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गुरुवार, 1 जुलाई 2010

धरती और वातावरण की गर्मी पर पेड़-पौधों की प्रतिक्रिया

अब तक माना जाता रहा है कि पेड़-पौधे धरती का तापमान कम रखने में मददगार हो सकते हैं, लेकिन बैंगलोर आईआईटी के प्रोफेसर गोविंदसामी बाला के मुताबिक अगर वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता हो गई तो पेड़-पौधे धरती की सतह को सीधे गर्म कर देंगे। बैंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) के प्रोफेसर गोविंदसामी बाला ने गरम होते वायुमंडल पर पेड़-पौधों की प्रतिक्रिया का अध्ययन किया है। उन्होंने बताया कि हाल ही में किए गए एक इंटरनेशनल मॉडल के अध्ययन में इस अवधारणा पर जोर दिया गया है कि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता सीधे तौर पर पेड़-पौधों पर असर डालेगी। ऐसी स्थिति में ये पेड़-पौधे वायुमंडल की कार्बन डाई डाइऑक्साइड से बढ़ने वाले तापमान की तुलना में ज्यादा गर्मी पैदा करेंगे।
प्रो. बाला इस अध्ययन रिपोर्ट के को-राइटर हैं। वातावरण की गर्मी बढ़ने पर पेड़-पौधों की प्रतिक्रिया का अध्ययन उन्होंने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के कार्नेगी इंस्टीट्यूशन फॉर साइंस के लॉंग काओ और केन कैल्डेरिया के साथ संयुक्त रूप से किया है। उन्होंने बताया कि कार्बन डाइऑक्साइड ग्रीनहाउस गैस है और धरती के तापमान में वृद्धि करती है। वायुमंडल में इसकी अधिकता से पौधे इसका शोषण भी कम करते हैं और नतीजतन उनसे ठंडी वाष्प भी कम ही निकलती है।
प्रो. बाला ने कहा आने वाले समय में वैश्विक जलवायु परिवर्तन का पूर्वानुमान लगाने के लिए प्रयासरत वैज्ञानिकों के लिए यह अध्ययन महत्वपूर्ण है। यह अध्ययन उनके जलवायु संबंधी मॉडलों में पादप जैवविज्ञान के महत्व को रेखांकित करता है।
प्रो. बाला ने बताया जब गर्मी बढ़ जाती है तब हमारे शरीर से अधिक पसीना निकलता है। हमारी त्वचा के छिद्रों द्वारा पानी का अधिक वाष्पीकरण होता है, जिससे हमारे शरीर का तापमान नहीं बढ़ पाता। इसी तरह जब पौधे सूर्य के फोटॉन का इस्तेमाल कर प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया से अपने लिए भोजन तैयार करते हैं तो पत्तियों की सतह पर पाए जाने वाले छिद्रों (स्टोमेटा) से पानी का वाष्पीकरण होता है और पौधों का तापमान सामान्य बना रहता है। लेकिन वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता हो जाने पर स्टोमेटा ज्यादा नहीं खुलते और वाष्पीकरण कम होता है। इसके फलस्वरूप पौधे में वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है और पौधों का तापमान बढ़ने लगता है, जिससे धरती की सतह का तापमान भी बढ़ सकता है।
स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रो. केन कैल्डेरिया के मुताबिक धरती की जलवायु व्यवस्था पर पेड़-पौधों का जटिल और विविधतापूर्ण असर पड़ता है। पौधे वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड सोखकर धरती को ठंडा रखने में मदद करते हैं, लेकिन उनके कुछ दूसरे प्रभाव भी होते हैं, मिसाल के तौर पर पौधे वाष्पोत्सर्जन कर वायुमंडल और धरती के तापमान को भी प्रभावित करते हैं। इन सभी कारकों पर ध्यान दिए बिना जलवायु के बारे में पूर्वानुमान लगाना लगभग असंभव है। इस अंतरराष्ट्रीय अध्ययन की रिपोर्ट ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द यूएस नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ के तीन से सात मई के ऑनलाइन संस्करण में प्रकाशित हुए हैं।
धरती और वातावरण की गर्मी पर पेड़-पौधों की प्रतिक्रिया के मद्देनजर ये अध्ययन रिपोर्ट महत्वपूर्ण है, और मैं इसपर टिप्पणी करने से खुद को नहीं रोक पा रहा हूं। अंतरराष्ट्रीय साइंस बिरादरी में वैज्ञानिकों का एक तबका कुछ ऐसे अध्ययन में जुटा है जिनके विषय काफी सनसनीखेज हैं। इन अध्ययन रिपोर्टों को मीडिया अपने-अपने ढंग से पेश करता है। ये काफी हैरान करने वाला है कि आप पेड़-पौधों का तापमान बढ़ने को धरती के गरम होने से जोड़ रहे हैं, और ऐसा करते वक्त आप दुनियाभर में चल रहे करोड़ों एयरकंडीशनिंग यूनिट्स, रेफ्रीजरेटर्स, और गाड़ियों के हुजूम का जिक्र भी नहीं करते। ये सारी चीजें वातावरण में सबसे ज्यादा गर्मी छोड़ रही हैं। सहारा के तपते रेगिस्तान में भी रातें सर्द होती हैं, वहां कोई पेड़-पौधे नहीं हैं। सहारा मरुस्थल में भी आप अगर तपती रेत को ऊपर से हटाएं तो भीतर ठंडी रेत मिलती है। सहारा की रेत को गरमाने और उसके नीचे मौजूद रेत को ठंडा रखने में कम से कम पेड़-पौधों की कोई भूमिका नहीं है। इससे ये साबित होता है कि कम से कम धरती को गरम करने में पेड़-पौधों की कोई भूमिका नहीं है। सूरज की गरमी में धरती के गरमाने और रात होते ही धरती का ठंडा हो जाना एक प्रक्रिया है, जिसमें धरती को चारों ओर से घेरे महासागर, धरती के तापमान का अंतरिक्ष में परावर्तन और रात अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं। पेड़-पौधे वैसे ही इस धरती पर अपने वजूद को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रहे हैं, ऐसे में प्रो. बाला और दूसरे वैज्ञानिकों की इस जैसी दूसरी रिपोर्टें उन्हें धरती के विलेन के तौर पर पेश कर रही हैं। ऐसी रिपोर्टें सरकारों को पेड़-पौधों का विनाश करने का एक नया हथियार दे देंगी। धरती और वायुमंडल को असली खतरा ऐसी रिपोर्टों से ही है, किसी और चीज से नहीं।

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