंगा के केंद्र के चारों ओर घूमते सितारों की रफ्तार बहुत ज्यादा थी, जबकि उनके पदार्थों के वजन के मुताबिक ये रफ्तार काफी कम होनी चाहिए थी। इसका सीधा मतलब ये था कि इन आकाशगंगाओं में कोई और चीज भी मौजूद है, जो नजर भले ही न आ रही हो, लेकिन सभी सितारों की रफ्तार पर लगातार अपना जोरदार असर डाल रही है। ये एक अदभुत खोज थी, जिसने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। विकी ने उस अदृश्य ताकत का नाम रखा डार्क मैटर।
फ्रिट्ज विकी के नतीजों के 40 साल बाद डार्क मैटर पर सबसे बड़ी खोज की कार्नेगी इंस्टीट्यूट आफ वाशिंगटन की एक युवा वैज्ञानिक वेरा रूबिन ने। साल था 1970 का और अपनी क्रिसमस की छुट्टियां रद्द कर वेरा रूबिन एक अनोखी खोज में जुटी थीं। रूबिन पड़ोस की आकाशगंगा एंड्रोमेडा का अध्ययन कर रहीं थीं। कुदरत ने अपने सबसे बड़े रहस्य को जाहिर करने के लिए रूबिन का चुनाव कर लिया था। रूबिन जान चुकीं थीं कि उनका सामना कुदरत के सबसे अनोखे रहस्य से होने जा रहा है। उनका दिल जोरों से धड़क रहा था और दिसंबर की कड़ाके की ठंड के बावजूद उनके माथे पर पसीना छलक आया था। न्यूटन और आइंस्टीन के एक खास सिद्धांत के मुताबिक किसी केंद्र की परिक्रमा कर रहे सबसे नजदीक के पिंड की गति उसी केंद्र की परिक्रमा पर रहे सबसे दूर के पिंड से कहीं ज्यादा होगी। मिसाल के तौर पर हमारे सौरमंडल में सूरज ही गुरुत्वाकर्षण बल का सबसे बड़ा जरिया है और इसकी परिक्रमा कर रहे सबसे नजदीक के ग्रह बुध की गति सबसे दूर मौजूद प्लूटो से कई गुना ज्यादा होती है। क्योंकि सूरज के गुरुत्व का सबसे ज्यादा असर बुध पर होता है, जबकि प्लूटो पर सबसे कम। इसीलिए प्लूटो सूरज की परिक्रमा करने में सबसे ज्यादा समय लेता है। फिजिक्स के नियम पूरे ब्रह्मांड में एकसमान रूप से लागू होते हैं, इसलिए वेरा रूबिन जानना चाहती थीं कि सौरमंडल पर काम करने वाला न्यूटन और आइंस्टीन का सिद्धांत आकाशगंगाओं पर भी लागू होना चाहिए, क्योंकि किसी आकाशगंगा में केंद्र की परिक्रमा कर रहे सितारे भी हमारे सौरमंडल की तरह ही व्यवहार करते हैं। यानि न्यूटन और आइंस्टीन के नियम के मुताबिक आकाशगंगा के केंद्र के नजदीक वाले सितारों की गति सबसे तेज और आकाशगंगा के बाहरी छोर पर मौजूद सितारों की गति सबसे कम होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं था। वेरा रूबिन ने अपने ऑब्जरवेशन से साबित कर दिया कि आकाशगंगाओं में मौजूद सभी सितारे एक ही रफ्तार से केंद्र के चक्कर काटते हैं, चाहे वो केंद्र से नजदीक हों या फिर दूर। ये बेहद चौंका देने वाला नतीजा था।
क्या न्यूटन और आइंस्टीन के सिद्धांत गलत थे ? आकाशगंगा के सभी सितारे एक ही रफ्तार से क्यों घूम रहे हैं ? वेरा रूबिन के नतीजों को जब हब्बल की खोज से मिलाकर देखा गया, तो एक बार फिर ये बात सामने आई कि आकाशगंगाओं में भारी तादाद में कोई ऐसी चीज मौजूद है, जो नजर तो नहीं आती लेकिन वो हर सितारे पर अपना भरपूर असर डाल रही है और इसी वजह से आकाशगंगाओं के सभी सितारे एकसमान गति से अपने केंद्र के चक्कर काट रहे हैं। ये नजर न आने वाली रहस्यमय चीज थी डार्क मैटर।
आइंस्टीन ने कहा था कि शून्य में गुरुत्वाकर्षण बल का असर इतना जबरदस्त होता है कि एक सीधी रेखा में चलने वाली प्रकाश की किरण जब इसके आसपास से होकर गुजरती है, तो गुरुत्वाकर्षण बल के असर से प्रकाश की किरण भी मुड़ जाती है। आइंस्टीन का ये सिद्धांत ग्रैविटेशनल लेंसिंग के नाम से मशहूर है। आइंस्टीन जिस ग्रेविटेशनल लेंसिंग की बात कर रहे थे अंतरिक्ष में मौजूद ऑब्जरवेटरी हब्बल ने जब कुदरत की इस नायाब घटना को अपनी आंखों के सामने घटते देखा तो दुनियाभर के वैज्ञानिक रोमांच से भर उठे।
सुदूर आकाशगंगाओं के उस पार से आती रोशनी जैसे ही सितारों के आसपास से गुजरती है वो गोलाकार रूप से मुड़ जाती है। सबसे बड़ा सवाल ये कि आखिर क्यों ? सितारों के आसपास अंतरिक्ष के अंधियारे में ऐसी क्या चीज मौजूद है, जिसका जबरदस्त गुरुत्वाकर्षण रोशनी को भी मुड़ने पर मजबूर कर देता है ? इस सवाल का जवाब मिला डार्क मैटर में। अंतरिक्ष के अंधियारे में मौजूद वो डार्क मैटर ही है जो अपनी जबरदस्त गुरुत्वाकर्षण की ताकत से आसपास से गुजरती हुई रोशनी को भी मरोड़ देता है। हब्बल ने डार्क मैटर की इस जबरदस्त ताकत की तस्वीर जब पहली बार वैज्ञानिकों को दिखाई तो वो कुदरत के इस अनोखे रहस्य के बारे में और भी ज्यादा जानकारी जुटाने में जुट गए।
डार्क मैटर के बारे में सबसे ज्यादा सनसनीखोज खुलासा तब हुआ जब हमें इस बात के सबूत मिले कि डार्क मैटर दूर आकाशगंगाओं और सितारों पर ही असर नहीं डालता, बल्कि वो हमारी पृथ्वी के आरपार से गुजरता हुआ चारों ओर मौजूद है। इतना ही नहीं, बल्कि हमें ये भी पता चला कि हमारी पृथ्वी और चंद्रमा के बीच डार्क मैटर का एक बहुत बड़ा बादल भी मौजूद है। जिसकी वजह से चंद्रमा पर गुरुत्वाकर्षण का एक अतिरिक्त खिंचाव भी काम कर रहा है। ये एक चौंकाने वाली खोज थी। जिसने हमें डार्क मैटर की पहचान करने और उसे महसूस करके देखने पर मजबूर कर दिया। सर्वशक्तिमान डार्क मैटर को वीकली इंटरैक्टिव मैसिव पार्टिकिल्स यानि विम्प्स, एक्जियॉन्स और माचोज जैसे कुदरत के सबसे नायाब और सबसे अनोखे कण मिलकर बनाते हैं। इसी जानकारी के आधार पर स्पेस ऑब्जरवेटरी हब्बल ने पहली बार डार्क मैटर का थ्री-डी मैप बनाने में सफलता हासिल की।
अपनी पृथ्वी पर हम जितनी चीजों को जानते-समझते...महसूस करते हैं डार्क मैटर उन सबसे अलग और अनोखा है। हर सेकेंड नजर न आने वाले डार्क मैटर के अरबों विम्प्स कण सामने आने वाली हर चीज- पेड़, पत्थर, पहाड़, मकान, कार, धरती यहां तक कि खुद हमें भी भेदते हुए गुजर रहे हैं। सबसे अदभुत बात तो ये कि किसी को बगैर कोई नुकसान पहुंचाए। डार्क मैटर जब सूरज को भेदता है तो वो प्रकृति के एक और अनोखे कण न्यूट्रिनोज को जन्म देता है। ऐसा ही तब भी होता है जब डार्क मैटर के बादल हमारी पृथ्वी के दहकते हुए कोर से होकर गुजरते हैं। डार्क मैटर की तरह न्यूट्रिनोज के कण भी सामने आने वाली हर चीज को भेदते हुए गुजर जाते हैं। डार्क मैटर का वजन, उनका गुरुत्वाकर्षण इतना ज्यादा है कि वो आकाशगंगाओं को भी प्रभावित करने की ताकत रखते हैं। डार्क मैटर की मौजूदगी हर जगह है, वो सही मायनों में सर्वव्यापी हैं। कुदरत की इस सबसे अनोखी रचना को लेकर सवालों की भरमार है और अब पूरी मानव जाति के इतिहास में पहली बार हमें मिला है एक धुंधला सा पहला जवाब।
आप सोंच रहे होंगे कि आसमान से बरसने वाले इस सर्वशक्तिमान डार्क मैटर के विम्प्स कणों की तलाश में वैज्ञानिक दिन-रात आसमान में नजरें गढ़ाए रहते होंगे। नहीं ऐसा नहीं है, दुनियाभर के वैज्ञानिकों की कई टीम्स जमीन से कई किलोमीटर नीचे मौजूद खास प्रयोगशालाओं में 40 साल से इस कोशिश में जुटी हैं कि किसी तरह डार्क मैटर के अनोखे कणों विम्प्स को पकड़ा जा सके और ये साबित किया जा सके कि डार्क मैटर का वजूद महज कोई किताबी बात नहीं बल्कि हर पल हमारी आंखों के सामने से गुजरती एक ठोस हकीकत है। डार्क मैटर की खोज हम धरती के नीचे जाकर ही कर सकते हैं, ऐसा इसलिए ताकि आसमान से बरसने वाली कॉस्मिक किरणों से इस प्रयोग को सुरक्षित रखा जा सके। डार्क मैटर के कण हर पल भारी तादा में पूरी धरती से आरपार गुजर रहे हैं, इसलिए वैज्ञानिकों का मामना है कि धरती के नीचे बनी प्रयोगशालाओं में मौजूद कुछ खास सेंसर्स की मदद से नजर न आने वाले डार्क मैटर के कणों खासतौर पर पर विम्प्स के आगमन को पकड़ा जा सकता है।
डार्क मैटर की प्रयोगशालाएं दुनियाभर में धरती से हजारों फुट की गहराइयों में काम कर रही हैं। डार्क मैटर की ऐसी ही सबसे बड़ी सर्च लैब मौजूद है अमेरिकी राज्य मिनेसोटा की सबसे पुरानी, सबसे गहरी और अब खाली पड़ी लोहे की खान में। यहां एसएलएसी नेशनल लैबोरेटरी, यूनिवर्सिटी आफ कैलीफोर्निया और फर्मीलैब के सहयोग से, धरती से करीब आधे मील की गहराई में मौजूद क्रायोजेनिक डार्क मैटर सर्च यानि सीडीएमएस लैब में कई दशक से डार्क मैटर की खोज जारी है। इस खान से लोहे के अयस्क को निकालने का काम 1912 में ही बंद हो चुका है और अब ये खान दुनियाभर के वैज्ञानिकों के आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र बन चुकी है। इसकी वजह है इसी खान की गहराइयों में धरती से करीब डेढ़ किलोमीटर नीचे मौजूद एक संवेदनशील प्रयोगशाला, जहां डार्क मैटर के कण विम्प्स को पहली बार पकड़ने में पहली कामयाबी हासिल हुई है।
आइए जानते हैं कि सीडीएमएस यानि क्रायोजेनिक डार्क मैटर सर्च लैब में मौजूद दुनियाभर में डार्कमैटर के सबसे संवेदनशील डिटेक्टर ने डार्क मैटर के कण विम्प्स को आखिर कैसे पकड़ा ?
सीडीएमएस में दुनियाभर के 13 संस्थानों से आए 46 वैज्ञानिकों की टीम डार्क मैटर की तलाश में जुटी है। यहीं है वो खास क्रायोजेनिक चैंबर जिसमें रखे हैं वो खास डिटेक्टर्स जिन्होंने डार्क मैटर के कणों विम्प्स को पहली बार पकड़ा है। डार्क मैटर के ये सेंसर जरमेनियम से बने हैं, जरमेनियम इसलिए क्योंकि इसके अणुओं के बीच खाली जगह बहुत कम होती है और जरमेनियम के इस ब्लॉक के ऊपर लगे हैं वो खास सेंसर जो तापमान में होने वाले हल्के से हल्के अंतर को भी तुरंत पहचान लेते हैं। जरमेनियम के ऐसे कई ब्लॉक्स को इस क्रायोजेनिक चैंबर के भीतर एब्सोल्यूट जीरो यानि शून्य से दो सौ तिहत्तर दशमलव एक पांच डिग्री सेंटीग्रेड से एक डिग्री ऊपर वाले तापमान के पचास हजारवें हिस्से तक बेहद ठंडे माहौल में सील कर दिया जाता है। पूरी धरती पर इतनी ठंडी जगह कोई दूसरी नहीं और तापमान को कहीं और इस हद तक कम करना भी मुमकिन नहीं।
डार्क मैटर के कण विम्प्स को पकड़ने का काम इस सिद्धांत पर काम करता है कि आमतौर पर डार्क मैटर सामान्य पदार्थ से कोई भी क्रिया नहीं करते, लेकिन बेहद दुर्लभ मौके पर विम्प्स के कण सामान्य पदार्थ के नाभिक से जा टकराते हैं, और जब भी ऐसा होता है जरमेनियम में कंपन होता है और उसका तापमान बढ़ जाता है। कई साल से वैज्ञानिक बस इसी दुर्लभ घटना को पकड़ने की कोशिश कर रहे थे। मशहूर साइंस जर्नल नेचर के दिसंबर 2009 के अंक में छपी रिपोर्ट के अनुसार डार्क मैटर को पकड़ने में पहली सफलता मिली है इसी सीडीएमएस लैब को, जहां क्रायोजेनिक चैंबर के बेहद ठंडे माहौल में में रखे जरमेनियम सेंसर के तापमान में अचानक मामूली वृद्धि रिकार्ड की गई, जिसका सीधा मतलब ये है कि डार्क मैटर के किसी विम्प्स कण की टक्कर जरमेनियम परमाणु के नाभिक से वाकई में हो गई। यानि ये साबित हो गया कि सर्वशक्तिमान डार्क मैटर का वजूद महज कोई किताबी बात नहीं बल्कि एक ठोस हकीकत है। हमारे ब्रह्मांड का 96 फीसदी हिस्सा इसी डार्क मैटर से बना है जो दिखाई तो नहीं देता लेकिन जो सौ फीसदी वजूद में है। सीडीएमएस लैब यानि धरती पर डार्क मैटर की ये खोज इस सदी की सबसे बड़ी खोजों में से एक है। वैज्ञानिक अब इंतजार कर रहे हैं कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में जमीन के भीतर काम कर रही डार्क मैटर की अन्य प्रयोगशालाओं से मिलने वाले नतीजों का। उम्मीद है कि ये प्रयोगशालाएं भी भी डार्क मैटर के विम्प्स कणों को पकड़ने में कामयाब रहेंगी।
सर्वशक्तिमान डार्क मैटर की जो दूसरी सबसे बड़ी खूबी है वो ये कि ये अनोखी और अदृश्य चीज ब्रह्मांड के 96 फीसदी हिस्से में तो है ही साथ ही ये नजर आने वाले सामान्य पदार्थों के परमाणुओं के भीतर भी मौजूद है। दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला सेर्न की महामशीन एलएचसी में हो रहे, प्रोटॉन बीम की आपस में टक्कर के महाप्रयोग का मकसद भी यही है कि ब्रह्मांड की शुरुआत यानि बिगबैंग के वक्त के माहौल को फिर से रचा जाए। ताकि पदार्थ यानि मैटर और डार्क मैटर दोनों के बनने के रहस्य को समझा जा सके। साथ ही सेर्न में परमाणु के भीतर झांककर वहां डार्क मैटर की मौजूदगी के सबूत ढूढने की कोशिश भी की जा रही है।
धरती पर डार्क मैटर की खोज ऐसे वक्त में हुई है, जब वैज्ञानिक हमारी आकाशगंगा के आसपास घट रही एक अनोखी घटना पर निगाहें जमाए हुए हैं। हमारी आकाशगंगा के आसपास डार्क मैटर की बहुत सारी अदृश्य आकाशगंगाएं जमा हो रही हैं और डार्क मैटर का ये बवंडर हमारी आकाशगंगा से टकरा सकता है। इसकी खोज करने वाले यूनिवर्सिटी आप सिडनी के वैज्ञानिकों ने कहा है कि डार्क मैटर के बादल की इस टक्कर से हमें या हमारे सौरमंडल को कोई खतरा नहीं, लेकिन ये घटना वैज्ञानिकों को डार्क मैटर के बारे में जानने का एक मौका जरूर उपलब्ध कराएगी।
दक्षिणी ध्रुव पर पहली भारतीय महिला
दिल्ली की रहने वाली रीना कौशल दक्षिणी ध्रुव को फतह करने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं। रीना कॉमनवेल्थ देशों की आठ महिलाओं की टीम की मेंबर हैं। कॉमनवेल्थ की स्थापना के 60 साल पूरे होने के मद्देनजर यह ऐतिहासिक अभियान शुरू किया गया था। टीम मेंबर 900 किलोमीटर के बर्फीले अंटार्कटिका को पार करके साउथ पोल पर पहुंचे। इस टीम की लीडर फेलिसिटी एस्टन ने साउथ पोल से भेजे एक मेसेज में कहा कि इस टीम का हिस्सा बनकर मैं बहुत गर्व महसूस कर रही हूं। मेरा मानना है कि अगर हम यह काम कर सकते हैं तो आप वह सब भी कर सकते हैं, जो आपको पसंद है। यही मेसेज हम हर व्यक्ति को भेजना चाहते हैं। टीम के साथ रीना ने रोजाना 8 से 10 घंटे तक स्कीइंग की। बर्फ से ढके धुव तक पहुंचने में टीम को करीब 40 दिन लगे। टीम की हर मेंबर करीब 80 किलो वजन स्लेज पर ढोकर ले जाना पड़ता था, जिसमें खाने-पीने का सामान भी शामिल होता था। सफेद पर्वतों को पार करते हुए और मैदानी इलाकों से गुजरते हुई ये महिलाएं ऐसी जगहों से गुजरीं, जहां चौबीसों घंटे सूरज की रोशनी जैसा अहसास होता है। टीम के हर सदस्य के पास भोजन आदि सामग्री सहित करीब 80 किलो वजन था। रीना कौशल ने इंटरनेट पर जारी एक बयान में बताया कि इस ऐतिहासिक मुकाम तक पहुंचने में हमारी टीम को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। हमने ऐसी बर्फबारी को पार किया, जिसमें सामने कुछ भी नजर नहीं आता था। यहां जेट की स्पीड से हवाएं चलती हैं, जिनकी रफ्तार 130 किलोमीटर प्रति घंटा से भी ज्यादा होती है। चारों तरफ बर्फ ही बर्फ नजर आती है। आगे गहरा गड्ढा है या खाई, आप अंदाजा नहीं लगा सकते। टेंपरेचर माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तक रहता है। इतनी मुसीबतों के बावजूद हमने हार नहीं मानी और तूफानी हवाओं, छिपी हिम दरारों और शून्य से चालीस डिग्री नीचे तापमान को पीछे छोड़ते हुए हम आखिरकार अपनी मंजिल तक पहुंच ही गए। एस्टन का कहना था कि धरती की सबसे निचले हिस्से पर पहुंचकर हम सातों महिलाओं के चेहरे पर बड़ी मुस्कान खिल रही है। हम यहां पहुंचकर बहुत ग्रेट महसूस कर रहे हैं। इस टीम में भारत के अलावा, ब्रूनेई, साइप्रस, घाना, जमैका, न्यूजीलैंड, सिंगापुर और ब्रिटेन की महिलाएं शामिल हैं। बर्फ से ढके पर्वतों को अपने कदमों तले लाने का काम रीना पहले भी कर चुकी हैं। वह हिमालय की सात चोटियों को भी फतह कर चुकी हैं। इनमें लद्दाख के नन और स्टोक कांगरी जैसे पहाड़ शामिल हैं। रीना के हस्बैंड लवराज सिंह भी एवरेस्ट फतह कर चुके हैं। पेशे से आउटडोर इंस्ट्रक्टर रीना का कहना है कि मैं चाहती हूं कि अपने अनुभवों के जरिए मैं देश की ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को आउटडोर इंडस्ट्री में करियर बनाने में मदद करूं।
सृष्टि के रहस्य और हम
न सिर्फ आम लोग बल्कि बड़े-बड़े फिलॉसफर और पहुंचे हुए महापुरुष भी हमारी सृष्टि को अक्सर अनादि और अनंत बताते हैं। उनका मानना है कि यह संसार हमेशा था और हमेशा रहेगा। इसका कोई ओर-छोर नहीं। उन्नीसवीं सदी की साइंस ने भी इस धारणा पर यह कहकर अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी कि मैटर और एनर्जी अमिट हैं। वे न क्रिएट हो सकते हैं न डेस्ट्रॉय। उनका केवल रूप परिवर्तन होता रहता है। इसके विपरीत कुछ लोगों का विचार है कि सृष्टि सत्य नहीं, एक भ्रम है, छाया है, माया है। यह संसार हमारी चेतना की उपज है, अपने-आप में उसका कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं। सृष्टि के सब रूप-रंग हमारे अनुभव के मुहताज हैं और हमारे अनुभवों से ही वे बनते-बिगड़ते रहते हैं। इस मायावी विश्वास को बीसवीं सदी की दो महान वैज्ञानिक थ्योरियों- रिलेटिविटी और क्वांटम मकैनिक्स ने बल प्रदान किया। रिलेटिविटी थ्योरी ने सृष्टि के अति विशाल स्वरूप की व्याख्या करते हुए बताया कि वस्तुओं की मापतौल उनकी मोशन और एनर्जी पर निर्भर करती है, वह अचल, अटल और निरपेक्ष नहीं होती। क्वांटम थ्योरी ने बताया कि मैटर के अति महीन कण इतने अस्थिर होते हैं कि वे कब-कहां है, यह निश्चित करना संभव नहीं होता। उनकी स्थिति और गति दोनों की एक साथ मापतौल मुमकिन नहीं होती। केवल कोशिश-भर से उनकी स्थिति अथवा गति विचलित हो जाती है। इक्कीसवीं सदी की साइंस शक्तिशाली दूरबीनों की मदद से न केवल सृष्टि के ओर-छोर की मापतौल कर रही है, बल्कि वह गहन अतीत में झांक कर पता लगा रही है कि हमारी सृष्टि का जन्म कब और कैसे हुआ, उसका बचपन कैसा था, और कैसे उसमें धीरे-धीरे अरबों गैलेक्सियों और खरबों-खरब तारों का विकास हुआ। किस-किस द्रव्य से सृष्टि का गठन हुआ है, कहां तक उसका विस्तार है और कैसे वह अपने अंत की ओर बढ़ रही है। आज की शक्तिशाली दूरबीनें शून्यमय और अंधकारमय अंतरिक्ष में झांकते हुए ऐसे-ऐसे दृश्यों को हमारे लिए उजागर कर रही हैं जो हमसे अरबों प्रकाश वर्ष दूर हैं। दूसरे शब्दों में, हम दूरबीनों की मदद से ऐसे-ऐसे दृश्य देख पा रहे हैं जो अरबों साल पुराने हैं। आज का आकाश निहारते वक्त हम प्राचीन संसार का इतिहास देख रहे होते हैं। सृष्टि को समझने और उसकी मापतौल की दूरबीनी कोशिश आज से चार सौ साल पहले शुरू हुई थीं। सन 1609 में गैलीलियो ने नई-नई ईजाद हुई दूरबीन का रुख जब आकाश की ओर मोड़ा तब मानो अनंत दर्शन के लिए मनुष्य जाति के मस्तिष्क में एक नया और विशाल नेत्र खुल गया। तब मनुष्य ने पहले-पहल चांद की सतह पर टीले और गड्ढे देखे, शुक्र ग्रह की घटती-बढ़ती कलाएं देखीं, बृहस्पति के आंगन में विचरते चार चांद देखे और सूरज के चेहरे पर काले-काले दाग देखे। सन 1930 में खगोलशास्त्री हब्बल ने पाया कि विश्व में हमारी आकाशगंगा अकेली नहीं, उस जैसी अनगिनत प्रकाश की दूधिया बदलियां 'नेबुला' आकाश में विचर रही हैं। वे बदलियां हमारी आकाशगंगा जैसी ही गैलेक्सियां हैं। उन एक-एक में करोड़ों, अरबों या शायद खरबों सूरज-सरीखे तारे हैं। हब्बल के देखने में आया कि ये सब गैलेक्सियां बड़ी तेजी से हम से और एक-दूसरे से, दूर होती जा रही हैं। उन्नीसवीं-बीसवीं सदियों की दूरबीनें अक्सर शहरों से दूर, पर्वतों की ऊंचाइयों पर स्थापित की जाती थीं। फिर भी इन दूरबीनों के दर्पणों पर तारे पृथ्वी के वातावरण से कंपित होकर झिलमिलाते और टिमटिमाते रहते थे। पृथ्वी का वातावरण बहुत-से रेडिएशन को चूस भी लेता था। इसलिए जरूरत थी ऐसी दूरबीनों की जो पृथ्वी के वातावरण को पीछे छोड़कर और आगे बढ़कर, अंतरिक्ष में ठहरे-ठहरे, तारों और गैलेक्सियों को निहार सकें। इसलिए हब्बल, कॉम्पटन, कोबे और चंदा नाम की दूरबीनों की पृथ्वी के आंगन में, लेकिन पृथ्वी की सतह से दूर, स्थापना की गई। इसी क्रम में जून 2001 में एक नई दूरबीन की स्थापना की गई, जिसे प्रिंस्टन के भूतपूर्व वैज्ञानिक डेविड विल्किनसन के सम्मान में डब्ल्यू.एम.ए.पी (विमैप) नाम दिया गया। यह दूरबीन हर वक्त पृथ्वी से 16 लाख किलोमीटर का फासला बनाए हुए पृथ्वी के साथ-साथ सूरज की परिक्रमा करती रहती है। विमैप द्वारा हुए निरीक्षणों के आधार पर सृष्टि की उत्पत्ति, विकास तथा उसके स्वरूप के बारे में जो तथ्य सामने आए हैं, वे वैज्ञानिकों की आशाओं के अनुकूल निकले हैं। पाया गया कि हमारी सृष्टि सचमुच एक महाविस्फोट के साथ वजूद में आई थी। यह घटना 13 अरब 73 करोड़ साल पहले घटी थी। उसी के साथ काल की गति शुरू हुई थी और चार आयामी स्पेस-टाइम का सूत्रपात हुआ था। उत्पत्ति के क्षण सृष्टि का तापमान अरबों डिग्री था। अगले ही पल बिग बैंग से उत्पन्न हुई ऊष्मा अंतरिक्ष में फैल गई और उसका तापमान गिर गया। 3 लाख 80 हजार साल बाद यह ऊष्मा लगभग एकरस होकर सर्वत्र छा गई। इस दौर के तापमान के जो चित्र विमैप द्वारा उपलब्ध हुए हैं, उनसे पता चलता है कि यहां-वहां तापमान में कुछ-कुछ अंतर है। ये अंतर बहुत मामूली हैं - एक डिग्री के दो-चार लाखवें भाग से ज्यादा नहीं। महाविस्फोट के कुछ ही समय बाद इस ऊष्मा ने द्रव्य को जन्म दिया जो मुख्यत: हाइड्रोजन और हीलियम गैसों के रूप में प्रकट हुआ। बिग बैंग के लगभग 20 करोड़ साल बाद इन गैसों से पहले-पहले तारे गठित हुए। आगे चलकर ये तारे खरबों-खरब की संख्या में प्रकट होने लगे, चमकने लगे और करोड़ों अथवा अरबों साल का जीवन भोग कर बुझने लगे। आज ये खरबों-खरब तारे अरबों टोलियां यानी गैलेक्सियां बना कर ग्रैविटी के अदृश्य तागों से बंधे-बंधे सृष्टि में विचर रहे हैं। विमैप के यंत्र पिछले आठ साल से सुचारु रूप से काम कर रहे हैं। फिर भी नासा ने अगले साल, 2010 में, उसे सुला देने का मंसूबा बना लिया है। उसकी जगह, उससे भी शक्तिशाली एक और दूरबीन, जिसे प्लैंक नाम दिया गया है, इसी साल मई में भेज दी गई है। विमैप प्रॉजेक्ट के मुख्य वैज्ञानिक चार्ल्स बैनेट से जब हाल में पूछा गया कि सृष्टि की शुरुआत के बारे में तो आप लोगों ने बहुत जानकारी प्राप्त कर ली है, उसका अंत कब और कैसे होने वाला है, क्या इसका जवाब भी साइंस के पास है? उन्होंने कहा, बिग बैंग से उत्पन्न होने के बाद से हमारी सृष्टि लगातार फैल रही है, इसके स्पष्ट संकेत मिले हैं। भविष्य में भी विस्तार का यह सिलसिला जारी रहेगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।
साभार - बलदेव राज दावर
साभार - बलदेव राज दावर
हर्शल ने दिखाई एक अनोखी झलक
यूरोपीय स्पेस एजेंसी द्वारा छोड़ी गई हर्शेल स्पेस ऑब्जर्वेटरी पर लगे स्पायर नाम के उपकरण के जरिए वैज्ञानिक 12 अरब से ज्यादा पुराने समय में झांकने में कामयाब हुए हैं। माना जाता है कि करीब 13 अरब साल पहले बिग बैंग हुआ था। इसके तुरंत बाद आकाशगंगाओं के बनने की प्रक्रिया किस तरह परवान चढ़ी, स्पायर द्वारा खींची गई तस्वीरों से इसका राज खुलने की उम्मीद बढ़ गई है। स्पायर यानी स्पेक्ट्रल एंड फोटोमीट्रिक इमेजिंग रिसीवर से खींची गईं इमेज बहुत स्पष्ट और गहरी हैं, इनकी स्टडी करके यह पता लगाया जाएगा कि तारों और गैलेक्सियों का निर्माण कैसे होता है और वे किस तरह विकसित होकर मौजूदा रूप में आईं। इनसे दूर स्थित आकाशगंगाओं का पता लगाना भी मुमकिन होगा। आकाशगंगाओं में स्थित विशालकाय ब्लैक होल की जानकारी भी मिल सकेगी। दरअसल, हर गैलेक्सी से चारों तरफ रेडिएशन फैलता है। हमारे सोलर सिस्टम की तरफ आ रही इन किरणों को हर्शेल ने पकड़ा है। स्पायर ने दूरदराज के ऑब्जेक्ट्स से आते रेडिएशन को डिटेक्ट करने में मदद की। इन तस्वीरों से हजारों ऐसी गैलेक्सियों का पता चला है, जो अपने निर्माण के शुरुआती दौर में हैं। अब स्पायर टीम इनके फिजिकल और केमिकल प्रोसेस का अध्ययन कर रही है। स्पायर उपकरण हर्शेल ऑब्जर्वेटरी पर लगा है। हशेर्ल को यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने मई 2009 में लॉन्च किया था। यह धरती से करीब 10 लाख मील दूर रहकर चक्कर काट रही है। हर्शेल पहली ऐसी स्पेस ऑब्जर्वेटरी है, जो एक मिलीमीटर से भी कम वेवलेंथ वाली हाई रिजॉल्यूशन तस्वीरें खींचने में सक्षम है। इन इमेजों की स्टडी करने में छह देशों के 100 से ज्यादा एस्ट्रॉनॉमर जुटे हुए हैं। हर्शेल मिशन का एक बड़ा मकसद यह पता लगाना है कि शुरुआती दौर में आकाशगंगाओं का निर्माण कैसे हुआ और किस तरह वे इतनी विशालकाय बनीं।
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