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सोमवार, 16 मार्च 2009

एक अनोखी खोज !




शिकागो के बटाविया में मौजूद फर्मी लैब के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी खोज की है , जिससे आधुनिक भौतिक विज्ञान की धारा ही अब बदल जाएगी। फर्मी लैब के पार्टिकिल कोलाइडर मशीन में 20 अरब कणों की टक्कर से सिंगल टॉप क्वार्क्स कण पैदा हुआ है। खास बात ये है कि 1995 में सिंगल टॉप क्वार्क की सैद्धांतिक खोज के बाद से ही वैज्ञानिक इस काल्पनिक कण को प्रयोगशाला में पैदा करने की कोशिश में जुटे हुए थे। साइंस की ये 14 साल पुरानी कोशिश अब कहीं जाकर कामयाब हुई है। सिंगल टॉप क्वार्क, हिग्स बोसॉन के जैसा ही एक सैद्धांतिक कण है। दरअसल 14 अरब साल पहले जब ऊर्जा के महाविस्फोट के बाद पदार्थ के शुरुआती कणों ने जन्म लिया तो उन कणों का गुण-धर्म तय करने वाले कई दूसरे अनजाने कण भी अस्तित्व में आ गए, मिसाल के तौर पर सिंगल टॉप क्वार्क और हिग्स बोसॉन। आधुनिक भौतिकी के सिद्धांत बताते हैं कि हिग्स-बोसॉन की मौजूदगी ने ही पदार्थ के कणों में वजन पैदा किया। लेकिन हिग्स बोसॉन इस कदर रहस्यमय हैं कि वैज्ञानिकों ने उन्हें गॉड पार्टिकिल यानि ईश्वरीय कणों का नाम दे रखा है। 2008 में 10 अगस्त को हुए लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर के महाप्रयोग से भी इन गॉड पार्टिकिल्स की मौजूदगी के सबूत मिलने की उम्मीद बंधी थी, लेकिन तकनीकी गड़बड़ी की वजह से ये प्रयोग ही बीच में बंद कर देना पड़ा, अब ये महाप्रयोग 2009 के अंत में होगा। लेकिन इसबीच फर्मी लैब ने एलएचसी से बाजी मार ली है। फर्मी लैब ने सिंगल टॉप क्वार्क कण को पैदा कर भूसे में से सूई ढूंढ निकालने जैसा कारनामा कर दिखाया है। इस खोज के बाद पूरे भौतिक विज्ञान जगत का यकीन पुख्ता हो गया है कि वो गॉड-पार्टिकिल को भी खोज निकालने में कामयाब रहेंगे। दरअसल, वैज्ञानिक एक सवाल पर हमेशा से बहस करते रहे हैं कि ब्रह्मांड की चीजें, यहां तक कि इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन जैसे मूल अणुओं में मास यानि द्रव्यमान कहां से आता है। द्रव्यमान को बोलचाल की भाषा में हम वजन समझ लेते हैं लेकिन ये वजन से बिल्कुल अलग है। असल में जब द्रव्यमान पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति काम करती तो वजन पैदा होता है। मिसाल के लिए अगर हम चांद पर जाएं तो हमारे शरीर का द्रव्यमान वही रहेगा लेकिन उसका वजन कम हो जाएगा। वजह ये कि चांद पर गुरुत्वाकर्षण में कमी आने से हमारा वजन घट जाता है। भौतिक विज्ञान के मुताबिक पदार्थ में वजन का समावेश होता है हिग्स-बोसॉन यानि गॉड पार्टिकिल की वजह से जो अब तक भौतिक वैज्ञानिकों की आंखों से बचता रहा है। हिग्स बोसोन कण की खोज 1964 में ब्रिटिश भौतिकविद् पीटर हिग्स और भारतीय भौतिक विज्ञानी सत्येंद्रनाथ बोस ने की थी। 1924 में बोस ने एक सांख्यिकीय गणना का जिक्र करते हुए एक पत्र आइंस्टीन के पास भेजा था, जिसके आधार पर बोस-आइंस्टीन के गैस को द्रवीकृत करने के सिद्धांत का जन्म हुआ। इस सिद्धांत के आधार पर ही प्राथमिक कणों को दो भागों में बांटा जा सका और इनमें से एक का नाम बोसोन रखा गया जबकि दूसरे का नाम इटली के भौतिक वैज्ञानिक इनरिको फर्मी के नाम पर रखा गया। दशकों बाद 1964 में ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्स ने बिग बैंग के बाद एक सेकेंड के अरबवें हिस्से में ब्रह्मांड के द्रव्यों को मिलने वाले भार का सिद्धांत दिया, जो बोस के बोसोन सिद्धांत पर ही आधारित था। इसे बाद में 'हिग्स-बोसोन' के नाम से जाना गया। इस सिद्धांत ने न केवल ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्यों को जानने में मददगार साबित हुआ बल्कि इसके स्वरूप को परिभाषित करने में भी मदद की।
गॉड पार्टिकिल के रहस्य का एक संक्षिप्त इतिहास है। तीस वर्ष पूर्व वैज्ञानिकों ने समीकरणों की एक श्रृंखला बनायी थी, जिसे स्टैंडर्ड मॉडल कहा गया। इसके अनुसार मूलभूत कणों और बलों के संबंध से ब्रह्मांड की संरचना समझायी गयी थी। लेकिन मॉडल मे कुछ कमियां हैं। भौतिकी की यह फितरत रही है कि एक गुत्थी सुलझते ही दूसरी आ खड़ी होती है। जिसे सुलझाने के लिए फिर नए सिरे से खोज शुरू की जाती है। ऐसी ही एक गुत्थी है, पदार्थ में मौजूद भार के मामले में। समस्या ये थी कि कुछ कणों का भार होता है और कुछ का नहीं। मुख्य थ्योरी ये थी कि कण का भार इस बात पर निर्भर करता है कि वो रहस्यमयी ‘हिग्स फील्ड’ के साथ किस प्रकार अंतरक्रिया करता है, क्योंकि ये फील्ड सारे अंतरिक्ष में फैला हुआ है।
सिंगल टॉप क्वार्क कणों की खोज ने कई गुत्थियां हल कर दी हैं, लेकिन अब गॉड पार्टिकिल को खोज निकालने की नई गुत्थी सामने आ खड़ी हुई है। लेकिन वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि टॉप क्वार्क की खोज के बाद अब गॉड पार्टिकिल की खोज के नए दरवाजे खुल गए हैं।

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