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गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

मंगल ग्रह पर 'पहला मानव मिशन' लैंडिग को तैयार

पहला अंतरराष्ट्रीय मानव मंगल मिशन, आठ महीनों के लंबे सफर के बाद मंगल ग्रह की कक्षा में कामयाबी के साथ प्रवेश कर चुका है। चौंकिए मत, तीन देशों के छह मंगलयात्री मंगल ग्रह पर अब लैंड करने की तैयारी में हैं, ये बात अलग है कि ये असली मिशन नहीं, बल्कि एक सिमुलेशन है। जी हां, मंगल ग्रह पर पहला मानव मिशन भेजने से पहले कुछ सवालों के जवाब तलाशना बेहद जरूरी था, जैसे - 8 महीने लंबा मंगल का सफर मंगल यात्रियों की मन:स्थिति पर क्या असर डालेगा? मंगलयात्री इस लंबे सफर के दौरान अकेलेपन की समस्या का सामना कैसे करेंगे? अलग-अलग देशों के मंगलयात्रियों के बीच मानव व्यवहार से संबंधित कैसी-कैसी समस्याएं आ सकती हैं? कोई आपात स्थिति आने पर मंगलयात्री उसका सामना कैसे करेंगे और एक स्पेसक्राफ्ट के बेहद सीमित से माहौल में उनके समाधान क्या होंगे? इन सारे सवालों का जवाब तलाशने के लिए मॉस्को के इंस्टीट्यूट आफ बायोमेडिकल प्रॉब्लम्स में मार्स-500 नाम का एक सिमुलेटेड मानव मंगल अभियान का प्रयोग किया जा रहा है। सिमुलेटेड ह्युमन मार्स मिशन यानि मार्स-500 में तीन रूसी, दो यूरोपियन और एक चीन का यानि कुल छह प्रायोगिक मंगलयात्री एक डिब्बे जैसे स्पेसक्राफ्ट के मॉडल में पिछले आठ महीने से बंद हैं। बिना किसी खिड़की वाले इस मॉडल में बंद ये सभी छह प्रायोगिक मंगलयात्री सिमुलेट कर रहे हैं कि मानो ये सभी मंगल के सफर पर निकल चुके हैं। कुल 520 दिनों के इस मिशन मार्स-500 में आठ महीने बिताने के बाद अब ये सभी प्रायोगिक अंतरिक्षयात्री अपने स्पेसक्राफ्ट के सिमुलेटेड मॉड्यूल के साथ मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश कर चुके हैं।
ये प्रयोग केवल मनोरंजन के लिए नहीं किया जा रहा, बल्कि इसके साथ बेहद गंभीर साइंस और कई अहम अध्ययन जुड़े हैं। मार्स-500 से मिलने वाले नतीजों से भावी मानव मंगल अभियान की रूपरेखा तय होगी। मार्स-500 के चालक दल के सभी सदस्य बिल्कुल इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों जैसा ही व्यवहार कर रहे हैं। उन्हें अंतरिक्षयात्रियों को दिया जाने वाला खाना ही दिया जा रहा है और उन्हें अंतरिक्षयाक्षियो की तरह ही रोज व्यायाम भी करना होता है। यहां तक कि मिशन कंट्रोल रूम के कमांड भी हर दिन तय होने वाली दूरी के हिसाब से ही कुछ देरी के साथ इन मंगलयात्रियों को मिलते हैं। मंगल ग्रह तक की वर्चुअल फ्लाइट के 244 दिन पूरे हो जाने के बाद अब मार्स-500 के तीन मंगलयात्री बकायदा स्पेससूट पहकर एक सिमुलेटेड लैंडर में बैठकर अब 12 फरवरी को मंगल ग्रह पर लैंड करेंगे और इसके दो दिन बाद यानि 14 फरवरी को बकायदा हैच खोलकर मंगल ग्रह की प्रायोगिक जमीन पर लैंड करेंगे। इन मंगलयात्रियों को मंगल ग्रह पर तीन ईवीए यानि स्पेसक्राफ्ट से बाहर निकलकर चहल-कदमी करनी है। सबसे पहले 14 फरवरी को एलेक्जेंडर स्मोलेव्स्की और डियेगो उरबिना सबसे पहले मंगल की बनावटी जमीन पर उतरेंगे। इसके बाद 18 फरवरी को स्मोलेव्स्की और वांग यू और 22 फरवरी को स्मोलेव्स्की और उरबिना फिर से और अंतिम सिमुलेटेड मार्स-वॉक करेंगे।
यूरोपियन स्पेस एजेंसी के ह्युमन स्पेसफ्लाइट डायरेक्टर सिमोनेट्टा डि-पिपो कहते हैं," मार्स-500 एक विजनरी एक्सपेरीमेंट है। अंतरिक्ष अनुसंधान में आगे बढ़ने और कुछ ठोस कर दिखाने के लिए यूरोप अब तैयार है। हमारी टेक्नोलॉजी, हमारी साइंस हर दिन और ज्यादा मजबूत होती जा रही है। मार्स-500 अभी एक सिमुलेशन मिशन है, लेकिन हम इसे हकीकत में बदल कर दिखाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं।"

2 टिप्‍पणियां:

  1. बढिया जानकारी. रोचक भी. अच्छा लगा जानकर.
    - विवेक गुप्ता

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  2. मार्स-500 के बारे में जानकारी का शुक्रिया।

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