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सोमवार, 18 मई 2009

कानपुर का 'जुगनू'


भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) ने नैनो सैटलाइट 'जुगनू' विकसित किया है। ये देश का पहला सबसे हल्का नैनो उपग्रह है, जो इस साल के अंत तक अंतरिक्ष में स्थापित हो जाएगा। संस्थान के साथ 5 घंटे चली विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के बाद इसरो ने 'जुगनू' को ग्रीन सिग्नल दे दिया है। आईआईटी के विशेषज्ञ प्रो. नलिनाक्ष व्यास की अगुआई में करीब चार दर्जन छात्र-छात्राओं ने देश का सबसे हल्का (साढ़े तीन किलोग्राम) नैनो सैटलाइट 'जुगनू' तैयार किया है। इस सैटलाइट में एक शक्तिशाली कैमरा है, जो अंतरिक्ष से 700 किलोमीटर नीचे पृथ्वी की तस्वीरें ले सकेगा। इसमें प्रयुक्त तकनीक माइक्रो इलैक्ट्रो मकैनिकल सिस्टम (मेम्स) अंतरिक्ष तकनीक के परीक्षण में कमाल दिखाएगी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) श्रीहरिकोटा की मदद से तैयार सैटलाइट की जांच के लिए इसरो ने मंगलवार को आईआईटी के वैज्ञानिकों से पांच घंटे तक विडियो कॉन्फ्रेंसिंग की, जिसमें इसरो के स्मॉल सैटलाइट निदेशक डी. राघवमूर्ति के साथ कंट्रोल एक्सपर्ट, पार्सल एक्सपर्ट, कम्यूनिकेशन एक्सपर्ट, रिसर्च एक्सपर्ट, सेंसर एक्सपर्ट सहित सैटलाइट तकनीक के दूसरे क्षेत्रों के विशेषज्ञ मौजूद थे। संस्थान के निदेशक प्रो. संजय गोविंद धोड़े, विभागाध्यक्ष व प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर प्रो. नलिनाक्ष व्यास, छात्रों और टीम इंचार्ज शांतनु अग्रवाल सहित 35 छात्रों ने भागीदारी की। संस्थान के छात्रों ने इसरो विशेषज्ञों के सवालों के तुरंत जवाब दिए और सैटलाइट के प्रोटोटाइप का प्रत्येक कोण से प्रदर्शन किया। इसरो से स्वीकृति मिलने के बाद छात्रों की आंखों में सफलता की चमक थी। प्राप्त जानकारी के मुताबिक अभी तक देश में 100 किलोग्राम का सैटलाइट तैयार किया गया है। 'जुगनू' 3.5 किलोग्राम का पहला ऐसा सैटलाइट है, जिसकी लागत बहुत ही कम है। इसे इसरो के बड़े उपग्रह के साथ अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। संस्थान के प्रो. व्यास के मुताबिक जुगनू को दिसंबर में धरती से 700 किलोमीटर ऊपर अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है। उसमें और शक्तिशाली कैमरा लगाने की तैयारी है, जिसे तैयार किया जा रहा है। वह इन्फ्रारेड इमेजिंग के माध्यम से आईआईटी में ही फोटो व सूचनाएं भेजेगा। जहां इसका नियंत्रण केंद्र होगा, यहीं परिणामों का अध्ययन किया जाएगा। जानकारी के अनुसार नैनो उपग्रह 'जुगनू' दिन में धरती के 14 से 15 चक्कर लगाएगा। वह रोज 10 से 15 मिनट तक कानपुर परिक्षेत्र के ऊपर रहेगा। जुगनू की मदद से खेती की स्थिति, गंगा नदी के बहाव की दिशा, मिट्टी की उर्वरा शक्ति, पर्यावरण तथा मिट्टी के कटाव की जानकारी के साथ अन्य तमाम महत्वपूर्ण सूचनाएं प्राप्त की जा सकेंगी।

सोमवार, 11 मई 2009

आसमान में 'आंख !'


स्पेस ऑब्जरवेटरी हब्बल ने एकबार फिर हमें आसमान में आंख जैसे अदभुत आकार की तस्वीर भेजी है। मेरे एक मित्र ने मुझे बताया कि केदारनाथ की यात्रा शुरू हो चुकी है, ऐसे में आसमान में एक बार फिर शइव का तीसरा नेत्र नजर आया है। शिव का तीसरा नेत्र, हब्बल की इस तस्वीर की ये तुलना वाकई दिलचस्प है। इससे पहले भी हब्बल की एक तस्वीर को आसमान में नजर आया शिव का तीसरा नेत्र कहकर प्रचारित किया जा चुका है।
दरअसल ये तस्वीर एक प्लेनेटेरी नेबुला की है। नेबुला यानि गर्म गैसों और धूल का रंगबिरंगा घना बादल। प्लेनेटेरी नेबुला का प्लेनेट्स से कुछ लेना-देना नहीं। प्लेनेटेरी नेबुला बनते हैं किसी सितारे की मौत से, जब एक भयंकर धमाके के साथ सितारे का पूरा पदार्थ केंद्र से बाहर की ओर छिटक जाता है। भारी अल्ट्रावायलेट रेडिएशन की मौजूदगी इसके केंद्र को बेहद चमकीला बना देती है। हब्बल ने ये तस्वीर 3 मई को ली थी, लेकिन इसे जारी अब किया गया है।

एक अनोखा मिलन !

ये तस्वीर हमारे सौरमंडल की एक बेहद दुर्लभ घटना की है। बृहस्पति के एक चंद्रमा के सामने से उसका दूसरा चंद्रमा गुजर रहा है। ऐसा दृश्य पहले न तो देखा गया और न ही रिकॉर्ड किया गया। सूरज की परिक्रमा के दौरान जब दो ग्रह एक दूसरे के सामने आ जाते हैं तो इसे खगोलीय भाषा में कन्जक्शन कहते हैं, लेकिन जब एक ग्रह दूसरे को छिपा लेता है तो इसे ऑकल्टेशन बोलते हैं। इस तस्वीर में पीछे नजर आ रहा छोटा पिंड बृहस्पति का चंद्रमा जैनेमीड है, जबकि उसके सामने से गुजर रहा दूसरा थोड़ा बड़ा पिंड है बृहस्पति का दूसरा चंद्रमा यूरोपा। इस अनोखी घटना की ये तस्वीर ऑस्ट्रेलिया के एस्ट्रोनॉमर एंथनी वेस्ली ने 8 मई को ली थी।
यूरोपा हमारे लिए बेहद खास है, क्योंकि बृहस्पति का ये चंद्रमा कई मीटर मोटी बर्फ की चादर से ढंका है, और इसकी बर्फ के नीचे एक विशाल सागर छिपे होने की संभावना है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यूरोपा के इस समुद्र में जीवन मौजूद हो सकता है। संभावना है कि इस सागर में विशाल जीव भी मौजूद हो सकते हैं।