
पहले मंगलयात्रियों को लेकर रूस और यूरोपियन स्पेस एजेंसी के एक मिलेजुले प्रयोग 'मार्स 500' के तहत छह लोगों को डिब्बेनुमा एक ऐसे घर में बंद कर दिया गया है, जिसमें एक भी खिड़की नहीं है। इन छह प्रायोगिक मंगलयात्रियों में तीन रूसी, दो यूरोपियन और एक चीन का है। इन्हें मार्स 500 स्टेशन में भेजकर स्टेशन का अकेला दरवाजा सीलबंद कर दिया गया है। इस प्रयोग का मकसद ये पता लगाना है कि मंगल जाने वाले भविष्य के किसी स्पेसशिप पर सवार मंगलयात्रियों के दिलोदिमाग पर करीब छह महीने लंबा ये सफर कैसा असर डालेगा? घर-परिवार-धरती से दूर चार-पांच लोगों की टीम स्पेसशिप के सीलबंद माहौल में आपस में कैसा बर्ताव करेगी? और ये अकेलापन और उबाऊ माहौल मंगलयात्रियों की मनोदशा और उनकी सेहत पर कितना असर डालेगा? मार्स 500 प्रयोग के तहत ये सभी छह लोग बिल्कुल उसी तरह रोजमर्रा का कामकाज करेंगे मानो वो मंगल के लंबे सफर पर हों।
इस प्रयोग में जान-बूझकर किसी भी महिला को शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि डर इस बात का है कि टीम में किसी महिला के होने से टीम गुटों में बंट सकती है, आपस में मतभेद उत्पन्न हो सकते हैं और यौन संबंध भी बन सकते हैं। ये सारी बातें मार्स 500 के प्रयोग को मकसद से भटका सकती हैं। बहरहाल महिलाओं ने मार्स 500 के आयोजकों पर लिंग के आधार भेदभाव का आरोप लगाया है।
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