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सोमवार, 16 अगस्त 2010

अंतरिक्ष का ओवन- शुक्र

अंतरिक्ष अन्वेषण की अब तक की कोशिशों के दौरान हमने सूर्य के करीब मौजूद सौरमंडल के पहले दो ग्रहों पर बहुत कम नजर डाली है। जबकि पृथ्वी के दूसरी ओर मौजूद मंगल, बृहस्पति और शनि के बारे में हमने व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन किए हैं। सौरमंडल का पहले ग्रह बुध और दूसरे ग्रह शुक्र के बारे में हमारी जानकारी बेहद कम है। शीत युद्ध के दौरान इन ग्रहों को कुछ मिशन्स भेजे गए थे, फिर लंबे समय तक यहां कोई साइंटिफिक मिशन नहीं भेजा गया। नासा अब हमारे पड़ोसी ग्रह शुक्र पर एक लैंडर मिशन ‘सेज’ भेजने की योजना पर काम कर रहा है। इस अवसर पर शुक्र ग्रह के बारे में पेश है वायेजर की खास प्रस्तुति -
हमारे सौरमंडल का दूसरा ग्रह, ऐसी अनोखी दुनिया है जिसके बारे में हम अब भी बहुत कम जानते हैं। शुक्र ग्रह के बारे में मशहूर है कि ये ऐसी जगह है, शैतान भी जहां कदम रखने से घबराता है। ऐसा क्यों ? इसे ऐसे समझिए मान लीजिए कि आपने ओवन को ऑन करके उसमें अपना आईपॉड रख दिया, कुछ ही देर में आईपॉड की जगह आपको पिघली एल्यूमीनियम और प्लास्टिक का एक खदबदाता सा ढेर नजर आएगा। ये ओवन शुक्र ग्रह की जमीन है और ये आईपॉड वहां भेजा गया एक स्पेसक्राफ्ट। अब मान लीजिए कि आपने एक ऐसी नई डिवाइस बना ली है जो ओवन में आईपॉड के पिघलने की प्रक्रिया को थोड़े वक्त के लिए टाल कर उसे लंबा खींच सकती है। शुक्र ग्रह पर किसी रोवर मिशन को भेजने के लिए भी बिल्कुल ऐसा ही करना होगा।
शुक्र ग्रह पर पहली लैंडिंग 40 साल पहले हुई थी, जब सोवियत प्रोब वेरेना-7 पहली बार शुक्र की पथरीली जमीन पर उतरा था। लैंडिग के 25 मिनट बाद ही वेरेना-7 की बैटरियां खत्म हो गईं, लेकिन तब तक ये प्रोब शुक्र की जमीन के बारे में काफी जानकारी भेज चुका था। शुक्र के बारे में अब भी बहुत से सवालों के जवाब हम नहीं जानते और जिन्हें तलाशने के लिए हमें एक बार फिर शुक्र ग्रह पर जाना होगा। शुक्र ग्रह पर कभी महासागर भी थे और शायद उसमें जिंदगी भी कुछ रूप भी पनप रहे होंगे। लेकिन इस ग्रह पर कुछ ऐसा हुआ कि सारा महासागर बहुत जल्दी ही भाप बनकर उड़ गया। यूरोपियन स्पेस एजेंसी के मिशन वीनस एक्सप्रेस ने बताया है कि शुक्र ग्रह का सारा हाइड्रोजन तेजी से अंतरिक्ष में लीक होता जा रहा है। सूरज की किरणें जब पानी के अणुओं को तोड़ती हैं तो उसमें से हाइड्रोजन निकलता है।
राडार और इंफ्रारेड मैपिंग से हमें इस बात के काफी सबूत मिले हैं कि शुक्र की जमीन पर मौजूद ऊंचे-ऊंचे विशाल पठार कभी इस ग्रह के महाद्वीप थे। अगर इस ग्रह पर गए किसी लैंडर मिशन को यहां की जमीन पर ग्रेनाइट मिलता है तो इस तथ्य की पुष्टि हो जाएगी। क्योंकि ग्रेनाइट तभी बनता है जब बेहद शक्तिशाली दबाव पर लावा और समुद्र का पानी आपस में मिलते हैं। ये भी मुमकिन है कि जब समंदर सूखने लगा होगा तब समंदर के बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीवों ने यहां के वायुमंडल को अपना घर बना लिया होगा। क्योंकि शुक्र का वायुमंडल बेहद घना है, हालांकि इसमें मुख्य रूप से गैस के रूप में सल्फ्यूरिक एसिड ही है, लेकिन फिर भी पानी की भाप के बादल भी भारी तादाद में मौजूद हैं। शुक्र के वातावरण की पर्त बेहद मोटी है और सतह से करीब 60-70 किलोमीटर की ऊंचाई पर वातावरण की ऐसी पर्त मिलती है, जहां पानी की भाप के बेहद घने बादल मौजूद हैं और यहां का तापमान सतह से बेहद कम करीब 60 डिग्री सेंटीग्रेड तक है। शुक्र ग्रह में केवल यही ऐसी जगह है, जहां हम बसने की सोंच सकते हैं। ये बात अलग है कि इसके लिए हमें अपनी बस्तियां हवा में ही बनानी होंगी।
शुक्र ग्रह के ऐसे कई रहस्य हैं जिन्हें समझने के लिए नासा अब वहां अपना पहला लैंडर मिशन भेजने की तैयारी कर रहा है। शुक्र पर लैंड करने वाले नासा के इस पहले मिशन का नाम होगा सरफेस एंड एटमॉस्फियर जियोकेमिकल एक्सप्लोरर यानि ‘सेज।’ लैंडर मिशन सेज के साथ एक रोवर भी होगा, जो कुछ देर तक शुक्र की जमीन पर चहल-कदमी करके वैज्ञानिक प्रयोग करेगा और फिर इसके बाद 500 डिग्री सेंटीग्रेड के प्रचंड तापमान से दहकती शुक्र की उस नारंगी दुनिया में पिघलने लगेगा, बिल्कुल ओवन में रखे उस आईपॉड की तरह।

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