

नासा के लुनर रिकॉनिसेंस ऑरबिटर ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर ऐसी जगहों की स्कैनिंग की है जो हमेशा अंधेरे में डूबे रहते हैं और जहां तापमान शून्य से 240 डिग्री नीचे रहता है। 1994 में चंद्रमा पर गए नासा के एक दूसरे मिशन क्लीमेंटाइन ने पहली बार ये संभावना जताई थी कि चंद्रमा के इन भीषण ठंड वाले इलाकों के गड्ढ़ों में पानी बर्फ के रूप में मौजूद हो सकता है। तब से चंद्रमा पर पानी की तलाश की जा रही थी, लेकिन वहां पानी की मौजूदगी साबित करने वाले प्रमाण हमें अब तक नहीं मिल सके थे।
चंद्रमा पर पानी के ठोस संकेत पहली बार मिल जाने के बाद अब दुनियाभर के वैज्ञानिकों की निगाहें 9 अक्टूबर को चंद्रमा पर होने वाले एक महत्वपूर्ण प्रयोग पर जा टिकी हैं। इस दिन नासा का स्पेसक्राफ्ट लुनर रिकॉनिसेंस ऑरबिटर साथ गए एक खास इम्पैक्टर की टक्कर चंद्रमा से करवाएगा। चंद्रमा से होने वाली इस टक्कर से उठने वाले धूल के गुबार में पानी के कणों की मौजूदगी तलाशी जाएगी।
ये जो नासा कम्पनी ही लोगो को ज्यादा मुर्ख बनाती है.
जवाब देंहटाएंसबसे पहेले कहेते है के वहा हवा और पानी नहीं, ओक्सीजन नहीं और आज कह रहे है के पानी है.