जवानी के दिनों में उन्हें घुड़सवारी बेहद पसंद थी। ऑक्सफोर्ड में वो नौकायन टीम के सदस्य थे और जब भी यूनिवर्सिटी की पढ़ाई-लिखाई से ऊब जाते दोस्तों के साथ नौकायन पर निकल पड़ते थे। लेकिन बीमारी का पहला लक्षण तब सामने आया जब वो दाखिला लेने के लिए कैंब्रिज यूनिवर्सिटी गए। वो यूनिवर्सिटी की सीढ़ियां चढ़ रहे थे कि अचानक खुद से नियंत्रण खो बैठे और लुढ़कते हुए नीचे आ गए, इससे उन्हें सिर पर गहरी चोट लगी। सिर की चोट से कहीं पढ़ाई-लिखाई पर असर न पड़े, इसलिए घबराकर उन्होंने मेन्सा टेस्ट कराया। लेकिन मोटर न्यूरॉन डिजीज की पहचान तब हुई जब वो 21 साल के थे, उनके पहले विवाह से ठीक पहले। डॉक्टरों ने बुरी खबर सुनाई कि अब वो बस दो या तीन साल के ही मेहमान हैं। आहिस्ता-आहिस्ता अनकी बाहों और पैरों ने काम करना बंद कर दिया। 1985 में वो जब सेर्न प्रयोगशाला के दौरे पर थे, तभी उन्हें निमोनिया हो गया, उनकी स्थिति इतनी संवेदनशील थी कि साधारण सा निमोनिया भी जीवन के लिए खतरा बन गया और उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगी। इस निमोनिया के असर से वो बोलने की क्षमता भी खो बैठे। तब से इलेक्ट्रॉनिक वॉइस सिंथेसाइजर की आवाज ही उनकी आवाज बन गई और 2009 में वो पूरी तरह से पैरालाइज्ड हो गए। लेकिन ये बीमारी उनके दिमाग को सोचने-समझने से नहीं रोक सकी और व्हीलचेयर पर बैठे-बैठे उन्होंने ब्रह्मांड के अनोखे रहस्य परत-दर-परत दुनिया के सामने खोल कर रख दिए। इस अनोखे वैज्ञानिक का नाम है प्रो. डॉ.स्टीफन हॉकिंग। प्रो. हॉकिंग की बीमारी सामान्य नहीं, इस रोग के जिस दूसरे रोगी का रिकॉर्ड मेडिकल साइंस के पास है वो बस 39 साल की उम्र तक ही जी सका था। लेकिन सृष्टि के रहस्यों को जानने-समझने की अदभुत जिज्ञासा और जबरदस्त इच्छाशक्ति के बदौलत प्रो. हॉकिंग ने हाल में 70 वां जन्मदिन मनाया है। प्रो. डॉ.स्टीफन हॉकिंग के 70 वें जन्मदिन पर ब्रिटिश साइंस जर्नल न्यू साइंटिस्ट ने उनका खास इंटरव्यू लिया। ‘वॉयेजर’ के पाठकों के लिए ये इंटरव्यू प्रस्तुत है। संदर्भों का समझने में आसानी हो, इसलिए हमने साथ में सभी प्रमुख साइंस टर्म्स और सिद्धांतों को आसान शब्दों में देने की कोशिश भी की है।
सवाल – आपके पूरे करियर के दौरान फिजिक्स की ऐसी कौन सी खोज थी, जिसने आपको उत्साह से भर दिया
प्रो. हॉकिंग – कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड के तापमान में हल्के से अंतर की सेटेलाइट कोबे की खोज और बाद में मिशन डब्लूमैप के आंकड़ों से इसकी पुष्टि होना, मैं इसे अपने वक्त की साइंस की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक कहूंगा। इससे लगातार प्रसार कर रहे ब्रह्मांड के सिद्धांत को शानदार बल मिला। इस सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड के प्रसारित होने से गुरुत्वाकर्षण की तरंगें फूटती हैं, मुझे उम्मीद है कि सेटेलाइट प्लांक इन गुरुत्व तरंगों को पकड़ने में कामयाब रहेगा। ये क्वांटम ग्रैविटी की सबसे शानदार इबारत साबित होगी जो अंतरिक्ष के आर-पार लिखी हुई है।
संपादक – ब्रह्मांड की उत्पत्ति यानि बिगबैंग की घटना के अवशेष, माइक्रोवेव रेडिएशन के रूप में अब भी अंतरिक्ष में मौजूद हैं, बिगबैंग के इन अवशेषों को ही कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड या सीएमबी कहते हैं। इन्हें पकड़ने के लिए नासा ने पूरी तरह कॉस्मोलॉजी को समर्पित एक खास मिशन ‘द कॉस्मिक बैकग्राउंड एक्सप्लोरर’ या कोबे 1989 को अंतरिक्ष भेजा था। कोबे मिशन ने जब बिगबैंग के आफ्टरग्लो यानि कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड को पकड़ लिया तो विज्ञान की दुनिया में सनसनी सी दौड़ गई। ये इस बात का सीधा सबूत था कि बिगबैंग का सिद्धांत सही है और उत्पत्ति के बाद से ही ब्रह्मांड लगातार फैल रहा है। नासा ने इसकी अगली कड़ी और कोबे के नतीजों को क्रॉसचेक करने के लिए एक दूसरा मिशन ‘विलकिन्सन माइक्रोवेव एनीसोट्रॉपी प्रोब’ जो डब्लूमैप के नाम से भी मशहूर हुआ, को 2001 में अंतरिक्ष भेजा। मिशन डब्लूमैप ने भी कोबे के नतीजों की पुष्टि कर दी। इससे लगातार प्रसारित होते या फैलते ब्रह्मांड के सिद्धांत को जबरदस्त बल मिला। इन नतीजों से हम जान सके कि सीएमबी के रूप में बिगबैंग के अवशेष पूरे अंतरिक्ष में बिखरे हुए हैं। पूरे अंतरिक्ष का तापमान करीब एक सा ही है, लेकिन स्पेस-टाइम में मौजूद सिकुड़न को जब फैलता ब्रह्मांड सीधा करता है तो इससे गुरुत्वाकर्षण की तरंगें फूटती हैं और अंतरिक्ष के तापमान में हल्का सा अंतर आ जाता है। मिशन कोबे और डब्लूमैप ने सीएमबी के साथ अंतरिक्ष के तापमान में इस हल्के अंतर को भी पकड़ा था। और इसी के साथ साबित हो गया कि बिगबैंग सिद्धांत सही है। स्पेसक्राफ्ट प्लांक एक स्पेस ऑब्जरवेटरी है, जिसे यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने 2009 को अंतरिक्ष भेजा था। दो साल से काम कर रही ऑब्जरवेटरी प्लांक अंतरिक्ष में सभी दिशाओं में सीएमबी पकड़ रही है, वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि प्लांक ब्रह्मांड के फैलने से पैदा होने वाली गुरुत्वाकर्षण तरंगों को भी पकड़ने में कामयाब रहेगा।
सवाल – आइंस्टीन ने कॉस्मोलॉजिकल कॉन्सटेंट को अपनी सबसे बड़ी भूल करार दिया था। आपकी सबसे बड़ी भूल क्या है ?
प्रो. हॉकिंग – मैं समझता था कि सूचनाएं (information) ब्लैकहोल में जाकर नष्ट हो जाती हैं। लेकिन ‘एंटी डि सिटर/ कन्फॉर्मल फील्ड थ्योरी करेस्पान्डेंस’ (AdS/CFT correspondence) ने मुझे अपने विचार बदलने पर मजबूर कर दिया। ये मेरी सबसे बड़ी भूल, कम से कम साइंस में सबसे बड़ी भूल थी।
संपादक – सबसे पहले बात ‘कॉस्मोलॉजिकल कॉन्सटेंट’ की। फिजिकल कॉस्मोलॉजी में ‘कॉस्मोलॉजिकल कॉन्सटेंट’ ग्रीक अक्षर लैम्डा (Λ) से अभिव्यक्त किया जाता है। ‘कॉस्मोलॉजिकल कॉन्सटेंट’ अल्बर्ट आइंस्टीन की देन है, उन्होंने अपनी जनरल रिलेटिविटी की ओरीजनल थ्योरी में ब्रह्मांड की स्थिरता को गणितीय रूप से साबित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया था। क्योंकि आइंस्टीन मानते थे कि ब्रह्मांड स्थिर है। बाद में एडविन हब्बल के मशहूर प्रयोग ‘हब्बल रेडशिफ्ट’ से साबित हो गया कि ब्रह्मांड स्थिर नहीं है, बल्कि ये लगातार फैल रहा है। स्थिर ब्रह्मांड ही आइंस्टीन के जनरल रिलेटिविटी सिद्धांत का आधार था, जिसे साबित करने के लिए उन्होंने गणितीय समीकरणों में ‘कॉस्मोलॉजिकल कॉन्सटेंट’ का सहारा भी लिया था, लेकिन हब्बल रेडशिफ्ट प्रयोग से वो गलत साबित हो गया। आइंस्टीन ने इसे अपनी सबसे बड़ी भूल करार दिया और उन्हें जनरल रिलेटिविटी सिद्धांत में कुछ सुधार भी करने पड़े।
अब चर्चा उसकी जो प्रो. हॉकिंग कह रहे हैं। ब्लैकहोल सबकुछ निगल लेता है, यहां तक कि बेहद करीब आ जाने वाली इन्फॉर्मेशन को भी। लेकिन 1975 में प्रो. हॉकिंग के साथ काम करते हुए इस्राइली फिजिसिस्ट जैकब बेकेन्सटाइन ने दिखाया कि ब्लैकहोल्स बड़े आहिस्ता के साथ रेडिएशन छोड़ते हैं, जिससे वो वाष्पीकृत होकर बाद में खत्म हो जाते हैं। फिर, उस इन्फॉर्मेशन का क्या होता है, जिसे ब्लैकहोल निगल जाते हैं ? प्रो. हॉकिंग दसियों साल से ये तर्क देते रहे थे कि ब्लैकहोल में जाकर इन्फॉर्मेशन नष्ट हो जाती है। लेकिन निरंतरता के विचार (ideas of continuity) और कार्य-कारण सिद्धांत के लिए प्रो. हॉकिंग का ये तर्क हमेशा एक एक बड़ी चुनौती बना हुआ था। 1997 में जुआन माल्डासीना ने ‘एंटी डे-सिटर/ कन्फर्मल फील्ड थ्योरी करेस्पान्डेंस’ (Anti-de-Sitter/conformal field theory correspondence) या AdS/CFT के नाम से एक गणितीय शॉर्टकट विकसित किया। इस शॉर्टकट ने किसी ब्लैकहोल जैसी स्पेस-टाइम ज्यामेट्री को उस स्पेस बाउंड्री से सरल फिजिक्स के साथ संबंधित कर दिया। प्रो. स्टीफन हॉकिंग को अब अपनी अवधारणा बदलनी पड़ी और 2004 में AdS/CFT नाम के इसी गणितीय शॉर्टकट का इस्तेमाल करके उन्होंने ये दिखाया कि किस तरह इवेंट होराइजन के मुहाने या क्वांटम-मैकेनिकल विक्षोभ के जरिए किस तरह इन्फॉर्मेशन ब्लैकहोल से लीक होकर हमारी दुनिया में वापस आ जाती है। इस भूलसुधार की वजह से प्रो. स्टीफन हॉकिंग वो मशहूर शर्त हार गए जो उन्होंने अपने मित्र वैज्ञानिक जॉन प्रेसकिल के साथ करीब 10 साल पहले लगाई थी।
सवाल – वो ऐसी कौन सी खोज है, जिससी वजह से ब्रह्मांड के बारे में हमारी समझ में सबसे ज्यादा क्रांतिकारी बदलाव आया है?
प्रो. हॉकिंग – अब तक ज्ञात मूलभूत कणों के लिए सुपरसिमिट्रिक पार्टनर्स की खोज, जो कि संभवत: लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर में हुई है। ये खोज मशहूर एम-थ्योरी के हक में सबसे मजबूत सबूत पेश करती है।
संपादक – जिनेवा की अंडरग्राउंड हाई इनर्जी पार्टिकिल फिजिक्स लैब सेर्न के खास पार्टिकिल कोलाइडर ‘लॉर्ज हैड्रॉन कोलाइडर’ का प्रमुख लक्ष्य है सुपरसिमिट्रिक पार्टिकिल्स की खोज। हिग्स-बोसॉन की खोज के साथ ही पार्टिकिल फिजिक्स का स्टैंडर्ड मॉडल भी पूरा हो जाएगा। लेकिन अगर सभी ज्ञात आधारभूत कणों (elementary particles) का कोई भारी-भरकम ‘सुपरपार्टनर’ भी है, तो हमें कई सारी समस्याओं का हल तलाशना होगा। ‘सुपरसिमिट्री’ के सबूत ‘एम-थ्योरी’ के पक्ष में हैं। आइए अब एक-एक करके इन साइंस टर्म्स को समझें।
एम-थ्योरी - थ्योरेटिकल फिजिक्स में ‘एम-थ्योरी’ स्ट्रिंग थ्योरी का ही एक विस्तार है, जिसमें अब तक 11-डायमेंशन्स की पहचान की जा चुकी है। इस थ्योरी में ‘एम’ का मतलब ‘मेंबरेन’ है, नोबेल विजेता फिजिसिस्ट मिशियो काकू ‘एम’ को मदर कहते हैं।
सुपर पार्टनर्स – पार्टिकिल फिजिक्स में सुपरपार्टनर्स सैद्धांतिक एलीमेंट्री पार्टिकिल्स या मूलभूत कण हैं। मौजूद हाई इनर्जी फिजिक्स में सुपरसिमिट्री एक ऐसा सिद्धांत है जो हिग्स-बोसॉन या गॉड पार्टिकिल्स जैसे शैडो पार्टिकिल्स की संभावना पर जोर देता है।
सुपरसिमिट्री – पार्टिकिल फिजिक्स में सुपरसिमिट्री को ‘सूसी’ भी कहते हैं। सुपरसिमिट्री एक स्पिन वाले मूलभूत कणों को आधे यूनिट के स्पिन वाले दूसरे कणों के साथ संबंधित करती है, और इस तरह के संबंध वाले कणों को ‘सुपरपार्टनर्स’ कहते हैं।
एलीमेंट्री पार्टिकिल्स – पार्टिकिल फिजिक्स में एलीमेंट्री पार्टिकिल्स या मूलभूत कण उन्हें कहा जाता है जो खुद से छोटे कणों से नहीं बनते। यानि उनका कोई भीतरी सबस्ट्रक्चर नहीं होता। इसलिए ऐसे एलीमेंट्री पार्टिकिल्स जिनका कोई सबस्ट्रक्चर नहीं होता, उन्हें ब्रह्मांड का निर्माता माना जाता है। ये एलीमेंट्री पार्टिकिल्स वो ईंटें हैं जिनसे संपूर्ण ब्रह्मांड और सभी ज्ञात तत्वों के कणों का निर्माण हुआ है।
सुपरसिमिट्री के सबूत सीधे-सीधे ‘एम-थ्योरी’ यानि 11-डायमेंशनल स्ट्रिंग थ्योरी का समर्थन करते हैं। ‘थ्योरी आफ एवरीथिंग’ के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा भी यही है।
सवाल – अगर आप वर्तमान में एक युवा फिजिसिस्ट होते, जो अब अपनी शुरुआत कर रहा है, तो आप क्या पढ़ते?
प्रो. हॉकिंग – तो मेरे पास एक नया विचार होता, जिससे एक नए क्षेत्र के दरवाजे खुलते
सवाल – दिन के वक्त आप ज्यादातर क्या सोंचते रहते हैं?
प्रो. हॉकिंग – महिलाएं, वो अपने आप में एक संपूर्ण रहस्य हैं
प्रस्तुति - संदीप निगम
एक जीवट व्यक्तित्व को उनके ७०वे जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंStephen hawking is great Scientist and happy birth 2 u .
जवाब देंहटाएंMeri pasandeeda blog listo mein is blog ka bhi naam shamilhai....
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा,कौतुहल्पुर्ण, उपयोगी, साइट है ।धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंActual structure of a black hole oscillate between two different confocal oblate spheroids. These ideas of Pro. Hawkings are completely wrong
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